Saturday, 11 February 2023

मुरझाया फूल कविता की व्याख्या

मुरझाया फूल कविता- महादेवी वर्मा

(१) प्रस्तावना :-

आधुनिक गीत काव्य में महादेवी वर्मा का स्थान सर्वोपरि है | उनकी कविता भाव, भाषा और संगीत का त्रिवेणी संगम है | इनके गीत में वेदना, प्रनायानुभूति, प्रकृति चित्रण और रहस्यवाद हमारा ध्यान आकर्षित करता हैं और वैयक्तिक पीड़ा को वैश्विक कल्याण की भावना के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई हैं | ‘मुरझाया फूल’ कविता अर्थ बहुत ही सार-गर्भित है | छायावादी कविता के सभी लक्षणों से युक्त कविता हैं | छायावाद में प्रधान रूप से मुख्य प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग, मनुष्येत्तर पदार्थों में मानवीय भावनाओं को दिखाकर उनका मानवीकरण करना रहा हैं | कविता का मुख्य संदेश मानव को अपने जीवन की क्षणभंगुरता को याद दिलाना हैं और मानव जीवन में पायी जानेवाली नि:स्सारता को याद दिलाना कविता का मुख्य लक्ष्य है | स्वार्थ को त्यागकर फूल धरा पर गंध हीन, शुष्क पड़े पुष्प की दयनीय अवस्था से कुछ सिखाने की प्रेरणा देना कवयित्री का मुख्य उद्देश्य हैं | फूल की जिन्दगी के जरिए मनुष्य को अपनी यथार्थ का बोध हो जाता है | कोमलकांत पदावली का प्रयोग छायावादी कविता की एक और विशेषता है | जिसका प्रयोग भी हुआ हैं | अमूर्त भाव की अभिव्यक्ति के लिए मूर्त उपमानों का प्रयोग, हदय की सुक्ष्माती सूक्ष्म भावनाओं को व्यक्त करने में कवयित्री काफी सफल रही हैं | स्वार्थमय सोच को बदलने के लिए विवश करती है | यह कविता दुनिया के चेहरे पर से एक पर्दा हटा देती है |

(२) ‘मुरझाया फूल’ कविता की भाव-पक्षीय विशेषता :-

प्रस्तुत कविता में कवयित्री महादेवी वर्मा ने सूखे फूल को अपने जीवन का भूतकाल, वर्तमान और भविष्य के जीवन की याद दिलाई है | फूल के जीवन को एक छोटी कली से लेकर बिखरकर नीचे धरा पर गिराने तक की कथा वर्णित की है, लेकिन परोक्ष तो मनुष्य को अपने जीवन की सार हीनता का परिचय दिया है | नारी जीवन की ओर भी संकेत दिया है |

१. पुष्प की शैशवास्था का चित्रण :-

‘मुरझाया फूल’ कविता की प्रथम पंक्ति में सुन्दर और खुशबुदार सूखे फूल की बाल्यावस्था का चित्रण किया हैं | कवयित्री कहती है कि फूल तुम कली के रूप में शैशव अवस्था जीवन व्यतीत कर रही थी | सूखे सुमन ! उस समय का तुम्हारा जीवन खुशियों से भरा हुआ था | खुद पवन आकर तुझे अपनी गोदी में खिलाता था | तुम्हे प्यार करता था | तुम हास्य रत्त रहती थी | तुम्हारे जीवन का प्रत्येक समय मधुर आनंद से हँसता बितता था | उस समय स्वयं पवन आकर गोद में खिलाता था | पवन को कली के प्रति काफी आकर्षण था | उस कली के लिए चिंतित था और वो काफी प्यार से उसे अंक में सुलाता है | कली तुम अपनी शैशव अवस्था से संपूर्ण रूप खिलकर यौवन में पूर्ण विकसित हो गई | उस समय तेरी अंदर बहुत बदलाव आये और तु एकदम मंजुल मुखी हो गयी | यानि अत्यंत सुन्दर हो गयी | इतना ही नहीं तु सुकोमल भी हो गई | उसी समय मधु यानि भँवरा हनी के लिए लालच में तेरी चारों ओर मंडराने लगता है | पुष्प के खिलने के साथ ही भ्रमर डेरा डालते हैं, क्योंकि सुन्दर और सुकोमल पुष्प के अंदर उससे भी ज्यादा सुन्दर और मीठा मधु हैं |

