हिंदी के विशाल मंदिर की वीणा पानी महादेवी वर्मा ने हिंदी साहित्य को एक फुर्ती चेतना के स्तंभ रूप कविताएं भेंट दी | उन्होंने अपने जीवन काल में नीहार, निरझा, यामा जैसे महत्त्वपूर्ण काव्य ग्रंथ हिंदी साहित्य को भेंट दिये | इनकी भाषा में कोमलकान्त शब्दावली, सरसता, तरलता, स्वच्छता एवं सरलता दिखाई देती है | जहाँ विषय को हल्के-फुल्के शब्दों में प्रस्तुत करने की कला महादेवी वर्मा हस्तगत है और हिंदी साहित्य इस पर गौरव कर सकता है | महादेव जी की कविता सुसज्जित विन्यास भाषा प्रतीक, बिम्ब एवं लय के स्तर पर अद्भुत उपलब्धि कहा जा सकता है | महादेव की अनुभूति और सर्जन का केंद्र आंसू नहीं आग है, जो दृश्य है वह अंतिम सत्य नहीं है, किन्तु जो अदृश्य है वह मूल या प्रेरक सत्य है | ‘उस पार’ कविता नीहार काव्य संग्रह में संकलित है | इस संग्रह कविताओं में काव्यानुभूति ओस के बूंद के समान स्वच्छ, निर्मल एवं सौंदर्य संपन्न होते हुये भी पीड़ा से अलिप्त नहीं है | इस कविता में जीवन के उस पार पहुंचने में आने वाली बाधाओं का चित्रण किया है | इन बाधाओं को पार कर कवयित्री को अपने प्रियतम मिलने जाना है, परंतु उसके पास कैसे पहुँचें ? यह भी एक कठिन समस्या है | इन समस्याओं का वर्णन ही कविता का केंद्रीय विषय बन गया है | जीवन पथ का अंधकार, पीड़ा, हाहाकार, साहस, आशा, निराशा, सोने के संसार, असीम प्यार एवं विसर्जन का मधुर शैली में वर्णन किया है |
(२) ‘उस पार’ कविता की भाव-पक्षीय विशेषता :-
महादेवी वर्मा के ‘उस पार’ कविता में अपने ह्रदय की निर्मल भावना व्यक्त की है | अपने अलौकिक प्रियतम से मिलन के लिए उस पार जाना है, किन्तु जीवन की परिस्थितियाँ आज भयंकर है | येसे हालातों में कवयित्री प्रियतम के पास कैसे पहुंचेगी ? यह एक कठिन समस्या है और उसे विश्वास भी है कि जीवन के उस पार पहुंचाने वाला और कोई दूसरा व्यक्ति नहीं, परंतु मेरा कर्णाधार स्वयं ईश्वर ही है |
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१. जीवन पथ का अंधकार :-
महादेवी वर्मा ने उस पर कविता की प्रारंभिक पंक्तियों में प्रिय मिलन के दौरान जीवन पथ में बिछे अंधकार का वर्णन किया है | प्रकृति का भयंकर और रौद्र रूप चित्रित करके उस पार पहुँचने में आनेवाली बाधा एवं विडम्बनाओं का वर्णन किया है |
“घोर तम छाया चारों ओर
घटायें घिर आई घन घोर
वेग मारुत का है प्रतिकूल
हिले जाते हैं पर्वत मूल
गरजता सागर बारंबार
कौन पहुंचा देगा उस पार”
