Saturday, 26 June 2021

मधुशाला में व्यक्त मानवीय संदेश

हरिवंशराय बच्चन की कविता मधुशाला
मधुशाला
(१) प्रस्तावना :-

                हरिवंशराय बच्चन हिन्दी साहित्य के लोकप्रिय एवं हालावाद के प्रवर्तक कवि है | इनकी कविता अन्तः प्रेरित और सहज सिद्ध कविता है | कवि ने काव्य हाला पिलाकर सबको काव्य रस से तरबतर कर दिया है | बच्चन की कविता कोटि-कोटि जनगण का कण्ठहार बनी हुई है | कवि की काव्य साधना उनकी जीवन साधना के समान्तर चली है | उनका सौंदर्यबोध शाश्वत जीवन पर और जीवन दर्शन भारतीय अध्यात्म पर आश्रित है | आधुनिक हिन्दी कवियों में सुमित्रानंदन पंत को बच्चन ने सबसे अधिक पढ़ा है तो दूसरी तरफ अंग्रेजी के पुराने कवियों में शेक्सपियर और आधुनिक कवियों में डबल्यू.बी.ईट्स उनके प्रिय कवि रहे है | बच्चन जी रसवादी कवि है | उनकी दृष्टि से रसविहीन कविता बेकार है | बच्चन न केवल भाव के कवि है, बल्कि एक उत्तम शैलीकार भी है | उनकी शैली उनके व्यक्तित्व का शब्द-रूप है ; जिससे हम उन्हें सहज ही पहचान सकते है | वे जनजीवन के कलाकार है | उनकी शैली सहज, सरल, सुलभ, सुबोध और प्रभावपूर्ण है | इस प्रकार युग प्रवर्तक कवि हरिवंशराय बच्चन ने  हिन्दी साहित्य और जन ह्रदय में अपना अनोखा स्थान बनाया है |


                      'मधुशाला' कवि हरिवंशराय बच्चन की ऐसी काव्यकृति है जो बीसवीं सदी की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रख्यात कृतियों में से एक है | मधुशाला काव्य संग्रह ने बच्चन जी की प्रसिद्धि और लोकप्रियता को चरम शिखर पर पहुँचाया | कवि ने ४ जून १९३३ से मधुशाला लिखना प्रारंभ कर अप्रेल १९३४ में १३५ रुबाइयाँ लिखकर पूर्ण किया और इसका प्रकाशन सन् १९३७ में हुआ | मधुशाला कवि के व्यक्तिगत जीवन की उथल-पुथल के साथ तत्कालिन परिवेशगत प्रभाव को व्यक्त करती है | कवि बच्चन एक युग द्रष्टा शब्द शिल्पी कवि के रूप में उभर कर हमारे सामने आये है | सिद्ध हस्त लेखक ने हिन्दी साहित्य की अनेक विधाओं को अपनी लेखनी से एक नया आयाम दिया है | कवि ने मधुशाला, मधुकलश, निशा-निमंत्रण, एकांत संगीत के गीत सुनाकर अभूतपूर्व लोकप्रियता प्राप्त की और नरेश शर्मा - "बच्चन को कवि सम्मेलनों का बेताज बादशाह मानते है |"१ कवि सम्मलेन किसी भी नए कवि की प्रसिद्धि के लिए अच्छा माध्यम होता है | बच्चन भी इससे अछूते नहीं रहे | सन् १९३३ में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में कवि संमेलन के दौरान अनजान कवि बच्चन ने अपने सुललित कंठ से 'मधुशाला' को सस्वर सुनाना शुरू किया तो सभी श्रोता झूम उठे थे | वाह-वाह और तालियों की गडगडाहट से धरती आसमान गुंज उठा था | नरेश शर्मा के अनुसार - "बच्चन ने पहली बार सहृदय श्रोताओं के जमघट में घुसकर घडल्ले से मधुस्फोट किया |"२ बच्चन जी के संदर्भ में प्रेमचंद ने भी लिखा है कि -"मद्रास के लोग अगर किसी हिन्दी कवि का नाम जानते है तो वह 'बच्चन' का नाम है |"३ हरिवंशराय को अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए अनेक अलंकरण एवं उपाधियों से सम्मानित भी किया गया है | संक्षेप में कहे तो बच्चन हिन्दी साहित्य जगत के एक दैदिव्यमान नक्षत्र है ।