“था कली के रूप शैशव में, अहो सूखे सुमन

हास्य करता था, खिलती अंक में तुझको पवन

खिल गया जब पूर्ण तु मंझुल, सुकोमल पुष्पवर

लुब्ध मधु के हेतु मंडराते लगे आने भ्रमर |”


कली जब तुम शैशव अवस्था में थी तब पवन तुझे गोद में खिलाता था, हास्य करता था और खिलते ही भ्रमर मंडराने लगे | इसके माध्यम से मानवीय संदेश दिया है कि मानव जब तुम मुग्धावस्था में शारीरिक, मानसिक एवं सौन्दर्य से मंडित तुम्हारा जीवन था | तुम्हारे पास धन, संपत्ति और शक्ति थी | उस समय तुम्हें लुभाने के लिए मनुष्य तुम्हारे इर्द-गीर्द घुमाते थे | तुम अपने जीवन के अतित को याद करो जिस प्रकार पुष्प के चारों तरफ भ्रमर मंडराते हैं | तुम्हारे से कुछ मतलब निकालने के लिए संसार में बहुत लोग चारों तरफ मंडराते थे | तुम सूखे सुमन की तरह मनुष्य याद करो | नारी तुम याद करो | जब तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है ! दूसरों को देने के लिए बहुत कुछ था तब तुम्हें कभी किसी की दोस्ती और प्यार की कमी महसूस नहीं हुई | उस समय मिलने की लालसा तुम्हारें अंदर भरी थी | आज तुम्हारे वर्तमान से पूछो, क्या स्थिति है ? इन पंक्तियों में मनुष्य की स्वार्थ भावना का मधुर शब्दावली में परिचय दिया है |


२. पुष्प का यौवन-काल :-

सूखे सुमन तुम्हें याद है ? चन्द्रमा की कोमल किरणें बहुत हँसाती रहती थी | रात अपना मूल्यवान मोतियों का थाल तुझ पर न्यौछावर करती थी | तुम्हें बहुत प्यार करती थी | तुम्हारे ऊपर मोतियों की सम्पदा लूँटाती थी | ओस की बुँदे रात को घट हो जाती हैं | सुबह होते ही सूरज की किरणे उस पर पड़ती हैं तो काफी सौन्दर्य युक्त हीरे जैसा मनोहर लगता है | हीरे की तरह चमकता है | सतरंगे रंग का इन्द्रधनुष हो जाता है | इस तरह रात तुम्हारे ऊपर फ़िदा हो जाती थी |

मधुप यानि भ्रमर अपने गूंझार से लौरियाँ सुना रहा था, क्योंकि तुम्हें निंद्रा आ जाये और तुम आराम से सो सको | मधुप की गुंजन लौरियों से फूल तुम विवश होकर सो जाय | पुष्प वाटिका की देखभाल करने वाला माली जब कोई बगीचे में पौधा बोता है तो उसमें जब प्रथम कली लगती है तो माली उत्साह से भर जाता है, क्योंकि माली ने जो यत्न, प्रयत्न और मेहनत की वे सफल होती दिखती हैं | कली जब पुष्प में बदल जाती है तो माली का उत्साह दूगना हो जाता है | वे ज्यादा मेहनत और उत्साह से उस पौधे देखा-भाल करने लगता हैं | माली के द्वारा किया गया यह यत्न तुम्हारे भीतर भी आनंद भरता था | माली जब दूगने यत्न कार्य करता तो तुम्हारा हदय बहुत आनंदित हो जाता था |


“स्निग्ध किरणें चन्द्र की तुझको हँसाती थी

रात तुझ पर वारती थी मोतियों की संपदा

लोरियाँ गाकर मधुप निद्रा-विवश करते तुझे

यत्न माली कर रहा आनंद से भरता तुझे |”


