Friday, 2 December 2022

अधिकार कविता में चित्रित जीवन संदेश

अधिकार रचित महादेवी वर्मा
अधिकार कविता में चित्रित जीवन संदेश 

(१) प्रस्तावना :- 

    ‘अधिकार’ कविता कवयित्री महादेवी वर्मा के प्रथम काव्य संग्रह नीहार में संकलित है | अधिकार का सामान्य अर्थ प्रभुत्व या हक़ होता हैं | अधिकार मानव इतिहास के समान शाश्वत और निरंतर है, फिरभी कवयित्री इस कविता में अपने मिटने के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए प्रयत्नशील है | पृथ्वी लोक और देवलोक का सुन्दर और मन-मोहक चित्रण किया है | मानव स्वभाव के अनुसार स्वर्ग-लोक का सुख उसे अति प्रिय हैं और उसे मनुष्य लोक का दु:ख अच्छा नहीं लगता, किन्तु कवयित्री ने इसी दु:ख के संसार को श्रेष्ठ माना हैं | मैं इस पीड़ा से भरे नाशवंत संसार में अपने जीवन की सार्थकता समजती हूँ | मेरा यह अधिकार आप मेरे पास सुरक्षित रहने दीजिए | मुझे आपके स्वर्ग लोक का सुख नहीं चाहिए, क्योंकी स्वर्ग लोक में किसी ने दुःख को जाना ही नहीं, फिर तो पीड़ा और वेदना के बगैर जीवन का कोई मूल्य नहीं | इसलिए हें ईश्वर आप मेरे मिटने के अधिकार को कायम रहने दें | यही केन्द्रीय भाव कविता में व्यक्त किया हैं तथा इस गीत कविता की कथन और कहन शैली सहज ही हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं | 


(२) अधिकार कविता का अनुभूति पक्ष :-

            ‘अधिकार’ कविता के अनुभूति पक्ष की विशेषताएँ निम्नलिखित रूप  पायी जाती हैं | जो मनुष्य हदय को नये, ताजे और आश्चर्य के भाव का आस्वादन करवाती हैं | 


१. अमर-लोक का प्रकृति-वर्णन :- 

             अधिकार कविता में कवयित्री महादेवी वर्मा ने पृथ्वी लोक से अनोखा, विशिष्ट और अमर लोक का वर्णन किया हैं | देवलोक की प्रत्येक व्यक्ति, संपत्ति, प्रकृति आदि सब कुछ अमर है | यश और अर्थ के अर्थ में ही नहीं, बल्कि जीवन के अर्थ में वहाँ मृत्यु लोक से विपरीत होता हैं | वहाँ रहने वाले का जीवन चलता ही रहता है | वे अनश्वर और अमर हैं | असली पृथ्वीवासी ईश्वर के शरणों में जाकर जिअवन-मरण के चक्र से सदा-सर्वदा के ले मिक्ति चाहते हैं | भक्तिकाल में मीरा का कृष्णमय बनकर उनमे ही समां जाने की संकल्प अपने विअढ़ से मुक्ति का ही उपाय हैं | 

              कवयित्री कविता की शुरुआत प्रकृति के सौंदर्य वर्णन से करती है, लेकिन यह प्रकृति मनुष्य लोक की प्रकृति नहीं परन्तु देवलोक तानी परलोक (स्वर्गलोक) की प्रकृति का विशिष्ट वर्णन करते हैं | जो देखने में पृथ्वी की प्रकृति सी हैं, किन्तु वह अमरलोक की प्रकृति हैं |  जिसका सौंदर्य कभी नष्ट नहीं होता, सालो-साल तक वैसी ही तारो-ताजा रहती हैं | 


“वे मुस्काते फूल, नहीं

जिनको आता हैं मुझॉना

वे तारों के दीप, नहीं

जिनको भाता है बुझ जाना |”


             कविता की प्रथम पंक्तियों में प्रकृति के सुंदर और मीठी सुगंध देने वाले फूल के जीवन का वर्णन है | दिन निकलते ही फूल छोटी सी कली से निकलकर खुशबुदार फूल बनता है और शाम का समय आते ही वही फूल मुरजाकर डालियों से नीचे गिर जाते हैं और फूल के जीवन की खुबसुरत लीलाओं का अंत होता हैं, देवलोक में खिलने वाले फूल ने मुरजाना जाना ही नहीं | प्रत्येक समय सुन्दर और खुसबुदार रहते हैं | यहाँ कवयित्री ने कहा है कि जिस फूल ने कभी दुःख जाना ही नहीं और देवलोक की भूमि पर खिले ही रहते हैं | वे फूल नहीं क्योंकि अपने जीवन की पीड़ा को उसने समजा ही नहीं | जो समय पर हँसते हुए अपने जीवन की लीलाभूमि को छोड़कर चला जाता हैं; वही जीवन सार्थक एवं सफल हैं |

