(१) प्रस्तावना :-
हिंदी काव्य साहित्य में महादेवी वर्मा वेदना और आँसू के अनंत पथ की यात्री है | हिंदी कविता में प्रेम, अलौकिक प्रियतम, रहस्यवाद, दु:ख, पीड़ा एवं सूक्ष्म संवेदनाओं की अभिव्यक्ति में उनका शीर्षस्थ स्थान है | इनकी कविताएँ छोटे-छोटे मीठे झरने की तरह है | उनकी कविता में वेदना, पीड़ा, व्यथा और स्मृति, प्रेम, अलौकिक प्रेम एवं वियोग विरह की एक अनंत रागिनी गूंजती रहती है | इसी भाव संपदा को उन्होंने सूक्ष्म से सूक्ष्म और विविध रूपी छवियाँ कविता में अंकित की है | ई. स. 1930 में प्रकाशित पहला काव्य संग्रह ‘निहार’ की ‘मिटने का खेल’ कविता इसका बखूबी परिचय करवाती है | ‘मिटने का खेल’ का सामान्य अर्थ होता है कि मन को बहलाने वाली क्रीडा | जिसमें स्वयं को नष्ट करके आनंद लिया जा सकता है | प्रियतम स्वयं चर्म चक्षु से क्रीडा का देख सके | जिसमें ह्रदय के निर्मल, पवित्र एवं असीम भावों को व्यक्त किया है | स्वयं के जीवन को वेदना से मिटता हुआ दिखती कवयित्री आंसूओं से आह्वान करती है कि मेरे जीवन को मिटाया नहीं जा सकता | आँसू और वेदना मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती तो परोक्ष रूप से नारी जीवन के गीले हदय की खुशबू भी महकती है | जो वेदना के गीत में गुनगुनाती है | अपने जीवन में आने वाली अनंत वेदना की ओर भावनात्मक दृष्टि की है | जिसको कभी आंसू मिटा नहीं सकता | जिस प्रकार वीणा के तार जब अपने सफ़र में लीन हो जाते हैं तब वीणावादक भी अंतर्धान हो जायेंगा | यही भाव कविता का केन्द्रीय भाव है |
(२) मिटने का खेल कविता का भाव-पक्ष
महादेवी वर्मा ने मिटने का खेल कविता में अपने हृदय की कोमल मधुर-मीठी एवं वेदना युक्त पीड़ा को व्यक्त की हैं |
१. अनंत पथ की पथिका :-
प्रस्तुत कविता की शुरुआत महादेवी वर्मा बहुत ही समझदारी एवं भावनात्मक ढंग से करती है | काव्य आरंभ में ‘मैं’ सर्वनाम का प्रयोग करके कविता सर्जन में निहित वेदना स्वयं के हदय की वेदना है, किन्तु वे वेदना संसार में व्याप्त प्रेम के मीठे सपनों में साथ चलकर आती है और यह प्रत्येक व्यक्ति की निजी संवेदना की अनुभूति हैं | इसलिए सांकेतिक दृष्टि से कविता की वेदना व्यक्ति विशेष न रहकर सर्वव्यापक संसार के हदय लोक में घुल-मिल जाती है |
“मैं आनन्त पथ में लिखती जो
सस्मित सपनों की बातें,
उनको कभी न धो पायेंगी
अपने आँसू से रातें !”
