Friday, 18 June 2021

जोंक एकांकी का मूल्यांकन

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(१) प्रस्तावना :-

हिन्दी साहित्य में उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ को हिंदी के अग्रगण्य कथाकार के रूप में पहचाना जाता हैं | अश्क जी के साहित्य लेखन की शुरुआत उर्दू से होती है, लेकिन ईस्वीसन १९३२ में मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिंदी में लिखना आरंभ करते हैं | उनका पंजाबी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छा-सा प्रभाव रहा हैं | उन्होंने कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक, लेख, संस्मरण, आलोचना, एकांकी, कविता, पटकथा, संवाद, गीत, संपादन आदि विधाओं में अपनी कलम चलाई हैं | वे ग्यारह वर्ष की अल्प आयु से ही पंजाबी में तुकबंदियाँ करने लगे थे | ईस्वीसन १९३६ के बाद अश्क जी के लेखकीय व्यक्तित्व का अति उर्वर युग आरंभ होता हैं | साहित्य में लेखक के सुख-दू:खमय जीवन के व्यक्तिगत अनुभव के अद्भुत रंग भर लगे थे | उन्होंने नाटक के क्षेत्र में ईस्वीसन १९३७ से लिखना आरंभ करते है | अश्क जी उन नाट्य लेखकों में से हैं, जो नाटक लिखते ही नहीं, बल्कि नाटकीय ढंग से जीते भी हैं |

                   हिंदी एकांकी के क्षेत्र में यथार्थवादी परंपरा के सूत्रपात करने वाले नाट्यकारों में अश्क जी का प्रमुख स्थान हैं | उनकी अधिकांश रचनाएँ व्यक्तिगत अनुभवों पर ही निर्मित हैं |‘जोंक’ मोहन राकेश संपादित ‘पाँच पर्दे’ एकांकी संग्रह का पहला प्रहसन है | प्रस्तुत एकांकी की रचना अश्क जी द्वारा ईस्वीसन १९४० में की गई थी | जिसमें कथा को मध्यमवर्गीय परिवार से चयन कर पथार्थवादी शैली में व्यंग्यात्मक ढंग से प्रस्तुत किया हैं |