कवयित्री ने मनुष्य की यौवनावस्था की ओर ईशारा किया है | मानव शारीरिक शक्ति संपन्न, स्वस्थ, धन-संपत्ति से लदा होता है तो बहुत लोग उस की सेवा के लिए इर्द-गीर्द मंडराते रहते हैं | उस समय मनुष्य भी अंदर ही अंदर काफी आनंदित रहता हैं | आज मेरे पास मेरी सेवा एवं गुण-गान करने के लिए चारों ओर इतने सारे लोग लगे है | उस दौरान मानव के अंदर भी अहंकार भर जाता हैं | जिस प्रकार पुष्प के अंदर भर जाता हैं | अर्थात् यौवन के सौंदर्य पर काफी खुश होते है | जीवन के सुवर्ण काल आनंद से भरा होता हैं, लेकिन जब पुष्प की सुखी अवस्था में कवयित्री मानव की वृद्धा अवस्था की याद करवाती हैं |


३. भविष्य से अंजान पुष्प :-

निम्न पंक्तियों में कवयित्री ने पुष्प की नादानी और नासमजी का वर्णन किया है | जब पुष्प यौवन सौंदर्य के नशे में मग्न था | उस समय जीवन के अंत काल का यह दृश्य याद ही नहीं आता, कि एक दिन तुम सुख जाओंगे, तुम्हारा रंग बिखर कर फीका पड़ जायेंगा ! तुम भीतर से सुगंध और सौंदर्य विहीन रह जाओंगे ? तुम एकदम सुखकर निष्प्राण हो जाओंगे | एक दिन मेरी दुनिया बिखर जायेंगी | येसा याद आया था ? उस समय तुम अपने सौंदर्य गौरव का अनुभव कर रहे थे और इतरा रहे थे | आज धरती पर शुष्क अवस्था में बिखर कर पड़े हो | तुम्हारा सुन्दर और कोमल मुख मुराझाया हुआ है |


“कर रहा अठ खेलियाँ इतरा सदा उद्यान में

अंत का यह दृश्य आया था कभी क्या ध्यान में ?

सो रहा अब तु धरा पर शुष्क बिखराता हुआ |

गंध कोमलता नहीं, मुख मंजु मुरझाया हुआ |”


कवयित्री मनुष्य को पुष्प के जरिए कहती है कि अपने यौवन, धन, संपत्ति और सुन्दरता पर गर्व अनुभव करते है तो क्या उसे याद रहता है ? एक दिन वृद्ध हो जाऊंगा ! मेरी समस्त इन्द्रियाँ निष्क्रिय हो जायेंगी | जिस पर मैं गौरव कर रहा था | सब मेरा साथ छोड़ देंगे | अब तु जमीन पर पड़े हो, तुम्हारे चेहरे पर झुरियाँ पड़ गयी हैं | अब धरा ही तुम्हारा विश्राम स्थान हैं, फिरभी मानव समझता कि मैं तो हमेशा येसे ही रहूँगा | अपने जीवन पर गर्व करने से थकता नहीं | ये महसूस नहीं करता कि हम भी कभी येसी अवस्था में आयेंगे | अंत काल का यह करुण दृश्य तुम्हारे सामने क्या आया था ? प्रकृति में येसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं |


४. पुष्प की करुणावस्था :-

महदेवी वर्मा ने फूल की करुण वर्तमान जीवन का चित्रण किया है | आज तुम बिखर कर धरा पर पड़े हो | तुम गंध हीन और शुष्क हो चुके हो | तुम्हारा सुन्दर मुखमंडल मुरझाया हुआ है | येसी अवस्था में तुम्हारें चारों तरफ मंडराने वाले भ्रमर कहीं नज़र नहीं आते | सुबह हो रही है, फिर भी सूर्य अपनी लाल-लाल सुन्दर और कोमल किरणें तुझ पर बरसा नहीं रहा हैं | जिस पवन ने अंक (गोद) में भर कर तुम्हें प्यार किया था | आज तुम्हें वो अपने तीव्र झोंकों से धरती पर पटकता हैं एवम् तुम्हें प्यार भी नहीं करता | उपर से प्रताड़ित करता हैं | तुम्हारा नुकशान करता हैं | ये सुमन मैं तुम्हें प्रश्न करती हूँ |