कवियत्री ने इन पंक्तियों में अपने जीवन के अंधकार को वर्षा ऋतु के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है | जीवन के उस पार अपने प्रियतम मिलन के लिए जाना चाहते हैं, लेकिन संसार में चारों ओर अंधकार ही अंधकार है | आसमान में राक्षस जैसे काले-घने बादल की घटायें छाई हैं | इस अंधकार में पथ और दिशा का ज्ञान भी नहीं होता हैं | मारुत यानि पवन चारों ओर से तीव्र गति से प्रतिकूल दिशा में बह रहा है | पवन से गति इतनी तीव्र हैं कि पर्वत के मूल भी हिल जाते हैं | पर्वत नींव से डगमगाने लगता हैं और सागर की गर्जना बारंबार कानों में सुनाई देती है | यह भयंकर गर्जन प्रतिकूल पवन एवं काले घने बादलों की घटायें मुझे अपने प्रियतम के पास पहुंचने नहीं देगी ! जीवन के उस पार में कैसे पहुँच पाऊँगी ? यहाँ कवयित्री चिंतित और दुखी दिखाई देती है |
२. पीड़ित जीवन का हाहाकार :-
काव्य की निम्न पंक्तियों में कवयित्री ने पीड़ा से भरे हाहाकार पूर्ण जीवन का मनभावन वर्णन किया है | उन्होंने प्रकृति जरिए उनकी पीड़ा को व्यक्त करने का अच्छा साधन चुन लिया है |
“तरंगे उठीं पर्वताकार
भयंकर कराती हाहाकार,
अरे उनके फेनिल उच्छवास
तरी का करते हैं उपहास;
हाथ से गई छूट पतवार
कौन पहुंचा देगा उस पर”
कवयित्री ने पीड़ित जीवन का हाहाकार पूर्ण वर्णन प्रकृति के अलग-अलग उपादानों के माध्यम से स्पष्ट किया है | समुद्र में उठने वाले तरंगे पर्वत के समान विशालकाय स्वरूप में दिखाई देती है | यह तरंगे दुख और पीड़ा से जोर-जोर से रुदन के उच्च स्वर में चिल्लाती है | इससे भी बढ़कर यह तरंगों के झागयुक्त मुख से मन के कष्ट एवं वेदना से लंबी-लंबी सांसे ले रही है | ऐसे कठिन समय में हमारी जीवन नौका बीहड़ मुख करके जोर-जोर से हँसती है, क्योंकि हमें इस भयंकर सामुद्रिक तूफान में से पार उतारने का साधन एक नाव ही थी | इस नाव में बनी त्रिकोणाकार लकड़ी छूट गई | हम निराधार हो चुके हैं | हमारी लाचारी और मजबूरी पर नाव हमारी ओर अपना मुख करके हंसती रहती है | ऐसे हालातों में हमें अपने प्रियतम के पास एवं जीवन के उस पार कौन पहुँचायेगा ?
कवयित्री ने संसार रूप समुद्र को जीवन का प्रतीक मान लिया हैं एवं परोक्ष रूप से जीवन के भयंकर में एक नाव ही प्रियतम तक पहुंचने का सहारा थी | अंत में वह भी उथल-पुथल हो जाती है | यहाँ कवयित्री हाथ अपने प्रियतम के हाथ से छूट जाने का डर स्पष्ट किया है, क्योंकि समुद्र की तरंगे हदय के अंदर उठने वाली तरंगों का प्रतीक है | ईश्वर ही उनका सहारा है |
३. साहस का अंत :-
प्रस्तुत पंक्तियों में समुद्र के बीच जलचर मध्य फसी नाव का वर्णन किया गया है, लेकिन परोक्ष रूप से जीवन के मझधार में फसे मानव-जीवन का चित्रण किया हैं | कवयित्री का व्यक्तिक जीवन मुश्किलों के घने बादलों से घिरा हुआ हैं | इसमें स्वयं को लगता है कि अब मेरा हौसला नहीं रहा ! इसका भावपूर्ण चित्रण किया है |
ग्रास करने नौका, स्वच्छन्द
घूमते फिरते जलचर वृंद;
देख कर काला सिंधु अनंत
हो गया हा साहस का अंत !
तरंगें है उताल अपार
कौन पहुंचा देगा उस पार ?”
