Tuesday, 13 December 2022

अनोखी भूल काव्य की व्याख्या

अनोखी भूल - महदेवी वर्मा
अनोखी भूल - महदेवी वर्मा

(१) प्रस्तावना :-

              हिंदी साहित्य की आधुनिक मीर महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य का अतुल्य हिस्सा हैं | इनकी कविताएँ छायावाद के आलोक में पली-बड़ी हैं | कवयित्री ने अपनी कविताओं में प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य वर्णन किया है और वे वेदना, पीड़ा, दुःख, तड़प, बैचेनी, रहस्यवाद, वियोग-श्रृंगार और आँसू में भी सौंदर्य मंडित प्रकृति का वर्णन करने में कुशल कलाकार हैं | निहार महादेवी वर्मा का प्रथम काव्य संग्रह इस काव्य संग्रह की कविताओं में जीवन का पहला स्पंदन, वेदना, सौंदर्य आदि का मधुर गीत शैली में कविता मिलते हैं | इन कविता की भावभूमि कवयित्री की निजी जिंदगी एवं अनोखे व्यक्तित्व  हा प्रतिबिंबि हैं | हदय के अंदर की वेदनाकालीन पुकार गूंजती रहती है | महादेवी का समस्त काव्य साहित्य रहस्यवाद के अंतर्गत आता है | रहस्यवाद आत्मा और परमात्मा की पारस्परिक प्राणयानुभूति को रहते हैं | अनोखी भूल नामक कविता में अज्ञात आराध्य की उपासना चलती रहती है | अज्ञात लोक से आह्वान आता है | हृदय के भाव स्पष्ट से व्यक्त नहीं होते फिर भी उसमें हो ओस बूंद समान निर्मलता पाई जाती हैं | जिसकी अभिव्यक्ति कवियत्री ने अपनी कविताओं की है | सांसारिक दुनिया में व्यक्ति से गलती ना हो, यह कभी संभव नहीं | जीवन में आने वाली परिस्थिति को ध्यान में रखकर अनुकूल निर्णय व्यक्ति लेता है, लेकिन हर वक्त तो यह निर्णय सही साबित हो यह संभव नहीं | भूल या गलती जीवन का अभिन्न हिस्सा है | जिससे मानव सीखता भी बहुत कुछ है और खोता भी बहुत कुछ है |  

        कवयित्री ने ‘अनोखी भूल’ कविता में अपने जीवन की एक अनोखी एवम् विशिष्ट संवेदनात्मक और भावनात्मक भूल की अभिव्यक्ति को केन्द्र बनाया हैं | जिसमें पृथ्वी लोक, देव लोक, अलौकिक प्रियत्तम, प्रेम, प्रकृति और व्यक्तिगत वेदना का स्वर सुनाई देता हैं |   


(२) ‘अनोखी भूल’ कविता का भावार्थ :-

            महादेवी वर्मा ने ‘अनोखी भूल’ शीर्षक कविता में अपने जीवन में की गई अनोखी, विशिष्ट, संवेदनात्मक और भावनात्मक भूल को काव्य रूप दिया हैं | 


१. अलौकिक प्रियात्तम का सौंदर्य वर्णन :-

              अनोखी भूल कविता की शुरुआत में कवयित्री ने अपने प्रियतम के अद्भुल अलोकिक सौंदर्य का वर्णन किया है | इस पर ईश्वर सब अपना कुछ न्यौछावर  करते हैं | ऐसा उनका प्रियतम है |


“जिन चरणों पर देव लुटाते

थे अपने अमरों के लोक,

नखचंद्रों की कांति लजाती

थी नक्षत्रों के आलोक;”