(२) 'मधुशाला' कविता का अनुभूति सौंदर्य :- 

           सन् १९३७ में प्रकाशित और बीसवीं सदी की सर्वाधिक लोकप्रिय व प्रख्यात कृति मधुशाला के कवि ने प्रकृति के स्थूल रूप के प्रति विद्रोह न कर उसे सूक्ष्म का आकार देकर आभ्यातरिक प्रकृति को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है | उनका प्रकृति चित्रण मानवसापेक्ष कट्टरता एवं कठोरता को चुनौती देता है | सामाजिक रुढिवादिता को कवि ने मधुशाला में चुनौती दी है | प्रेमानुभूति मधुशाला के भावपक्ष का महत्वपूर्ण आयाम रहा है, जिसमे कवि की राष्ट्र से, मानव से, सौंदर्य से, प्रकृति से, ईश्वर से प्रेम भावना व्यक्त हुई है | दुःख को जीवन की साधना मानने वाले बच्चन दुःख रूपी हलाहल को हँसते हुए पीकर कर्मण्यवादी बनकर भविष्य के कष्टों को झेलने के लिए तैयार रहने का पाठ सिखाते है | इसलिए तत्कालिन स्थितियों में नरक-सा जीवन जीने वाले निराश मानव के मन में कवि ने मधुशाला के माध्यम से जिजीविषा जगाई है | सौंदर्य भी मधुशाला काव्य कृति का एक महत्वपूर्ण भाव रहा है, जिसमे नारी सौंदर्य, प्रकृति सौंदर्य, मानव सौंदर्य आदि को सुकोमल मन के कवि ने बड़े ही शालीन भाव से व्यक्त किया है |


          कवि ने मधुशाला काव्यकृति में प्रकृति सौंदर्य, मानव सौंदर्य, नारी सौंदर्य व आध्यात्मि सौंदर्य की अभिव्यक्ति की है | ईश्वर ने संसार में प्रकृति से लेकर मानव तक सभी में सुन्दरता भर दी है | बच्चन ने मधुशाला काव्यकृति में सौंदर्य की अच्छी परख की है | कवि ने प्राकृतिक चित्रणों में प्रायः अपनी भावनाओं का सौंदर्य मिलाकर उन्हें एन्द्रिक चित्रण के योग्य बनाया है तथा नारी सौंदर्य के सुन्दर चित्र भी उपस्थित होते है | मानव का बाहय रूप तो सौंदर्य की दृष्टि से खुद होता है, पर उसमे आंतरिक सौंदर्य भी छिपा रहता है | कहीं कहीं पर आध्यात्मिक सौंदर्य की झलक भी मिलती है | इस प्रकार कवि ने व्यापक सौंदर्यानुभूति का चित्रण किया है | प्रस्तुत पंक्तियाँ मानव के आंतरिक सौंदर्य को प्रस्तुत करती है -


"बुरा सदा कहलाया जग में

बाँका, मद-चंचल प्याला

छैल-छबीला रसिया साकी

अलबेला पीनेवाला |"४


  उक्त वर्णन में प्याला, बाँका, चंचल है तो रसिया साकी छैल-छबीला है और पीनेवाला अलबेला है | मधुशाला के द्वारा कवि हरिवंशराय बच्चन ने सामाजिक रुढिवादिता एवं नैतिकता के विरुद्ध अपनी आवाज को जिंदा किया और साथ ही उस समय के जन-जीवन में व्याप्त निराशा, असंतोष, अकर्मण्यता, अंध-विश्वासों, रूढियों आदि का खुलकर चुनौती देकर मधुशाला के विद्रोही स्वर के माध्यम से सोये समाज को सजग कर उनमे चेतना, प्रेरणा, रोष और उद्घोष उत्पन्न किया है |