             कविता की दूसरी पंक्तियों में कवयित्री ने रात्रि के आकाश में टिम-टिमाने वाले तारों का जीवन वर्णित किया हैं | रात के आसमान में चमकदार और सुन्दर चाँदनी बिखेर ने वाले तारे सुबह होते ही अस्त हो जाते हैं | अपनी छोटी सी जीवन यात्रा का अंत हो जाता है, किन्तु देवलोक के आकाश में चमकने वाले तारे कभी बजाते ही नहीं, अस्त होते ही नहीं | देवलोक में अन्धकार का आभास हिन् नहीं | केवल प्रकाश ही प्रकाश हैं | आकाश दूध सी चमकीली चाँदनी में न्हाता रहता हैं | अत: तारों ने अपने जीवन एक पहलू को देखा ही नहीं | जो सच में जीवन को चमकदार बनता है | जीवन का महत्त्व समजता है |


“वे नीलम के मेघ नहीं

जिनको है घुल जाने की चाह,

वह अन्नत ऋतुराज, नहीं

जिसने देखि जाने की रह |”



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            उक्त पंक्तियों में कवयित्री ने आकाश के नीलम से घने मेघ का चित्रण किया हैं | ये मेघ कभी घुलते ही नहीं | प्रत्येक समय आकाश में बने रहते हैं | नीलम के येसे मेघ हैं, जिनको कभी घुलने, मिटने की, गलने की चाह होती नहीं | अगर आकाश के मेघ घुलते नहीं तो उन्हें अपने जीवन की सच्चाई कैसे मालूम होंगी ? पृथ्वी लोक के मेघ बनने के साथ-साथ पिघलते भी है | इसलिए देवलोक के घने मेघ अपने जीवन सत्य वंचित रह जाते हैं | जो आनंद की अनुभूति ही नहीं कर पाते है, क्योंकि उन्होंने सुख से पर दुःख का संसार देखा ही नहीं | 

           कविता की अगली पंक्तियों में वसंतऋतु का वर्णन हैं | भारतीय साहित्य में ऋतुओं का वर्णन प्राचीन समय से किया जाता रहा हैं | वसंत ऋतु को ऋतु-राज कहा गया है | धरती पर केवल एक ऋतु जीवन पर्यन्त ही चलती रहे तो जीवन की अन्य ऋतु जैसे बारिश, धुप, ठंड तपन आदि की अनुभूति ही नहीं होगी ! देवलोक का जीवन वसंत ऋतु सा जीवन हैं | जहाँ चारों और खुशियाँ ही खुशियाँ, आनंद ही आनंद हैं | मनुष्य जीवन में शुशियों का अतिरेक भी असुंदर और अनुभूति हीन बना देता है | इसलिए समय के अनुसार पृथ्वीलोक में ऋतुएँ बदलती रहती है | उसी प्रकार जीवन की ऋतुओं में भी बदलाव होना चाहिए | तभी तो जीवन के मीठे आनंद की अनुभूति होगी | धुप ही नहीं होगी तो छाँह का अनुभव नहीं होगा | 


२. मानव जीवन का चित्रण :-       

            महादेवी वर्मा ने अधिकार कविता की इन पंक्तियों में व्यक्तिक जीवन के द्वारा समग्र मानव को सुंदर और मानवीय संदेश दिया है-


“वे सूने से नयन, नहीं 

जिसमें बनते आँसू मति,

वह प्राणों की सेज, नहीं 

जिसमें बेसुध पीड़ा सोती !”


       समुद्र में स्वाति नक्षत्र की बारिश के बूंदों से सिप में मोती पकते हैं | वैसे ही यहाँ जीवन में आँसू त्याज्य व अकाम्य नहीं हैं | वे आँखों के मोती हैं, यह पीड़ा का सौन्दर्य हैं | बेहद मूल्यवान हैं | नयन में आँसू मोती की तरह बनते है |  यह भावों का मेल हैं | ये उच्छवास या पीड़ा नहीं हैं | आँखों में चमक उनकी नमी से ही होती है, अन्यथा वे तो देवता होंगे या सुख-दुःख से पर राक्षस | जिन्हें  किसी का दुःख व कष्ट सालता ही नहीं | उसमें व्यापता ही नहीं | आंसू के बिना नयन सूने और निस्तेज हो जाते हैं | सूनापन जीवन में भावहीन दशा को प्रकट करता हैं | ये स्त्री कवि की आँख के मोती हैं | इन्हें गौर से देखिए | इना आँखों में चमक नमी से ही होती है, अन्यथा वे तो निस्तेज लगेंगी | आँसू ही मनुष्य को मनुष्य होने का प्रमाण हैं या तो वे देवता एवं ईश्वर होंगे ! आँसू के बिना नयन सूने है-केवल निस्तेज नहीं | सूनापन यानि भावहीन | सूनी आँखें एक महावरा हैं | 

