Sunday, 12 February 2023

उस पार कविता की व्याख्या

उस पार कविता का सारांश
उस पार काव्य का सारांश
(१) प्रस्तावना :- 

हिंदी के विशाल मंदिर की वीणा पानी महादेवी वर्मा ने हिंदी साहित्य को एक फुर्ती चेतना के स्तंभ रूप कविताएं भेंट दी | उन्होंने अपने जीवन काल में नीहार, निरझा, यामा जैसे महत्त्वपूर्ण काव्य ग्रंथ हिंदी साहित्य को भेंट दिये | इनकी भाषा में कोमलकान्त शब्दावली, सरसता, तरलता, स्वच्छता एवं सरलता दिखाई देती है | जहाँ विषय को हल्के-फुल्के शब्दों में प्रस्तुत करने की कला महादेवी वर्मा हस्तगत है और हिंदी साहित्य इस पर गौरव कर सकता है | महादेव जी की कविता सुसज्जित विन्यास भाषा प्रतीक, बिम्ब एवं लय के स्तर पर अद्भुत उपलब्धि कहा जा सकता है | महादेव की अनुभूति और सर्जन का केंद्र आंसू नहीं आग है, जो दृश्य है वह अंतिम सत्य नहीं है, किन्तु जो अदृश्य है वह मूल या प्रेरक सत्य है | ‘उस पार’ कविता नीहार काव्य संग्रह में संकलित है | इस संग्रह कविताओं में काव्यानुभूति ओस के बूंद के समान स्वच्छ, निर्मल एवं सौंदर्य संपन्न होते हुये भी पीड़ा से अलिप्त नहीं है | इस कविता में जीवन के उस पार पहुंचने में आने वाली बाधाओं का चित्रण किया है | इन बाधाओं को पार कर कवयित्री को अपने प्रियतम मिलने जाना है, परंतु उसके पास कैसे पहुँचें ? यह भी एक कठिन समस्या है | इन समस्याओं का वर्णन ही कविता का केंद्रीय विषय बन गया है | जीवन पथ का अंधकार, पीड़ा, हाहाकार, साहस, आशा, निराशा, सोने के संसार, असीम प्यार एवं विसर्जन का मधुर शैली में वर्णन किया है | 


(२) ‘उस पार’ कविता की भाव-पक्षीय विशेषता :-

             महादेवी वर्मा के ‘उस पार’ कविता में अपने ह्रदय की निर्मल  भावना व्यक्त की है | अपने अलौकिक प्रियतम से मिलन के लिए उस पार जाना है, किन्तु जीवन की परिस्थितियाँ आज भयंकर है | येसे हालातों में कवयित्री प्रियतम के पास कैसे पहुंचेगी ? यह एक कठिन समस्या है और उसे विश्वास भी है कि जीवन के उस पार पहुंचाने वाला और कोई दूसरा व्यक्ति नहीं, परंतु मेरा कर्णाधार स्वयं ईश्वर ही है |



१. जीवन पथ का अंधकार :-

            महादेवी वर्मा ने उस पर कविता की प्रारंभिक पंक्तियों में प्रिय मिलन के दौरान जीवन पथ में बिछे अंधकार का वर्णन किया है | प्रकृति का भयंकर और रौद्र रूप चित्रित करके उस पार पहुँचने में आनेवाली बाधा एवं विडम्बनाओं का वर्णन किया है |

 

“घोर तम छाया चारों ओर 

घटायें घिर आई घन घोर

वेग मारुत का है प्रतिकूल

हिले जाते हैं पर्वत मूल

गरजता सागर बारंबार

कौन पहुंचा देगा उस पार”


             कवियत्री ने इन पंक्तियों में अपने जीवन के अंधकार को वर्षा ऋतु के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है | जीवन के उस पार अपने प्रियतम मिलन के लिए जाना चाहते हैं, लेकिन संसार में चारों ओर अंधकार ही अंधकार है | आसमान में राक्षस जैसे काले-घने बादल की घटायें छाई हैं | इस अंधकार में पथ और दिशा का ज्ञान भी नहीं होता हैं | मारुत यानि पवन चारों ओर से तीव्र गति से प्रतिकूल दिशा में बह रहा है | पवन से गति इतनी तीव्र हैं कि पर्वत के मूल भी हिल जाते हैं | पर्वत नींव से डगमगाने लगता हैं और सागर की गर्जना बारंबार कानों में सुनाई देती है | यह भयंकर गर्जन प्रतिकूल पवन एवं काले घने बादलों की घटायें मुझे अपने प्रियतम के पास पहुंचने नहीं देगी ! जीवन के उस पार में कैसे पहुँच पाऊँगी ? यहाँ कवयित्री चिंतित और दुखी दिखाई देती है |


२. पीड़ित जीवन का हाहाकार :-

           काव्य की निम्न पंक्तियों में कवयित्री ने पीड़ा से भरे हाहाकार पूर्ण जीवन का मनभावन वर्णन किया है | उन्होंने प्रकृति जरिए उनकी पीड़ा को व्यक्त करने का अच्छा साधन चुन लिया है |


“तरंगे उठीं पर्वताकार

भयंकर कराती हाहाकार,

अरे उनके फेनिल उच्छवास

तरी का करते हैं उपहास;

हाथ से गई छूट पतवार

कौन पहुंचा देगा उस पर”


           कवयित्री ने पीड़ित जीवन का हाहाकार पूर्ण वर्णन प्रकृति के अलग-अलग उपादानों के माध्यम से स्पष्ट किया है | समुद्र में उठने वाले तरंगे पर्वत के समान विशालकाय स्वरूप में दिखाई देती है | यह तरंगे दुख और पीड़ा से जोर-जोर से रुदन के उच्च स्वर में चिल्लाती है | इससे भी बढ़कर यह तरंगों के झागयुक्त मुख से मन के कष्ट एवं वेदना से लंबी-लंबी सांसे ले रही है | ऐसे कठिन समय में हमारी जीवन नौका बीहड़ मुख करके जोर-जोर से हँसती है, क्योंकि हमें इस भयंकर सामुद्रिक तूफान में से पार उतारने का साधन एक नाव ही थी | इस नाव में बनी त्रिकोणाकार लकड़ी छूट गई | हम निराधार हो चुके हैं | हमारी लाचारी और मजबूरी पर नाव हमारी ओर अपना मुख करके हंसती रहती है | ऐसे हालातों में हमें अपने प्रियतम के पास एवं जीवन के उस पार कौन पहुँचायेगा ? 