"धर्म-ग्रंथ सब जला चुकी है

जिसके अंतर की ज्वाला

मंदिर, मस्जिद, गिरजे सबको

तोड़ चूका जो मतवाला

पंडित, मोमिन, पादरियों के 

फंदों को जो काट चुका 

कर सकती है आज उसीका 

स्वागत मेरी मधुशाला |"५ 


      प्रस्तुत पंक्तियों में कवि की मधुशाला केवल उन्हीं का स्वागत करती है जो रूढियों, परंपराओं, अंध मान्यताओं, सड़े-गले मूल्यों, लचर प्रतिमानों को लात मार चुका हो | जो मंदिर, मस्जिद, गिरजे के नाम का सहारा लेकर भेदभाव न करते हो और पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों की बेडियाँ काट चुके हो | यहाँ कवि का असंतोष और विद्रोहात्मक स्वर प्रमुख होता है |


         प्रस्तुत काव्यकृति में बच्चन जी ने कुछ स्थानों पर देश के प्रति अपनी प्रेमभावना की अभिव्यक्ति की है | कवि मधुशाला के माध्यम से व्यक्ति व देशवासियों में बलिदान, त्याग और अपनत्व-अर्पण करने की प्रेरणा को जाग्रत करते है | देशवासियों के ह्रदय में देश के प्रति अटूट देशभक्ति की भावना एवं राष्ट्र प्रेम को जाग्रत करने के लिए संपूर्ण भारत वर्ष को एक पवित्र 'मधुशाला' के रूप में देखा और अंकित किया है -


''हिम श्रेणी अंगूर लता-सी

फैली हिम जल है हाला

चंचल नदियाँ साकी बनकर

भरकर लहरों का प्याला

कोमल कूल-करों में अपने

छलकाती निशिदिन चलती

पीकर खेत खड़े लहराते

भारत पावन मधुशाला |६


        मधुशाला काव्य कृति में बच्चन जी ने यह महसुस किया था कि लोग भूतकाल के दारुण दुखों तथा जीवन में उत्पन्न श्रम, संकट, व्याधियाँ, नियति के कठोराघात के कारन इन्सान गौरव एवं गर्व से जी नहीं सकता | जीवन के प्रति जनसाधारण की आस्था खत्म हो जाती है | ऐसे समय में कवि जीवन के प्रति आस्था, जिजीविषा जगाने का प्रयत्न करते है | इन्सान को जीवन, नरक की दहकती हुई ज्वाला सा लगता है पर कवि जानता है कि मधुशाला की मधुरता मनुष्य को नरक की दहकती ज्वालाओं से भी बचा लेगी |


"हमें नरक की ज्वाला में भी

दिख पड़ेगी मधुशाला |"७


          मधुशाला प्रेम सौंदर्य की एक अत्यंत लोकप्रिय रचना है | कवि का सौंदर्य प्रेम उत्तेजना देनेवाला अनिवार्य तत्व है | देशप्रेम भारतवासियों के ह्रदय में अटूट देशभक्ति की भावना जाग्रत करनेवाला है | कहीं-कहीं कवि ने प्रेम प्रणय की अनुभूति को भी अभिव्यक्त्ति प्रदान की है | मानव के प्रति भी अपनी प्रेम भावना की अभिव्यक्ति की है | कवि की मनोकामना प्रकृति के अस्तित्व की जीवन सापेक्ष स्थिति ही स्वीकार करती है | कवि स्वयं कहते है कि -"जब कभी में प्रकृति के समीप गया हूँ तो अपनी भावनाओं से इतना अतिरंजित हुआ की उसमे भी मुझे अपनी ही छाया दिखाई दी है |"८ अंत में कवि जानता है कि संसार के कण-कण में ईश्वर बसा हुआ है | अतः वह प्रियतम(ईश्वर) को हाला और स्वयं को प्याला बनाकर उस प्रियतम रूपी परमात्मा के साथ एकाकार होने की भावना प्रस्तुत करता है | इस प्रकार कवि ने सौंदर्य प्रेम, देशप्रेम, प्रणय प्रेम तथा ईश्वरिय प्रेम की अभिव्यक्त की है |


          हरिवंशराय बच्चन ने मधुशाला में अपनी भावनाओं को प्रकृति के साथ जोड़ा है | सूर्य, समुद्र, बादल, जल, भूमि, पौंधा, फूल, भ्रमरदल, डालियाँ, पंछी, रौशनी, हिम, नदियाँ आदि का अत्यंत सुन्दर और यथार्थ वर्णन किया है –