      मनुष्य को प्राण का मूल्य कब पता है, जब उनके हदय के भीतर प्राणों को बेसुध करने वाली पीड़ा का अस्तित्व हो | केवल सुख के भावों के आधार पर जीवन मूल्यवान बनता नहीं, किन्तु दुःख में तप कर जब सुख मिलता हैं तो इसका मूल्य बढ़ जाता हैं | मानव हदय के अंदर सोई पीड़ा ही उसे सुन्दर बनती है | जब दुःख की गति अति तीव्र हो जाती है और प्राण तड़पने हुए बेसुध होने लगते हैं | तब हमें अपने प्राणों का मूल्य ज्ञात होता है कि जीवन में अगर प्राण नहीं रहेंगे तो क्या होंगा ? सुख के समय में तो उसकी ओर हमारा ध्यान भी जाता नहीं | 


३. देवलोक का संसार :-

        कवयित्री कविता की इन पंक्ति में अपने देव, ईश्वर और प्रियतम के अलौकिक संसार को देख कर आश्चर्य व्यक्त करती हैं | इस अपरिचित सवर्ग लोक के संसार के सम्बन्ध में अपनी अनुभूति व्यक्त करती है | 


“ऐसा तेरा लोक, वेदना नहीं,

नहीं जिसमें अवसाद,

जलना जाना नहीं,

नहीं जिसने जाना मिटने का स्वाद !” 


         हें देव, देवलोक की व्यवस्थ और परम्परा कैसी हैं ? जहाँ किसी प्रकार की कोई वेदना,पीड़ा एवं दर्द ही नहीं ! न तो वहाँ अवसाद, दुःख और बैचेनी का अस्तित्व हैं | जीवन की जलन ही ख़त्म हैं | आग ही नहीं | यह सर्व विदित है कि जो तपता नहीं, जलता नहीं | वे कभी पकता ही नहीं | आपके लोक की प्रकृति  फूल, तारों, मेघ ने कभी मिटने का स्वाद ही नहीं चखा ! आपके वहाँ के मनुष्य की आँखों से कभी भी आँसू ही नहीं हैं, क्या यही आपका स्वर्ग लोक हैं ? अपने मिटने का स्वाद का अनुभव ही उनके पास कहाँ हैं ? यही तो जीवन के अनिवार्य हिस्सा हैं | यदि ये तत्व जीवन में ण हो तो सुख की परिभाषा दी ही नहीं जा सकेंगी | यानि जीवन में तुलना का बड़ा ही महत्त्व हैं | अत: जीवन का चित्र काले और सफ़ेद रंगों के आलेखन से सुन्दर बनता हैं | 


४. देव की करुना और मिटने का अधिकार :-

        कविता की अंतिम पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने अपने आराध्य देव की ओर से मिलने वाले उपहार और मृत्यु लोक में मिले अधिकार की भावना को अभिव्यक्त करती हैं | 


“क्या अमरों का लोक मिलेगा 

तेरी करुणा का उपहार ?

रहने दो हे देव ? अरे 

यह मेरा मिटने का अधिकार !” 


           कवयित्री ईश्वर से कहती हैं कि हे देव तेरी साधना करने के बाद मुज  साधक को कृपा या उपहार स्वरूप में येसा अमर लोक मिलने वाला हैं ? अमर लोक में सुख ही सुख हैं | जहाँ दुःख की छाया भी नहीं, दुःख की अनुभूति ही नहीं | देव अगर येसा अमर लोक मिलने वाला है तो तेरा ये उपहार मुझे नहीं चाहिए, क्योंकि आपके लोक में प्रत्येक अमर है | कोई मिटता ही नहीं | खिले फूल, घने मेघ, चमकते तारें, आँसू बीन नयन और पीड़ा विहीन जीवन को देख रही हूँ | जिसमें मिटकर बनने की अनुभूति ही नहीं | अत: मुझे ये आपका येसा उपहार नहीं चाहिए | 

             मुझे मिला हुआ जीवन अच्छा लगता हैं | इस जीवन में मेरी अपनी पीड़ा, दुःख, दर्द, वेदना, सुख आदि अनुभूतियाँ विद्यमान है | इसी के बल पर जीवन धीरे-धीरे प्रवाहीत हो रहा है | जिसका अधिकार मेरे जन्म के साथ ही मुझे मिल गया था | ईश्वर आप से मेरा यही निवेदन है कि मेरे मिटने के अधिकार को सुरक्षित रहने दो | मुझे अमर लोक जाना नहीं | जहाँ मेरे का जीवन दुख एवम् अंत ही नहीं | स्थिरता हदय की अनुभूतियों को नष्ट कर देती हैं | इसीलिए भीतर की अनुभूतियों के बीना तो अच्छा है, ये मेरा मिटने का अधिकार | 


