(1) प्रस्तावना :-
हरिवंशराय बच्चन का नाम हिन्दी साहित्य के इतिहास में स्वणॅ अक्षरों से अंकित है । जिसको कोई चाहकर भी कभी मिटा नहीं सकता । हरिवंशराय बच्चन ने हिन्दी साहित्य में गद्य और पद्य की साहित्यिक समृद्धि को बढ़ाया हैं । हिन्दी साहित्य जगत में कवि की विशेष प्रसिद्धि अपनी ‘मधुशाला’ रचना के कारण है लेकिन, उनकी छोटी-छोटी कविताएँ भी पाठकों का दिल जीतने में काफ़ी सफल रही हैं । येसी ही एक महत्वपूर्ण कविता है ‘जो बीत गई सो बात गई !’ यह कविता अपने विषय की सहजता, सरलता एवं उद्देश्य के लिए आज भी बहुत लोकप्रिय है ।
(2) ‘जो बीत गई सो बात गई !’ काव्य में जीवन दर्शन :-
‘जो बीत गई सो बात गई !’ काव्य को हिन्दी साहित्य के पाठकों से प्रसिद्धि का प्रमाणपत्र प्राप्त काव्य है । इसका भावविश्व बहुत उपदेशात्मक और सहज बोधगम्य हैं । काव्य में कवि जीवन के महत्वपूर्ण सत्य को उद्घाटित करते हैं कि जिन्दगी में भूतकाल और भविष्यकाल की मायझाल से मुक्त होकर अपने वर्तमान में जीवन यापन करना चाहिए । यानी जीवन में कल की उलझनों से दूर रहना ही समझदारी होगी । हिन्दी साहित्य में ‘कल’ बीते समय तथा आनेवाले समय के लिए भी प्रयुक्त होने वाला शब्द है ।
व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा के दौरान विभिन्न जीवनानुभवों से गुज़रता हैं । जिसमें सुखद एवम् दु:खद भी होते है । सामान्यतः सुख के समय तो मानव को बहुत-बहुत अच्छा लगता हैं परंतु, जब दुःख का समय हो तो इसमें से आदमी जल्दी संभल नहीं सकता । इसमें अगर किसी अपने प्रिय को असमय गवाने की नौबत आ गई तो यह समय पुरे जीवन को दुःखी कर जाता हैं । कवि इस कविता माध्यम से यही विचार व्यक्त करते हैं कि जो जिन्दगी में बीत गया है । उसको भूलकर, चिंता छोड़कर एवं मुक्त होकर अपने वर्तमान के जीवन को अच्छे से जीये ।
कवि बच्चन जी ने यह बात समझाने के लिए अंबर, मधुवन और अपने को प्रिय मधुशाला का उद्धरण दिया हैं । कवि काव्य के माध्यम से हमे अपने जीवन में बीती हुई बातों को भूलने के लिए कहते हैं क्योंकि, कल किसी को फ़िर से लौटकर मिलने वाला नहीं । बीती बातें कितनी भी मूल्यवान और प्रिय हो परंतु जीवन दूसरी बार नहीं देंगे । उसके लिए आप कितने आँसू बहलाए, प्रलाप करें, दःखी रहें एवं पश्चात्ताप करे किन्तु, जीवन में कल कभी लौटकर नहीं आता और आनेवाला कल भी अनिश्चित होता हैं । इसलिए कवि वर्तमान को सुव्यवस्थित तरीके से जीवन उपयोगी बनाने के लिए कहते है । कवि काव्य भावना को वयक्त करने के लिए अंबर की बात करे है । जो सदाकाल से अपने अस्तित्व को बनायें रखें बैठा है । आकाश में चमकने वाले सितारे को अंबर उनको बेहद-बेपनाह प्यार करते हैं । वह सितारे अंबर के लिए खास और दिल के क़रीब थे किन्तु, वह सितारे डूब गये हैं । आसमान से मीट गये हैं । उनका अस्तित्व नहीं रहा । फिरभी कवि बरकरार अंबर के आनन को देखने के लिए कहते हैं कि इतने प्यारे छूटने पर भी दुःखी होकर अपने को कभी रोकता नहीं । अंबर ने अपने अस्तित्व से आज तक न जाने कितने सितारे टूट कर बिखर गये । यह टूटने वाले सितारे कभी भी फिर से मिलने वाले नहीं । यह स्मरण कर अंबर अपने जीवन में कभी शोक नहीं मनाता हैं । वे प्रत्येक समय यही सोचकर आगे बढ जाते हैं कि जो बीत गई सो बात गई ! यही बात हम मानव को अंबर से ग्रहण करके चलना चाहिए कि जिन्दगी में प्यारी व्यक्ति को खोने के शोक को भूलकर जीवन प्रवाह को आनंद से प्रवाहित रखना चाहिए ।
"जीवन में एक सितारा था,
माना, वह वेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया,
अम्बर के आनन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फिर कहाँ मिले,
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है !
