Tuesday, 6 December 2022

अतिथि से कविता का सारांश

 (१) प्रस्तावना :-

            भारतवर्ष अतिथि सत्कार के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है | हिंदी के छायावाद काल की कविता में आँसू के निर्मल जल से आतिथ्य सत्कार और स्वागत करने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा है | इसलिए हिंदी काव्य साहित्य में उसे ‘आधुनिक मीरा’ के उपनाम से जाना जाता है | छायावादी युग के प्रमुख चार आधार स्थभ में एक महादेवी वर्मा भी है | जिस पर छायावाद काव्य का विशाल काव्य मंदिर खड़ा हुआ है | अपनी कविता में शब्दों के सौंदर्य से चित्र प्रतिबिम्बित उपस्थित करना कोय इनसे से सीखेंगा | इनकी कविता भाव, संगीत, संवेदना, चित्रकला एवं अनुभूति की अद्भुत रंगशाला है | जिसमें प्रवेशने वाला प्रत्येक हदय-मन प्रिय पीड़ा के मीठे रंग में रंग जाता है | कवयित्री ने अतिथि से कविता में अतिथि के सामने अपने हदय की संवेदना व्यक्त की है, लेकिन यह अतिथि कौन है ? किसे हम अतिथि कहते है ? किस अतिथि से कहती है ? प्रकृति में प्रेम ऋतु वसंत को अतिथि संबोधित करते हुये यह कविता लिखी है | ऋतुराज वसंत, जीवन वसंत और हदय की वेदना को प्रमुख अभिव्यक्ति मिली है | प्रियतम के बीना वसंत आगमन भी मादकता रहित लगती हैं तथा हदय करुण कथा सुनती है |


(२) ‘अतिथि से’ कविता का सारांश :- 

            अतिथि से कविता में कवयित्री ने जीवन के दु:ख, पीड़ा, वेदना, अभाव और एकेलेपन व्यथा-कथा अतिथि के सामने व्यक्त की है | जिसमें प्रकृति के प्रतीकों का सुभग समन्वय किया हैं |

 

१. ऋतुराज वसंत का चित्रण :-

        अतिथि से काव्य की शुरुआत प्रकृति के राज सिंहासन पर आरूढ़ ऋतुराज वसंत के आगमन से होती है | वसंत ऋतु का सौंदर्य और वैभव जंगल में निवास करने वाले भोले निश्छल, निष्कपट, सीधे-साधे, अंजान और सरल प्रकृति के बालिकाओं के मुख से निकलने मधुर गीतों की तरह बिखरा पड़ा है | जिसको सुनने वाला कोई नहीं होता | वसंत ऋतु का वैभव निर्जर एवं एकांत स्थान में फैला हुआ है | प्रकृति का वसुंधरा वैभव हदय की तन्हाई को खुशियों से भरना चाहता है | इसलिए शून्य और खाली ह्रदय के कोने-कोने की तलाश धीरे धीरे कर रहा है | कवयित्री का ह्रदय में सन्नाटे छाया हुआ है, क्योंकि इनका प्रियतम छोड़कर चला गया है और उनके द्वार पर बसंत का आतिथ्य होता है |


“बनवाला के गीतों सा

निर्जन में बिखरा हैं मधुमास

इन कुँजों में खोज रहा हैं

सूना कोना मन्द मतवास |”


            वन गाये जाने वाले गीत को कोय सुनने वाला नहीं होता | उसी प्रकार वसंत के वैभव को कोई देखने वाला नहीं है | वह अपना आश्रय स्थान बनाने के लिए किसी झाड़ियों में सुना कोना ढूंढ रहा है | जहाँ अपना बसेरा डाल सकें, क्योंकि प्रियतम विरहिणी नायिका कैसे कर सकती हैं ? विरह की दशा में वसंत अतिथि बनकर हदय द्वार आया है, लेकिन उस वसंत से हदय खुशियों से भर नहीं सकते | वन में वसंत बिखर कर रह जाता है |


२. रजनी की प्रिय प्रतीक्षा :-

           प्रस्तुत काव्य पंक्ति में महादेवी वर्मा ने आकाश एवं रात्रि के मानवीकरण करके प्रकृति के सजीव दृश्य को अंकित किया है | यह दृश्य प्रियतम की प्रतीक्षा में सज-धज कर बैठी नायिका के हदय का मधुर आलेखन है |


“नीरव नभ के नयनों पर

हिलती हैं रजनी की अलकें

जाने किसका पंथ देखतीं

बिछकर फूलों की पलकें |”