“आज तुझको देख चाहक भ्रमर आता नहीं |

लाल अपना राग तुझ पर प्रात बरसाता नहीं |

जिस पवन ने अंक में ले प्यार तुझको था किया

तीव्र झोंकों से सुला उसने तुझे भू पर दिया |”


मनुष्य की ओर ईशारा करके कवयित्री कहना चाहती है कि मानव तुम्हारी युवा अवस्था थी, तुम्हारे पास यौवन का सौंदर्य था तब तुम्हारे पास हर पल मैला लगा रहता था, लेकिन आज तुम्हारे पास कोई दिखाई भी नहीं देते ! तुम्हें खुश करने के लिए ढूंढने से भी कोई दिखाई नहीं देता है | कई बार येसे होता था जो तुम्हें काफी प्यार करते थे | इस अवस्था में एकदम से तुम्हें कष्ट पहुँचाने पर तुले हुए है | ज़माने के साथ अपने लोग भी बदल जाते हैं | यह अवस्था बहुत ही कष्टकर होती है | जो हमें अपने ही मिटाने की कोशिश करते हैं |


५. मानव की स्वार्थवृत्ति का चित्रण :-

कविता की इन पंकितियों में कवयित्री पुष्प के माध्यम से मनुष्य की स्वार्थ भावना पर मीठा व्यंग्य करती है | पुष्प के साथ समाज का व्यवहार कृतघ्न भावना का होता है | फूल कभी किसी को हानी नहीं पहुँचाता, बल्कि अपना जीवन रस एवं सौरभ से व्यक्ति के मन को खुशहाली से भर देता हैं | कहीं सुनने में नहीं आया हैं कि फूल से किसी को दुःख पहुँचा हो | फूल येसी सुन्दरता का प्रतीक है | आँखों को शीतल बनता है | मन को ताजा रखता है |

पुष्प ने यौवनकल में अपनी मधुर-मीठी सौरभ को महादानी के समान सब कुछ दान कर दिया, लेकिन तुम्हारे लिए यहाँ संसार में रोता कौन हैं ? तुम इतरा रहे थे, फिरभी तुमने सौंदर्य का दान दिया है | हे ! फूल तुम दुखी मत हो ये संसार ही येसा हैं | एक दम स्वार्थमय | ये संसार किसी को सुख देगा ही कैसे ? स्वार्थमय सबको बनाया है |


“कर दिया मधु और सौरभ दान सारा एक दिन

किन्तु रोता कौन है तेरे लिए दानी सुमन

मत व्यथित हो फूल, सुख किसको दिया संसार ने

स्वार्थमय सबको बनाया है यहाँ करतार ने”


कवयित्री ईश्वर के सर्जन पर प्रश्न खड़ा करती है कि करतार यानि सृष्टि के निर्माता एवं संचालक ईश्वर हैं | इन्होंने संसार भर के लोगों को ऐसे ही बनाया हैं | फूल तुम कदापि व्यथित न हो, कभी चिंतित न हो, क्योंकि दुनिया ही एसी हैं | दूसरों को अपने जीवन का सर्वस्व दान करने वाले सुमन को नहीं छोड़ते तो मनुष्य को कहाँ छोड़ेंगे ? ये दुनिया स्वार्थ पर ही टिकी हैं | जब तक किसी का स्वार्थ बनता रहता है | तुम्हें चारों तरफ़ घेरे रहते है, अपितु आपको छोड़कर चले जायेंगे | कुछ मिलने की अपेक्षा पूर्ण नहीं होती तो स्वार्थमय संसार किसी का ध्यान नहीं रखता | इसलिए तुम्हें व्यथित नहीं होना चाहिए | संसार किसी को सुख नहीं देता | महादेवी स्वयं बौद्ध दर्शन से काफी प्रभावित थी | स्वयं एक सन्यासीनी का जीवन व्यतीत करती थी तो यहाँ ईश्वर के प्रति संसार के स्वार्थ को देखकर बहुत दुखी हो जाती है | पुष्प की व्यथा मानव की व्यथा मान सकते है |


