Sunday, 15 January 2023

प्रेम का चित्रण : सुमन की कविता में

प्रस्तावना :-                 

शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ हिंदी काव्य साहित्य में सन् 1960 के पश्चात सबसे अधिक चर्चित कवियों में से एक है | सुमन जी छायावादोत्तर युग के सशक्त कवि, गीतकार और प्रवक्ता है | छायावादोत्तर युग से लेकर समकालीन कविता तक निरंतर उनकी काव्य साधना चलती रही | सही अर्थ में भारतीय संस्कृति के अभिवक्ता के रूप में कवि का नाम सआदर लिया जाता है | उनकी कविता भारतीय मिट्टी के रंग में रंगी हुई कविता है | जिसमें जीवन में व्याप्त सुख-दु:ख के गीतों की धुन कानों में सुनाई पड़ती है | हिन्दी काव्य साहित्य का एक दीर्घकाल उनकी लेखनी से प्रभावित रहा है | सन 1936 से शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ की काव्य यात्रा शुरू होती है | उनकी प्रगतिशील और स्वच्छंदतावादी कविता हिन्दी कविता के विगत साठ वर्षों के परिवर्तन और परिवर्धन की ओर संकेत करती हैं | 

 शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ की काव्य यात्रा प्रेम भावना की कविता से आरंभ होती है | विद्यार्थी जीवन में ही वे प्रेम कविता के लिए चर्चित हो चुके थे | सन 1936 में प्रकाशित उनका प्रथम कविता संग्रह ‘हिल्लोल’ की कविता को हृदय का प्रणय निवेदन कह सकते है | इसमें व्यक्त प्रियभाव, आनंद, विश्वास और प्रत्यक्ष बोध की अभिव्यक्त है | प्रत्यक्ष बोध के लिए स्वयं सुमन जी कहते है कि “अपने प्रत्यक्ष बोध के आधार पर ही मैंने काव्य की सृष्टि की है | प्रेम में अव्यक्त सौंदर्याकर्षण, साहचर्य, अनुनय, उपालंभ, व्याघ्रता, आग्रह और आलोकन मेरे निजी है |”१

आधुनिक हिंदी कविता के सारे भाव-बोध उनकी रचना में अभिव्यक्त है, लेकिन प्रमुख रूप में सत्य के प्रति जिज्ञासा, जीवन के प्रति अनुराग, विषम स्थितियों के प्रति गहरा रंग उनकी कविता और कवित्त्व को विशेष गरिमा प्रदान करते है और कवि की काव्य यात्रा का प्रथम चरण प्रेम भावना ही है | हिन्दी साहित्य में आदिकाल से लेकर समकालीन कवियों तक सभी ने प्रेम के गीत गाये हैं | भारतीय काव्य साहित्य की भांति कवि की कविता में प्रेम का लौकिक एवं अलौकिक रूप चित्रित मिलता हैं |

शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ की कविता में खिले प्रेम के फूल स्थूल इंद्रियों तक सीमित न रहकर मन के सूक्ष्म एवम् उदात्त स्तर तक पहुँच जाते है | इस प्रेम यात्रा के लंबे पथ पर दीर्घकाल तक प्रेम पथिक बनके चलते है | इसलिए भारत यायावर ने कहा है कि –“सुमन जी मूलत: रोमान्टिक मिजाज के कवि है और उनका रोमान्टिसिजम ही उन्हें निराला की तरह स्वच्छंदतावादी बनाये रखता है...|”२ सुमन जी की कविताओं में व्यक्त प्रेम मानव शरीर तक सिमित न रहकर आत्मा में व्याप्त हो जाता है | उनके प्रेम की लक्ष्य प्राप्ति आत्मा की तृप्ति है |

प्रेम का चित्रण : सुमन की कविता में :-


शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ की कविता में चित्रित प्रेम भावना मनोहर, मस्ती, दीवानगी, जीवन संघर्ष एवं क्रांतिकारी स्वर को वर्णित किया है | जीवन संघर्ष और व्यक्तिक स्तर का आकलन भी ध्यान आकर्षक लगता है | प्रेम एक ऐसा उदात्त भाव है | जो वैयक्तिक स्वार्थ को समाप्त कर सामाजिक दायित्व और विश्वबंधुत्व की नींव रखता है तथा संकुचित वृत्तियों की समाप्ति करके सुमनजी की कविता निष्काम और निर्मल प्रेम की धारा के रूप में बहती है | 