(२) कथानक :-

           ‘जोंक’ एकांकी की कथानक साधारण मध्यमवर्ग के लोगों के जीवन से लिया गया हैं | एकांकी को प्रमुख तीन दृश्यों में विभाजित किया हैं | इस एकांकी का प्रथम दृश्य भोलानाथ के निवासस्थान के एक कमरे में अभिनीत होता हैं | प्रथम दृश्य का पर्दा उठाते ही प्रोफ़ेसर आनंद समाचारपत्र के पन्ने उलटते दिखाई पड़ते है | आनंद बौद्धिक स्तर पर तो प्रोफ़ेसर लगता है, किन्तु उनका शारीरिक ढ़ाचा मैट्रिक के छात्र जैसा हैं | पर्दा उठते ही भोलानाथ दौड़ता हुआ दाई ओर से कमरे में प्रवेश करता है | वे सीधा-सादा और मोटा-ताजा आदमी हैं, परन्तु बुद्धिमत्ता का सर्वथा अभाव रहता हैं | प्रो. आनंद को परेशानी के स्वर में अपने गले पड़ी बला से मुक्ति की सहायता चाहता हैं | आनंद आश्चर्य और व्यंग्य हँसी हसकर कहता हैं कि बनवारीलाल तुम्हारा वतनी हैं और एक बार पहले भी तुम्हारें घर आ चूका हैं | भोलानाथ पूर्व घटना को आनंद के सामने रखकर कहता है कि मैं अपने छोटे भाई परसराम के जरिए बनवारीलाल से मिला था | वे जब प्रसिद्ध अभिनेता मास्टर रहमत का दायाँ हाथ था, किन्तु यह घटना दस साल पहले की है | जब कस्बें के डॉ. किशोरीलाल की दूकान पर मिलते हैं तथा पिछले साल नौकरी की खोज में इधर-उधर घुमता था तब एक दिन ‘पीपल-वेहडा’ पर मिल जाता हैं | इनकी बातों से लगता था कि दर्दे गुर्दा के लिए आया है | मैंने शोक प्रकट करके शिष्टाचार से पानी के लिए पूछा था | घर पर कमला को पानी लाने को कहते ही गली में बिछी हुई चारपाई पर लेट जाता है | मैं अपने काम की जल्दी में चला गया था, किन्तु वापस आकर देखा तो बिस्तर बिछावाकर सो रहे थे | मेरी पत्नी कमला के साथ भी नवाँशहर के बहाने बहन का रिश्ता जोड़ लेता हैं | उस दिन भी कमला से कहा था कि अब कभी नहीं आयेंगे, लेकिन आज फिर आ धमका है | भोलानाथ के मित्र प्रो. आनंद बिन बुलाये मेहमान बनवारीलाल को निकालने की तरकीब सोचने लगता है | बनवारीलाल के आने से कमला को बरामदे में ठिठुरना पड़ता हैं, क्योंकि भोलानाथ के घर में दो ही कमरे और दो बिस्तर हैं | कमला साफ-साफ कहने को कहती हैं; मगर भोलानाथ शिष्टाचार से कह नहीं पाता हैं | आनंद कमला को हिस्टीरिया के दौरे पड़ने के बहाने कराह कर सो जाने के लिए कहता हैं | भोलानाथ और आनंद भूख नहीं होने का बहाना बनाते हैं, फिरभी बनवारीलाल स्वयं रसोई में जाकर लौकी की खीर पकाता है | सेहत के लिए कमला को खिलाने का अनुरोध भी करता हैं | यह योजना विफल होते ही आनंद इस विचित्र अतिथि के लिए दूसरी तरकीब सोचता हैं कि अस्पताल के बहाने भोलानाथ और कमला को पड़ोस में भेजने का निश्चित करते हैं | इसी के साथ पहला दृश्य पूरा होता हैं |

              एकांकी का दूसरा दृश्य भोलानाथ के मकान के बरामदे में अभिनीत होता हैं | पर्दे के उठते ही कुर्सी पर मि. आनंद सिगरेट सुलगाने की फ़िक्र में दिखाई देता हैं | एक घंटा हो जाने के बाद भी आनंद की कोई आवाज नहीं सुनाई दी तो भोलानाथ उछलकर आनंद के पास आता हैं और पूछने लगता हैं कि तुमने बनवारीलाल को निकाला तो नहीं ! आनंद ने पूरी कोशिश की हैं, किन्तु उसे लगने लगा की बनवारीलाल आसानी से जानेवाला नहीं हैं | जब आनंद ताला लेकर बाहर निकलने ही वाला था कि आवाज देता है; तुम खाना खाकर जाना | इस तरकीब में भी भोलानाथ को हताशा एवं निराशा हाथ लगाती हैं | बनवारीलाल को बिदा करने की सारी युक्तियाँ बेकार हो रही थी | घर बैठें बनवारीलाल और आनंद दोनों खीर की मिजबानी मनाते हैं तथा पान खाकर आराम फरमाते हैं | यहाँ भोलानाथ और कमला पड़ोसी के परेशान बैठे हैं | बनवारीलाल पनवाड़ी से पान लेने के लिए जाता हैं तो भोलानाथ कमरें को ताला मार चला जाता है | बनवारीलाल पान लेकर वापस आता हैं तो दरवाजे पर ताला लगा हुआ था | उसने आवाज लगाई मगर कोई उत्तर न मिलने पर बरामदे में चारपाई डालकर खराटे मारकर सो जाता है | इस तरह दूसरा दृश्य पर्दा गिरते ही पूरा होता है |