६. संसार की नि:सार का चित्रण :-

संसार का स्वार्थ परक व्यवहार एवं संसार की नि:सारता का वर्णन किया है | मुझे इसी बात पर शंका होती है कि तुम तो काफ़ी बड़े दानी थे | विश्व में तुमने अपना सर्वस्व सबको शुशी-ख़ुशी बाँटा है | सबके हदय को तुम बहुत पसंद भी आता रहा | फूल आपने अपनी सुगंध से सबके मन में खुशियाँ भर देता है | सबकुछ दान करने के बावजूद भी तुम खुश ही रहे | कभी तुम दुखी नहीं हुए और न दुनिया को दुःख दिया | तु हमेशा हँसता ही रहा |


“विश्व में हें फूल ! तू सबके हदय भाता रहा

दानकर सर्वस्व फिर भी हाय ! हर्षाता रहा

जब न तेरी ही दशा पर दुःख हुआ संसार को

कौन रोएगा सुमन ! हम से मनुज नि:सार को |”


पुष्प तेरी दशा ख़राब आई तब संसार को तेरी दशा पर जरा भी दुःख नहीं हुआ | इतना कुछ निस्वार्थ बाँटने वाले फूल पर भी संसार को दुःख नहीं हुआ ! येसे में मनुष्य की अवस्था क्या होगी ? जो यौवन के सुखभरे दिनों में किसी ओर के बारे में नहीं सोचता ! उस मनुज का क्या होगा ? इसके बारे में कोई आँसू नहीं बहायेंगे | उसकी दुखावस्था में उसका कोई साथ नहीं देगा, क्योंकि फूल तो सबकुछ दान करता है, फिरभी कोई नहीं रोते तो सोचो मनुष्य का जीवन कितना सारहीन, तथ्य हीन और कितना क्षण भंगुर है, लेकिन मनुष्य अपनी सुख की अवस्था में कभी नहीं सोचता है कि दूसरों के दुःख में सहभागी बने | ऐसे मनुष्य पर कौन रोयेगा ? जो दूसरो को खुशी बाँटता ही नहीं | ये स्वार्थी मनुष्य को कौन देखेंगा ? पुष्प के द्वारा मनुष्य संभल जाओं, तुम्हारी अवस्था पुष्प की तरह होंगी जो गंध हीन, सौंदर्य हिन धरा पर पड़ा है | अपने अच्छे समय में दूसरों के बारे में सोचा करो |


(३) ‘मुरझाया फूल’ कविता की कलागत विशेषताएँ :-

कवयित्री के पास उत्तम भावानुभूति है, लेकिन उस संवेदन को अभिव्यक्त करने के लिए कविता के सर्जन साधनों की अनिवार्यता होती है | इनसे कविता अपने स्वरूपगत ढ़ाचे में ढलकर एक पूर्ण कविता बनती हैं | कविता के इन कला साधनों का परिचय निम्न लिखित है |


१. भाषा-शैली :-

महादेवी वर्मा भाषा की सफ़ल प्रयुक्ता है | कविता के विषय को ध्यान में रखकर भाषा गठन करती हैं | वे काव्य में व्यक्त विचार को अच्छी तरह से पाठक के हदय-मन में संप्रेषित करने वाली कोमलकान्त शब्दावली का चयन करती हैं | मुरझाया फूल इसका उत्तम उदाहरण है | जिसमें कवयित्री ने कोमल एवं मधुर शब्दों के साथ हिंदी खड़ीबोली का प्रयोग किया है | जिसमें संस्कृत, बंगला और बोलचाल के शब्दों का संमिश्रण किया है | ये कविता को सजीव बना देते है तथा फूल की जिंदगी को प्रत्यक्ष करती है | यह गीत शैली में लिखी गई कविता है | कथन-कहन, पूर्वदीप्ति एवं अभिव्यंजना शैली का सफ़ल निर्वाह किया है | लय माधुर्य और संगीत काव्य को चिरजीवी बनाते है | जिससे कविता का उद्देश्य स्पष्ट प्रतिबिंबित होता है |