जो बीत गई सो बात गई !"
बच्चन जी काव्य की अगली पंक्तियों में जीवन की सच्चाई को मधुवन के द्वारा समझाते हैं । मधुवन के जीवन में एक कुसुम यानी फूल था । जिस फूल पर मधुवन नित्य समय न्योछावर रहते थे । आज वह प्यारा कुसुम मधुवन से सुख गया है । कितने येसे सूखे कुसुम थे जिस पर मधुवन नित्य निछावर था लेकिन, सुखे फूल को देखकर कभी भी मधुवन दुःखी नहीं होता । बीती बातें याद कर अपने वर्तमान जीवन को बर्बाद करना नहीं चाहते हैं । इसके अलावा मधुवन में कितने कुसुम सूखे, कितनी इसकी कलियाँ असमय ही मुरझाँ कर गीर गई तथा कितनी वल्लरियाँ सूखकर अपने जीवन को मिटा कर चली गयी । यह कुसुम, कलियाँ और वल्लरियाँ फिर कभी खिलने वाली नहीं । मधुवन यह याद कर शोर नहीं मचाता और कहता फिरता नहीं । वह यही समझता है कि हमारे जीवन का सफर जब तक उनके साथ था वहीं तक चला । अब हमे यह स्मरण कर दुःखी होकर शोर नहीं मचाना चाहिए । शोर मचाने से कोई फ़ायदा नहीं हो सकता हैं । इसलिए हमारी भलाई इसी में हैं कि जो बीत गई सो बात गई ! कह कर उसे भूल जाये ।
"जीवन में वह था एक कुसुम,
थे उसपर नित्य निछावर तुम,
वह सूख गया तो सूख गया,
मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ,
मुझाईं कितनी बल्लरियाँ ,
जो मुझाईं फिर कहाँ खिली,
पर बोलो सूखे फूलों पर;
कब मधुबन शोर मचाता है !
जो बीत गई सो बात गई !"
हरिवंशराय बच्चन काव्य में मधुशाला के जरिए अपनी भावाभिव्यक्ति करते हैं । मानव हृदय फूल सा कोमल और लोहे से भी ज्यादा सख्त है । मनुष्य जीवन में जब टूट जाता हैं तब उसके बाद के जीवन में भी आशा किरण खोज नहीं पाता और स्वयं बिखर जाता । येसे मानव के लिए कवि मधुशाला उदाहरण द्वारा समझाते हैं कि सृष्टि पर कोई ऐसी व्यक्ति न होगी जिसके जीवन में दुःख न आया हो । जिसके कोई अपने बिछड़े न हो । जिसका कोई प्यारा न छूटा हो । सृष्टि में अस्तित्व रखने वाले के प्रत्येक का अपना नीजि संसार हैं । जिसमें सुख-दु:ख समान रुप से समाया हुआ हैं । कवि कहते हैं कि मधुशाला के जीवन में अपने प्याले हैं । इन पर मधुशाला अपना तन-मन न्योछावर करती हैं किन्तु, मधुशाला में प्याले टूटा ही करते हैं । येसे दुःख के समय में मदिरालय अपने आप को सम्हालती हैं । वह मधुपान करवाने का छोड़ती नहीं वे अपने संसार को आगे बढ़ाकर मदिरा बांटती-पिलाती रहती हैं । मधुशाला के कितने ही प्याले हिल कर, टूट कर मिट्टी में मिल जाते हैं । जो प्याले गिर कर टूट जाते हैं वे कभी मधुशाला के मधु पिलाने के लिए उठते नहीं । इतना कुछ लूटने बाद भी मधुशाला अपने टूटे प्यालों पर कब पछताता है ! इन पंक्तियों में कवि मानव को संबोधित करके कहते हैं कि मानव जीवन के सत्य को स्वीकार कर चले कि कल किसी का लौटकर नहीं आता हैं । हम अपने जीवन में समझ जाये की
"जो बीत गई सो बात गई !