समुद्र के तूफान में पर्वत के जितनी ऊंची तरंगें उछल रही है | इसके बीच नौका फसी है और छोटे-बड़े जलचर जीव हमें अपना निवाला बनाने के लिए समूह में मंडरा रहे हैं, लपक रहे हैं | समुद्र के पानी में रहने वाले जीव जन्तु मुक्त रूप से जंगली पशु की तरह हमें दुखी करने को बेचैन है | वे निरंतर इस कालचक्र को देख कर हमारे भीतरी साहस का अंत हो गया | ऐसा लगता है कि समुद्र के अनंत, भयंकर और अपार तरंगें पास आती हुई दिखती है | ऐसे तूफानों के बीच से निकाल कर कौन हमें अपने प्रिय मिलन को उस पार पहुंचायेंगा ? यही भय और डर कवयित्री के मन में आता है | अपने जीवन की विडम्बना से निकलने का प्रयास किया है, अपितु नौका के चारों ओर जलचर जीव निगलने के लिए तरस रहे थे | सामुद्रिक तूफान की कालरात्रि में अनंत पर्वत को देखकर हमारे साहस का अंत हो जाता है |
४. आशा भरे जीवन में निराशा :-
काव्य प्रस्तुत पंक्तियों में आशावादी स्वर सुनाई पड़ता है, लेकिन आशा का संसार असफल होता दिखाई देता है और अंत में विफलता हाथ लगती है | नक्षत्र, रात, फूल एवं कर्णाधार को विषय बनाकर संवेदना व्यक्त की हैं |
“बुझ गया वह नक्षत्र प्रकाश
चमकती जिसमें मेरी आश;
रैन बोली सज कृष्ण दुकूल
विसर्जन करो मनोरथ फूल;
न जाये कोई कर्णाधार
कौन पहुँचा देगा उस पार ?”
कवयित्री का नक्षत्र ज्ञान अच्छा है क्योंकि आसमान में चमकने वाले रात्रि के नक्षत्रों का सुंदर वर्णन किया है | आकाश में टीम-टिमाने वाले तारें और नक्षत्र की रोशनी मिट गई है | आसमान में चारों ओर अंधेरा छा गया है | जब तक नक्षत्र का प्रकाश था तब तक मेरी आशा चमकीले प्रकाश की तरह चमकती रहती थी, किन्तु अब तो अंधकार ही अंधकार नजर आता है | कालरात्रि अपना कृष्णा रंगी वस्त्र सजकर दुश्मन बनी हुई है | तुम फूल सी कोमल और मधुर मोकमनाओं का त्याग कर दो | तुम्हारा प्रिय मिलन का सपना कभी पुरा नहीं हो सकता | ऐसी पीड़ा, दु:ख, वेदना एवं आग में फसी जिंदगी का कोई सहारा अब बचा नहीं है | ऐसी भयंकर कालरात्रि में मेरे कर्णाधार के पास मुझे कौन पहुंचायेंगा ? मुझे कौन उस पार पहुंचायेंगा ? जिस पार मैं जाना चाहती हूँ | उससे मिलना चाहती हूँ | मेरी सारी मनोकामनाएँ विफल हो गई हैं |
५. दर्द के उस पार का संसार :-
कविता की इन पंक्तियों में कवयित्री ने स्वर्ग-लोक और पृथ्वी-लोक का वर्णन क्या हैं, लेकिन परोक्ष अपने जीवन के दर्द से मुक्त होने के बाद हदय की अनुभूति के विषय में भावानुभूति व्यक्त की हैं | जीवन में दर्द या दुःख से मुक्ति मिलने के बाद एक नये संसार की ओर दृष्टि घुमाई हैं |
“सुना था मैंने इसके पार
बसा है सोने का संसार,
जहाँ के हँसते विहग ललाम,
मृत्यु छाया का सुनकर नाम !
धरा का है अनंत श्रृंगार,
कौन पहुंचा देगा उस पार ?”