१. शाश्वत प्रेम का चित्रण :-

शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ कविता में शाश्वत प्रेम का चित्रण सुंदर और पूर्ण रूप से अभिव्यक्त हुआ है | इनकी कविताओं में जहाँ प्रेम को उदात्त रूप में ही स्वीकारते है तो वहाँ प्रेम को उदात्तभूमि प्रदान करके काव्य में दार्शनिक तटस्थता प्रकट करते है | कवि सुमन जी अव्यक्त सत्ता का निर्मल-पवित्र प्रेम ही व्यक्त करते है | कवि काव्य में व्यक्त निराशा भी सामाजिक कल्याण में परिवर्तित हो जाती हैं | शाश्वत प्रेम का सौंदर्य वर्णन एक पवित्र प्रकाश के रूप में प्रज्ज्वलित होता है | जीवन के प्रेम को कवि सत्य रूप में समझते है और प्रेम ही संसार को सुन्दर, मोहक, आकर्षक एवं उदात्त बनाता है | यही कवि का स्पष्ट मानना है | ईश्वर के प्रति भक्त का प्रेम, सांसारिक जीवन का दाम्पत्य प्रेम या वात्सल्य प्रेम सर्वत्र कल्याणकारी होता है | प्रेम को काव्य की मूल प्रेरणा मानने वाले कवि सुमन जी प्रेम की भावना में सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् का दर्शन करते हैं –

“कवि की अपनी सीमाएँ है,
कहता जितना कह पाता है |
कितना भी कह डाले,
लेकिन अनकहा अधिक रह जाता है |”३

‘हिल्लोल’ और ‘विंध्य हिमालय’ कविता संग्रह की कविता विरह और मिलन की अनुभूतियों का पर्याय है | कवि ने शाश्वत प्रेम को साम्यवादी दर्शन एवं भारतीय चेतना से जोड़कर उदात्त प्रेम को नये रूप में चित्रित करने का सफल प्रयास किया है |

२. नारी के प्रेयसी प्रेम चित्रण :-

प्रेम कवि नारी के प्रेयसी रूप का चित्रण किये बिना अधूरा रह जाता है | सुमन जी भी नारी सौंदर्य और स्त्री प्रेम को चित्रित करते समय कविता में सुंदर और आकर्षक चित्र तैयार करके रंग भरते है | इनके आलावा नारी के हावभाव का सुंदर, मोहक एवं युवावस्था के सहज सौंदर्य का सहज चित्र खीचें हैं | जहां प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे के मिलन के लिए व्याकुल दिखाई पड़ते है | वे क्षण मात्र के लिए बिछुड़ना चाहते नहीं | यह अवस्था ही प्रेम में उन्माद भरी होती है | जिसका वर्णन इन पंक्तियों में सुंदर तरीके से अंकित हैं –

“कहता क्या हूँ, कुछ होश नहीं, मुझको केवल संतोष यही,
मेरे गायन-रोदन में जब, निज सुख-दु:ख की छाया पाता,
मैं सुने में मन बहलाता |”४

प्रेम के स्वाभाविक रूप में प्रेमी को परदेशी मानकर प्रेम किया और उस दौरान प्रेमिका से की गई याचना एवं प्रणय भंग हदय की वेदना काव्य में पुकारती है | मान-अपमान, ज्ञान-अज्ञान की स्थिति से पर जाकर कवि प्रेम को देखता है | प्रेम इन सबसे मुक्त है | प्रेम की नजाकत एवं मासूमियत को चित्रित करके कवि पाठकों का दिल जित लेता है –

“वह उन सबसे ही अल्हड़ थी, 
नटखटपण से सब भरे काम, 
अंचल सरकाना, मुस्काना, 
गिरता घट लेना-थाम-थाम |”५

कवि सुमन जी अपनी कविता में प्रेयसी और प्रेमी के मन में उठने वाले समस्त भावों एवम् अवस्थाओं का सुंदर चित्र तैयार करते है | उसके बाद कवि अवलोकन, बचन, श्रवण और स्पर्श के भाव का सूक्ष्म रेखांकन करते है | 

