Tuesday, 30 May 2023

छात्रों की अनियमितता के कारण

अनियमित छात्र
छात्रों की अनियमितता के कारण

             यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज के समाज को शिक्षा की भूख जगी है। इसमें भी छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाने को लालायित हैं। शिक्षा के ऐसे आदर्श वातावरण में भी उच्च शिक्षा में कुछ खामियां सोचनीय तरीके से बढ़ रही हैं, उच्च शिक्षा में छात्रों की अनियमितता एक मंत्रिस्तरीय चिंता का विषय है।

             सरकार और शिक्षा जगत के हितैषी लगातार यह प्रयास कर रहे हैं कि कैसे हमारी शिक्षा व्यवस्था को समृद्ध और उत्कृष्ट बनाया जा सकता है। गुजरात में उच्च शिक्षा की स्थिति आनुपातिक कही जा सकती है । स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर शोध का प्रचलन बढ़ा है, लेकिन मुझे लगता है कि उस शोध की तुलना में शोध करने वाले छात्रों पर बहुत कम शोध किया जाता है । एच. एस. पास करके छात्रों जब स्नातक कॉलेज में प्रवेश करता है, तो वह बड़ी आकांक्षाओं और आशाओं के साथ प्रवेश करता है । क्या वह अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सफल होता है ? यह एक गंभीर और ज्वलंत प्रश्न है । जवाब है, नहीं । इसके कारणों पर गौर करें तो छात्रों की अनियमितता इसका एक प्रमुख कारण कहा जा सकता है । उच्च शिक्षा में कुछ छात्र नियमित रूप से स्कूल छोड़ने वालों की सूची में शामिल हो जाते हैं । दिन-ब-दिन बढ़ रही ऐसे छात्रों की संख्या वास्तव में सरकार और उच्च शिक्षा से जुड़े हर विद्वान की नींद हराम कर देने वाली बात है । यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज उच्च शिक्षा को कमजोर करने वाली सभी समस्याओं का मूल कारण छात्रों की अनियमितता है ।

        ऐसे में हमारे सामने एक प्रश्न उठता है कि छात्र अनियमित क्यों हो जाते हैं ? इसकी अनियमितता के पीछे की प्रेरक शक्ति कौन सी है? अपनी अध्ययन गतिविधि को गौण और अन्य गतिविधियों को मुख्य बना देता है । यदि हम विभिन्न कारणों को देखें तो भविष्य में इस स्थिति में आंशिक परिवर्तन संभव हो सकता है ।

            केंद्र सरकार और भारत की राज्य सरकारें दोनों मिलकर इस बात को समझती हैं कि यह बहुत जरूरी है कि आने वाले युवा जो भारत का भविष्य हैं, उन्हें गुणवत्तापूर्ण और मूल्योन्मुखी शिक्षा मिले । इसके लिए यह उच्च शिक्षा में कई योजनाओं को लागू करता है । इन्सान लालची है, उनका का लालच कभी पूरा नहीं होता । क्या इन योजनाओं का लाभ लेने वाले छात्र वास्तव में इसके हकदार हैं ? यह योजना भी छात्रों की अनियमितता को बढ़ावा देने वाली प्रेरक शक्ति है । यह कहना नहीं है कि यह छात्रों के हित में नहीं है कि ऐसी योजनाएँ हों जो उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें, लेकिन जो छात्र वास्तव में इस लाभ के हकदार हैं । यदि वे स्वयं लाभ प्राप्त करें तो आंशिक रूप से यह सुधार हो सकता है, लेकिन छात्र इस लाभ को लेने के बाद अपने कर्तव्य से विमुख हो जाते है । इनका मुख्य उद्देश्य शिक्षा नहीं, बल्कि सरकारी लाभ प्राप्त करना है ।