उक्त पंक्तियों में आश्चर्य की अनुभूति के साथ विचार व्यक्त किये है | कवयित्री ने पीड़ा के उस पार का संसार देखा नहीं, क्योंकि महादेवी का जीवन पीड़ा का पर्याय था | मैंने केवल सुना था कि दर्द के दूसरी ओर सोने का संसार है | जहाँ मेरा अलौकिक प्रियतम रहता है | इस लोक में सुख, आनंद, खुशी एवं प्रकाश का साम्राज्य है | दुख का क्षण मात्र के लिए भी अनुभव नहीं होता | इस लोक के पक्षी समूह मृत्यु का नाम सुनकर मनोहर हँसी हंसने लगते हैं, क्योंकि उसे अच्छी तरह मालूम है, कि इस लोक में हमारी मृत्यु तो क्या ! मृत्यु की छाया भी हमें स्पर्श नहीं कर सकती | अतः पक्षियों का यह हास्य हमें आश्चर्य में डूबा देता है, जबकि पृथ्वीलोक में धरती के भिन्न-भिन्न प्रकार के अनगिनत श्रृंगार है | इसमें विरह का राग व्यक्ति को सबसे अधिक पीड़ित करनेवाला भाव है और प्रेम के श्रृंगार में व्यक्ति का मन रममाण हो जाता है फिर इस प्रेम से मिलने वाली विरह व्यथा से व्यक्ति जलता रहता है | मनुष्य सुख के लिए सौंदर्य और सजावट के साधन भी काफी मात्रा में उपलब्ध है | सांसारिक मनुष्य इसी में डूब कर अपना जीवन नष्ट कर देता है | इन साधनों में मन लगता है, कि उस पार हमें कौन पहुँचा देगा ? यहाँ मावन को सांसरिक बंधन से फुरसद नहीं, फिर हमारा दुख कौन समझेगा ? इस से मुक्ति पाने के लिए संसार के उस पार के जीवन का अनुभव प्राप्त करने के लिए सहारा कौन बनेगा ? हमें नहीं लगता दर्द के उस पार के जीवन को कभी देख पायेंगें ! यही चिंता मुझे बार-बार सताती रहती है |
६. अमरत्व और असीम प्यार का चित्रण :-
कविता की इन पंक्तियों में देवलोक की प्रकृति का सुन्दर वर्णन किया है | प्रकृति के विभिन्न रूपों का अच्छा अंकन किया है | मानवीयलोक से पर ईश्वरीय लोक की प्रकृति आश्चर्य में डुबो देती है | स्वर्ग-लोक में प्रकृति का सुन्दर और नयनरम्य कल-कल मधुर संगीत सुनाने वाले झरना शांतिपूर्णक ढंग से मीठा गान सुनाता हैं | इन झरने के गान में देवत्व प्राप्त अमृतवाणी में अमरत्व वरदान सुनाई देता है | इनसे ह्रदय के भीतर समाहित एवं निरंतर बहने वाले प्यार के निर्मल प्रवाह का संगीत झंकृत हो उठता है, लेकिन इस प्यार भरे हदय को लेकर हमें प्रियतम, देव, ईश्वर, तुम्हारे पास कौन पहुंचाएगा ? जिससे हम तुम में एकाकार हो जाए | तुम में बस जाए | हमारा अस्तित्व तुम्हारे अस्तित्व में समाहित हो जाए | यही संसार कवयित्री के जीवन में प्रियात्तम को प्राप्त करने में बाधा डालता हैं |
“जहाँ के निर्झर नीरव गान
सुना करते अमरत्व प्रदान;
सुनाता नभ अनन्त झंकार
बजा देता है सारे तार;
भरा जिसमें असीम सा प्यार,
कौन पहुँचा देगा उस पार ?”
देवलोक के आकाश का अनंत एवं अक्षय गुंजन हृदय के तार-तार को हिला देता है | जिसके के भीतर तुम्हारे प्रति अनंत एवं असीम प्यार भरा हुआ है | इस प्यार को तुम्हारे पास पहूँचना चाहती हूँ, लेकिन प्यार भरे हदय लेकर तुम्हारे पास उस पार कौन पहुँचा देंगा, ये मुझे समझ नहीं आता | संसार में किसी के पास समय नहीं | जो मुझे-तुझसे मिलाने का सेतु बन सकें !
७. स्वर्गीय संसार की दूरी :-
लौकिक से अलौकिक संसार की प्रकृति में मूल्यवान पुष्प के चेहरे पर निरंतर मुस्कान छाई रहती है और फूल को स्पर्श करने वाली हवा का गीत ही त्याग का गीत है | वहाँ की प्रत्येक वस्तु में स्वर्गीय विकास मौजूद है | पृथ्वी लोग की प्रकृति से बिल्कुल निन्न स्वर्ग लोक की प्रकृति है | उदासी, मायूसी एवं बैचेनी दूर करने के लिए कोमल एवं सुंदर प्रकाश है | जिसको देखकर मन और ह्रदय के भीतर शीतलता का अनुभव होता है | इस संसार का तो तु मालिक है ! यह संसार पृथ्वी-लोक से कितना दूर है ? मुझे यह जानना है, क्योंकि मैं तुम्हें मिलना चाहती हूँ | मुझे तुम्हारें पास आना है | मुझे प्रकृति के नयनरम्य सुख भरे सुंदर संसार के बीच कौन पहूँचा देगा ? जिससे आपके मिलन सुख के संसार का आनंद ले पाऊँगी तथा जीवन के मधुर मधु को चख पाउँगी |
“पुष्प में है आनन्त मुस्कान
त्याग का हैं मारुट में गान;
सभी में हैं स्वर्गीय विकास
वही कोमल कमनीय प्रकाश;
दूर कितना है वह संसार !