३. पारिवारिक एवं दाम्पत्य प्रेम का वर्णन :-

शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ ने अपनी कविता में प्रेयसी प्रेम के गरिमापूर्ण दृश्य भी अंकित किये है तो दूसरी ओर अपने दाम्पत्य प्रेम को व्यक्त करना भी नहीं भूलते | पत्नी की सहज मर्यादाओं के साथ कवि दाम्पत्य जीवन का चित्रण करते है | नेपाल की यात्रा के दौरान परिवार का वियोग सहना पड़ा है | वह परिवार के सदस्यों के अलावा विशेष उनकी पत्नी का भावविभोर वर्णन करते है | 

“कभी जब काम से थककर अकेला बैठ जाता हूँ,
तुम्हारी याद आती है
तरसता हूँ मिले फुरसत तुम्हारे गीत गाऊं मैं,
कभी झगड़ो, कभी रुठों, ठिठोली कर मनाऊं मैं |”६

कविता में दाम्पत्य प्रेम का सहज, सरल और स्वाभिक चित्रण करने में कवि मंजे हुये कलाकार दृष्टिगत होते है | वे सामान्य शब्दों में अगाध प्रेमभावना के आलेखन में सिद्धहस्त है | पत्नी के साथ बिताये दिनों की याद हृदय को भर देती है | ‘मिट्टी की बारात’ आधुनिक जीवन को एक सीख देने वाली कविता है | प्यार की अभिव्यक्ति को सशक्त रूप में व्यक्त करने के ‘तुम्हारी याद’ कविता की एक पंक्ति ही पर्याप्त है –

“न जाने बात क्या है साँझ होते ही,
तुम्हारी याद आती है...|”७

हिंदी काव्य साहित्य में सुमन जी पत्नी प्रेम और अपनत्व के लिए आज भी याद किये है | भारतीय दाम्पत्य जीवन के आदर्श प्रेम चित्र खीचते हैं | संसार का सच्चा और पवित्र स्नेह अगर किसी का है तो वह माँ का ही है | सुमन जी ने माता के निस्वार्थ एवम् निर्दोष प्रेम की अद्भुत काव्य तस्वीर बनाई है-

“खा-पीकर बिस्तर जब, बांधने को उद्धत हुआ,
बार-बार कहने लगी, लाल न जाओ आज,
किन्तु हंत मानी नहीं, मनुहाट पयास्विनी की |”८ 

४. श्रूंगारिक भावना का चित्रण :-

हिन्दी कविता में प्रेम के संयोग और वियोग का चित्रण सहज रूप से मिलता है | कवि सुमन जी की कविता भी संयोग और वियोग के चित्रण से अछूती नहीं रही | संयोग के चित्र जितने आकर्षक और सुंदर है | उतना ही वियोग श्रृंगार का चित्र भी भावनात्मक बन पड़े है | कवि लौकिक प्रेम की क्षणभंगुरता, भाग्यवादी दृष्टि, विश्वास और असफल प्रेम का वास्तविक रूप प्रकट करते है | कवि इन पंक्तियों में स्पष्ट करते है कि-

“मैं पूर्णता की खोज में दर-दर भटकता ही रहा,
प्रत्येक पग पर कुछ-न-कुछ रोड़ा अटकता ही रहा |”९

५. सर्वहारा और शोषित-पीड़ित मनुष्य प्रेम का चित्रण :-  

भारत देश के पिछड़े वर्ग के प्रति सहानुभूति एवं सद्द-भावना की अभिव्यक्ति करते समय कवि सुमन जी का दृष्टिकोण प्रगतिवादी रहा है | सुमन जी ने शोषित और पीड़ितों की यातनाओं का अधिक व्यापक चित्रण किया है | कविता में दुखियों के हृदय विदारक चित्र उतारे हैं | जो तत्कालीन समाज का सही चित्र प्रस्तुत करते है ।

“कंठ में कंपन नहीं, अब मौन है मेरे प्रणय स्वर
वेदना भी वह नहीं जो, एक ही उर की व्यथा हो |”१०

प्रणय के गीत गुन-गुनाने वाले कवि शोषितों और पीड़ितों के प्रति अपने प्रेम व्यक्त किए बिना नहीं रहते | प्रगतिवादी कवि प्रणय के गीत नहीं गाते, किन्तु वैक्तिक भावना को सामाजिक स्वरूप में व्यक्त करते है | देश में गरीब और दीन दुखियों की भयानक स्थिति को सामने रखकर हदय में करुणा और स्नेह प्रकट करते है | वे मानव-मानव के बीच सामंझस्य चाहते है |

