Wednesday, 21 October 2020

नागार्जुन का जीवन परिचय

(१) प्रस्तावना :- 

          हिन्दी साहित्य में वैधनाथ मिश्र को ‘यात्री’ और ‘नागार्जुन’ के नाम से पहचानते हैं | नागार्जुन ने भिन्न-भिन्न भाषा और साहित्यिक विधाओं में अपनी कलम के दम पर विशेष स्थान प्राप्त किया हैं | उनके काव्य को हम पूरी भारतीय काव्य परंपरा का जीवंत दस्तावेज कह सकते हैं | इनके काव्य में ‘कालिदास’ और ‘विद्यापति’ जैसे कई कालजयी कवियों के रचना संसार के गहन अवगाटन, बौद्ध दर्श, मार्क्सवाद, बहुजनहीताय और परिवेश की समस्याएँ, चिंताएँ और संस्कृति का एतिहासिक दस्तावेज हैं | नागार्जुन का काव्य लोक हदय एवं लोक-संस्कृति की गहरी पहचान से निर्मित काव्य हैं | कवि का यात्रीपन भारतीय जन मानस और विषयवस्तु को समग्र और सच्चें रूप में समजने का साधन हैं | जिसके जरिए अपने हम साध्य तक पहुँच सकते हैं | वे अपनी अभिव्यक्ति के लिए सीधी, सादी और सरल भाषा का नए ढंग से प्रयोग करने में सिधहस्त हैं | हिंदी काव्य साहित्य के सबसे अद्वितीय, मौलिक और बौद्धिक कवि है |  


(२) जन्म-जन्म स्थान :-

आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध प्रगतिशील और जनवादी साहित्यकार नागार्जुन का जन्म बिहार राज्य के दरभंगा जिले से जुड़े ‘सतलखा’ स्थान पर ईस्वीसन ११ जून १९११ को हुआ था, लेकिन उनका पैतृक गाँव दरभंगा जिले का ‘तरौनी’ गाँव था | नागार्जुन का वास्तविक नाम ‘वैधनाथ मिश्र’ है तथा  अपने बचपन का नाम ‘ठक्कन मिसर’ था | वे हिंदी साहित्य में ‘नागार्जुन’, मैथिली साहित्य में ‘यात्री’, संस्कृत में ‘चाणक्य’ तथा मित्रों एवम् राजनीति में ‘नागाबाबा’ के नाम से विभूषित हैं |


(३) परिवार और बचपन :-

नागार्जुन का जन्म निम्न मध्यम वर्गीय मैथिल ब्रामण परिवार में हुआ था |  उनके पिता का नाम ‘गोकुल मिश्र’ तथा माता का नाम ‘उमादेवी’ हैं | माता स्वभाव से सरल हदय, इमानदर, परिश्रमी एवं चरित्रवान महिला थी, लेकिन नागार्जुन चार साल के थे, उसी समय माता उमादेवी का देहान्त हो जाता है | माता के लिए कवि के मन में स्नेह और आदर की भावना विद्यमान रहती हैं |  पिता गोकुल मिश्र घुमक्कड़, भंगेड़ी, लापरवाह, रुढ़िवादी दरिद्र, संस्कार हीन, कठोर एवं फक्कड़ की मृत्यु सितम्बर १९४३ में काशी में गंगा किनारे मणिकर्णिका घाट पर होती है | नागार्जुन एक निर्धन कृषक परिवार में पैदा हुए थे | इसलिए बचपन और तरुणावस्था में ही विद्रोही वृतियों के शिकार होते हैं | अपने पिता के प्रति नफ़रत की भावना भी विद्रोही प्रवृति के लिए जिम्मेदार थी | नागार्जुन स्वभाव से चिन्तनशील, आतंरिक दृष्टी से सबल हदय के धनि, सह्द्यी, मिलनसार, अतिशय संवेदनशील व्यक्तित्व के मनुष्य थे | सीधा-सादा जीवन और स्वतंत्रता के चाहक हैं |  


(४) शिक्षा :-

नागार्जुन का जीवन ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हैं | यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं हैं, क्योंकि बालक नागार्जुन के चाहने के बाद भी रुढ़िवादी पिता गोकुल मिश्र उन्हें अंग्रेजी की प्रारंभिक शिक्षा देना पसंद नहीं करते थे | फिरभी प्रारंभिक  पांचवी कक्षा तक उनके गाँव तरौनी में होती हैं | वे पढ़ने-लिखने में बहुत तेज थे, किन्तु उनकी पढाई संस्कृत पाठशाला में होती थी | मध्यम की पढाई पूरी करने के बाद बनारस जाकर राजनीति का ज्ञान प्राप्त करते हैं और ‘साहित्याचार्य’ तथा ‘कवि रत्न’ की उपाधि प्राप्त करते हैं | इसके बाद कभी अंग्रेजी स्कूल या विश्वविद्यालय की पढाई नहीं की, किन्तु जिन्दगी की परीक्षाओं ने नागार्जुन को शिक्षित बना दिया | कवि संस्कृत, हिंदी, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, सिंहली, मैथिली, बिहारी, अंग्रेजी आदि भाषा के ज्ञाता थे | 