            कवयित्री ने संसार रूप समुद्र को जीवन का प्रतीक मान लिया हैं एवं परोक्ष रूप से जीवन के भयंकर में एक नाव ही प्रियतम तक पहुंचने का सहारा थी | अंत में वह भी उथल-पुथल हो जाती है | यहाँ कवयित्री हाथ अपने प्रियतम के हाथ से छूट जाने का डर स्पष्ट किया है, क्योंकि समुद्र की तरंगे हदय के अंदर उठने वाली तरंगों का प्रतीक है | ईश्वर ही उनका सहारा है | 


३. साहस का अंत :-

            प्रस्तुत पंक्तियों में समुद्र के बीच जलचर मध्य फसी नाव का वर्णन किया गया है, लेकिन परोक्ष रूप से जीवन के मझधार में फसे मानव-जीवन का चित्रण किया हैं | कवयित्री का व्यक्तिक जीवन मुश्किलों के घने बादलों से घिरा हुआ हैं | इसमें स्वयं को लगता है कि अब मेरा हौसला नहीं रहा ! इसका भावपूर्ण चित्रण किया है | 


ग्रास करने नौका, स्वच्छन्द 

घूमते फिरते जलचर वृंद;

देख कर काला सिंधु अनंत

हो गया हा साहस का अंत !

तरंगें है उताल अपार

कौन पहुंचा देगा उस पार ?”


          समुद्र के तूफान में पर्वत के जितनी ऊंची तरंगें उछल रही है | इसके बीच नौका फसी है और छोटे-बड़े जलचर जीव हमें अपना निवाला बनाने के लिए समूह में मंडरा रहे हैं, लपक रहे हैं | समुद्र के पानी में रहने वाले जीव जन्तु मुक्त रूप से जंगली पशु की तरह हमें दुखी करने को बेचैन है | वे निरंतर इस कालचक्र को देख कर हमारे भीतरी साहस का अंत हो गया | ऐसा लगता है कि समुद्र के अनंत, भयंकर और अपार तरंगें पास आती हुई दिखती है | ऐसे तूफानों के बीच से निकाल कर कौन हमें अपने प्रिय मिलन को उस पार पहुंचायेंगा ? यही भय और डर कवयित्री के मन में आता है | अपने जीवन की विडम्बना से निकलने का प्रयास किया है, अपितु नौका के चारों ओर जलचर जीव निगलने के लिए तरस रहे थे | सामुद्रिक तूफान की कालरात्रि में अनंत पर्वत को देखकर हमारे साहस का अंत हो जाता है |


४. आशा भरे जीवन में निराशा :-

            काव्य प्रस्तुत पंक्तियों में आशावादी स्वर सुनाई पड़ता है, लेकिन आशा का संसार असफल होता दिखाई देता है और अंत में विफलता हाथ लगती है | नक्षत्र, रात, फूल एवं कर्णाधार को विषय बनाकर संवेदना व्यक्त की हैं |


“बुझ गया वह नक्षत्र प्रकाश

चमकती जिसमें मेरी आश;

रैन बोली सज कृष्ण दुकूल

विसर्जन करो मनोरथ फूल;

न जाये कोई कर्णाधार

कौन पहुँचा देगा उस पार ?”


              कवयित्री का नक्षत्र ज्ञान अच्छा है क्योंकि आसमान में चमकने वाले रात्रि के नक्षत्रों का सुंदर वर्णन किया है | आकाश में टीम-टिमाने वाले तारें और नक्षत्र की रोशनी मिट गई है | आसमान में चारों ओर अंधेरा छा गया है | जब तक नक्षत्र का प्रकाश था तब तक मेरी आशा चमकीले प्रकाश की तरह चमकती रहती थी, किन्तु अब तो अंधकार ही अंधकार नजर आता है | कालरात्रि अपना कृष्णा रंगी वस्त्र सजकर दुश्मन बनी हुई है | तुम फूल सी कोमल और मधुर मोकमनाओं का त्याग कर दो | तुम्हारा प्रिय मिलन का सपना कभी पुरा नहीं हो सकता | ऐसी पीड़ा, दु:ख, वेदना एवं आग में फसी जिंदगी का कोई सहारा अब बचा नहीं है | ऐसी भयंकर कालरात्रि में मेरे कर्णाधार के पास मुझे कौन पहुंचायेंगा ? मुझे कौन उस पार पहुंचायेंगा ? जिस पार मैं जाना चाहती हूँ | उससे मिलना चाहती हूँ | मेरी सारी मनोकामनाएँ विफल हो गई हैं | 


५. दर्द के उस पार का संसार :- 

              कविता की इन पंक्तियों में कवयित्री ने स्वर्ग-लोक और पृथ्वी-लोक का वर्णन क्या हैं, लेकिन परोक्ष अपने जीवन के दर्द से मुक्त होने के बाद  हदय की अनुभूति के विषय में भावानुभूति व्यक्त की हैं | जीवन में दर्द या दुःख से मुक्ति मिलने के बाद एक नये संसार की ओर दृष्टि घुमाई हैं | 

 

“सुना था मैंने इसके पार

बसा है सोने का संसार,

जहाँ के हँसते विहग ललाम,  

मृत्यु छाया का सुनकर नाम !

धरा का है अनंत श्रृंगार,

कौन पहुंचा देगा उस पार ?”


            उक्त पंक्तियों में आश्चर्य की अनुभूति के साथ विचार व्यक्त किये है | कवयित्री ने पीड़ा के उस पार का संसार देखा नहीं, क्योंकि महादेवी का जीवन पीड़ा का पर्याय था |  मैंने केवल सुना था कि दर्द के दूसरी ओर सोने का संसार है | जहाँ मेरा अलौकिक प्रियतम रहता है | इस लोक में सुख, आनंद, खुशी एवं प्रकाश का साम्राज्य है | दुख का क्षण मात्र के लिए भी अनुभव नहीं होता | इस लोक के पक्षी समूह मृत्यु का नाम सुनकर मनोहर हँसी हंसने लगते हैं, क्योंकि उसे अच्छी तरह मालूम है, कि इस लोक में हमारी मृत्यु तो क्या ! मृत्यु की छाया भी हमें स्पर्श नहीं कर सकती | अतः पक्षियों का यह हास्य हमें आश्चर्य में डूबा देता है, जबकि पृथ्वीलोक में धरती के भिन्न-भिन्न प्रकार के अनगिनत श्रृंगार है | इसमें विरह का राग व्यक्ति को सबसे अधिक पीड़ित करनेवाला भाव है और प्रेम के श्रृंगार में व्यक्ति का मन रममाण हो जाता है फिर इस प्रेम से मिलने वाली विरह व्यथा से व्यक्ति जलता रहता है | मनुष्य सुख के लिए सौंदर्य और सजावट के साधन भी काफी मात्रा में उपलब्ध है | सांसारिक मनुष्य इसी में डूब कर अपना जीवन नष्ट कर देता है | इन साधनों में मन लगता है, कि उस पार हमें कौन पहुँचा देगा ? यहाँ मावन को सांसरिक बंधन से फुरसद नहीं, फिर हमारा दुख कौन समझेगा ? इस से मुक्ति पाने के लिए संसार के उस पार के जीवन का अनुभव प्राप्त करने के लिए सहारा कौन बनेगा ? हमें नहीं लगता दर्द के उस पार के जीवन को कभी देख पायेंगें ! यही चिंता मुझे बार-बार सताती रहती है | 