            नि:शब्द आसमान के मानवीयकरण से कविता की इन पंक्तियों का आरंभ होता है | जिस प्रकार मनुष्य की आँखे, पलकें और अलकें होती हैं | उसी तरह नाभ की आँखों पर सिर का सुंदर बाल लटक रहा हैं | इन नयनों के पर स्त्री की अलकों के समान जुल्फों की अलके हिलती है | यह रात्रि की अलकें प्रियतम आसमान के नयन पर लटकती है | पुष्प की पंखुड़ियाँ रास्ते व मार्ग को ढँककर किसकी प्रतीक्षा में खड़ी है यानि आंखों की पलकें प्रेम एवं स्नेह से भरी किसके स्वागत के लिए बिछी हुयी हैं | 


३. मतवाले वीणा के तार :-

         महादेवी वर्मा ने अतिथि से कविता की निम्न पंक्तियों में प्रकृति के निशा की सुन्दर चाँदनी को अभिव्यक्त दी है और बिखरे हुये जीवन वीणा के मतवाले तारों का वर्णन किया है | यह वर्णन नयन रम्य, सुंदर एवं उद्देश्य पूर्ण है |

“मधुर चाँदनी धो जाती है

खाली कलियों के प्याले,

बिखरे से हैं तार आज

मेरी वीणा के मतवाले |”

           

         इन पंक्ति में रात्रि के मधुर और मीठी सुन्दर चाँदनी का क्रियात्मक रूप चित्रित किया है | जिसमें चाँदनी एक मनुष्य के समान पुष्पक की कोमल मधुर कलियों के रिक्त प्याले धोने का कार्य करती है यानी भोली कोमल पुष्प कली पर लगे मेल को धोने का कार्य है | उन कलियों का कोमल स्पर्श उसे महसूस हो सकें तथा उनके प्यार को प्राप्त कर सकें | वसंत में कली को चाँदनी के प्रेम में न्हातें देखकर कवयित्री ने अपने जीवन की साँसों के बिखरे चैन को व्यक्त किया हैं | जीवन के तारों का शुभ मधुर अंकन किया है | हृदय संगीत को बजाने अलौकिक प्रियतम के तार विरह बिखरे पड़े है | उसके विरह के नशे में मदमस्त है | अतः पुष्प कली को चाँदनी मिलन सुख दे रही है परंतु कवयित्री के प्रिय जुदाई में आनंद देने वाले तार बिखरे चुके है और वे अतिथि के आगमन का पूर्ण आनंद नहीं ले सकती | 


४. हदय के टूटे तारों का करुण राग :-

          महादेवी वर्मा ने अतिथि से काव्य की अंतिम पंक्तियों में बहुत ही पीड़ा दायक दु:ख की संवेदना को व्यक्त की है | घर के द्वार आये अतिथि से टूटे तारों का करुण गान सुनाया है | प्रिय वियोग, विरह और बिछडन का राग सुनाती है | 


“पहली सी झंकार नहीं है

और नहीं वह मादक राग,

अतिथि ! किन्तु सुनते जाओ

टूटे तारों का करुण विहाग |”


           उक्त पंक्तियों में प्रकृति के एक अलौकिक सौंदर्य संपन्न ऋतु वसंत को अपना अतिथि माना है | प्रकृति में वसंत का आगमन हो गया है, किन्तु प्रत्येक वसंत ऋतु की अनुभूति अलग राग सुनाय देता है | उनके अंदर पहले जैसी स्वागत ध्वनी का झंकार सुनाय नहीं देती | हृदय को रंगने वाली मादकता बदल चुकी है | तुम्हारे आथिथ्य का नशा कम होता जा रहा है | मेरे ह्रदय द्वार मेहमान बनकर आई हो तो मेरी अपनी प्रार्थना भी सुनती जाओ | हमारा और तुम्हारा प्रेम रिश्ता टूटता जा रहा है | ह्रदय के रिश्तो की सुंदर करुण युक्त वियोग भाव को सुनते जाओ | इस टूटे हुए हदय में दयनीय और करुण जुदाई के गीत का स्वर सुनाय देता है | मिलन सुख के अनुभूति दूर-दूर तक दिखाय नहीं देती | इसलिए अतिथि ! मेरे पास से टूटे हदय के विहर गीत के दु:ख को सुनकर जाओ | 


(३) ‘अतिथि से’ कविता का अभिव्यक्ति पक्ष :-

         अतिथि से छोटी कविता में निम्नलिखित कलागत विशेषताएँ मिलती है | जिसके द्वारा अतिथि से गीत कविता का काव्य स्वरूप गठित हुआ है |