           इन पंक्तियों में ईश्वर भी जिस प्रियतम पर अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार है | ऐसे अद्भुत और अप्राप्य सौंदर्य संपन्न प्रियतम का सौंदर्य वर्णित किया है | इन प्रियतम के चरणों में देवता भी अपना अविनाशी संसार लुटाने के लिए तैयार है | अमरत्व पूर्ण संसार प्रियतम के चरणों अर्पित कर देते है, क्योंकि प्रियतम नखशिख खूबसूरती खान है | सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हैं | जिसके सामने सौंदर्य की चमक भी लज्जाशील अनुभव करती है | पूरी कायनात को अपने प्रकाश से रोशन करने वाले चंद्रमा की चाँदनी भी उनके सामने तुच्छ लगती है | इनकी सुषमा प्रिय चरणों के पास कुछ भी नहीं, जिसकी अद्भुत सौंदर्य सुषमा को देखकर मानव प्रभावित होता है | रात के अँधेरे में मोती से पानीदार चमकीले नक्षत्र के दर्शन का मूल्य अपने प्रियतम के सामने मूल्यहीन हो जाता हैं | कवयित्री ने प्रियतम के सौंदर्य का बेजोड़ एवम् अलौकिक वर्णन किया हैं | जिसे प्रेम करती हैं और उसे पाना चाहती है | जिस तरह नायिका के नखशिख वर्णन सूक्ष्मरूप किया जाता हैं, वैसे ही अपने प्रियतम के चरणों का देहिक सौंदर्य का आकर्षक ढ़ंग से किया हैं | पढ़ने वाले के मन-मस्तिष्क में प्रियतम की छबि चित्रित हो जाती है | 


२. प्रियतम के सुख-सुषमा का रहस्य :-

           प्रस्तुत पंक्ति में महादेवी वर्मा ने प्रियतम के सौंदर्य और आनंद का रहस्य का उद्घाटन किया हैं | जिसे कवयित्री के अलावा कोई नहीं जानते थे | यह हमारी उत्सुकता को बढाती है, क्योंकि अद्भुत और आराम से सब कोई रहना चाहते है |

 

“रवि शशि जिन पर चढा रहे

अपनी आभा अपना राज

जिन चरणों पर लौट रहे थे

सारे सुख सुषमा के साज |”


           उक्त पंक्तियों में अपने प्रियतम की आभा को बहुत ही आकर्षक ढंग से वर्णित की है | सूर्य और चंद्र चमकीली कांति उसे प्रकाशित है | सूर्य स्वयं उसके सौंदर्य अर्पित करने का कार्य करता हैं और रात्रि के अँधेरें प्रियतम पर चंद्रमा सौंदर्य बनाए रखने के लिए स्वयं चंद्रमा अपनी शुभ को अपनी हुकूमत को उस पर अपनी उज्जवल दूध सी चाँदनी का सौंदर्य न्यौछावर करते है | यही उसके खुबसूरत और आनंद से रहने का रहस्य है | इसके चरणों में ईश्वर स्वयं समग्र सृष्टि के प्राकृतिक सौंदर्य प्रभा का समान लोटा रहे थे | अत: इनके आनंद, आराम, चैन, सुख और शोभा का आधार ईश्वर खुद है | इसलिए प्रकृति में सूर्य और चंद्रमा का ओजस्वी और कोमल तेज जिसकी रखवाली करते हैं | यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कवयित्री के अलौकिक प्रियतम के सुख-सुषमा को कभी आँच भी नहीं आयेंगी |


३. नभ-मेघ की रखवाली :-

         उपरोक्त पत्तियों में अलौकिक सौंदर्य संपन्न प्रियतम की देख-भाल करने की जिम्मेदारी आकाश और मेघ स्वयं लेते हैं | 

 

“जिनकी रज धो धो जाता था

मेघों का मोती सा नीर,

जिनकी छवि अंकित कर लेता

नभ अपने अंत सथल चीर |”


         कवयित्री के प्रियतम अद्भुत सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हैं | प्रियतम के चरणों में चलने से या किसी भी कारण धूल लग जाती है या उनके चरण धूल-धूसरित हो जाते हैं तो उसको धोने के लिए आकाश निर्मल, स्वच्छ और मोती सा जल-कण बरसता है | इस जल से प्रियतम के चरणों पर लगी धूल धोने का काम मेघ करता है | प्रकृति में सबसे निर्मल और स्वच्छा जल पवित्र चरणों की राज धोने का सोभाग्य मिलता हैं | कवयित्री ने यह बताने का प्रयास किया हैं कि विश्व में सबसे पवित्र और निर्मल उनका प्रियतम है | आसमान हदय के अंदर प्रियतम की छवि को समाहित कर लेता है और उसे  ह्रदय में विश्राम स्थान देता है | उसकी रखवाली करता है | ऐसे अद्भुत और अलौकिक प्रियतम की कवियत्री प्रेमिका है | ऐसे मंदिर के देव को सुरक्षित रखने का कार्य आसमान का नभ-मंडल करता है | उनके दर्शन करने मात्र से हम अमर हो जाते हैं तो उसे मिलने के लिए हमें आसमान की ओर दृष्टि लगानी पड़ती है, क्योंकि प्रिय को नभ अपने हदय चीर कर रखता है | जिसकी सुष्मा को इन्द्रधनुषी रंगों में बिखेरता हैं | जिस प्रकार राम के अनन्य भक्त राम, सीता और लक्ष्मण को हदय में समाहित रखते थे | यहाँ कवयित्री अपने ह्दय में छिपे प्रियतम प्रेम की ओर दृष्टि डालना चाहती हैं | मैं उनकी अनन्य प्रेमिका हूँ, किन्तु मुझसे ज्यादा रखवाली तो आकाश के नभ और बादल करते हैं | मैं उनकी किस प्रकार की सेवा करूँ जिससे हमारा मिलन संभव हो | यही निर्मल भावना हदय ने पवित्र भावभूमि से निकली हैं | 