६. अमरत्व और असीम प्यार का चित्रण :-

             कविता की इन पंक्तियों में देवलोक की प्रकृति का सुन्दर वर्णन किया है | प्रकृति के विभिन्न रूपों का अच्छा अंकन किया है | मानवीयलोक से पर ईश्वरीय लोक की प्रकृति आश्चर्य में डुबो देती है | स्वर्ग-लोक में प्रकृति का सुन्दर और नयनरम्य कल-कल मधुर संगीत सुनाने वाले झरना शांतिपूर्णक ढंग से मीठा गान सुनाता हैं | इन झरने के गान में देवत्व प्राप्त अमृतवाणी में अमरत्व वरदान सुनाई देता है | इनसे ह्रदय के भीतर समाहित एवं निरंतर बहने वाले प्यार के निर्मल प्रवाह का संगीत झंकृत हो उठता है, लेकिन इस प्यार भरे हदय को लेकर हमें प्रियतम, देव, ईश्वर, तुम्हारे पास कौन पहुंचाएगा ? जिससे हम तुम में एकाकार हो जाए | तुम में बस जाए | हमारा अस्तित्व तुम्हारे अस्तित्व में समाहित हो जाए | यही संसार कवयित्री के जीवन में प्रियात्तम को प्राप्त करने में बाधा डालता हैं |


“जहाँ के निर्झर नीरव गान

सुना करते अमरत्व प्रदान;

सुनाता नभ अनन्त झंकार

बजा देता है सारे तार;

भरा जिसमें असीम सा प्यार,

कौन पहुँचा देगा उस पार ?”


            देवलोक के आकाश का अनंत एवं अक्षय गुंजन हृदय के तार-तार को हिला देता है | जिसके के भीतर तुम्हारे प्रति अनंत एवं असीम प्यार भरा हुआ है | इस प्यार को तुम्हारे पास पहूँचना चाहती हूँ, लेकिन प्यार भरे हदय लेकर तुम्हारे पास उस पार कौन पहुँचा देंगा, ये मुझे समझ नहीं आता | संसार में किसी के पास समय नहीं | जो मुझे-तुझसे मिलाने का सेतु बन सकें !


७. स्वर्गीय संसार की दूरी :-

          लौकिक से अलौकिक संसार की प्रकृति में मूल्यवान पुष्प के चेहरे पर निरंतर मुस्कान छाई रहती है और फूल को स्पर्श करने वाली हवा का गीत ही त्याग का गीत है | वहाँ की प्रत्येक वस्तु में स्वर्गीय विकास मौजूद है | पृथ्वी लोग की प्रकृति से बिल्कुल निन्न स्वर्ग लोक की प्रकृति है | उदासी, मायूसी एवं बैचेनी दूर करने के लिए कोमल एवं सुंदर प्रकाश है | जिसको देखकर मन और ह्रदय के भीतर शीतलता का अनुभव होता है | इस संसार का तो तु मालिक है ! यह संसार पृथ्वी-लोक से कितना दूर है ? मुझे यह जानना है, क्योंकि मैं तुम्हें मिलना चाहती हूँ | मुझे तुम्हारें पास आना है | मुझे प्रकृति के नयनरम्य सुख भरे सुंदर संसार के बीच कौन पहूँचा देगा ? जिससे आपके मिलन सुख के संसार का आनंद ले पाऊँगी तथा जीवन के मधुर मधु को चख पाउँगी |


“पुष्प में है आनन्त मुस्कान

त्याग का हैं मारुट में गान;

सभी में हैं स्वर्गीय विकास

वही कोमल कमनीय प्रकाश;

दूर कितना है वह संसार !

कौन पहूँचा देगा उस पार ?”


          इन पंक्तियों में कवियत्री ने अपने प्रिय मिलन की चाह को तीव्र रुप में व्यक्त की है | वे अपने प्रियतम के स्वर्गीय संसार में जाना चाहती हैं, परंतु प्रियतम के लोक की दूरी से अनाझान हैं | उससे जानना चाहती है कि तुम्हारे और मेरे बीच की दूरी कितनी हैं | परोक्ष रूप में आत्मा और परमात्मा के मिलन की चाहत व्यक्त की हैं | 


८. विसर्जन ही कर्ण आधार का मूलाधार :-

          काव्य की अंतिम पंक्तियों में कवियत्री ने अपनी संवेदना को रहस्य के राज से पर्दा हटा दिया है | जीवन की पीड़ा, दुख, दर्द, विडम्बनाओं से मुक्ति का अमृत तत्व है | जिसके चरणों में जाकर व्यक्ति का अहंकार मिट जाता हैं | 


“सुनाई किसने पल में आन

कान में मधुमय मोहक तान ?

तरी को ले आओ मंझधार

डूब कर हो जाओगे पार;

विसर्जन ही है कर्णाधा,

वही पहूँचा देगा उस पार |”


            इन पंक्तियों में कवयित्री की अनुभूति आश्चर्य चकित करती है | उनके के पास एक पल में ही आकर किसी ने कानों में गौरवपूर्ण परंपरा का लुभावना संगीत किसने सुनाया हैं ? यह संसार की परंपरा है कि तुम अपनी नाव को मझधार में लेकर चले आओ | जितने तुम उस में डूबते जाओगे, उतने ही पार लग जाओंगे | यही संसार का रहस्य है | संसार कई लोग यही त्याग, बलिदान, और समर्पण को स्वीकार करके संसार सागर से तैर कर निकल हैं | ईश्वर के संसार में ईश्वर चरण में जाकर ही उस पार पहूँचा जा सकता है | जीवन को उनकी आराधना में खर्च के बाद ही स्वयं सहारा बनकर आता है और हमें उस पार वही पहूँचाने का कार्य करता हैं | यहाँ हिंदी साहित्य एक प्रसिद्ध दोहा याद आता है-

“कनक-कनक तै सौ गुनी मादकता अधिकाय

ज्यौ-ज्यौ बूडे श्याम रंग त्यौ-त्यौ समीप होय |”


(३) ‘उस पार’ कविता की कला-पक्षीय विशेषता :-

           भावों की अभिव्यक्ति के लिए काव्य साहित्य में कला-पक्ष महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि कविता कामिनी स्वरूप कला-तत्वों से निर्मित होता है | कविता की सफलता में कला-पक्ष एवं भाव-पक्ष का समान योगदान होता है | ऐसे साधनों का कवि समझदारी से उपयोग करता है | 

