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स्वरचित हिन्दी काव्य पंक्ति |
"ऐ जिन्दगी तुम मुझे बार-बार गिराया मत करो !
हर बार मेरी संभलने की शक्ति दूगनी हो जाती हैं ।"
हर बार मेरी संभलने की शक्ति दूगनी हो जाती हैं ।"
(2)
"हे ईश्वर !
अब हँसकर कैसे दर्द छीपाऊँ मैं ?
जब भी हँसने जाता हूँ तब,
ये आँखें आँसू बहाकर सच बोल देती हैं !"
(3)
"मैं जिन्दगी की आग में जलता रहा ।
लोग देखते रहे कि रोशनी अच्छी हैं ।"
(4)
"दिल का ज़हर आखों में उतरने मत देना ।
दुनिया में जैसा है, वैसा दिखाई मत देना ।।
तुझे गिराने के लिए परिचित भीड़ खड़ी हैं ।
दुनिया के सामने अकेला दिखाई मत देना ।।"
(5)
"तुने जिन्दगी की दौलत बहुत अच्छी दी हैं,
मगर जीने का किराया भी बहुत लगाया है !"
(6)
"तेरी हर एक अदाओं से घायल रहता हूँ,
तब तो मैं दिन-ब-दिन बिमार रहता हूँ ।"
(7)
"अब चेहरा पढ़ने की आदत हो गई हैं ,
इसलिए ज़ेब में आईना नहीं रखता हूँ ।"
(8)
"राज को राज ही रहने दो,
मुझे आज कुछ कहने दो ।
ये दिल के अंदर की बात है,
उसे आज लब्ज़ों से बहने दो ।"
(9)
"तेरी हर चालाकी पर चुप रहता हूँ,
इसलिए तुम्हें करीब से जानता हूँ ।"
(10)
"तेरी आँखें हर राज खोल देती हैं,
टूटे दिल का हाल बता देती हैं ।
ईश्क में टूटता कौन नहीं, यहाँ ?
खामोशी भी सब राज बोल देती हैं ।"
(11)
"दुनिया से हारा, मैं भीतर तक गया ।
अब लगता है, मैं समंदर तक गया ।"
(12)
"मैं उस जगह रोशनी खोजने चला गया,
जो पहले से मेरे दीये को हवा दे चुके थे ।
(13)
"तुम भी कितनी मयस्सर निकलती हो ।
दिन ढलते-निकलते याद बन आती हो ।
सफर चलने का इरादा तुम भी रखती हो ।
मगर मतलब-बेमतलब रुठती बहुत हो ।"
(14)
"मैं खुद ही खुद से रु-ब-रु होता हूँ,
तब तो दुनिया से बेखबर रहता हूँ ।
दूसरों की खरी-खोटी क्यों करें-सुने ?
खुद की करनी का खुद भोगता हूँ ।"
(15)
"मेरे खुदा तकदीर बना दे या फकीर बना दे ।
न हो सके तो दिल से हमे अमीर बना दे ।।"
(16)
"आज-कल चाय सी चाहत हो गई है,
दिन निकलते ही याद आती है ।"
(17)
"अदब से रहता हूँ तो शहद सा लगता हूँ ।
सच बया करूँ तो निकम्मा लगता हूँ ।
यहाँ ज़िन्दगी ज़ीने सलीका क्या है ?
मैं सबके चेहरे पे नकाब देखता हूँ ।"
(18)
गौरैया,
पंछी छोटा ।
आंगन-आंगन फूदकता ।
घर आंगन में रहता
चहकता-महकता रखता ।
धूप-धूल में न्हाता,
बारिश की सूचना देता !
कस्बें, नगर, महानगर बढ़ते चले...
आंगन छोटे हो चले ।
पंछियों के बसेरें कम हो चले !
गौरैया,
रहेगी कहाँ ?
मनुष्य बढ़ा और मनुजता घटी ।
इसीलिए गौरैया मीटी ।
(19)
कौन है ?
अजनबी रहने वाली ।
तुम्हें पता नहीं है !
तुम कौन हो ?
कहाँ रहती हो ?
तुम्हें कई लोग पाना चाहते हैं !
तुम्हें ढूँढने के लिए दर-दर भटकते है,
आखिर तक थक जाते है !
तुम हो कि ईधर-उधर भागती फिरती हो ।
और तुम किसी को मिलती नहीं !
तुम्हें नहीं पता, तुम कौन हो ?
कहाँ रहती हो ?
मैं बता दूँ ?
गलत मत समझना
नाम है, खुशी ।
ठिकाना, मानव हृदय के भीतर ।
(20)
मैं तुम्हें खत लिखता हूँ,
दो दिलों की बात लिखता हूँ ।
खत दोनों ओर खाली छोड़ता हूँ ,
दिल के भीतर ही भीतर लिखता हूँ ।
खत पढ़कर उत्तर चाहता हूँ ,
मैं अपना इन्तज़ार लिखता हूँ ।
उत्तर के बदले उत्तर लिखता हूँ,
तुम से जुड़ने का पैगाम भेजता हूँ ।
प्यार में अनपढ़ हूँ, इसलिए तुम्हें
दिल की बात दिल से ही कहता हूँ ।
(21)
मैं अपनी ही उलझनों में उलझा हूं ।
लोग समझते रहे, मैं बड़ा आदमी हूं ।
(22) जन्म दिन पर कविता
आज तुम्हारे लिए खास लिखता हूँ ।
नयी खुशियों की बौछार लिखता हूँ ।
‘जन्म दिन’ की बधाई लिखता हूँ ।
तेरे लिए हजारों साल लिखता हूँ ।
दोस्त का नाम ‘........’ लिखता हूँ ।
इसमें भी दुवाएँ खास लिखता हूँ ।
देखों ! ‘कनु’ मेरा नाम रखता हूँ ।
दोस्ती का मीठा पैगाम भेजता हूँ ।
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* स्वरचित