इन काव्य पंक्तियों में कवयित्री जीवन की असीम कृष्ण प्रेम की यात्रा को व्याख्यायित करती है | प्रेम के मार्ग पर वह निकल चुकी है | जिस मार्ग का कहीं अंत नहीं | ये प्रेम का मार्ग एक व्यवहार पद्धति की तरह अनंत एवं असीम है | प्रेम के इस पथ में दु:ख और पीड़ा अच्छी लगती है | जहाँ क्षण-क्षण जीवन को मिटाती हुयी वेदनाओं को झेलना पड़ता है, फिर भी मैं वेदना को सुनहरे भविष्य के लिए मुस्कुराते हुये लिखती हूँ | अपने सपनों की बात लिखते ही जा रही हूँ, क्योंकि मुझे अपने प्रियतम ईश्वर को प्राप्त करना है | इसलिए पथ में आने वाली प्रत्येक समस्या से वह सस्मित अंगिकार करती हैं | मुझे यकीन है कि मेरे वचन एवं प्रसंग से भविष्य उज्जवल होगा | अतः जीवन में आने वाली प्रत्येक बाधाओं को सहर्ष स्वीकार करके अनंत पथ पर निकल पड़ी हूँ |
जीवन के सपनों को निराशा की रात्रि कभी नहीं साफ कर पायेंगी | इसके लिए मुझे कदम-कदम पर आँसू बहाने पडते हैं, लेकिन आँसू की रातें भी सपनों को तोड़ नहीं पायेंगी | मेरे सपने अपने आंसूओं से बढ़कर है | इन पंक्तियों में कवियत्री ने अपने दृढ़ मनोबल, लक्ष्य सिद्धि एवं प्यार प्राप्ति का अथक प्रयत्न दिखाकर अपनी जिजीविषा और चाहत का परिचय दिया है | प्रियतम के मिलने की चाह को घने अंधकार की रात, आंसू, दु:ख एवं अनंत पथ उसको रोक नहीं पायेगा | अनुराग उन बाधाओं से बढ़कर है | प्रेम विरह पथ की यात्री महादेवी वर्मा ऐसे लक्ष्य की ओर निकल पड़ी है | जिसका कहीं अंत नहीं, फिर भी अपने जीवन को मिटा कर हँसते हुये सुनहरे भविष्य के सपनों को लिखती जा रही है और इस पथ में पीड़ा, बाधा, आँसू के अंधकार मिलने वाला है, लेकिन कवयित्री के सपनों को कोई मिटा नहीं सकेगा |
२. अमिट पीड़ा की रेखाओं का अंकन :-
काव्य की निम्न पंक्तियों में प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से कवयित्री ने अपने पीड़ा का अनंत अंकन किया है | जिसको जिंदगी भर ढोती रही है | जो उन्हें कष्ट कर लगते हुये भी मीठी एवं मनभावन लगती है | जिसकी अमिट छाप उसके हदय में अंकित मिलती है | इसकी रेखाओं का अंकन इतनी मजबूती से किया गया है कि उसे कोय मिटा या साफ नहीं कर सकता | इस पूरे संसार में वे एक सामान्य तुच्छ रेत के कण के समान है | जो अपने प्रियतम के विरहाग्नि में जल कर आकाश तक पहुँचती हैं |
“उड़ उड़ कर जो धूल करेगी
मेघों का नभ में अभिषेक,
अमिट रहेगी उसके अंचल
में मेरी पीड़ा की रेखा |”
प्रस्तुत प्रतिबिम्ब ग्रामांचल में सहज देखने को मिलता है | प्रकृति के छोटे प्रतीक से बहुत सूक्ष्म भावाभिव्यक्ति को अभिव्यक्त किया है | सूखी मिट्टी के सूक्ष्म कण उड़-उड़ कर आसमान तक जाते हैं और अपने प्रियतम बादल को विरह संदेश सुनाते है | बादल प्रियात्तमा सूखी मिट्टी के सूक्ष्म कण पर बारिश के बूंदों से जल छिड़कने का कार्य करता है | जिससे धूल-कण की वेदना शांत हो जाती है | इसकी प्रेम प्यास को तृप्त कर दिया जाता है | जिससे धूल के हदय कण में अंदर छिपी हुयी वेदना मिलन में बदल जाती है |
प्रकृति में वर्षाऋतु से पहले तेज पवन चलने लगता है और धूल आसमान तक पहुंच जाती है | धूल के छोटे-छोटे सूक्ष्म कणों में विभाजित होकर अपने अस्तित्व को मिटाकर बादल के प्रेम को प्राप्त करती हैं | उसकी निरंतर पीड़ा की ज्वाला बुज जाती है, लेकिन कवयित्री के ह्रदय में छिपी प्रिय विरह की अमिट पीड़ा को कोय नहीं मिटा सकता ! हदय में छिपा वेदना का चित्र उसके पल्लू में ही छिपा रहेगा | इस मिटने वाली पीड़ा की लकीरे जिंदगी पर्यंत मेरे हदय में अंकित रहेगी | संसार में मेरा अस्तित्व तक मेरी पीड़ा अंकित मिलेगी |
३. अनंत पथ की अभिलाषा का चित्रण :-
मानव जीवन में इच्छा और चाह का होना सहज है | प्रत्येक मनुष्य के हदय मंदिर में मनोकामनाएँ एवं आकांक्षा अनुभूत होती है | प्रस्तुत पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने खुद की अनंत अभिलाषाओं का प्रकृति के प्रतीक तारे, आँखें, आकाश तथा लोगों के माध्यम से प्रत्यक्ष की है |
“तारों में प्रतिबिंबित हो
मुस्कुरायेंगी आनन्त आँखें,
होकर सीमाहीन, शून्य में
मंडरायेंगी अभिलाषें |”