१. भाषा-शैली :-

          उस पार कविता में महादेवी वर्मा ने भाषा का सफल प्रयोग किया है | वे भाव के अनुकूल भाषा गठन में सिद्धहस्त है | हृदय की कोमल और गहरी भावानुभूति को व्यक्त करने के लिए सरल, सहज एवं मधुर भाषा का प्रयोग किया है | खड़ीबोली हिंदी की कमलकांत पदावली में संस्कृत, बांग्ला, अरबी, फारसी और बोलचाल के शब्दों संमिश्रण गया है | जिससे भाषा में चार चांद लग गया है |

        शैली की दृष्टि से यह काव्य काफी सफल रहा है, क्योंकि कवयित्री ने   भावात्मक, चित्रात्मक, व्यंग्यात्मक एवं कथन-कहन शैली का प्रयोग किया हैं |

२. अलंकार योजन :- 

        कविता काव्य सौंदर्य बढाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है | जिसमें शब्द, अर्थ एवं शब्द और अर्थ मिलकर काव्य की शोभा वृद्धि करते हैं | काव्य सौंदर्य से पाठक आकर्षित होते है और स्मरण करने में सरल होता हैं | इस तरह कविता को सुंदर और बढ़िया कलेवर देने का काम अलंकार करते हैं | उस पार कविता में मानवीकरण, सजीवारोपण, यमक एवं उपमा अलंकार मिलते हैं | प्रस्तुत कविता से उदहारण-

“पुष्पा में है अनंत मुस्कान”- मानवीकरण


“सुनाइए किसने पल में आन

कान में मधुमेह मोहक तान ?” - अनुप्रास


३. छंद :- 

         नीहार काव्य संग्रह में संकलित अधिकतर कविता गीत-शैली में लिखी गई हैं | जिसमें मुक्तक छंद का प्रयोग किया है | उदहारण के लिए गीत के रूप में ‘उस पार’ कविता का सादर नाम लिया जाता है | गीत शैली की आधुनिक परंपरा को विकसित करने का कार्य महादेवी वर्मा ने किया था | यही उनकी सफलता का आधार भी मान सकते हैं |

४. शब्द-शक्ति :-

         शब्द के भीतर की शक्ति का परिचय करवानेवाली शक्ति को शब्द शक्ति कहते हैं | शब्द की शक्ति तीन प्रकार से पाई जाती है- अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजन | जिस शब्द का अर्थ सीधा मालूम हो जाये उसे अभिधा कहते है | शब्द के  मुख्य अर्थ में बाधा के कारण लक्ष्यार्थ मिलता हैं, लेकिन जब प्रस्तुत से कोई अन्य अर्थ प्रकट हो तो उसे व्यंग्यार्थ कहते हैं | उस पार कविता में अभिधा, लक्षणा और व्यंजना के द्वार अर्थबोध होता हैं | 

५. प्रतीक और बिम्ब :-

           प्रतीक एवं बिम्ब का कार्य कविता में व्यक्त अदृश्य एवं सूक्ष्म अनुभूति का सांकेतिक स्वरूप में दर्शन करवाना है | उस पार कविता में प्रकृति के प्रतिक का सफल प्रयोग किया है तो तूफान के बीच फसी नाव का प्रतिबिंब हमें जीवन की विडम्बनाओं से बखूबी परिचित करवाता है | इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उस पार कविता में प्रतीक और बिम्ब का सहज चित्रण किया हैं |  

६. रस और गुण :-

          जीवन में काव्या रसास्वादन के बिना शब्द कला अधूरी रह जाती है | पढ़ने वाले काव्य रस की अनुभूति होती है और यह रस कविता को सजीव करता है | उस पार कविता में हास्य, शांत, वियोग-श्रृंगार, अद्भुत एवं भयानक रस सुन्दर आकलन किया गया है | माधुर्य एवं प्रसाद गुण में रचित कविता विशेष आकर्षित की है | 

(३) निष्कर्ष :-

        निष्कर्षत: कह सकते हैं कि निहार काव्य संग्रह में संकलित उस पार कविता अपने निहित भाव, अनुभूति, संवेदना एवं आश्चर्य आलोक से सबका सम्मान पाने में सफल रही है | लौकिक जीवन में रहकर अपने अलौकिक प्रियतम को पाने की यात्रा कविता का केन्द्र है, लेकिन उस यात्रा के दौरान प्रकृतिगत एवं मानवीय वृत्तियों के कारण कई सारी पथबाधा बनती है | जिससे अपने मित्र के पास उस पार कौन ले जायेंगा ? यह चिंता लगातार हो रही है, परंतु अंत में वही प्रियतम उनको उस पार ले जाने कार्य करता है | कर्म के बल पर स्वर्गीय सुख का आनंद प्राप्त कर सकते हैं | अलौकिक और रहस्यमय अपने प्रियतम को मिलने की चाह तथा उनके प्रति का अपार प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए कविता जाने जाती रहेंगी | जिंदगी में व्याप्त सूनापन, खालीपन, पीड़ा, आदि का आवागमन से व्याप्त जिवनान्धकार काव्य आरंभ में व्यक्त है | निराशा से आशालोक की यात्रा सहज ही प्रेरित करती है | प्रियतम ही उसका सहारा बनता है | इस कविता का शीर्षक रोचक एवं संक्षिप्त है | कला तत्वों की दृष्टि से भी यह कविता बहुत ही सफल है, क्योंकि भाव के अनुकूल ही कला तत्त्वों के उपकरणों का चयन है अत: उस पार  महादेवी वर्मा के अंत: करण की प्रति छवि लगती है |

Saturday, 11 February 2023

मुरझाया फूल कविता की व्याख्या

मुरझाया फूल कविता- महादेवी वर्मा

(१) प्रस्तावना :-

आधुनिक गीत काव्य में महादेवी वर्मा का स्थान सर्वोपरि है | उनकी कविता भाव, भाषा और संगीत का त्रिवेणी संगम है | इनके गीत में वेदना, प्रनायानुभूति, प्रकृति चित्रण और रहस्यवाद हमारा ध्यान आकर्षित करता हैं और वैयक्तिक पीड़ा को वैश्विक कल्याण की भावना के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई हैं | ‘मुरझाया फूल’ कविता अर्थ बहुत ही सार-गर्भित है | छायावादी कविता के सभी लक्षणों से युक्त कविता हैं | छायावाद में प्रधान रूप से मुख्य प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग, मनुष्येत्तर पदार्थों में मानवीय भावनाओं को दिखाकर उनका मानवीकरण करना रहा हैं | कविता का मुख्य संदेश मानव को अपने जीवन की क्षणभंगुरता को याद दिलाना हैं और मानव जीवन में पायी जानेवाली नि:स्सारता को याद दिलाना कविता का मुख्य लक्ष्य है | स्वार्थ को त्यागकर फूल धरा पर गंध हीन, शुष्क पड़े पुष्प की दयनीय अवस्था से कुछ सिखाने की प्रेरणा देना कवयित्री का मुख्य उद्देश्य हैं | फूल की जिन्दगी के जरिए मनुष्य को अपनी यथार्थ का बोध हो जाता है | कोमलकांत पदावली का प्रयोग छायावादी कविता की एक और विशेषता है | जिसका प्रयोग भी हुआ हैं | अमूर्त भाव की अभिव्यक्ति के लिए मूर्त उपमानों का प्रयोग, हदय की सुक्ष्माती सूक्ष्म भावनाओं को व्यक्त करने में कवयित्री काफी सफल रही हैं | स्वार्थमय सोच को बदलने के लिए विवश करती है | यह कविता दुनिया के चेहरे पर से एक पर्दा हटा देती है |