४. प्रिय मंदिर के द्वार :-

            कविता की निम्नलिखित पंक्ति में कवयित्री ने निज जीवन की पीड़ा को व्यक्त की है | उस पीड़ा से मुक्ति के लिए वे अपने प्रिय मंदिर के द्वार पहूँचती है | जहाँ उसे पीड़ा के मुक्ति का मार्ग मिलने की उम्मीद दिखाय देती है तथा प्रिय मिलन की संभावना दिखाई देती है |

  

“मैं भी भर झीने जीवन में

इच्छाओं के रुदन अपार,

जला वेदनाओं के दीपक

आई उस मंदिर के द्वार |”


          इस वुशाल जगत में मेरा जीवन छोटा और तुच्छ है | इतने छोटे जीवन इच्छा अनंत सागर में रुदन तूफान और उफन है | इच्छाओं को मैंने हदय  भीतर पाली है | वे इच्छाएँ तुमसे मिलने के बाद ही पूर्ण होगी | तेरे प्यार की चाहत मुझे अपार रुदल की आग में जला रही है | आँसू बहाने मजबूर करती है | ह्रदय की आशा आंखों से आँसू बनकर गिर रहे हैं | निरंतर रुदन की पीड़ा मेरे जीवन को गलाये जा रहा है | मेरे हृदय के बंद कपाट में वेदन का दीपक जालता रहता है | मंदिर में वेदना के दीप जलाकर आयी हूँ | यह दीपक कवयित्री के जीवन में व्याप्त एवं फैली पीड़ा का प्रतीक मन कर आया है | जो पीड़ा उसके भीतर निर्मल रोशनी से भर देती है और उसे वेदना की आग से उसे प्रकाश तो मिलता है, किन्तु खुराक के रूप में पूरा जीवन भी लेती है | अब उनसे रहा नहीं जाता है | वे अपने प्रियतम के मंदिर  द्वार पर पहुँच जाती है और सारी वेदना का तिनका-तिनका दिखाती है | वेदना जेलना का सामर्थ टूट चुका है और मंदिर के द्वार पर खड़ी है | जिस प्रकार मीरा कृष्ण के मंदिर के द्वार पर खड़ी मस्त हो जाती थी, इस प्रकार कवयित्री मंदिर के द्वार पहूँच जाती है और जीवन का सर्वस्व उसे अर्पित करने के लिए तैयार है | 


५. ईश्वर-प्रियतम का उपहार :-

          कवयित्री ने प्रियतम एवं ईश्वर के द्वार पर पहुँच गयी है, लेकिन वहाँ जाकर उसे ज्ञात होता है, कि ईश्वर के चरणों में क्या अर्पित करूँ ? उसको भेंट स्वरुप क्या दूँ ? मेरे पास तो कुछ भी नहीं | मेरे पास जीवन में व्याप्त पीड़ा, सूनापन, एकेलापन, खालीपन, वेदना, विरह और आँसू की संपति है | इसके अलावा मेरे पास क्या है ! अब उनके चरणों को उपहार स्वरुप क्या दूँ ? उसके पास किसी भी वस्तु कोई कमी नहीं ! जिनकी रखवाली और सेवा में सूर्य, चंद्र, मेघ, नभ हर पल उपस्थित होते हैं तो मैं उसे अपने तुच्छ जीवन से क्या दूँ | अत: मेरा सूनापन उसे क्या दे पायेंगे ?


“क्या देता मेरा सूनापन 

उनके चरणों को उपहार ?

बेसुध सी मैं धर आई

उन पर अपने जीवन की हार !”