कितने प्याले हिल जाते हैं,
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं,
जो गिरते हैं, कब उठते हैं,
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है !
जो बीत गई सो बात गई !"
कवि बच्चन जी कविता में यहा तक रुकते नहीं ! मधुशाला के प्यालें मानव की तरह मृदु मिट्टी के बने होते हैं । इन प्यालों में प्यारा मधुघट (शराब रखने का घट) फूटता ही हैं । उनका जीवन लधु और छोटा होता हैं । मधुशाला में येसा प्यालें टूटते ही रहते हैं । फिरभी मदिरालय के अंदर मनुष्य को देखने के लिए कहते हैं कि मधुघट है, मधु पयाले है और यह प्याले मादकता (नशा) के मारे हैं । वे मधु (शराब) को लूटाया ही करते हैं । मधुशाला और मधु के प्याले कभी मधु पिलाना छोड़ते नहीं । बीती बातें भूल कर अपने में रत्त रहते हैं ।
"वह कच्चा पीनेवाला है
जिसकी ममता घट-प्यालों पर,
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है, चिल्लाता है !
जो बीत गई सो बात गई !"
कवि काव्य की अंतिम पंक्तियों तक आते-आते जीवन सत्य को पिलाते हैं कि जिसकी ममता घट प्यालों पर होती हैं तो यही समझ लीजिए वह पीने वाला कच्चा हैं । जो सच्चे मधु से जला हुआ होता हैं वह कभी रोत-चिल्लाता नहीं । किसी के लिए हमारे दिल में सच्चे मन के भाव होते तो किसी के लिए रोते-चिल्लाते नहीं हैं । जीवन में यही सत्य है कि जो बीत गई सो बात गई ! यह भी कहा जाता है कि जख्म मिलने पर आदमी ज्यादा मौन होकर आगे बढ़ता है ।
(3) निष्कर्ष :-
प्रस्तुत कविता दुःखी, पीड़ित, टूटे-हारे, बिखरे, निराशा और जो यह समझते हैं कि जीवन में मैं लूट गया, मेरा सबकुछ चला गया, मेरा अपना प्रिय नहीं रहा, कैसे जीऊँगा आदि विचारों से घीरे मनुष्य को संदेश देती हैं कि बीती बातें भूल कर जीवन में आनंद के साथ आगे बढ़ना चाहिए । कवि बच्चन जी इसके लिए अंबर, मधुवन और मधुशाला के उद्धरणों का वर्णन हैं । जो अंबर अपने बेहद प्यारा सितारे को मिटने के बाद भी उसका आनन कम नहीं करता । मधुवन की कलियाँ, कुसुम और वल्लरियाँ जिस पर मधुवन न्योछावर थे । वह मुझाँई कर सुख गई । मधुवन इसके लिए शोर नहीं मचाना । मधुशाला या मदिरालय के प्यारे प्यालें टूट कर मिट्टी में मिल जाते हैं लेकिन मदिरालय कभी पछतावा नहीं करती । सच्चे हृदय-मन से जो जीता हैं वे रोता चिल्लाता नहीं । अतः जीवन में घटित अप्रिय घटना और अपने प्यारे जो दिल के क़रीब हैं । इनके चले जाने के दुःख को भूलकर जीवन में नये रंग भरते रहने चाहिए । जो बीत गई सो बात गई सो बात गई !