आकाश के भीतर दिन के उजाले में रात को चमकने वाले तारे दिखाई देते नहीं, बल्कि शाम ढलने के बाद ही छोटे बड़े सभी तारक गण जगमगाने लगते हैं | तारों की यह परछाई स्वयं में भी दिखाई देती है | यह तारे अनंत आकाश की आँखों की मुस्कुराहट है | आसमान के शून्य होते ही अनंत आंखें मुस्कुरायेंगी | इन तारों की तरह मेरी आंखें चमकने लगेगी | जब मेरा जीवन सीमाहीन खाली आकाश की तरह घेरा बांधकर मेरी चारों ओर मेरी इच्छा, आकांक्षा, ख्वाब, कामना एवम् मन की चाह मेरी चारों ओर मंडराकर चक्कर काटने लगेगी | यहाँ कवयित्री ने परोक्ष रूप में मृत्यु के बाद के जीवन को रेखांकित किया हैं |
इन पंक्तियों में जिंदगी के खालीपन को व्यक्त किया है | जिंदगी में कोई चाहने वाला हमारे पास होता है तब हम उसका मूल्य समझते नहीं, लेकिन जब वे अस्तित्व हीन हो जाते है तो हमारी चाहत बढ़ने लगती है | उस प्रिय के चारों ओर मन घूमने लगता हैं | इसलिए कवयित्री कहना चाहती है कि जब हमारे पास सब कुछ है तब उस को महत्व देना चाहिए | उसके चले जाने के बाद स्वयं का कुछ नहीं बचता | प्रियतम के लिए क्षण-क्षण और पल-पल जिंदगी को खपाने वाली महादेवी अपने प्रियतम के मिलन सुख की आकांक्षी है, लेकिन प्रियतम उस प्रेम से वंचित रखता है और विरह भरा जीवन काट रही है | वे दुनिया में नहीं होंगी तब वे वक्त प्रियतमा को चाहकर भी नहीं मिल पायेंगे |
४. विस्मृति में निर्वाण की गुंज :-
कविता की निम्नलिखित पंक्तियों में जीवन प्राण की सुंदर व्याख्या की है | प्रतीकों के जरिए विस्मरण बोध करवाया है तथा बुजती प्रेम विरही आग की ओर बढ़ते कदम की यात्रा को प्रतिबिम्बित की है |
“वीणा होगी मूक बजाने
वाला होगा अन्तर्धान
विस्मृति के चरणों पर आकर
लौटेंगे सौ सौ निर्वाण !”
उक्त पंक्तियों में हदय की साँसों को वीणा के तार से निसृत संगीत के प्रतीक से सहज दिया है तथा आत्मा और परमात्मा के तार को जोड़ा गया है | वीणा एक प्राचीन भारतीय बाजा है, सितार के जैसा वाद्य होता है | इस वाद्य से संगीत के स्वर निकलते हैं | जब वीणा के तार टूट जायेंगे तब इनसे निकलने वाला मधुर संगीत गूंगा और मूक हो जायेंगा | उस समय वीणा वादक यानी वीणा को बजाने वाला भी अन्तर्धान हो जायेंगा | यहाँ कवयित्री ने वीणा के संगीत के रूप में अपने हदय की साँसों के तार जोड़े है | वीणावादक ईश्वर अपना प्रियतम है | दूसरी वीणा रूपी शरीर का अस्तित्व खत्म हो जायेंगा | जीवन संगीत की यह प्रवाह पूर्ण महफिल पूरी हो जायेंगी |
जीवन वीणा के तार मूक होने से उसमें केवल विस्मरण बचेंगा | उसकी याद बचेंगी | जो बार-बार हमें जीवन की प्यार भरी यादों की ओर मुड़ने के लिए कहती रहेंगी, लेकिन सब बातों के निचोड़ के रूप में सबके पास केवल जीवन का अंत होगा | शुन्य में व्याप्त जीवन होंगा | जहाँ से लौटकर आने की इजाज़त किसी को नहीं मिलती | जीवन के इस मोड़ पर हृदय के अंदर से प्रिय की यादें भी मिट चुकी होंगी तब तुम्हारें पास स्मृतियों के सहारे रहने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा होगा ! यह स्मृतियाँ तुम्हें बार-बार लौटने के लिए कहेंगे, लेकिन उस समय जीवन की प्यार भरी उज्जवल रोशनी समाप्त हो चुकी होगी, बुझ चुकी होंगी | तुमे जीवन का बुजा हुआ दीप मिलेगा | इस मुकाम पर हमारे पास सब कुछ होता है तब उसका मूल्य स्वीकार नहीं करते, लेकिन वह छीन जाने के बाद उसके बारे में बार-बार स्मरण होता है | उसका मूल्य हमें समझ में आता है, लेकिन वह दुबारा लौटकर आने वाला नहीं है | यहाँ कवयित्री ने आत्मा और परमात्मा तथा प्रिय और प्रियतम के सह अस्तित्व स्वीकार हैं |
५. लौकिक का अलौकिक से एकाकार :-
कवयित्री ने ‘मिटने का खेल’ कविता के अंत में आत्मा और परमात्मा के मिलन की उम्मीद कायम की है | मनुष्य जीवन की उनकी अपनी सीमा, बाधा और सरहदें होती है | इसीलिए जीवन को संसार के तौर-तरीके से जीना पड़ता है, लेकिन अलौकिक शक्ति के एकाकार से बहुत ही बदलाव हो सकता है | जिसका चित्रण निम्न पंक्तियों में किया है |
“जब असीम से हो जायेगा
मेरी लघु सीमा का मेल,
देखोगे तुम देव ! अमरता
खेलेगे मिटने का खेल !”