“हाय, यहाँ मानव-मानव में, समता का व्यवहार नहीं है,
हाहाकारों की दुनिया है, स्वप्नों का संसार नहीं है |”११

६. राष्ट्र प्रेम की अभिव्यक्ति :-

आधुनिक हिन्दी के अन्य कवियों की तरह कवि सुमन जी की कविता में स्वाधिनता आन्दोलन के बाद की अविता में राष्ट्र प्रेम की भावना अभिव्यक्त होती है | अपनी जन्मभूमि के प्रति कवि ने असिम प्रेम और श्रद्धा भाव व्यक्त किया है | जब तक किसी कवि की कविता राष्ट्र के रंग में नहीं रंगती तब तक फीकी लगती है | राष्ट्र प्रेम की भावना ही सबसे निस्वार्थ और पवित्र मानी जाती है | उनका राष्ट्र प्रेम भारतवर्ष की सांस्कृतिक आधार को लेकर चला है | ‘जागरण’ कविता में मातृभूमि को मां से अधिक महत्त्व प्रदान करती है | सदियों से गुलाम रहे देश को आझाद करना है | देश का विकास तभी संभव हो सकता है जब देशवासी निस्वार्थ होकर देश सेवा करेंगे | शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ की अपनी कविता के जरिए देश सेवा में अग्रेसर होते है-
 
“कुछ मस्तक कम पडते होंगे,
जब महाकाल की माला में,
माँ माँ रही होगी आहुति,
जब स्वतंत्रता की ज्वाला में |”१२


७. विश्व प्रेम का चित्रण :-

शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ की कविता में मानवतावाद और विश्व प्रेम का पवित्र स्वर सुनाई पड़ता है, किन्तु राष्ट्र-प्रेम एवम् देश प्रेम की पवित्र भावना देश की सीमा को लांधकर उनकी कविता की गूंज विश्व कल्याण का स्वर बन जाती है | कवि संपूर्ण जगत को ही मनुष्य की कर्मभूमि मानते है | जो अपने कर्तव्य के जरिए मानवता की मिसाल कायम कर सकता है |

“घातक समाज में मानवता, जब लुप्त प्राय हो जाती है,
बेकस, असहाय निरी हो की, जब हाय-हाय छा जाती है |
मानवता का स्वर ऊँचा हो, वह राग चाहता हैं जीवन,
तप-त्याग चाहता है जीवन |”१३

कवि अपनी कविताओं के जरिए मानवता की पृष्ठभूमि के ज्यादा गीत गाते है | मानवता ही एक ऐसा भाव है, जिसके माध्यम से पूरे विश्व का कल्याणकर बचाया जा सकता है |

८. प्रकृति प्रेम का चित्रण :-

प्रकृति निस्वार्थ प्रेम की देवी है | जिसका प्रेम वर्णन कोई कवि कैसे भूल सकता है | शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ ने अपनी कविता में प्रकृति प्रेम का वर्णन प्रकृति के विभिन्न रूप का स्वभाविक चित्रण किया है | आदि-अनादिकाल से प्रकृति के साथ मानव का संबंध अटूट रहा है | हिंदी साहित्य के छायावाद युग में प्रकृति का सबसे अधिक वर्णन मिलता है | इनका प्रभाव सुमन जी की कविता में भी प्रतिबिंबित होता है | प्रकृति में प्रेम की मिलावट कवि के अपने स्वयं के  हदय और मानसभूमि की उपज है | प्रकृति का सुंदर, मनमोहक, कमनिय रूप का चित्रण इनकी  कविता का अभिन्न हिस्सा है | प्रातःकालीन उषा का आकर्षक, मधुर एवं सुंदर सौंदर्य वर्णन हदय मन को मोहित कर लेता है |

“लख कर गुलाबी गाल,
उषा के उठी जब हूक-सी,
जब पास की अम्राराईयों से,
एक कोयल कूक दी,
सच जग पड़ा मेरे हृदय में, 
काव्य स्वर अवदान था,
कैसा मधुर प्रभात था |”१४

अत: कह सकते है कि कवि की कविता में उषा का सौंदर्य, संध्या की अद्वितीय कल्पना, पक्षियों का आकुलित स्वर, काले मेघ का मानवीयकरण, नभ की सुन्दरता आदि प्रकृति प्रेम के सुंदर और मन-मोहक दृश्य यत्र-तत्र सर्वत्र मिलत है | कवि कभी-कभी लोकगीत की लोकशैली की मधुरता कविता में सुंदर तरिके से चित्रत करते हैं-