                जोंक एकांकी के तीसरे दृश्य की शुरुआत में बनवारीलाल करवट बदलकर घडी देखते ही पता चलता की तीन बजे हैं और प्रो. आनंद को प्रिंसिपल साहब से मिलने के लिए जाना हैं | वे कमरे से बाहर निकलने की कोशिश करता हैं, किन्तु बनवारीलाल दोहरी चाल चलकर चोर-चोर चिल्लाने लगता हैं | भोलानाथ के घर पर मारवाडी, पंजाबी एवं हिन्दुस्तानी दौड़कर आये और पूछते हैं कि क्या हुआ हैं ? बनवारीलाल आनंद की ओर देखकर कहता हैं कि यह आजकल के जैन्टलमैन बेकार को कोई काम न मिला तो चोरी का व्यवसाय अपना लिया हैं | आनंद भोलानाथ के मित्र के रूप में अपनी सफाई देता है, किन्तु कोई सुनता ही नहीं | मारवाड़ी मारने के धमकी देता हैं तो पंजाबी ने दो बार आनंद को थप्पड़ भी लगा दी | उसी समय भोलानाथ आते ही आनंद को पंजाबी के गिरफ़्त से छुड़ाता हैं | वे मेरा मित्र हैं, उसने कोई चोरी नहीं की | आप सब अपने-अपने घर जाइए और मेरी पत्नी कमला को आने का रास्ता दीजिए | उसी दौरान पंजाबी सवाल करता हैं कि वह बाबू ! यह सुनकर भोलानाथ चीखता है कि शैतान अभी तक गया नहीं ? आनंद ने कहा बनवारीलाल पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने गया हैं | यह सारी बदमाशी बनवारीलाल की ही हैं | आते ही कहने लगता हैं कि आपका मित्र चोर है, सब-कुछ उठा ले चला था |

            बनवारीलाल से पीछा छुड़ाने के लिए भोलानाथ, कमला और आनंद तीनों कमला के भाई के वहाँ गुरदासपुर जाने के लिए तैयार हो जाते हैं | बनवारीलाल भी गुरदासपुर चलने की इच्छा व्यक्त करता हैं और उसके बैग उठाने के साथ ही पर्दा गिरता है | तीसरा दृश्य बनवारीलाल के व्यवहार से बड़ा मनोरंजक बन गया हैं |


(३) चरित्र-चित्रण :-

              एकांकी आकार में नाटक से लघु साहित्यिक विद्धा हैं और इनमें जीवन के किसी एक मार्मिक प्रसंग का वर्णन होता हैं | इसलिए एकांकी में पात्रों की संख्या की कम रहती हैं | ‘जोंक’ एकांकी में अश्क जी ने पात्रों को कथा और परिस्थिति के अनुकूल तैयार किये हैं | प्रत्येक पात्र के संवाद, वेश-भूषा, रहन-सहन, तौर-तरिके, तथा भावों एवं विचारों का अच्छा संकलन किया हैं | इस एकांकी के प्रमुख पात्र में भोलानाथ, प्रोफ़ेसर आनंद, बनवारीलाल और भोलानाथ की पत्नी कमला हैं | इनके अलावा क्षणभर के लिए रंगमंच पर अपनी भूमिका अदा करने वाले पात्र में पंजाबी, मारवाड़ी एवं हिन्दुस्तानी मिलते हैं | एकांकी के दृश्य को सफल बनाने के लिए परसराम, मास्टर रहमत, डॉ. किशोर, कालिदास और शेक्सपियर का नामोल्लेख भी किया गया हैं | 