उक्त पंक्तियों में कवयित्री कहना चाहती है कि जब मेरे ह्रदय के तार बेहद, अपार एवं सीमाहीन से जोड़े जायेंगे तब मेरे छोटे से कोमल जीवन की सारी सरहदे मिट जायेंगी | मेरा मिलन उस अलौकिक प्रियतम से हो जायेंगा, किन्तु उसके लिए मुझे स्वयं के अस्तित्व को मिटाना पड़ेगा | परमात्मा यह खेल आत्मा के शाश्वत अस्तित्व का है | यह खेल ईश्वर तुम स्वयं देखोंगे | इस खेल में तुम मेरे जीवन को नष्ट होते एवं लुप्त होते देख पाओंगे | यही मेरे मन को बहलाने की चेष्टा और क्रीडा है | यह क्रीडा को तुम स्वयं अपनी आंखों से निहारते रहोंगे, लेकिन जीवन की इस क्रीडा का अवलोकन करते रह जाओंगे | अपनी बुद्धि से सोचते रह जाओंगे | यही मेरा मन बहलावन एवं मनभावन प्रेम करने का सलिका हैं |
(३) मिटने का खेल कविता का कला-पक्ष :-
१. भाषा-शैली :-
प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने अभिव्यक्ति बहुत ही सूक्ष्म, स्पष्ट एवं हदय के तार को झंकृत करने भावना को अभिव्यक्ति दी है | इसलिए हिंदी खड़ीबोली की माधुर अर्थपूर्ण शब्दावली का चयन किया है, लेकिन इसमें संस्कृत गर्वित शब्दावली का साहित्यिक रूप मिलता है | बोलचाल के शब्दों के प्रयोग रूचि पूर्ण लगते हैं तो कभी-कभी शब्दों का तोड़-मरोड़ भी प्रत्यक्ष दिखाई देता है | जिसमें भाव अपने संपूर्ण सामर्थ्य के साथ प्रस्तुत हो सकें | यही उनका मुख्य लक्ष्य रहा है | उनका शब्द चयन अत्यंत सुंदर और भावनाओं के अनुकूल काव्य चित्र है | इनके कव्य को हदय चित्र भी कह सकते है | वह कम से कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती है | इनकी सांकेतिक भाषा पाठक को सोचने के लिए बाध्य करती है | कविता में भावनात्मक, चित्रात्मक, व्यंजनात्मक शैली को अपनाया गया है | यह एक गीत काव्य है | अतः गीत-शैली के शब्द की माला पिरोने महादेवी वर्मा कुशल कलाकार है |
२. अलंकार योजना :-
कविता में व्यक्त ह्रदय की अनुभूति को सौंदर्य पूर्ण ढंग से शब्दों के सौंदर्य के लिए कवयित्री अलंकारों का सहारा लेती है | यह भाव सौंदर्य तीन रूपों में विद्यमान होता है, एक शब्द के आधार पर निर्मित काव्य सौंदर्य और दूसरा शब्द में निहित अर्थ के आधार पर काव्य सौंदर्य तो तीसरी अवस्था में कभी-कभी सयुक्त रूप में शब्द एवं अर्थ के संयोग से काव्य सौंदर्य बढ़ाने का सहज प्रयत्न किया जाता है | मिटने का खेल कविता को अलंकारों के उपयोग से सुन्दर स्वरूप दिया गया है |
३. छंद-योजना :-
मिटने का खेल एक गीत कविता है | जिसमें हृदय के भावों को मुक्त रूप से लय, संगीत, ध्वनि एवं वर्ण व्यवस्था के आधार पर स्वरूप निर्मित किया है, लेकिन उसमें मुक्तकता और स्वच्छंदता देखने को मिलती है | इसलिए महादेवी वर्मा ने यह कविता अतुकांत मुक्त छंद में लिखी है, फिर भी लय माधुर्य, भाव माधुर्य एवं कर्ण माधुर्य ध्यान खींचता है | यह कार्य छंद का हैं |
४. शब्द-शक्ति :-