       सरकारी योजनाएँ भी छात्रों को शिक्षा के अनियमित रास्ते का अनुसरण करने के लिए मजबूर करती हैं जहाँ छात्र वास्तव में शिक्षा प्राप्त नहीं करना चाहता है, लेकिन उच्च शिक्षा का अध्ययन करने के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति काफी हद तक है । वह छात्रवृत्ति पाने के लालच में उच्च शिक्षा में प्रवेश करता है । इससे प्रेरित होकर उन्हें प्रवेश मिलता है और छात्रवृत्ति भी मिलती है । इसके बाद वे उच्च शिक्षा को अलविदा कर देते है । सरकार की ये नीतियां बहुत स्वागत योग्य हैं, लेकिन उन नीतियों के तहत शिक्षा प्राप्त करने और इसका सही उपयोग करने वाले छात्रों की संख्या बहुत कम है । वह सरकारी छात्रवृत्ति को पैसा कमाने का जरिया मात्र मानता है । उच्च शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण और हमारे लिए मूल्यवान बनाने के लिए वित्तीय सहायता आवश्यक है । यही विद्यार्थी का मोह बन जाता है, जिसका परिणाम गुणवत्तापरक शोध या अध्ययन न कर पाना होता है । अनियमित हो जाता है । जो अक्सर सरकार और उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक अहम सवाल बन जाता है । छात्र उच्च शिक्षा विश्वविद्यालय के भीतर वर्षों की छात्रवृत्ति के लालच में अनियमित रूप से अपनी पढ़ाई पूरी नहीं करते हैं ।

          उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र परिपक्व होते हैं और अपने निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। अपने परिवार की पारिवारिक संस्कृति को भी उनकी अनियमितता के लिए एक जिम्मेदार कारक माना जा सकता है, क्योंकि जब उनके परिवार का कोई सदस्य उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त नहीं करता है, तो संभव है कि वे भी शिक्षा में रुचि खो दें और अपने स्वयं के पारंपरिक व्यवसायों को अपनाएं । यह कारण भी काफी हद तक छात्रों को अनियमित बनाने में अपनी प्रेरक नकारात्मक भूमिका निभाता है । दूसरी ओर, कई अमीर परिवार अपने बच्चों की देखभाल में समय नहीं लगाते हैं । बच्चे यह समझने लगते हैं कि हमारे पास सब कुछ है । हमें अध्ययन करने की क्या आवश्यकता है !


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      ग्रामीण और शहरी महाविद्यालयों में उच्च शिक्षा ग्रहण करते समय विद्यार्थियों को महाविद्यालय परिसर में मिलने वाला वातावरण, महाविद्यालय परिसर का वातावरण, सामाजिक परिवेश, मित्र और पारिवारिक वातावरण उन्हें शिक्षा में नियमित और अनियमित बनाते हैं । जब महाविद्यालय का शैक्षणिक वातावरण अनियमित होता है तो छात्रों को भी अनियमित होने का कोई मलाल नहीं होता है ।

        भले ही उच्च शिक्षा स्तर पर चलाए जाने वाले पाठ्यक्रम अत्यधिक विद्वान और ज्ञानी शिक्षकों द्वारा तैयार किए जाते हैं, फिर भी जब पाठ्यक्रम छात्र की रुचि को पूरा करने में विफल रहता है तो छात्र नियमित रूप से विमुख हो जाता है । पाठ्यचर्या और छात्र दोनों ठीक हैं, लेकिन शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक, प्रोफेसर आदि शिक्षा प्रदान करने में विफल रहते हैं तो छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित नहीं होते हैं और दिन-ब-दिन अनियमित हो जाते हैं।

         शिक्षण त्रिस्तरीय प्रक्रिया है । इनमें से एक भूमिका शिक्षक की है जो शिक्षण कार्य करा रहा है । यदि शिक्षक को अपने अध्ययन बिन्दुओं और विषय में कमी प्रतीत होती है तो विद्यार्थी उस शिक्षा को प्राप्त करने के इच्छुक होने पर भी नहीं जाता है । उनकी जिज्ञासा अधूरी रह जाती है और अनिश्चित हो जाती है । यदि वे हर समय ऐसा ही महसूस करते हैं तो उन्हें कोई लाभ होता नहीं दिख रहा है तब छात्र अनियमित हो जाते है । अत: यदि शिक्षक, विद्यार्थी और पाठ्यचर्या के बीच अच्छा तालमेल हो तो विद्यार्थी को अनियमित होने से रोका जा सकता है ।

        शिक्षा को बेहतर बनाने में शैक्षिक संसाधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । किसी कारण से शैक्षिक संसाधनों की कमी शिक्षा के प्रति रुचि को कम कर देती है । छात्र अकादमिक ज्ञान और कौशल विकसित करने के लिए उत्सुक हैं, लेकिन जब उनके ज्ञान और कौशल के अनुकूल और संतुष्ट करने के लिए शैक्षिक प्लेसमेंट और संसाधनों की कमी होती है, तो छात्र या तो अपने विवेक से संस्थान बदलते हैं या शैक्षिक संस्थानों में अनियमित हो जाते हैं ।