(३) अधिकार कविता का कला-पक्ष :- 

        कविता में अनुभूति पक्ष कविता का हदय है तो कला-पक्ष उनका शरीर हैं | अपनी अनुभूति को व्यक्त करने लिए कवि भाषिक साधनों का उपयोग करता है | यही तत्व कविता को अपना बाह्य स्वरूप प्रदान करता हैं | अधिकार कविता के कलागत तत्त्वों का परिचय निम्न रूप में मिलता है | 


१. भाषा-शैली :-

        काव्य रार्जन का अनिवार्य तत्त्व भाषा-शैली हैं | भाषा-शैली के माध्यम से कवि अपने भावों को अभिव्यक्त करता है | हदय के भाव को बोधगम्य और सौन्दर्य संपन्न करने के लिए कवि के पास भाषा-शैली का होना अति आवश्यक हो जाता है | कवयित्री महादेवी वर्मा भाषा-शैली की कुशल चित्रकार है | अधिकार कविता में संस्कृत प्रधान खड़ीबोली हिन्दी का प्रयोग किया है | कोमल भाव को व्यक्त करते समय सरल और सहज कोमलकान्त शब्दावली का उपयोग मिलता हैं | चित्रात्मक एवं भावात्मक शब्दावली का चित्रण अभिव्यक्ति को चिरकालीन बनाती है | यह गीत शैली में लिखी कविता है | जिसमें कथन और कहन शैली का प्रयोग किया गया है | 


२. अलंकार :- 

        अलंकार का कार्य काव्य साहित्य में शोभा बढ़ने का होता हैं | जिससे कविता में व्यक्त संवेदना सुन्दर और मनोरम्य लगे, किन्तु यह प्रयोग सहज होने चाहिए | कवयित्री अपनी कविता में अलंकर का सहज निरूपण करती है | अधिकार कविता में प्रयुक्त मानवीकरण अलंकार के द्वारा फूल का मुस्कुराता चेहरा मानव के समान प्रत्यक्ष दिखता है |


“वे मुस्काते फूल, नहीं / जिनको आता हैं मुझॉना |’’


३. छंद :-

        छंद के उपयोग से कविता लयबद्ध बनती है | इसमे संगीत भर जाता है | अधिकार कविता में अतुकांत मुक्त छंद का प्रयोग किया है | 


४. शब्द शक्ति :- 

        कवयित्री ने प्रस्तुत कविता में अभिधा और लक्षणा शब्द शक्ति का उपयोग किया है | उद्देश्य बोध करवाने के लिए व्यंजनात्मक का सहारा लिया है | अभिधा सीधा अर्थ बोध करवाती है, लक्षणा शब्द को समजने की लिए कठिनता महसूस होती है और व्यंजना किसी तीसरे व्यंजक अर्थ का ज्ञान देती है | 


५. काव्य गुण और रस :-

             अधिकार कविता में हास्य, अद्भुत और शान्त रस का समन्वय है | मुस्काते हुए फूल, अमर लोक के जीवन का आश्चर्य और मिटने के अधिकार को रहने देने के लिए शान्त रस पाया जाता हैं | 


६. प्रतीक योजना :-

         कवयित्री ने अधिकार कविता में प्रकृति, समुद्र और मानवीय जीवन के प्रतीकों का सफल उपयोग ध्यान खिचता हैं | प्रतिकों के माध्यम से हदय की सूक्ष्म भावना की अभिव्यक्ति की है |  


(४) निष्कर्ष :- 

        महादेवी वर्मा ने अधिकार कविता में स्वर्ग लोक का सुन्दर वर्णन किया है | स्वर्ग-लोक की प्रकृति और जीवन मनुष्य लोक से बुलकुल विशिष्ट है | इस लोक में दुःख, पीड़ा, वेदना और मृत्यु की संकल्पना ही नहीं | देव की उपासना करने के बाद कवयित्री को उपहार रूप स्वर्ग लोक मिलने वाला है, किन्तु वे येसे लोक में जाना नहीं चाहती | जहाँ अपने जीवन में मूल्य को समजने वाले मिटने का अधिकार न हो | कविता में बाल सहज आश्चर्य और जिंदगी को सवारने वाली पीड़ा का ज्ञान होता है | जीवन का आनंद बनकर मिटने में ही है | अनुभूति की अभिव्यक्ति के लिए कला तत्त्वों सफ़ल प्रयोग किया है | यह कविता भावपक्ष और कलापक्ष की दृष्टि से एक सफल कविता है |