शब्द में असीम शक्ति निहित होती है | हमारे प्राचीन शास्त्रों से लेकर वर्तमान साहित्य इसका जीवंत दस्तावेज है | शब्द में पूरे जीवन को बदलने की क्षमता पायी जाती है | शब्दों में तीन स्वरूप की शक्ति पायी जाती है | वह मुख्य, गौण एवं अन्य तीसरे अर्थ में रहती है | जिसको अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना के रूप में पहचानते है | प्रस्तुत कविता में कवयित्री कविता के सरल सहज भावाभिव्यक्ति के लिए अभिधा प्रयोग किया है, जबकि प्रतीकों के माध्यम से सूक्ष्म भाव को व्यक्त करने में व्यंजना का प्रयोग किया है | अलौकिक ईश्वर के मिलन की प्रतीक्षा कविता में व्यंजना को चरितार्थ करती है | इन शब्दों में हदय की नयी चित्रात्मकता एवं व्यंजनात्मकता पैदा होती हैं |
५. प्रतीक एवं बिम्ब :-
हदय और मन की सूक्ष्म भावना को व्यक्त करने के लिए प्रत्यक्ष प्रकृति के प्रतीक जोड़कर प्रयुक्त करने में महादेवी वर्मा कुशल कलाकार है | अप्रस्तुत को प्रस्तुत करने के लिए कवि हमारे सामने शब्दों की भाव छपियाँ अंकित करते है कि हम उसे प्रत्यक्ष देख सकते है | प्रकृति के प्रतीक प्रयुक्ति में कवयित्री अग्रगण्य है | इस कविता में तारें, मेघ, नभ, वीणा, वीणावादक आदि प्रतीकों का प्रयोग करते है | अभिलाषा का कलात्मक शब्द-बिम्ब हमारा ध्यान किये बीना नहीं रहता |
६. रस एवं गुण :-
महादेवी वर्मा ने मिटने का खेल कविता में रस एवं गुण का मधुर झरना बहता है | जिसके जरिए मानव ह्रदय के भीतर रस के छोटे-छोटे फव्वारे फूटने लगते हैं | मुख्य रस भले ही करुण रहा हो, लेकिन उसके अलावा अद्भुत, हास्य एवं शांत रस का योग मन को लुभाता है | जिसकी खुशबु महसूस किये बीना पाठक रह नहीं सकता | कोमलकांत शब्दावली में निर्मित यह कविता माधुर्य गुण से संपन्न है | पीड़ा भरे ह्रदय के भाव को मधुर शब्दों में व्यक्त करने की विशेष खूबियाँ दिखाई देती है | पीड़ा से मिले आनंद में मन रम जाता हैं |
(४) निष्कर्ष :-
हिंदी साहित्य की गणमान्य कवयित्री महादेवी वर्मा ने मिटने के खेल कविता में मुख्य रूप से ह्रदय की मन बहलाने वाली क्रीडा का चित्रण किया है | यह क्रीड़ा अपने प्रियतम में एकाकार होने की हैं, किन्तु उसमें स्वयं को मिटाकर पिघल जाने की प्रवृत्ति मुख्य है | मुख्य रूप से प्रतीकों का सहारा लेकर अनंत पथ की यात्री ने पीड़ा के लोक में असीम चाहत की आग को हमारे सामने प्रस्तुत की है | पीड़ा यह झरना हदय के अंदर बहता है | जिसके चिन्ह महादेवी के ह्रदय में अंकित है | जिसको कभी कोई मिटा नहीं सकता | उसे कभी कोई शांत नहीं कर सकता | जीवन की अभिलाषाओं का चारों ओर मंडराते वक्त एक दिन उसे वीणा के तार की तरह मौन और लाचार कर देता है और इस विस्मृति के सहारे वह एक शून्य में खो जायेंगे और एक दिन महादेवी वर्मा के जीवन का दीपक बुझता नजर आता हैं तब अलौकिक से जुड़े आत्मा के तार टूट कर बे हिसाब ईश्वर से मिल जायेंगी | इस समय आत्मा की शाश्वत शक्ति से परिचित होकर मन की मनोरम और मिटने की क्रीडा को देख पाओंगे ! यही भाव कोमलकान्त शब्दावली में व्यक्त किया हैं |