(५) शादी :-

        घुमक्कड़ वृति के धनि और ज्ञान प्रप्तिके जिज्ञासु नागार्जुन की शादी उन्नीस वर्ष की आयु में अठारह वर्षिय ‘अपराजिता देवी’ से होती हैं | अपनी पत्नी के प्रति सदैव सहानुभूति की भावना रखते थे, किन्तु यायावरी जीवन यापन करने वाले कवि को कभी अपनी पत्नी को उचित स्नेह नहीं दे पाये |  वे परिवार के भरण-पोषण की चिंता कभी नहीं करते थे | उनकी पत्नी अपराजिता देवी थोड़ी सी पुस्तैनी खेती के सहारे खाने-पीने का प्रबंध करती थी | इनके लिए कहा जाता है कि ऐसे गृहस्थ से तो सन्यासी ही भला | कवि नागार्जुन ईस्वीसन १९३८ से १९४१ ईस्वीसन तक भ्रमण करते है और इसके पश्चात् गृहस्थ जीवन जीने लगते हैं | अत : नागार्जुन अपने घर को कभी अपना स्थिर ठिकाना नहीं बना सके | 


(६) व्यवसाय :- 

     नागार्जुन जीवन विर्वाह की कभी चिंता नहीं करते थे | अपने गृहस्थ जीवन के लिए लेखन, अध्यापन और कृषक का कार्य करते हैं | अपनी निर्धनता के कारण अपने पुत्र-पुत्री को अच्छी शिक्षा भी प्रदान नहीं कर पाये थे | 


(७) राजनीतिक जीवन :-

    कवि नागार्जुन अपने राजनीतिक जीवन में अनेक राजनीतिक एवं विशिष्ट व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं | जिनमें आजाद हिंद सेना नायक सुभाषचन्द्र बोस, जयप्रकाश नारायण, मैथिली कवि पंडित सीतार झा, महारानी लक्ष्मीवती देवी, मदन मोहन मालवीया, गंगाप्रसाद उपाध्याय, स्वामी सहजानंद तथा महात्मा गाँधी प्रमुख हैं | बनारस से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत होती हैं | ईस्वीसन १९३८ में बिहारी कृषक क्रांति के समय महीने के लिए केन्द्रिय कारागारों में बंदी बनाये गए थे | श्रीलंका में अध्ययन करते समय बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर अनुआयी हो जाते है |  


(८) प्रिय साहित्यकार :-

 महाकवि कालिदास नागार्जुन के सबसे प्रिय कवि है | नोबल पुरस्कार प्राप्त ‘गीतांजलि’ के कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर से भी प्रभावित है | कवि पाश्चात्य सर्जक गोर्की की श्रमिक चेतना से बहुत प्रभावित और आकर्षित होते है | उनके जीवन में ज्ञान और राजनीतिक चेतना जगाने का कार्य हिंदी साहित्य के महापंडित राहुल संकृत्यायन करते है और कवि केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में व्यक्त जन-भावना भी काफी प्रभावित करती हैं |  इनके अलावा हिंदी साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र, मुंशी प्रमचंद, हरिशंकर परसाई, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, राजकम चौधरी, काल मार्क्स, लुम्बा, श्रीपाद हाँरो, शैलेन्द्र आदि नागार्जुन के प्रेरक रहे हैं |


(९) पुरस्कार :-

१. नागार्जुन को मैथिली भाषा में रचित ‘पत्र हीन नग्न गाछ’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार |

२. उत्तर प्रदेश हिंदी संसथान-लखनऊ द्वारा कवि को ‘भारत-भारती’ सम्मान |

३. मध्य प्रदेश सरकार की ओर से ‘मैथिलीशरण गुप्त’ सम्मान | 

४. पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा ‘राहुल सांकृत्यायन’ सम्मान | 

५. साहित्य अकादमी की ‘सर्वोच्च फेलोशिप’ से सम्मानित है | 


(१०) मृत्यु :-

          हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध जनवादी साहित्यकार नागार्जुन का निधन ५ नवम्बर १९९८ को बिहार के दरभंगा जिले के खाजा सारे में गुरुवार प्रात: ६ बजाकर ३० मिनट पर ८७ वर्ष की आयु में होता हैं |  


@कृतित्त्व :-

            नागार्जुन संस्कृत, हिंदी और मैथिली भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार हैं | उन्होंने साहित्य की गद्य और पद्य दोनों विधाओं में सर्जन करके साहित्य को समृद्ध किया हैं | उसने कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, आलोचना, बाल-साहित्य, अनुवाद तथा संपादन में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई हैं | कवि की प्रारंभिक कविताएँ ‘यात्री’ के नाम से प्रकाशित होती थी, बल्कि सन १९४१ के बाद मित्रों के आग्रह पर ‘नागार्जुन’ के नाम से लिखने लगे थे | यह नाम हिंदी साहित्याकाश में अमर हो गया | नागार्जुन द्वारा मैथिली भाषा में रचित कविता सन १९२९ में लहेरियासराय दरभंगा से प्रकशित ‘मिथिला’ पत्रिका में छपी थी, लेकिन हिंदी भाषा में लिखित प्रथम  कविता ‘राम के प्रति’ है |  जो सन १९३४ ई. में लाहौर से निकलने वाले साप्ताहिक पत्रिका ‘विश्वबंधु’ में प्रकाशित होती है | कुल मिलाकर नागार्जुन का रचना काल सन १९२९ ई. से आरंभ करके सन १९९७ ई. तक के अड़सठ वर्ष का रहा हैं |