            एकांकी नायक भोलानाथ मध्यमवर्गीय संस्कारों को लेकर जीनेवाला इन्सान हैं | भोलानाथ कुछ मोटा-ताजा आदमी है और एक सीधा-सादा सनकी-सा आदमी है | बौद्धिकता का उनमें सर्वथा अभाव है | अपने संस्कारों के कारण मुसिबतों को गले लगता हैं | जिससे छुड़ाने की बार-बार कोशिश करता हैं मगर हर बार निष्फल होता हैं | उनकी मुख्य आदत कंधे जाड़ना हैं | पतिव्रता भोलानाथ अपने चेहरे पर घबराहट लिए फिरता हैं एवम् लाख प्रयत्न करने पर भी मुक्ति की साँस नहीं ले पाता हैं | इस एकांकी में प्रो. आनंद की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण रही हैं | ये भोलानाथ के मित्र है और इनमें बौद्धिकता लबा-लब भरी पड़ी हैं, लेकिन शक्ल-सूरत से मैट्रिक के छात्र की देहाकृत्ति पाई हैं | अक्सर भोलानाथ मुसिबतों के समय आनंद की सहायता लेते हैं | एकांकी का एक और खास पात्र बनवारीलाल हैं | वे बीन बुलाये मेहमान है | एक बार आ गए तो फिर जाने का नाम नहीं लेते | बनवारीलाल स्वभाव से लालची, विचित्र और चिपकू किस्म के आदमी हैं | भोलानाथ की पत्नी कमला सामाजिक और पारिवारिक जीवन में पति का कहा मानकर सब-कुछ सेहती हैं | वे स्वभाव से स्पष्टवादिनी हैं, परन्तु भोलानाथ उसे रोक लेता हैं | मारवाड़ी और पंजाबी भी प्रो. आनंद को चोर समजकर पानी-पानी कर देते हैं | अत: यह पात्र दर्शकों को उद्देश्य बोध और मनोरंजन करने में बहुत सफल रहे हैं |


(४) संवाद-योजना :- 

                संवाद या कथोप-कथन किसी भी एकांकी के प्राण हैं, क्योंकि साहित्य की अन्य विधाओं की तरह एकांकी में लेखक को कुछ भी कहने का अधिकार नहीं होता | उन्हें पात्रों के संवादों के जरिए ही अभिव्यक्त होना हैं | जोंक एकांकी के संवाद छोटे-छोटे, स्वाभाविक, कार्यव्यापार को आगे बढ़ाने में सहायक, पात्रों की मनोदशा के अनुकूल, आम बोलचाल के संवाद, व्यंग्यात्मक, गतिशील, रोचक तथा अर्थ को सारगर्भित ढंग से प्रस्तुत करने वाले हैं | जोंक के संवाद एक प्रहसन के अच्छे और सफल संवाद हैं | व्यंग्य को भली-भाँति व्यक्त करने में समर्थ और मनोरंजक हैं | भोलानाथ के कहने पर आनंद व्यंग्य के ठहाका मारकर उत्तर देता हैं, “आनंद : तो ये एक्टर है !” तो निम्न संवाद में पत्रों की मन:स्थित्ति स्पष्ट होती हैं, बनवारीलाल (पूर्ववत स्वर में घबराहट लाकर) चोर...चोर...दौड़ियो !...भागियो !!” इसमें आनंद की घबराहट और बनवारीलाल के हास्य-व्यंग्य छबी दृश्यमान होती हैं | मारवाड़ी तथा पंजाबी बोलचाल के सामान्य संवाद में कृद्ध होते हैं | भोलानाथ और कमला के संवाद पूरी एकांकी में सहज, सामान्य और बोलचाल के संवाद में प्रयुक्त एकांकी लक्ष्य को प्राप्त करती हैं | यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अश्क जी ने जोंक एकांकी के संवाद लेखन में कोई कसर नहीं छोड़ी |


(५) देशकाल और वातावरण :-

              साहित्यिक रचना में देशकाल और वातावरण रचना को विश्वसनीयता और सजीवता प्रदान करते हैं | उपेन्द्रनाथ अश्क ने जोंक एकांकी में ईस्वीसन १९४० के मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार के परिवेश को चित्रित किया हैं | जिसके पास सीमित आर्थिक साधनों वाले परिवार के पास अक्सर इतनी चीजें नहीं होती कि कई दिनों तक ठहरने वाले मेहमान का आतिथ्य स्वयं बिना कोई कष्ट उठाये कर पाये | यहाँ परिवेश देश-कल की अपेक्षा वर्ग विशेष की परिस्थितियों से ज्यादा जुडा हुआ हैं | बोलानाथ के पास दो कमरें और दो बिस्तर ही हैं; एक भी फालतू बिस्तर या कमरा नहीं | “ये मजे में बिस्तरा बीछवा कर सो रहा था और मेरी पत्नी बेचारी अंदर ताप रही थी |” भोलानाथ अपना शिष्टाचार से मेहमान का विरोध नहीं हरता हैं, बल्कि उसकी पत्नी ज्यादा विरोध दर्ज करती हैं | इस पूरी घटना में मध्यमवर्गीय स्त्री-पुरुष की मासिकता का परिचय भी दिया हैं | भारतीय मध्यमवर्ग के पास छोटे घर, सीमित वस्तुएँ, सीमित आर्थिक साधन होते हैं | मेहमान से उपरी शिष्टाचार निर्वाह करते हुए भी मन से इनका स्वागत करने में असमर्थ रहते हैं | एकांकीकार ने जोंक में पात्रों की स्थिति, आचार-व्यवहार, भाषा-स्वभाव आदि सभी माध्यम से परिवेश का परिचय दिया हैं | “कमला : (चारपाई से उछल कर) दिये थे आपने पाँच रूपये | भोलानाथ : (कंधे झटका कर) अबे मैं..., कमला : और मैं पाँच पैसे माँगती हूँ तो नहीं मिलते |”