कौन पहूँचा देगा उस पार ?”
इन पंक्तियों में कवियत्री ने अपने प्रिय मिलन की चाह को तीव्र रुप में व्यक्त की है | वे अपने प्रियतम के स्वर्गीय संसार में जाना चाहती हैं, परंतु प्रियतम के लोक की दूरी से अनाझान हैं | उससे जानना चाहती है कि तुम्हारे और मेरे बीच की दूरी कितनी हैं | परोक्ष रूप में आत्मा और परमात्मा के मिलन की चाहत व्यक्त की हैं |
८. विसर्जन ही कर्ण आधार का मूलाधार :-
काव्य की अंतिम पंक्तियों में कवियत्री ने अपनी संवेदना को रहस्य के राज से पर्दा हटा दिया है | जीवन की पीड़ा, दुख, दर्द, विडम्बनाओं से मुक्ति का अमृत तत्व है | जिसके चरणों में जाकर व्यक्ति का अहंकार मिट जाता हैं |
“सुनाई किसने पल में आन
कान में मधुमय मोहक तान ?
तरी को ले आओ मंझधार
डूब कर हो जाओगे पार;
विसर्जन ही है कर्णाधा,
वही पहूँचा देगा उस पार |”
इन पंक्तियों में कवयित्री की अनुभूति आश्चर्य चकित करती है | उनके के पास एक पल में ही आकर किसी ने कानों में गौरवपूर्ण परंपरा का लुभावना संगीत किसने सुनाया हैं ? यह संसार की परंपरा है कि तुम अपनी नाव को मझधार में लेकर चले आओ | जितने तुम उस में डूबते जाओगे, उतने ही पार लग जाओंगे | यही संसार का रहस्य है | संसार कई लोग यही त्याग, बलिदान, और समर्पण को स्वीकार करके संसार सागर से तैर कर निकल हैं | ईश्वर के संसार में ईश्वर चरण में जाकर ही उस पार पहूँचा जा सकता है | जीवन को उनकी आराधना में खर्च के बाद ही स्वयं सहारा बनकर आता है और हमें उस पार वही पहूँचाने का कार्य करता हैं | यहाँ हिंदी साहित्य एक प्रसिद्ध दोहा याद आता है-
“कनक-कनक तै सौ गुनी मादकता अधिकाय
ज्यौ-ज्यौ बूडे श्याम रंग त्यौ-त्यौ समीप होय |”
(३) ‘उस पार’ कविता की कला-पक्षीय विशेषता :-
भावों की अभिव्यक्ति के लिए काव्य साहित्य में कला-पक्ष महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि कविता कामिनी स्वरूप कला-तत्वों से निर्मित होता है | कविता की सफलता में कला-पक्ष एवं भाव-पक्ष का समान योगदान होता है | ऐसे साधनों का कवि समझदारी से उपयोग करता है |
१. भाषा-शैली :-
उस पार कविता में महादेवी वर्मा ने भाषा का सफल प्रयोग किया है | वे भाव के अनुकूल भाषा गठन में सिद्धहस्त है | हृदय की कोमल और गहरी भावानुभूति को व्यक्त करने के लिए सरल, सहज एवं मधुर भाषा का प्रयोग किया है | खड़ीबोली हिंदी की कमलकांत पदावली में संस्कृत, बांग्ला, अरबी, फारसी और बोलचाल के शब्दों संमिश्रण गया है | जिससे भाषा में चार चांद लग गया है |
शैली की दृष्टि से यह काव्य काफी सफल रहा है, क्योंकि कवयित्री ने भावात्मक, चित्रात्मक, व्यंग्यात्मक एवं कथन-कहन शैली का प्रयोग किया हैं |
२. अलंकार योजन :-
कविता काव्य सौंदर्य बढाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है | जिसमें शब्द, अर्थ एवं शब्द और अर्थ मिलकर काव्य की शोभा वृद्धि करते हैं | काव्य सौंदर्य से पाठक आकर्षित होते है और स्मरण करने में सरल होता हैं | इस तरह कविता को सुंदर और बढ़िया कलेवर देने का काम अलंकार करते हैं | उस पार कविता में मानवीकरण, सजीवारोपण, यमक एवं उपमा अलंकार मिलते हैं | प्रस्तुत कविता से उदहारण-