"सूर्य बने मधु का विक्रेता

    सिन्धु बने घट, जल हाला |" ९


          मनुष्य के लिए जीवन एक अनबुझ पहेली-सा बना हुआ है | इस पहेली को कोई समझ नहीं सकता | कवि को अपने जीवन में दुःख-पीड़ा आदि का गहरा परिचय था | इन सबसे मुक्ति पाने की कोशिष में दार्शनिकता का उदय होता दिखाई पड़ता है | कवि मधुशाला को ही ईश्वर का सर्वोच्च स्थान मानते है | विश्व के प्रत्येक पथिक ईश्वर तक पहुँचने या ईश्वर को पाने के लिए अलग-अलग रास्ते अपनाता है, किन्तु ईश्वर को पाने का केवल एक ही रास्ता कवि को सूझता है और वह है मधुशाला | कवि मधुशाला को ही एक धर्म और दर्शन का गुढ़ गंभीर ग्रंथ मानते है | संसार में मृत्यु की आशंका मनुष्य के वर्तमान सुख में बाधा डाल देती है किन्तु मधुशाला मौत के आतंक से बचाकर मनुष्य को मस्ती में जीना सिखाती है |


           हरिवंशराय जी अपने विशाल और समृद्ध साहित्य के आधार पर हिन्दी साहित्य में उच्च स्थान के अधिकारी है | मधुशाला लिखते हुए कवि ने वाणी के अभूतपूर्व उल्लास का अनुभव किया था | मधुशाला की मूल शक्ति समाज, धर्म और राजनीति की रूढ़-सीमा को तोड़ने वाली अभिव्यंजना में समाई है | मधुशाला का मधु मध नहीं, कारण है | मधुशाला के भाव में बच्चन जी काव्य का प्रयोजन, आनंद और लोकहित की भावना मानते है | इस प्रकार मधुशाला काव्यकृति के माध्यम से बच्चन जी ने अपने सौन्दर्योपासक ह्रदय के मादक आनंद को वाणी की रसमुग्ध प्याली में उडेलने का प्रयत्न किया है | उनकी मधुशाला मदिरा की नहीं अपनी मस्ती बनी है, जिस मस्ती में उन्होंने जगत को भी मस्त बनाने की ठानी है, किन्तु मधुशाला एक प्रतीकात्मक रचना है | इसलिए उसे अभिधा से नहीं व्यंजना से समझना चाहिए, क्योंकि वह नव भारत के नव यौवन या चढती जवानी के उन्माद को प्रतिबिम्बित करती है |


(३) निष्कर्ष :-

              अतः अनुभूतियों की दृष्टि से मधुशाला में वैविध्य विद्यमान है | मधुशाला का मूल भाव समाज, धर्म और राजनीति की रूढियों को तोड़नेवाला है | इसमें व्यापकता है, समन्वयात्मकता है और मानवता का उच्चादर्श है तथा अनुभूति की सम्पन्नता में व्यक्तिगत आनंद और लोकहित की भावना से परिपूर्ण रचना है | साथ ही साथ भारतीय संस्कृति के उज्जवल रूप को प्रस्तुत करती है |


संदर्भ सूची :-

१.बच्चन : व्यक्ति और कवि - सं. बाँके बिहारी भटनागर, पृ.सं.-१५ 

२.बच्चन निकट से - सं. सजित कुमार, औंकारनाथ श्रीवास्तव, पृ. सं. ३६

३.क्या भूलूँ क्या याद करूँ - बच्चन, पृ.सं.३३९ 

४.मधुशाला - बच्चन, पच्चासवाँ संस्करण, रुबाई सं.२३ 

५.मधुशाला - बच्चन, पच्चासवाँ संस्करण, रुबाई सं.१७  

६.मधुशाला - बच्चन, पच्चासवाँ संस्करण, रुबाई सं.३३ 

७.मधुशाला - बच्चन, पच्चासवाँ संस्करण, रुबाई सं.७५ 

८.नए पुराने झरोखे - बच्चन, पृ.सं.२५६ 

९.मधुशाला - बच्चन, पच्चासवाँ संस्करण, रुबाई सं.३०