            भोलानाथ का परिचय बनवारीलाल से मास्टर रहमत के कारण होता हैं | इन से पारसी थियेटर की लोकप्रियता, अभिनेता की बोल-बाला और सामान्य आदमी की उनसे मिलने की चाह को व्यक्त किया हैं | एकांकी के अंत में आदमी सामान्य शिष्टाचार निभाते-निभाते किस प्रकार मुसिबतों को गले लगाता है | इस का हूबहू वर्णन किया हैं | अत: जोंक एकांकी आधुनिक भारतीय समाज की जीती-जागती तस्वीर प्रस्तुत करती हैं | 


(६) भाषा-शैली :- 

                 ‘जोंक’ एकांकी का कथानक, पात्र और परिवेश हमारे रोजमर्रा के जीवन से संबंधित हैं | यह पाठक को अपने स्वाभाविक और काफी नजदीक लगते हैं | इसकी भाषा भी हमारे आस-पास के बोलचाल की भाषा हैं | प्रहसन के प्रत्येक वाक्य, प्रत्येक शब्द अपने आप में सार्थक और सम्प्रेषणीय हैं | पात्र के छोटे-छोटे वाक्य तथा आम बोलचाल की लयपूर्ण शब्दावली का प्रयोग करते हैं | इतना ही नहीं पात्र अपने गुण, स्वभाव और परिस्थिति के अनुसार भाषा बोलते हैं | चरित्र के लहजें भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं | “भोलानाथ : (स्वर में चिंता) इन्हें अचानक दौरा पड़ गया, बड़ी मुश्किल से होश आया हैं | प्राय: पड़ जाया करता है दौरा...हिस्टीरिया... बनवारीलाल : तो आप इलाज उपचार...?” बोलानाथ की खीज और परेशानी तथा बनवारीलाल की मस्त बेफिक्री उनके शब्दों में प्रकट होती हैं | इस एकांकी के प्रतिपाद्य और हास्य-व्यंग्य को भली-भाँती दिखाने के लिए मुहावरों और कहावतों का अच्छा प्रोयोग किया हैं | जिससे एकांकी की प्रभावकता में चार चाँद लग जाते हैं | जोंक हिन्दी में लिखित हास्य-व्यग्य एकांकी है, लेकिन कथ्य, पात्र एवम् परिवेश के अनुकूल उर्दू, पंजाबी, मारवाड़ी, हिन्दुस्तानी तथा संस्कृत भाषा के प्रादेशिक शब्दावली का एक नया प्रयोग किया हैं | जोंक प्रहसन को प्रधान रूप से विनोदवृति शैली में लिखा हैं | मध्यमवर्गीय समस्या को हलके-फूलके मजाक के रूप में प्रस्तुत किया हैं | बनवारीलाल जैसे स्वार्थी मेहमान, भोलानाथ जैसे शिष्टाचार प्रिय मेजबान और आनंद जैसे युक्ति-उपाय भिड़ाने वाले चतुर व्यक्तियों पर हास्यपरक ढंग से व्यक्त किया हैं | आरंभ से लेकर अंत तक एकांकी की भाषा-शैली रोचक, मनोरंजक और उत्सुक्ता वर्धक बनी हैं | 