“पुष्पा में है अनंत मुस्कान”- मानवीकरण
“सुनाइए किसने पल में आन
कान में मधुमेह मोहक तान ?” - अनुप्रास
३. छंद :-
नीहार काव्य संग्रह में संकलित अधिकतर कविता गीत-शैली में लिखी गई हैं | जिसमें मुक्तक छंद का प्रयोग किया है | उदहारण के लिए गीत के रूप में ‘उस पार’ कविता का सादर नाम लिया जाता है | गीत शैली की आधुनिक परंपरा को विकसित करने का कार्य महादेवी वर्मा ने किया था | यही उनकी सफलता का आधार भी मान सकते हैं |
४. शब्द-शक्ति :-
शब्द के भीतर की शक्ति का परिचय करवानेवाली शक्ति को शब्द शक्ति कहते हैं | शब्द की शक्ति तीन प्रकार से पाई जाती है- अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजन | जिस शब्द का अर्थ सीधा मालूम हो जाये उसे अभिधा कहते है | शब्द के मुख्य अर्थ में बाधा के कारण लक्ष्यार्थ मिलता हैं, लेकिन जब प्रस्तुत से कोई अन्य अर्थ प्रकट हो तो उसे व्यंग्यार्थ कहते हैं | उस पार कविता में अभिधा, लक्षणा और व्यंजना के द्वार अर्थबोध होता हैं |
५. प्रतीक और बिम्ब :-
प्रतीक एवं बिम्ब का कार्य कविता में व्यक्त अदृश्य एवं सूक्ष्म अनुभूति का सांकेतिक स्वरूप में दर्शन करवाना है | उस पार कविता में प्रकृति के प्रतिक का सफल प्रयोग किया है तो तूफान के बीच फसी नाव का प्रतिबिंब हमें जीवन की विडम्बनाओं से बखूबी परिचित करवाता है | इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उस पार कविता में प्रतीक और बिम्ब का सहज चित्रण किया हैं |
६. रस और गुण :-
जीवन में काव्या रसास्वादन के बिना शब्द कला अधूरी रह जाती है | पढ़ने वाले काव्य रस की अनुभूति होती है और यह रस कविता को सजीव करता है | उस पार कविता में हास्य, शांत, वियोग-श्रृंगार, अद्भुत एवं भयानक रस सुन्दर आकलन किया गया है | माधुर्य एवं प्रसाद गुण में रचित कविता विशेष आकर्षित की है |
(३) निष्कर्ष :-
निष्कर्षत: कह सकते हैं कि निहार काव्य संग्रह में संकलित उस पार कविता अपने निहित भाव, अनुभूति, संवेदना एवं आश्चर्य आलोक से सबका सम्मान पाने में सफल रही है | लौकिक जीवन में रहकर अपने अलौकिक प्रियतम को पाने की यात्रा कविता का केन्द्र है, लेकिन उस यात्रा के दौरान प्रकृतिगत एवं मानवीय वृत्तियों के कारण कई सारी पथबाधा बनती है | जिससे अपने मित्र के पास उस पार कौन ले जायेंगा ? यह चिंता लगातार हो रही है, परंतु अंत में वही प्रियतम उनको उस पार ले जाने कार्य करता है | कर्म के बल पर स्वर्गीय सुख का आनंद प्राप्त कर सकते हैं | अलौकिक और रहस्यमय अपने प्रियतम को मिलने की चाह तथा उनके प्रति का अपार प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए कविता जाने जाती रहेंगी | जिंदगी में व्याप्त सूनापन, खालीपन, पीड़ा, आदि का आवागमन से व्याप्त जिवनान्धकार काव्य आरंभ में व्यक्त है | निराशा से आशालोक की यात्रा सहज ही प्रेरित करती है | प्रियतम ही उसका सहारा बनता है | इस कविता का शीर्षक रोचक एवं संक्षिप्त है | कला तत्वों की दृष्टि से भी यह कविता बहुत ही सफल है, क्योंकि भाव के अनुकूल ही कला तत्त्वों के उपकरणों का चयन है अत: उस पार महादेवी वर्मा के अंत: करण की प्रति छवि लगती है |