(२) ‘मुरझाया फूल’ कविता की भाव-पक्षीय विशेषता :-

प्रस्तुत कविता में कवयित्री महादेवी वर्मा ने सूखे फूल को अपने जीवन का भूतकाल, वर्तमान और भविष्य के जीवन की याद दिलाई है | फूल के जीवन को एक छोटी कली से लेकर बिखरकर नीचे धरा पर गिराने तक की कथा वर्णित की है, लेकिन परोक्ष तो मनुष्य को अपने जीवन की सार हीनता का परिचय दिया है | नारी जीवन की ओर भी संकेत दिया है |

१. पुष्प की शैशवास्था का चित्रण :-

‘मुरझाया फूल’ कविता की प्रथम पंक्ति में सुन्दर और खुशबुदार सूखे फूल की बाल्यावस्था का चित्रण किया हैं | कवयित्री कहती है कि फूल तुम कली के रूप में शैशव अवस्था जीवन व्यतीत कर रही थी | सूखे सुमन ! उस समय का तुम्हारा जीवन खुशियों से भरा हुआ था | खुद पवन आकर तुझे अपनी गोदी में खिलाता था | तुम्हे प्यार करता था | तुम हास्य रत्त रहती थी | तुम्हारे जीवन का प्रत्येक समय मधुर आनंद से हँसता बितता था | उस समय स्वयं पवन आकर गोद में खिलाता था | पवन को कली के प्रति काफी आकर्षण था | उस कली के लिए चिंतित था और वो काफी प्यार से उसे अंक में सुलाता है | कली तुम अपनी शैशव अवस्था से संपूर्ण रूप खिलकर यौवन में पूर्ण विकसित हो गई | उस समय तेरी अंदर बहुत बदलाव आये और तु एकदम मंजुल मुखी हो गयी | यानि अत्यंत सुन्दर हो गयी | इतना ही नहीं तु सुकोमल भी हो गई | उसी समय मधु यानि भँवरा हनी के लिए लालच में तेरी चारों ओर मंडराने लगता है | पुष्प के खिलने के साथ ही भ्रमर डेरा डालते हैं, क्योंकि सुन्दर और सुकोमल पुष्प के अंदर उससे भी ज्यादा सुन्दर और मीठा मधु हैं |

“था कली के रूप शैशव में, अहो सूखे सुमन

हास्य करता था, खिलती अंक में तुझको पवन

खिल गया जब पूर्ण तु मंझुल, सुकोमल पुष्पवर

लुब्ध मधु के हेतु मंडराते लगे आने भ्रमर |”


कली जब तुम शैशव अवस्था में थी तब पवन तुझे गोद में खिलाता था, हास्य करता था और खिलते ही भ्रमर मंडराने लगे | इसके माध्यम से मानवीय संदेश दिया है कि मानव जब तुम मुग्धावस्था में शारीरिक, मानसिक एवं सौन्दर्य से मंडित तुम्हारा जीवन था | तुम्हारे पास धन, संपत्ति और शक्ति थी | उस समय तुम्हें लुभाने के लिए मनुष्य तुम्हारे इर्द-गीर्द घुमाते थे | तुम अपने जीवन के अतित को याद करो जिस प्रकार पुष्प के चारों तरफ भ्रमर मंडराते हैं | तुम्हारे से कुछ मतलब निकालने के लिए संसार में बहुत लोग चारों तरफ मंडराते थे | तुम सूखे सुमन की तरह मनुष्य याद करो | नारी तुम याद करो | जब तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है ! दूसरों को देने के लिए बहुत कुछ था तब तुम्हें कभी किसी की दोस्ती और प्यार की कमी महसूस नहीं हुई | उस समय मिलने की लालसा तुम्हारें अंदर भरी थी | आज तुम्हारे वर्तमान से पूछो, क्या स्थिति है ? इन पंक्तियों में मनुष्य की स्वार्थ भावना का मधुर शब्दावली में परिचय दिया है |


२. पुष्प का यौवन-काल :-

सूखे सुमन तुम्हें याद है ? चन्द्रमा की कोमल किरणें बहुत हँसाती रहती थी | रात अपना मूल्यवान मोतियों का थाल तुझ पर न्यौछावर करती थी | तुम्हें बहुत प्यार करती थी | तुम्हारे ऊपर मोतियों की सम्पदा लूँटाती थी | ओस की बुँदे रात को घट हो जाती हैं | सुबह होते ही सूरज की किरणे उस पर पड़ती हैं तो काफी सौन्दर्य युक्त हीरे जैसा मनोहर लगता है | हीरे की तरह चमकता है | सतरंगे रंग का इन्द्रधनुष हो जाता है | इस तरह रात तुम्हारे ऊपर फ़िदा हो जाती थी |

मधुप यानि भ्रमर अपने गूंझार से लौरियाँ सुना रहा था, क्योंकि तुम्हें निंद्रा आ जाये और तुम आराम से सो सको | मधुप की गुंजन लौरियों से फूल तुम विवश होकर सो जाय | पुष्प वाटिका की देखभाल करने वाला माली जब कोई बगीचे में पौधा बोता है तो उसमें जब प्रथम कली लगती है तो माली उत्साह से भर जाता है, क्योंकि माली ने जो यत्न, प्रयत्न और मेहनत की वे सफल होती दिखती हैं | कली जब पुष्प में बदल जाती है तो माली का उत्साह दूगना हो जाता है | वे ज्यादा मेहनत और उत्साह से उस पौधे देखा-भाल करने लगता हैं | माली के द्वारा किया गया यह यत्न तुम्हारे भीतर भी आनंद भरता था | माली जब दूगने यत्न कार्य करता तो तुम्हारा हदय बहुत आनंदित हो जाता था |


“स्निग्ध किरणें चन्द्र की तुझको हँसाती थी

रात तुझ पर वारती थी मोतियों की संपदा

लोरियाँ गाकर मधुप निद्रा-विवश करते तुझे

यत्न माली कर रहा आनंद से भरता तुझे |”