“ताल तलैया भरे चहूँ ओर झकोर हिलोर में डोले हिया,
दूब की चादर फैली दिंगत, लौ, मोर को शोर मरो रै जिया |“१५ 

भारतीय प्रकृति के सुंदर भंडार को कविता में हदय के सौन्दर्य  को मिलाकर वर्णित किया है | 

९. अलौकिक प्रेम की अभिव्यक्त :-

आधुनिक हिन्दी कवि शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ अपनी कविताओं में अलौकिक सत्ता यानि   रहस्यवादी प्रेम का चित्रण भी अनोखे ढंग से करते हैं | अलौकिक सत्ता के प्रति उनका भाव रहस्यपूर्ण रहा है | उसकी अभिव्यक्ति सहज, सरल और आश्चर्यपूर्ण होती हैं | डॉ. मिश्रा जी ने शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ के अलौकिक अनुराग के बारे में लिखा है कि “ईश्वर के प्रति अनन्य अनुराग को भक्ति कहा गया है | यही भक्ति भावना सुमन जी के काव्य में अभिव्यक्त हुई है, किन्तु सुमन जी की भक्ति का झुकाव ‘स्वांत: सुखाय’ हो कर ‘पर हिताय’ अधिक है | वे इस भक्ति का स्वरूप विश्व कल्याण की भावना में देखते है |”१६
          इस प्रकार रहस्यवादी प्रेम के विभिन्न रूप चित्रित मिलते है | उनकी कविता में प्रकृति के अलौकिक एवं रहस्यवादी प्रेम की अभिव्यक्ति दृष्टव्य है-

“शब्द रूप, रस, गंध तुम्हारी, कण-कण में बिखरी, 
x x
कितनी बार तुम्हें देखा, पर आँखे नहीं भरी |”१७


निष्कर्ष :-

डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ की कविताओं में हदय की भावना के कई फूल बिखरे पड़े हैं, किन्तु प्रेम के गुलाबी और मखमली फूलों की खु-श-बू सबसे अधिक महकती है | प्रेम का व्यापक एवं विभिन्न रूप में चित्रण करना कोई सुमन जी से सीख सकता है | इनकी कविता में प्रणय, दाम्पत्य, वात्सल्य, लौकिक एवम् अलौकिक रूप में प्रेम का चित्रण किया हैं | कविता में निरुपित प्रेम का उद्देश्य आत्मा की तृप्ति और मानव कल्याण रहा है | कवि सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग करके यह कार्य बड़ी सफलता से करते है | उनके प्रेम की शक्ति विश्व कल्याण की ओर गतिशील नजर आती है | अतः सुमन जी के गीतों में प्रियतम और प्रियतमा के सस्नेह प्रेम से शुरू होकर राष्ट्र प्रेम और विश्व प्रेम की अभिव्यक्ति है | 

संदर्भ सूचि :-
(०१) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’-सुमन समग्र खण्ड दो के वक्तव्य के घेराव से उद्धृत-पृ. सं.-०६ 
(०२) भारत यायावर- सुमन समग्र खण्ड एक के प्रकाशकीय वक्तव्य से...
(०३) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड दो के वक्तव्य के घेराव से उद्धृत-पृ. सं.-११
(०४) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड एक- पृ. सं. २२ 
(०५) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड एक- पृ. सं. १६५ 
(०६) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड दो संकेत से-पृ. सं. ६४
(०७) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड दो-पृ. सं. ८६
(०८) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड दो-पृ. सं. १०३
(०९) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड एक-पृ. सं. ३१
(१०) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड एक-पृ. सं. १४६/१४७
(११) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड एक-पृ. सं. ८२
(१२) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड एक-पृ. सं. १००
(१३) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड एक-पृ. सं. १४६
(१४) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड एक-पृ. सं. ८४
(१५) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- सुमन समग्र खण्ड एक-पृ. सं. ३१५
(१६) डॉ. रवीन्द्रनाथ मिश्र-डॉ.शि.‘सुमन’ के कृतियों का समीक्षात्मक अध्ययन-पृ. सं.-१९९
(१७) डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’- ‘सुमन’ समग्र खण्ड एक-पृ. सं. ३१४