Friday, 25 June 2021

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है ! कविता का सारांश

प्रस्तावना :-

          हिन्दी काव्य साहित्य में ‘हालावाद’के प्रवर्तक कवि हरिवंशराय बच्चन है । कवि कीकविताओं में विषयगत और शैलीगत वैविध्य के कारण लोगों के ह्दय-मन पर आज भी राज करती हैं । छायावादोत्तर हिन्दी कविता में व्यक्ति प्रेम और तद्जन्य सुख-दुख के रंग भरने का श्रेय-प्रेय हरिवंशराय बच्चन को जाता है । सामान्य तौर पर सीधी-सादी सरल भाषा में काव्याभिव्यक्ति करनेवाले कवि है । काव्य मंचों के लोकप्रिय कवि रहे थे । कविता में गंभीर से गंभीर विषय को भी सरलता और सहजता से प्रस्तुत करने का हुनर कवि को हस्तगत था । काव्यों में अपनी व्यक्तिगत अनुभूतियों का साधारणीकरण करते हैं । कवि प्रेम, वेदना, सुख-दुख, पीड़ा, निराशा, आशा, समस्या, तत्कालीन परिवेश जैसे स्वानुभूतिजन्य विषयों को काव्य रूप प्रदान करते हैं ।हिन्दी काव्याकाश में कवि की कविताओं का अपना अनोखा महत्त्व है ।

         'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता हरिवंशराय बच्चन की प्रसिद्ध कविताओं में से एक हैं । प्रस्तुत कविता में कवि प्रकृति के माध्यम से जिन्दगी के अकेलेपन, बेचैनी, तड़प, खालीपन और विह्वलता को प्रस्तुत करते हैं ।


दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !’का कविता का भावविश्व :

          ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ काव्यमें कवि बच्चन जी प्राकृतिक जीवन दृश्य से काव्याभिव्यक्ति की शुरुआत करते है । दिन का ढलना और जिन्दगी का गलना सर्व सामान्य सत्य हैं । कवि उस सत्य को अपनी विह्वलता के साथ काव्यात्मक ढंग से प्रस्तुति करते हैं । कविता की शुरुआत विस्मय के साथ होती है । दिन जल्दी-जल्दी अपने लक्ष्य की ओर ढलता जा रहा है । यह जीवनी की तेज गतिशीलता को व्यक्त करता है कि दिन का निकलना और ढलना ही तो जीवन हैं । इस बात की चिंता पंथी को लगी हैं कि पथ में कहीं रात न हो जाये । मेरी मंझील बहुत दूर नहीं है ।पुरे दिन का थका होने पर भी पंथी यही भाव में डूबा है किजल्दी-जल्दी ढलता जा रहा है ! यह सोच मन में वे जल्दी-जल्दी चलता जा रहा है । वे अपने थकेक़दम जल्दी-जल्दी बढ़ाने लगता है ।

“दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

हो जाय न पथ में रात कहीं,

मंज़िल भी तो है दूर नहीं-

यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है !”१

            कवि बच्चन जी काव्य केदूसरे दृश्य में ग्राम्य जीवन की संध्या समय के प्रकृति प्रदत्त वातावरण को वर्णित करते हैंऔर चिड़ियों कीसंवेदना को व्यक्त करते हैं । जब दिन जल्दी-जल्दी ढलता जा रहा है तबचिड़ियोंको स्मरण हो आता है कि हमारे बच्चें हमारी प्रतीक्षा में होंगे । हमारे पहूँचने का इन्तज़ार कर रहे होगें । हमे जल्दी जल्दी धर पहूँचनाचाहिए ।चिड़ियाँ सोचतीहैं कि हम घर आ रहे है या नहीं, यह जानने के लिए बच्चें घोंसलों से मुह बाहर करके झाँकते होंगे । यह ध्यान चिड़ियों के परों में जल्दी-जल्दी घर पहूँचने की चंचलता भरता हैं । इन पंक्तियों में कवि चिड़ियों की बेचैनी और विह्वलता तथा बेचैन जीवन में चंचलता का ऊर्जा संचार करने वाले उनके बच्चों का चित्रात्मक वर्णन करते है ।

“दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

बच्चे प्रत्याशा में होंगें,

नीड़ों से झाँक रहे होंगें

यह ध्यान परों मेंचिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है !”२

            कविता की अंतिम पंक्तियों तक आते-आते कवि अपने वैयक्तिक अनुभूतियों के प्रवाह में प्रवाहित करते है। पंथी और चिड़ियों की भावनाओं में डूबाने के बाद नीजी जीवन के रस में भीगोते हैं । जो कवि केजीवन की स्थिरता, मज़बूरी, लाचारी और विह्वलता को व्यक्त करता हैं ।कवि स्वयं अपने भावनात्मक अभाव को अभिव्यक्त करते हैं । जो जिन्दगी के अभाव को भी स्पष्ट करता हैं ।कवि अपनीवैयक्तिक अनुभूतियों में कहते हैं कि जिन्दगी के दिन जल्दी-जल्दी ढलते जा रहेहै । इतने बड़े संसार में मैं अकेला हूँ । संसार भर में मुझसे मिलने को कौनबेचैन हैं ? यही प्रश्न कवि की अकेली जिन्दगीको बार-बार सताता रहता हैं । दूसरा प्रश्न यह उठता है कि मैं किसको मिलने के लिए चंचल होऊँ ? यह प्रश्न जब कवि के मन-मस्तिष्क में उठता तो कवि के हृदय-मन को कुरेद देता है ।अपने जीवन पथ के कदम को शिथिल करता हैं तथा हृदय विह्वलता से भर जाता हैं ।कवि सोचते हैं कि इसभरी-पुरी दुनिया में मेरा कोई नहीं हैं ।जिसको मिलने के लिए मेरे अंदर चंचलता भरता रहूँ ।यहाँ कवि यह भी दिखाना चाहते हैं कि संसार में एक के लिए सुख हो, संभव हैं वह दूसरों के लिए न भी हो । एक व्यक्ति का सुखी संसार दूसरें व्यक्ति के लिए पीड़ा दायक भी हो सकता हैं ।

“दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

मुझ से मिलने को कौन विकल्प ?

मैं होऊँ किसके हित चंचल ?

यह प्रश्न शिथिल करता पद को,

भरता उर में विह्वलता है !

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !”३



निष्कर्ष :-

         इस तरह एक छोटी सी कविता के द्वारा कवि हरिवंशराय बच्चन ने पंथीकी थकानके बावजूद भी मंज़िल को पाने की चाहत और चिड़ियों के बच्चों का स्मरण उनकी पंखो में चंचलताभरताहैंलेकिन, कवि को मिलने के लिए कोई बेचैन और बेताबभी नहीं हैं । कवि किसके लिए चंचल हो ? यही प्रश्न कवि को शिथिल और विह्वल बनाता है । यहाँ कवि अपने अभावग्रस्त जीवन की ओर भी ईशारा करते है । जो उसके समसामयिक जीवन की जीजीविषा को बरकरार रखने के लिए आवश्यक भी थी पर उस शक्ति से कवि वंचित ही रहना पड़ता हैं ।


संदर्भ :-

(१) दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !-हरिवंशराय बच्चन

(२) दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !-हरिवंशराय बच्चन

(३) दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !-हरिवंशराय बच्चन

(४) चित्र सहाय-गूगेल