          महादेवी वर्मा को बार-बार यह प्रश्न सताता रहता है कि मैं ईश्वर स्वरूप प्रियतम के चरणों में क्या अर्पित करूँ ? प्रेम और भावना से भरे हदय लेकर मंदिर के द्वार बेसुध और बैचेन होकर पहुँचती है और मन के उपवन में खिले फूलों का हार उनके चरण में धर कर चली आई | उसे अच्छा लगे और स्वीकार ले तथा मेरी असफलता आँगन में मिलन के पुष्प खिलने लगे | यहाँ मन के उपवन में खिले सुन्दर फूल से बने हार को उपहार स्वरूप श्रीचरणों में चढ़ाती हैं | 


६. जीवन की अनोखी भूल :-

         कवयित्री ने काव्य की अंतिम पंक्तियों में जीवन की संवेदनात्मक, भावनात्मक एवं विशिष्ट भूल को पंक्ति बद्ध की है |


“मधुमाते हो विहँस रहे थे

जो नंदन कानन के फूल

हीरक बन कर चमक गई

उनके अंचल में मेरी भूल !”


         प्रस्तुत पंक्ति में कवयित्री ने अपनी भूल की चमत्कारिक अनुभूति को अभिव्यक्ति दी है | प्रियतम ईश्वर के मंदिर गई और उसे मन के सुमनों की माला उपहार स्वरूप चढाती हैं, लेकिन वहाँ से लौटते वक्त कवयित्री की निगाह मंदिर के करीब बनें घने उपवन और वाटिका में खिले पुष्प पर पड़ती है | जहाँ इंद्र को आनंदित करने वाले सुगंधित फूलों की महक आ रही थी | ये पुष्प कवयित्री की ओर देखकर मीठी हँसी हँस रहे थे, क्योंकि मैंने ईश्वर के चरणों में मन के सुमनों की माला अर्पित की थी | यह तो पहले से ही उस के पास था | इसलिए तुरंत ही मेरी भूल मुझे समझ में आती है, कि प्रियतम के चरणों में अपने मन की भावनाओं को अर्पित कर आई थी | इससे अच्छे कोमल, मीठी सुगंध युक्त पुष्प इंद्र देवता की पुष्प वाटिका और जंगल में खिले हैं | जिसमें नैसर्गिक सौंदर्य और निर्मलता हैं |  अब मुझे लगता है कि मैंने प्रियतम की प्रेमानुभूति की भावना और संवेदना के कारण बड़ी भूल कर दी | ईश्वर के क्षेत्र विस्तार में जा कर मुझसे यह भूल होती हैं | हीरे की चमक की तरह हदय के भीतर दर्द का झटका लगता हैं और मैं चौंक जाती हूँ | यही भूल महसूस कर रही हूँ | 


(३) ‘अनोखी भूल’ कविता के कला तत्त्व :-

            काव्य को सर्वगुण संपन्न बनाने के लिए काव्य के कला-पक्ष में भाषा-शैली, अलंकार, छंद, शब्द शक्ति, प्रतीक, बिंब आदि का सफल सुयोग होना अति आवश्यक हो जाता है तब जाकर कविता का बाह्य रूप निर्मित होता है | कवयित्री ने ‘अनोखी भूल’ कविता में निम्नलिखित कला तत्वों का उपयोग किया है |


१. भाषा-शैली :-

            महादेवी वर्मा ‘अनोखी भूल’ कविता की भाषा गागर में सागर भरने का काम करती है, क्योंकि काव्य में विस्तृत वर्णन की आवश्यकता नहीं, कम से कम शब्दों में भावाभिव्यक्ति करनी होती है | इस कला में महादेवी वर्मा बहुत ही प्रसिद्ध है | अनुभूति को चुने हुये शब्दों में व्यक्त करना कोई इन से सीखे | प्रस्तुत कविता में अपने अलौकिक प्रियतम का सौंदर्य वर्णन एवं मंदिर द्वार भावनात्मक अभिव्यक्ति दी है | सौंदर्य वर्णन के समय सहज, सरल एवं साहित्यिक शब्दों का अद्भुत मणिकांचन योग मिलता है | हिंदी भाषा का संस्कृत गर्भित खड़ी बोली रूप का उपयोग किया है तथा आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग काव्य को सुबोध बनता हैं | जैसा भाव वैसी भाषा का सूत्र रक्खा है | यह कविता आधुनिक हिंदी गीत शैली में लिखी गई है | इसमें भावात्मक, चित्रात्मक, व्यंजनात्म और आत्मिक शैली में गुम्फन किया है |