(७) संकलन-त्रय/अभिनेयता/रंग-संकेत :- 

                 एकांकी में संकलन-त्रय का मतलब होता हैं, स्थान, कार्य और समय की एकता | कथावस्तु को सुगठित और शृंखलाबद्ध गठित करने के लिए तीनों आवश्यक हैं | संकलन-त्रय की दृष्टी से जोंक एकांकी बहुत ही उपयुक्त एवम् सफल एकांकी हैं |

                इस यथार्थपरक एकांकी को बड़े ही अच्छे ढंग से रंगमंच पर प्रस्तुत किया जा सकता हैं | जोंक एकांकी के तीनों दृश्य एक ही स्थान पर घटित होते हैं | यह दृश्य भोलानाथ के घर का एक कमरा और बरामदा में अभिनीत होता हैं | इसमें मध्यमवर्गीय जीवन की समस्या को चित्रित किया हैं | एकांकी का आरंभ सांकेतिक रूप से सुबह से किया हैं | साढ़े तीन बजते ही भोलानाथ, कमला और आनंद गुरदासपुर निकलने के लिए तैयार होते हैं | इसी धटना के साथ एकांकी का अंत होता हैं | 

              एकांकी के अभिनय के लिए दिए गए रंग-संकेत बड़े ही उपयोगी हैं | इस तरह जोंक एकांकी में भाव, भाषा और कथा तीनों ही पर्याप्त सम्प्रेषणीय हैं | बनवारीलाल द्वारा आनंद के साथ की गई शरारत इस एकांकी को काफी मनोरंजक बना देती हैं |


(८) प्रतिपाद्य या उद्देश्य :-

               जोंक एकांकी का मुख्य उद्देश्य व्यंग्य करना हैं | यह व्यंग्य भोलानाथ, कमला, आनंद और बनवारीलाल के माध्यम से मनुष्य के दोहरे व्यवहार की प्रवृति पर किया हैं | व्यक्ति ऊपर से बड़ा शिष्ट और भला दिखाई देता हैं, लेकिन उसके मन में कुछ और ही होता है | भोलानाथ और आनंद बनवारीलाल को तुरंत भागाना चाहते हैं, किन्तु अपने सामने देखकर भोलानाथ स्वागत कर ख़ुशी व्यक्त करता हैं | यह खुशी का अनुमान दोनों के कार्यों तथा व्यवहार में स्पष्ट दिखाई देती हैं | मन में अरुचि और ऊपर से दिखावटी शिष्टाचार हैं | बनवारीलाल भी दोहरा व्यवहार करता हैं | भोलानाथ के घर जबरदस्ती मेहमान बना हैं | वह जानता है कि लोग उससे परेशान हैं, किन्तु ऊपर से जाहिर करता हैं कि उसे भोलानाथ और कमला की बहुत चिंता हैं | आनंद के साथ बदमासी करके अपने दोहरे व्यवहार को स्पष्ट करता हैं | प्रस्तुत एकांकी मध्यमवर्गीय स्थितियों, समस्याओं, मेहमान नवाजी, व्यक्ति का दोहरापन एवं मानव स्वभाव पर व्यंग्य करती हैं |


(९) निष्कर्ष :-

         उपेन्द्रनाथ अश्क ने ‘जोंक’ एकांकी में मध्यमवर्गीय मनाव-व्यवहार को हास्य-व्यंग्य शैली में व्यक्त किया हैं | इनके पात्र सजीव एवं सहज लगते हैं | बोलचाल के संवाद पाठक के मन में प्यार भरने का काम करते हैं और हास्य-व्यंग्य से उपदेश बोध भी करवातें हैं | एकांकी का परिवेश शब्दों के रंग-मंच को सजीव रूप से प्रतिबिम्बित करने में सफल रहा हैं | अत: जोंक एकांकी रंग-मच और शब्द-मंच पर उद्देश्य ज्ञान करवाने में बहुत सफल हुई है | 


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