(१) काव्य साहित्य :-

हिंदी प्रबंध काव्य :- (१) ‘भस्मांकुर’-१९७० (खंड-काव्य), (२) ‘भूमिजा’, (३) ‘राम-कथा’ (अपूर्ण)

हिंदी काव्य संग्रह :- (१) युगधारा-१९५३, (२) सतरंगे पंखों वाली-१९५९, (३) प्यासी पथराई आँखें-१९६२, (४) तालाब की मचलियाँ-१९७४, (५) तुमने कहा था-१९८०, (६) खिचड़ी विप्लव देखा हमने-१९८०, (७) हजार-हजार बाँहों वाली-१९८१, (८) पुरानी जूतियों को कोरस-१९८३, (९) रत्नगर्भ-१९८४, (१०) ऐसे भी हम क्या ! ऐसे भी तुम क्या !-१९८५, (११) आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने-१९८६, (१२) इस गुब्बारे की चाय में-१९१०, (१३) भूल जाओ पुराने सपने-१९९४, (१४) अपने खेत में-१९९७

मैथिल काव्य संग्रह :- (१) चित्रा-१९४९, (२) विशाख, (३) पत्रहीन नग्न गाछ-१९६७ |

संस्कृत काव्य :- (१) देश दशंक, (२) श्रमिक दशंक, (३) कृषक दशंक, (४) धर्मलोक शतक |


(२) गद्य साहित्य :-

👉हिंदी उपन्यास :- (१) रतिनाथ की चची-१९४८ (२) गरीबदास-१९९० (१९७९ में लिखित)      (३) नयी पौध-१९५३ (४) बाबा बटेसरनाथ-१९५४ (५) वरुण के बेटे-१९५७ (६) दु:ख मोचन-१९५७ (७) कुंभीपाक-१९६० (१९७२ में ‘चंपा’ नाम से भी प्रकाशित) (८) हीरक जयंती-१९६२ (१९७९ में ‘अभिनंदन’ नाम से भी प्रकाशित) (९) जमनिया का बाबा-१९६८ (१९६८ में ही ‘इमरतिया’ नाम से प्रकाशित)


👉मैथिली कथा साहित्य :- (१) पारो-१९४६ (उपन्यास) (२) नव तुरिया-१९५४ (३) बलचनमा-१९५२ 


👉कहानी साहित्य :- (१) आसमान में चंदा तैरे-१९८२ 


👉बांगला रचनाएँ :- (१) मैं मिलिट्री का बुढा घोडा-१९९७ 


👉बाल साहित्य :- (१) कथा मंजरी भाग-१-१९५८ (२) कथा मंजरी भाग-२ (३) मर्यादा पुरुषोत्तम राम-१९ (‘भगवान राम’ और ‘मर्यादा पुरोशोत्तम’ के नाम से प्रकाशित) (४) विद्यापति की कहानियाँ-१९६४ (५) वीर विक्रम (६) प्रेमचंद 


👉आलेख संग्रह :- (१) अन्नहीनम्-१९८३ (२) बम्भोलेनाथ-१९८७


👉संस्मरण :- (१) एक व्यक्ति : एक युग-१९६३


👉अनुदित साहित्य :- (१) गुजराती उपन्यास ‘पृथ्वी वल्लभ’ का हिंदी अनुवाद-१९४५ (२) विद्यापति के सौ गीतों का भावानुवाद-१९६५ (३) ‘मेघदूत’ का मुक्त छंद में अनुवाद-१९५३ (४) जयदेव के ‘गीत गोविन्द’ का भावानुवाद-१९४८ (५) विद्यापति की ‘पुरुष परीक्षा’ (संस्कृत) की तेरह कहानियों का भावानुवाद करके ‘विद्यापति की कहानियाँ’ नाम से ई. स. १९६४ में प्रकाशित (६) परणिता 


👉संपादन :- (१) ‘वैदेही’ पत्रिका में काशी से ‘वैदेह’ उपनाम से लेखन (२) भारती पत्रिका में काशी से ‘वैदेह’ उपनाम से लेखन (३) कौमी बोली (सिंध) (४) साप्ताहिक ‘विश्व बंधु’ (लाहौर) (५) जोगी (पटना) (६) पंचायती राज (लहरिया सराय) (७) जन युग (दिल्ली) (८) बाल-सखा (९) चुत्रू-मुत्रू | 


निष्कर्ष :-