जना पूर्णा है


२. अलंकार योजना :-

           सौंदर्य मानव मात्र को आकर्षक लगता है | आदि अनादि काल से मानव सौंदर्य की खोज कर रहा है और सौंदर्य को देखते ही अभिभूत हो जाता है | काव्य साहित्य का सृजन सत्यम, शिवम और सुंदरम के उद्देश्य से होता है | काव्याभिव्यक्ति को सार्थक, असरकारक, प्रभावक बनाने के लिए भाषा में अलंकारों का प्रयोग किया जाता है | ‘अनोखी भूल’ कविता में शब्दालंकार एवं अर्थालंकार से काव्य शोभा में वृद्धि की गई है | इससे कविता आकर्षक, कर्णप्रिय एवं सुंदर लगता है | कविता से एक उदाहरण प्रस्तुत है-


“मेघों का मोती सा नीर |” – उपमा अलंकर


३. छंद :-

       छंद का संस्कृत अर्थ वृत्त है | वृत्त यानि बार-बार आया हुआ | छंद का प्राण पुनरावृत्ति हैं | आवाज के कुछ तत्त्व बार-बार पुनरावृत्त होने लगे वे छंद है | छंद कविता में मधुरता और बाह्य कलेवर तैयार करता है | वर्ण के उच्चारण में से जन्मा नापने योग्य बानी आकार यानि छंद | यह कविता गीत शैली के अतुकांत-मुक्त छंद में लिखी गई है | 


४. शब्द-शक्ति :-

          शब्द के अर्थ ज्ञान के बीना कविता को समझना कठिन होता हैं | कविता की माला में पिरोये शब्द को समझने के लिए अभिधा, लक्षणा और व्यंजना शक्ति का बोध होना चाहिए | प्रस्तुत कविता में अभिधेयार्थ और व्यंजनार्थ शब्दार्थ से निष्पन्न होते हैं | मंदिर के सामने खिले फूल का मुस्कुराना व्यंजना की अभिव्यक्ति है, क्योंकि परोक्ष रूप से कवयित्री की मज़बूरी पर मुस्काते थे | 


५. प्रतीक योजना :-

           प्रतीक के बल कविता तस्वीर बन जाती हैं, क्योंकि सूक्ष्म भावनाओं को अन्य प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक संकेतो से अभिव्यक्त की जाती है | जिसके इसका चित्र स्पष्ट हो जाता हैं | कवयित्री ने वेदना के लिए दीपक और हदय के लिए नभ के अंत:स्थल का प्राकृतिक प्रतीक नियोजित किया हैं |   


६. रस और गुण :-

            रस को कवियों ने कविता की आत्मा कहा है | जब कवि मनोभावों को व्यक्त करना चाहते हैं तब रस ही तो है जो रचना में जान डाल देता हैं | साहित्य में विद्वानों ने मुख्यत: नौ रस को स्वीकार किया है | इनमें अनोखी भूल कविता में फूलों के हँसने में हास्य रस, उससे उत्पन्न विस्मय में अद्भुत, कवयित्री के शोकपूर्ण जीवन के वर्णन में करुण आदि रसों का वर्णन किया है | 


(४) निष्कर्ष :-

          ‘अनोखी भूल’ कविता महादेवी वर्मा के हदय में छिपे अलौकिक प्रियात्तम के प्रेमाभिव्यक्ति की कविता हैं | जीवन में प्रेम के सुनहरे काल में प्रिय स्नेही को देने के लिए कुछ भी नहीं | इनका प्रिय तो अमर लोक के अत्यधिक सुन्दरता से शोभायमान है | रवि और शशि उन पर सौंदर्य का नैसर्गिक सामान  लुटाते है | नभ के भीतर आश्रय स्थान और मेघ की सेवा प्राप्त है | उनके मंदिर द्वार जाकर कवयित्री मन के सुमनों की माला अर्पित करती है, किन्तु ये उनकी भावनात्मक भूल थी | इस पर मंदिर के आँगन में खिले पुष्प हँस रहे थे तब कवयित्री को अपनी भूल मोती की चमक की भाँती समजाती है | ये गीत ईश्वर स्वरूप प्रियतम के मिलन समय भावना से हुयी भूल की अभिव्यक्ति है | कोमल शब्दावली से युक्त कविता ह्दय को प्रभावित कर देती है |