२. अलंकार प्रयोग :-

कवयित्री ने मुरझाया फूल कविता में आलंकारों का प्रयोग सहज, सरल एवं सौन्दर्य वर्धक तत्त्व के रूप में किया है | कविता के बाह्य स्वरूप को सुन्दर बनाया हैं | मानवीकरण कवयित्री का प्रिय अलंकार है | इनकी अधिकरत कविता की तरह प्रस्तुत कविता में भी प्रयोग मिलता हैं | फूल की कली का शैशव, मंझुल मुख, मधुप की लोरिया आदि उदाहरण कविता में भरे पड़े है | इनके अलावा अंत्यानुप्रास, सजीवारोपण और समासोक्ति अलंकार हमारा ध्यान आकर्षित करते है |

“कर रहा अठ खेलियाँ इतरा सदा उद्यान में

अंत का यह दृश्य आया था कभी क्या ध्यान में ?”


३. शब्द-शक्ति :-

कविता में प्रयुक्त शब्द के अर्थ बोध की शक्ति को शब्द-शक्ति कहते है | कविता के शब्द में तीन अर्थ निहीत होते है, मुख्यार्थ, लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ | मुरझाया फूल कविता तीनों शब्द शक्तियों का गुम्फन किया है | कई शब्द के सीधे-सरल अर्थ है तो कुछ शब्द थोडे प्रयत्न के बाद समज में आते है एवं कई शब्द व्यंग्यार्थ रूप में प्रयुक्त है |


४. छंद :-

छंद कविता के स्वरूप का नियामक तत्त्व है तथा कविता को आह्लादक, आनंदमय, तरलता युक्त, माधुर्य पूर्ण चिर स्थायी जीवन प्रदान करता है | छंद में मानवीय भावों को आकर्षित करने और झंकृत करने की अद्भुत क्षमता होती है | यह कविता लय युक्त अतुकांत मुक्त छंद में लिखी गई एक गीत कविता है |


५. काव्य गुण और रस :-

प्रस्तुत कविता पढ़ने या सुनने से हदय में मधुरता का संचार होता है तो यह कह सकते है कि माधुर्य गुण का आकलन है | फूल को गोदी में बिठाके प्यार करते समय कवयित्री ने प्रसाद गुण झलकी दिखायी है | जिससे कली को हद्यगत शांति का अनुभव होता है | फूल को पवन का अंक में खिलाते वात्सल्य और हास्य रस, चन्द्र किरणों द्वारा हँसाने हास्य रस, शुष्क धरा पर फूल के जीवन को प्रतिम्बिबित करने शांत रस और करुण रस, चाहक भ्रमर के वियोग में वियोग श्रुंगार रस एवं मनुष्य के स्वार्थ भावना स्पष्ट करने के लिए अद्भुत रस का संयोग किया है |


६. प्रतीक योजना :-

महादेवी वर्मा ने हदय के सूक्ष्म भाव को प्रतिबिंबित करने के लिए प्रतीक का सहारा लिया है | अपने अदृश्य वस्तु और भाव को प्रतीक प्रत्यक्ष करता है | इस कविता में प्रमुख रूप से प्रकृति के प्रतीकों का प्रयोग किया गया है | जिसमें पुष्प के प्रतीक द्वारा मनुष्य के जीवन को व्याख्यायित किया है | व्यक्ति के पालक-पोषक के रूप में माली का प्रयत्न मिलता है | प्रियतम, मित्र एवं चाहक वर्ग का प्रतीक भ्रमर है |


(४) निष्कर्ष :-

निष्कर्षत: कह सकते है कि महादेवी वर्मा रचित ‘मुरझाया फूल’ कविता में छायावाद काल की अधिकत्तर विशेषताएँ अंकित है | इस कविता में प्रकृति चित्रण, भावों की सूक्ष्म अभिव्यक्ति, वेदना और विद्रोह का स्वर एवं व्यंग्यात्म शैली का सफ़ल गुम्फन किया है | फूल के जीवन को सजीव स्वरूप में प्रस्तुत करके मानव पर तिखी चौट की है | भाव को सुन्दर एवं बोधगम्य बनाने के लिए संस्कृत गर्भित शब्दावली का सुन्दर प्रयोग किया | यह कविता पाठक के हदय में जगह बनाने में बहुत ही सफल रही है |