         शिक्षा की भौतिक सुविधाओं में से एक उच्च शिक्षा में छात्रों को परिवहन सुविधा प्रदान करने वाली भौतिक सुविधा है । छात्र ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जाते हैं और आगे शहर में शिक्षा प्राप्त करने के लिए ऐसी विशेष आने-जाने की सुविधा के बिना छात्र को शैक्षिक परिसर तक पहुँच नहीं पाते है, लेकिन कुछ समय के लिए नियमितीकरण के बाद अनियमित हो जाता है । उनके लिए उपलब्ध आवास सुविधाएं शैक्षिक कार्यक्रम के अनुरूप नहीं हैं और सुविधाजनक नहीं हैं । उदाहरण के लिए, सरकार द्वारा सार्वजनिक परिवहन प्रणाली छात्रों को पास जारी करके सस्ती दर पर शिक्षा प्राप्त करने में मदद करती है, लेकिन उनकी समय सारिणी और शैक्षणिक समय सारिणी अलग-अलग होने के कारण छात्र दोनों के बीच फसे हुए हैं । माता-पिता सामान्य परिवारों के छात्रों के लिए इतनी बड़ी मात्रा में वित्तीय सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए वे इस दिन-प्रतिदिन की समस्या से छुटकारा पाने के लिए शिक्षण संस्थान से दूर का रिश्ता बना लेते हैं ।

            शिक्षण संस्थान का आंतरिक वातावरण भी छात्रों को नियमित और अनियमित बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । रुचि को कम करता है । जो अंततः अनियमितता का शिकार हो जाता है ।

         शिक्षा में आर्थिक पहलू एक महत्वपूर्ण कारक है । एक साधन संपन्न व्यक्ति किसी भी कीमत पर अपने शैक्षिक लक्ष्य को पूरा करता है । एक छात्र के लिए दो प्रश्न राक्षसों की तरह मंडराते हैं, जिसकी जीवन यात्रा अर्थहीनता से चिह्नित होती है । जीवन कैसे जिएं और खुद का अध्ययन कैसे पूरा करें ? कभी-कभी समय बीतने के साथ छात्रों को शिक्षा की उपेक्षा करते और जीवनयापन के लिए संघर्ष करते देखा जाता है । गरीबी भी एक छात्र को उच्च शिक्षा में अनियमित बनाती है । यहां राज्य सरकार, केंद्र सरकार एवं शिक्षण संस्थान ऐसे विद्यार्थियों को अपनी-अपनी योजनाओं के माध्यम से आर्थिक सहायता प्रदान कर प्रोत्साहित करते रहते हैं । जो छात्रों की शैक्षणिक अनियमितता को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

           आज की शिक्षा उंगलियों पर उपलब्ध है । शिक्षा को समयानुकूल सुंदर, सरल और उपयोगी बनाने के लिए निरन्तर विचार किया जाता है । सामाजिक संसाधनों ने शिक्षा को आसान और अधिक विविध बनाने में सॉसियाल संसाधन शिक्षा का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है । उनका जितना अधिक उपयोग किया जाता है, सीखना उतना ही आसान और अधिक मजेदार हो जाता है, लेकिन सामाजिक संसाधनों का उपयोग छात्र के विवेक पर निर्भर करता है और अधिक उपयोग करने पर विनाशकारी हो सकता है । आज सोशल मीडिया का प्रयोग शिक्षा प्राप्त करने या शैक्षिक उपयोगी सामग्री प्राप्त करने की अपेक्षा मनोरंजन के लिए अधिक हो रहा है जिससे छात्रों में आलस्य, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन आदि विकार पैदा हो गए हैं जिसके कारण छात्र शिक्षा से दूर हो जाते हैं और शिक्षण संस्थानों में अनियमित हो जाते हैं ।

        अपनी अज्ञानता और अपरिपक्व मन के कारण विद्यार्थी दूर-दूर तक शिक्षा का लाभ नहीं उठा पाता । थोड़े समय में प्राप्त शिक्षा उन्हें कोई लाभ नहीं देती है । इसलिए उन्हें लगता है कि शिक्षा प्राप्त करने से कल्याण नहीं होने वाला ! इस कारण वह पढ़ाई से दूर हो जाता है । आज का समय बेरोजगारी और बेरोजगार का है । वह बेरोज़गार और बेरोज़गारी की आँधियों के सामने खड़ा नहीं हो पाता और उन्हीं आँधियों में अपना वजूद ख़र्च कर देता है ।