कवयित्री ने मनुष्य की यौवनावस्था की ओर ईशारा किया है | मानव शारीरिक शक्ति संपन्न, स्वस्थ, धन-संपत्ति से लदा होता है तो बहुत लोग उस की सेवा के लिए इर्द-गीर्द मंडराते रहते हैं | उस समय मनुष्य भी अंदर ही अंदर काफी आनंदित रहता हैं | आज मेरे पास मेरी सेवा एवं गुण-गान करने के लिए चारों ओर इतने सारे लोग लगे है | उस दौरान मानव के अंदर भी अहंकार भर जाता हैं | जिस प्रकार पुष्प के अंदर भर जाता हैं | अर्थात् यौवन के सौंदर्य पर काफी खुश होते है | जीवन के सुवर्ण काल आनंद से भरा होता हैं, लेकिन जब पुष्प की सुखी अवस्था में कवयित्री मानव की वृद्धा अवस्था की याद करवाती हैं |


३. भविष्य से अंजान पुष्प :-

निम्न पंक्तियों में कवयित्री ने पुष्प की नादानी और नासमजी का वर्णन किया है | जब पुष्प यौवन सौंदर्य के नशे में मग्न था | उस समय जीवन के अंत काल का यह दृश्य याद ही नहीं आता, कि एक दिन तुम सुख जाओंगे, तुम्हारा रंग बिखर कर फीका पड़ जायेंगा ! तुम भीतर से सुगंध और सौंदर्य विहीन रह जाओंगे ? तुम एकदम सुखकर निष्प्राण हो जाओंगे | एक दिन मेरी दुनिया बिखर जायेंगी | येसा याद आया था ? उस समय तुम अपने सौंदर्य गौरव का अनुभव कर रहे थे और इतरा रहे थे | आज धरती पर शुष्क अवस्था में बिखर कर पड़े हो | तुम्हारा सुन्दर और कोमल मुख मुराझाया हुआ है |


“कर रहा अठ खेलियाँ इतरा सदा उद्यान में

अंत का यह दृश्य आया था कभी क्या ध्यान में ?

सो रहा अब तु धरा पर शुष्क बिखराता हुआ |

गंध कोमलता नहीं, मुख मंजु मुरझाया हुआ |”


कवयित्री मनुष्य को पुष्प के जरिए कहती है कि अपने यौवन, धन, संपत्ति और सुन्दरता पर गर्व अनुभव करते है तो क्या उसे याद रहता है ? एक दिन वृद्ध हो जाऊंगा ! मेरी समस्त इन्द्रियाँ निष्क्रिय हो जायेंगी | जिस पर मैं गौरव कर रहा था | सब मेरा साथ छोड़ देंगे | अब तु जमीन पर पड़े हो, तुम्हारे चेहरे पर झुरियाँ पड़ गयी हैं | अब धरा ही तुम्हारा विश्राम स्थान हैं, फिरभी मानव समझता कि मैं तो हमेशा येसे ही रहूँगा | अपने जीवन पर गर्व करने से थकता नहीं | ये महसूस नहीं करता कि हम भी कभी येसी अवस्था में आयेंगे | अंत काल का यह करुण दृश्य तुम्हारे सामने क्या आया था ? प्रकृति में येसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं |


४. पुष्प की करुणावस्था :-

महदेवी वर्मा ने फूल की करुण वर्तमान जीवन का चित्रण किया है | आज तुम बिखर कर धरा पर पड़े हो | तुम गंध हीन और शुष्क हो चुके हो | तुम्हारा सुन्दर मुखमंडल मुरझाया हुआ है | येसी अवस्था में तुम्हारें चारों तरफ मंडराने वाले भ्रमर कहीं नज़र नहीं आते | सुबह हो रही है, फिर भी सूर्य अपनी लाल-लाल सुन्दर और कोमल किरणें तुझ पर बरसा नहीं रहा हैं | जिस पवन ने अंक (गोद) में भर कर तुम्हें प्यार किया था | आज तुम्हें वो अपने तीव्र झोंकों से धरती पर पटकता हैं एवम् तुम्हें प्यार भी नहीं करता | उपर से प्रताड़ित करता हैं | तुम्हारा नुकशान करता हैं | ये सुमन मैं तुम्हें प्रश्न करती हूँ |


“आज तुझको देख चाहक भ्रमर आता नहीं |

लाल अपना राग तुझ पर प्रात बरसाता नहीं |

जिस पवन ने अंक में ले प्यार तुझको था किया

तीव्र झोंकों से सुला उसने तुझे भू पर दिया |”


मनुष्य की ओर ईशारा करके कवयित्री कहना चाहती है कि मानव तुम्हारी युवा अवस्था थी, तुम्हारे पास यौवन का सौंदर्य था तब तुम्हारे पास हर पल मैला लगा रहता था, लेकिन आज तुम्हारे पास कोई दिखाई भी नहीं देते ! तुम्हें खुश करने के लिए ढूंढने से भी कोई दिखाई नहीं देता है | कई बार येसे होता था जो तुम्हें काफी प्यार करते थे | इस अवस्था में एकदम से तुम्हें कष्ट पहुँचाने पर तुले हुए है | ज़माने के साथ अपने लोग भी बदल जाते हैं | यह अवस्था बहुत ही कष्टकर होती है | जो हमें अपने ही मिटाने की कोशिश करते हैं |


५. मानव की स्वार्थवृत्ति का चित्रण :-

कविता की इन पंकितियों में कवयित्री पुष्प के माध्यम से मनुष्य की स्वार्थ भावना पर मीठा व्यंग्य करती है | पुष्प के साथ समाज का व्यवहार कृतघ्न भावना का होता है | फूल कभी किसी को हानी नहीं पहुँचाता, बल्कि अपना जीवन रस एवं सौरभ से व्यक्ति के मन को खुशहाली से भर देता हैं | कहीं सुनने में नहीं आया हैं कि फूल से किसी को दुःख पहुँचा हो | फूल येसी सुन्दरता का प्रतीक है | आँखों को शीतल बनता है | मन को ताजा रखता है |

पुष्प ने यौवनकल में अपनी मधुर-मीठी सौरभ को महादानी के समान सब कुछ दान कर दिया, लेकिन तुम्हारे लिए यहाँ संसार में रोता कौन हैं ? तुम इतरा रहे थे, फिरभी तुमने सौंदर्य का दान दिया है | हे ! फूल तुम दुखी मत हो ये संसार ही येसा हैं | एक दम स्वार्थमय | ये संसार किसी को सुख देगा ही कैसे ? स्वार्थमय सबको बनाया है |


“कर दिया मधु और सौरभ दान सारा एक दिन

किन्तु रोता कौन है तेरे लिए दानी सुमन

मत व्यथित हो फूल, सुख किसको दिया संसार ने

स्वार्थमय सबको बनाया है यहाँ करतार ने”