१. भाषा-शैली :-

          हदय-मन के विचारों की अभिव्यक्ति भाषा के बिना संभव नहीं | कविता में भाषा एक अनिवार्य तत्व है | हृदय के कोमल, मधुर एवं सुंदर भावों की करुण कथा को व्यक्त करने के लिए कवयित्री ने खड़ीबोली हिंदी के कोमलकांत शब्दावली के संस्कृत गर्भित रूप का चयन किया है | जिसमें प्रतीकात्मक, भावात्मक, चित्रात्मक एवं कथन-कहन शैली में गीत के शब्दों को जोड़कर अनुभूति को सहज ढंग से अभिव्यक्त की है | कवयित्री का अतिथि से करुण कथा सुनना कथन-कहन शैली का जीवन उदाहरण है |


२. अलंकार योजना :-

         अतिथि से कविता का काव्य सौंदर्य बढ़ाने के लिए उपमा, मानवीकरण सजीवरोपण आदि अलंकारों का सुंदर, सहज एवं भावों के अनुकूल प्रयोग किया गया है | कविता में सजीवारोपण अलंकार बहुत ही जीवंत रूप में प्रयुक्त किया है | उदाहरण के लिए काव्य की निम्न पंक्ति प्रस्तुत है-


“निरव नभ के नयनों पर

हिलती हैं रजनी की अलकें,

जाने किसका पंथ देखतीं

बिछकर फूलों की पलकें |” 


३. छंद-योजना :-

       प्रस्तुत कविता में गीत के शब्दों को कर्णप्रिय रागों में क्रमिक उतार-चढ़ाव के अनुकूल अनुभूति को सजाने के लिए अतुकांत मुक्त छंद का उपयोग किया है | गीत का शब्द हृदय के भावों को झंकृत कर सकें | इसमें कवियत्री बहुत सफल रही है |


४. शब्द-शक्ति :-

        कविता में हृदय के भाव को स्पष्ट अभिव्यक्ति देने के लिए अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना शब्द-शक्ति का प्रयोग सफलता से किया है | इसलिए शब्द में निहित मुख्य अर्थ, गौण अर्थ एवं व्यंग्य अर्थ कविता के निष्पन्न उद्देश्य को बखूबी व्यक्त करते है | 


५. रस और गुण :-

        हिंदी कविता की छायावादी कवयित्री ने रूखे-सूखे शब्दों में कविता नहीं लिखी, बल्कि काव्य में शब्दों का चयन रस से लबा-लब भरे होता है | जो अनुभूति को अनुभूति के विभिन्न भाव में प्रस्तुत करता है और पाठक के साथ ह्रदय की एकता स्थापित हो जाती है | व्यक्त कोमल भाव की अभिव्यक्ति के लिए अतिथि के सामने विरह के भाव को व्यक्त किया यानि अद्भुत, संयोग, वियोग एवं करुण रस का समन्वय किया है | इसलिए माधुर्य गुण संपन्न गीत कविता हदयस्पर्शी भावना को व्यक्त करने में सफल रही है |


६. प्रतीक और बिंब :-

          कविता में कवियत्री ने प्रकृति के विविध प्रतीकों का प्रयोग किया है | जीवन की साँस के लिए वीणा के तार, कली और नारी के लिए रात्रि का प्रतीक चयन किये है | सूक्ष्म अनुभूति को अभिव्यक्ति प्रदान करने में समर्थ प्रतीक है | शब्द बिम्ब, चित्र बिम्ब एवं भाव भावबिम्ब को नयन रम्य एवं सुंदर वास्तविक स्वरूप में उभारा है | अतः प्रतीक और भाव की दृष्टि से यह कविता सुंदर बन पाई है |


(४) निष्कर्ष :-

          महादेवी वर्मा हिंदी काव्य साहित्य में अपने कोमल भावों की अभिव्यक्ति के लिए पहचानी जाती है | अतिथि से कविता में उन्होंने प्रकृति के नयी ऋतु के आगमन के आतिथ्य को वर्णित किया है, किन्तु यह आगमन केवल प्रकृति की मेहमाननवाजी का चित्र नहीं परंतु हदय के अंदर समाहित प्रिय प्रेम की वसंत का आगमन है | जो मुझसे मिलने के लिए मतवाली है तथा वसंतऋतु में वह नशा अब नहीं रहा जो इनके ह्रदय के भीतर प्रेम के विभिन्न रंगों के रंग भर सकें और प्यार के मिलन सुख का अनुभव दे सकें |  इस कविता में चार भावभूमि का प्रतिबिंबत झलकता हैं- वसंत का जीवंत चित्रण, रजनी की प्रिय प्रतीक्षा, मतवाले वीणा के तार और अंत में जीवन के टूटे तारों पीड़ा टपकती है | इसके लिए कवयित्री ने खड़ीबोली हिंदी के संस्कृत गर्भित रूप अंकित किया है | काव्य रस का बहुत ही सुंदर सहयोग मिला है | जिस रस में भीगकर पाठक का हदय द्रवित हो जाता हैं |