           हिंदी में कहा गया है 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' एक छात्र मानसिक रूप से शिक्षा प्राप्त करने के लिए उत्सुक नहीं होता है । ऐसे छात्र उच्च शिक्षा छोड़ देते हैं और रुचि के किसी अन्य क्षेत्र को चुनते हैं । उचित मार्गदर्शन से पहले उन्हें शिक्षा से वंचित कर दिया जाता है । कोई यह भी कह सकता है कि 'मन के हारे हार या मन के जीत जीत' । एक छात्र का मन, पसंद और नापसंद, निर्णय लेने की शक्ति भी छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनिच्छुक बनाते हैं । इस स्थिति के लिए छात्र ही जिम्मेदार है ।

             छात्र-उन्मुख कारणों की बात करें तो बहुत सारी अनियमितताओं के लिए छात्र स्वयं भी जिम्मेदार है । छात्रों की निष्क्रियता, नीरसता, दूरदर्शिता की कमी, दैनिक कार्यक्रम की उपेक्षा, उत्तरदायित्व की कमी आदि ऐसे पहलू हैं जो विद्यार्थी को अनियमित बनाते हैं । इसके लिए विद्यार्थियों को शिक्षण संस्थानों व अभिभावकों से उचित मार्गदर्शन मिले तो सुधार की संभावना बढ़ जाती है ।

           उच्च शिक्षा से संबंधित सह पाठयक्रम गतिविधियों का अभाव भी छात्रों को नीरस वातावरण देता है । जिस संस्थान में उच्च शिक्षा एक गुणवत्तापूर्ण और मूल्यवान प्रावधान है, वहाँ संचालित सह-पाठयक्रम गतिविधियाँ भी इसके नियमितीकरण में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, क्योंकि हर छात्र की रुचि केवल शिक्षा में हो ये जरूरी नहीं । इसलिए छात्र जो गतिविधि में रूचि रखता है । यदि यही गतिविधि उनके शैक्षिक परिसर में की जाती है तो छात्र का आकर्षण बढ़ेगा । आकर्षण एक दिन रुचि बन जाएगा और रुचि शौक बन जाएगी । इसके अलावा, यह संभव है कि शौक व्यवसाय बन जाए । अतः राजकीय शिक्षण संस्थान द्वारा उच्च शिक्षा से संबंधित सह पाठ्यचर्या गतिविधि को अनिवार्य कर दिया गया है । जो कॉलेज और छात्रों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करती हैं ।

          अनियमितता के भावनात्मक कारणों में जाने पर माता-पिता से अत्यधिक लाड़-प्यार और विरासत में मिले धन का लाभ मिलता है । जब युवा वर्ग की बात है और प्यार न हो येसा हो सकता है ! प्रेम एक सुखद अनुभूति है, लेकिन अपरिपक्व, अनुचित, एक तरफा आकर्षक वाले प्रेम की झूठी बांसुरी अधिक समय तक नहीं बजती । अंत में उसके हृदय में मनोवैज्ञानिक रूप से असंतुलित प्रेम की भावना जाग उठती है । जिससे उनका शैक्षणिक जीवन बर्बाद हो जाता है । वहीं दूसरी ओर देखने में आता है कि जो छात्र प्रतिदिन शैक्षिक परिसर में आता है वह अपने क्षणभंगुर प्रेम की संतुष्टि के लिए अपना मूल्यवान शिक्षण जीवन व्यतीत कर देता है । इस प्रकार शिक्षा प्राप्त करने से विद्यार्थियों की दुर्भावनाओं पर कठोर परिणाम होते हैं।

             यहां तक कि शिक्षण संस्थान भी जातिवाद के दाग से मुक्त नहीं है । शिक्षण संस्थान भी जातिवादी मानसिकता के शिकार होते हैं । सामान्यतया, जाति विशेष के छात्रों को दिया जाने वाला महत्व अप्रत्यक्ष रूप से अन्य छात्रों के लिए धीमा जहर बन जाता है । पीड़ित छात्र धीरे-धीरे अनियमित हो जाता है । यह समस्या छात्र को स्कूल परिसर और शिक्षा से अलग कर देती है । वह इस तरह की भागीदारी से दूर रहने में अपना हित समझता है । यह एक नवोदित शैक्षणिक जीवन की मौत की घंटी का कारण बनता है । यह एक शैक्षणिक जीवन की मृत्यु की घंटी नहीं है, बल्कि शैक्षणिक संस्थानों और शिक्षा की दुनिया की मौत की घंटी है । अन्तः विद्यार्थी सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, शैक्षिक, यौन, मानसिक, पर्यावरण, राजनीतिक, भावनात्मक आदि कारणों से अनियमित हो जाते है ।


धन्यवाद...