कवयित्री ईश्वर के सर्जन पर प्रश्न खड़ा करती है कि करतार यानि सृष्टि के निर्माता एवं संचालक ईश्वर हैं | इन्होंने संसार भर के लोगों को ऐसे ही बनाया हैं | फूल तुम कदापि व्यथित न हो, कभी चिंतित न हो, क्योंकि दुनिया ही एसी हैं | दूसरों को अपने जीवन का सर्वस्व दान करने वाले सुमन को नहीं छोड़ते तो मनुष्य को कहाँ छोड़ेंगे ? ये दुनिया स्वार्थ पर ही टिकी हैं | जब तक किसी का स्वार्थ बनता रहता है | तुम्हें चारों तरफ़ घेरे रहते है, अपितु आपको छोड़कर चले जायेंगे | कुछ मिलने की अपेक्षा पूर्ण नहीं होती तो स्वार्थमय संसार किसी का ध्यान नहीं रखता | इसलिए तुम्हें व्यथित नहीं होना चाहिए | संसार किसी को सुख नहीं देता | महादेवी स्वयं बौद्ध दर्शन से काफी प्रभावित थी | स्वयं एक सन्यासीनी का जीवन व्यतीत करती थी तो यहाँ ईश्वर के प्रति संसार के स्वार्थ को देखकर बहुत दुखी हो जाती है | पुष्प की व्यथा मानव की व्यथा मान सकते है |


६. संसार की नि:सार का चित्रण :-

संसार का स्वार्थ परक व्यवहार एवं संसार की नि:सारता का वर्णन किया है | मुझे इसी बात पर शंका होती है कि तुम तो काफ़ी बड़े दानी थे | विश्व में तुमने अपना सर्वस्व सबको शुशी-ख़ुशी बाँटा है | सबके हदय को तुम बहुत पसंद भी आता रहा | फूल आपने अपनी सुगंध से सबके मन में खुशियाँ भर देता है | सबकुछ दान करने के बावजूद भी तुम खुश ही रहे | कभी तुम दुखी नहीं हुए और न दुनिया को दुःख दिया | तु हमेशा हँसता ही रहा |


“विश्व में हें फूल ! तू सबके हदय भाता रहा

दानकर सर्वस्व फिर भी हाय ! हर्षाता रहा

जब न तेरी ही दशा पर दुःख हुआ संसार को

कौन रोएगा सुमन ! हम से मनुज नि:सार को |”


पुष्प तेरी दशा ख़राब आई तब संसार को तेरी दशा पर जरा भी दुःख नहीं हुआ | इतना कुछ निस्वार्थ बाँटने वाले फूल पर भी संसार को दुःख नहीं हुआ ! येसे में मनुष्य की अवस्था क्या होगी ? जो यौवन के सुखभरे दिनों में किसी ओर के बारे में नहीं सोचता ! उस मनुज का क्या होगा ? इसके बारे में कोई आँसू नहीं बहायेंगे | उसकी दुखावस्था में उसका कोई साथ नहीं देगा, क्योंकि फूल तो सबकुछ दान करता है, फिरभी कोई नहीं रोते तो सोचो मनुष्य का जीवन कितना सारहीन, तथ्य हीन और कितना क्षण भंगुर है, लेकिन मनुष्य अपनी सुख की अवस्था में कभी नहीं सोचता है कि दूसरों के दुःख में सहभागी बने | ऐसे मनुष्य पर कौन रोयेगा ? जो दूसरो को खुशी बाँटता ही नहीं | ये स्वार्थी मनुष्य को कौन देखेंगा ? पुष्प के द्वारा मनुष्य संभल जाओं, तुम्हारी अवस्था पुष्प की तरह होंगी जो गंध हीन, सौंदर्य हिन धरा पर पड़ा है | अपने अच्छे समय में दूसरों के बारे में सोचा करो |


(३) ‘मुरझाया फूल’ कविता की कलागत विशेषताएँ :-

कवयित्री के पास उत्तम भावानुभूति है, लेकिन उस संवेदन को अभिव्यक्त करने के लिए कविता के सर्जन साधनों की अनिवार्यता होती है | इनसे कविता अपने स्वरूपगत ढ़ाचे में ढलकर एक पूर्ण कविता बनती हैं | कविता के इन कला साधनों का परिचय निम्न लिखित है |


१. भाषा-शैली :-

महादेवी वर्मा भाषा की सफ़ल प्रयुक्ता है | कविता के विषय को ध्यान में रखकर भाषा गठन करती हैं | वे काव्य में व्यक्त विचार को अच्छी तरह से पाठक के हदय-मन में संप्रेषित करने वाली कोमलकान्त शब्दावली का चयन करती हैं | मुरझाया फूल इसका उत्तम उदाहरण है | जिसमें कवयित्री ने कोमल एवं मधुर शब्दों के साथ हिंदी खड़ीबोली का प्रयोग किया है | जिसमें संस्कृत, बंगला और बोलचाल के शब्दों का संमिश्रण किया है | ये कविता को सजीव बना देते है तथा फूल की जिंदगी को प्रत्यक्ष करती है | यह गीत शैली में लिखी गई कविता है | कथन-कहन, पूर्वदीप्ति एवं अभिव्यंजना शैली का सफ़ल निर्वाह किया है | लय माधुर्य और संगीत काव्य को चिरजीवी बनाते है | जिससे कविता का उद्देश्य स्पष्ट प्रतिबिंबित होता है |


२. अलंकार प्रयोग :-

कवयित्री ने मुरझाया फूल कविता में आलंकारों का प्रयोग सहज, सरल एवं सौन्दर्य वर्धक तत्त्व के रूप में किया है | कविता के बाह्य स्वरूप को सुन्दर बनाया हैं | मानवीकरण कवयित्री का प्रिय अलंकार है | इनकी अधिकरत कविता की तरह प्रस्तुत कविता में भी प्रयोग मिलता हैं | फूल की कली का शैशव, मंझुल मुख, मधुप की लोरिया आदि उदाहरण कविता में भरे पड़े है | इनके अलावा अंत्यानुप्रास, सजीवारोपण और समासोक्ति अलंकार हमारा ध्यान आकर्षित करते है |

“कर रहा अठ खेलियाँ इतरा सदा उद्यान में

अंत का यह दृश्य आया था कभी क्या ध्यान में ?”


३. शब्द-शक्ति :-

कविता में प्रयुक्त शब्द के अर्थ बोध की शक्ति को शब्द-शक्ति कहते है | कविता के शब्द में तीन अर्थ निहीत होते है, मुख्यार्थ, लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ | मुरझाया फूल कविता तीनों शब्द शक्तियों का गुम्फन किया है | कई शब्द के सीधे-सरल अर्थ है तो कुछ शब्द थोडे प्रयत्न के बाद समज में आते है एवं कई शब्द व्यंग्यार्थ रूप में प्रयुक्त है |


४. छंद :-

छंद कविता के स्वरूप का नियामक तत्त्व है तथा कविता को आह्लादक, आनंदमय, तरलता युक्त, माधुर्य पूर्ण चिर स्थायी जीवन प्रदान करता है | छंद में मानवीय भावों को आकर्षित करने और झंकृत करने की अद्भुत क्षमता होती है | यह कविता लय युक्त अतुकांत मुक्त छंद में लिखी गई एक गीत कविता है |


५. काव्य गुण और रस :-

प्रस्तुत कविता पढ़ने या सुनने से हदय में मधुरता का संचार होता है तो यह कह सकते है कि माधुर्य गुण का आकलन है | फूल को गोदी में बिठाके प्यार करते समय कवयित्री ने प्रसाद गुण झलकी दिखायी है | जिससे कली को हद्यगत शांति का अनुभव होता है | फूल को पवन का अंक में खिलाते वात्सल्य और हास्य रस, चन्द्र किरणों द्वारा हँसाने हास्य रस, शुष्क धरा पर फूल के जीवन को प्रतिम्बिबित करने शांत रस और करुण रस, चाहक भ्रमर के वियोग में वियोग श्रुंगार रस एवं मनुष्य के स्वार्थ भावना स्पष्ट करने के लिए अद्भुत रस का संयोग किया है |


६. प्रतीक योजना :-

महादेवी वर्मा ने हदय के सूक्ष्म भाव को प्रतिबिंबित करने के लिए प्रतीक का सहारा लिया है | अपने अदृश्य वस्तु और भाव को प्रतीक प्रत्यक्ष करता है | इस कविता में प्रमुख रूप से प्रकृति के प्रतीकों का प्रयोग किया गया है | जिसमें पुष्प के प्रतीक द्वारा मनुष्य के जीवन को व्याख्यायित किया है | व्यक्ति के पालक-पोषक के रूप में माली का प्रयत्न मिलता है | प्रियतम, मित्र एवं चाहक वर्ग का प्रतीक भ्रमर है |


(४) निष्कर्ष :-

निष्कर्षत: कह सकते है कि महादेवी वर्मा रचित ‘मुरझाया फूल’ कविता में छायावाद काल की अधिकत्तर विशेषताएँ अंकित है | इस कविता में प्रकृति चित्रण, भावों की सूक्ष्म अभिव्यक्ति, वेदना और विद्रोह का स्वर एवं व्यंग्यात्म शैली का सफ़ल गुम्फन किया है | फूल के जीवन को सजीव स्वरूप में प्रस्तुत करके मानव पर तिखी चौट की है | भाव को सुन्दर एवं बोधगम्य बनाने के लिए संस्कृत गर्भित शब्दावली का सुन्दर प्रयोग किया | यह कविता पाठक के हदय में जगह बनाने में बहुत ही सफल रही है |


गुजराती काव्य पंक्ति

स्वरचित गुजराती काव्य
स्वरचित गुजराती काव्य

(1)

"જીવનમાં જાકળ જેવું જીવાય તો ઘણું છે,

થોડું-ઘણું કોઈને સ્પર્શી જવાય તો ઘણું છે."

  (2) 

"પ્રેમમાં કયાં કશું પામવાનું હોય છે,

પ્રેમમાં તો ફકત ચાહવાનું હોય છે."


(3)

"તું પણ મારાથી નારાજ લાગે છે કે શું !

ને લાગણીનાં ખેલ તું જ રમાડે છે કે શું ?


તારા હાથમાં બધું છે એમ કહેવાય છે !

જિંદગીની રમત તુજ સમાડે છે કે શું ?"


(4)

''તારી આંખોમાં થોડી નમી દેખાઈ રહી છે.

જીંદગીમાં કોઈની કમી વંચાઈ રહી છે.''


(5)

"જીંદગીમાં અમને તો કેટલાએ કક્કો ભણાવ્યો,

પણ અમે કોઈને ક્યારેય નહિ એકડો ઘુંટાવ્યો."


(6)

"માણસ મીણના બનાવે છે, 

ને ઘાવ હથોડાનાં કરે છે !


તારે કાંઈ લાગણી જેવું છે,

તડકો જાકળને દઝાડે છે !"


(7)

"તું બીજા વિશે આમ તેમ વિચાર્યા ના કર. 

ને રોજ ખુદને આવી રીતે બાળ્યાં ના કર. 


આમ સૃષ્ટિમાં ચંદ્રમા પણ કયાં પૂર્ણ છે ?

માણસનાં નામે પૂર્ણતાને શોધ્યા ના કર." 


(8)

"કોશિશ કયાં કરું છું કે હું સારો છું,

કોશિશ તું કરે છે કે એ ખરાબ છે."


(9) 

લે આ તારો સ્નેહ તને આપ્યો છે,
તું કહે છે તેમ આલેખી આપ્યો છે.  

લે આ સ્મિત સાચવી આપ્યું છે, 
તું  હસે, તેવું કોમળ લખ્યું છે.  

લે આ આંખોને ઉકેલી આપી છે ,
ને લાગણીની ભીનાશ લખી છે. 

લે આ પ્રેમ મિસરી ચાખી લીધી છે, 
હ્રદયમાં તને પણ રાખી લીધી છે.

લે આ પ્રેમની ઓળખ આપી છે, 

તને કાનો-કાન ખબર આપી છે . 

(10)
મને કે ક-મને પૂછી લે,
પ્રેમ છે કે વહેમ છે ?

આંખો કે હૃદયને પૂછી લે, 
પ્રેમ છે કે વહેમ છે ?

બાહર કે ભીતરને પૂછી લે,
પ્રેમ છે કે વહેમ છે ?

મૌન કે હાસ્યને પૂછી લે,
પ્રેમ છે કે વહેમ છે ?

લાગણી કે વિચારોને પૂછી લે,
પ્રેમ છે કે વહેમ છે ?

તને કે મને પૂછી લે ને,
પ્રેમ છે કે વહેમ છે ? 

(11) 
જીવનમાં આવી રીતે તો રહીએ 
રોજ મનફાવે ત્યાં હરીએ-ફરીએ.

લાગણીઓને અકબંધ રાખીએ, 
ને માંગણીઓ પર કાબુ રાખીએ.

મહેનત કરીને ખાઈએ-પીઈએ,
ને મફતનું લેવાની ટેવ ન રાખીએ.

નાના-મોટા સૌ સાથે ખુશ રહીએ,
એકમેકના માન-પાન જાળવીએ.

ઈર્ષાથી દૂરનું સગપણ રાખીએ,
ને પ્રેમ ભરેલું જીવન જીવીએ.

નબળું-સબળું બધું સ્વીકારીએ,
ને હિંમત ભરેલું જીવન જીવીએ.

ભૌતિકતાનો ભરપૂર લાભ લઈએ,
એની પાછળ ભાન ભૂલી ન જઈએ.

બસ દિવસ-રાત આનંદમાં રહીએ, 
ને જીવનમાં કોઈને પણ ન નડીએ.

(12)

કંઈક તો રાખ 

તહેવાર જેવું તો કંઈક રાખ, 
વ્યવહાર જેવું તો કંઈક રાખ. 

અંધકારની વાત ક્યાં માંડી ! 
તું દીવા જેવું તો કંઈક રાખ. 

વાતે-વાતે પુરાવાઓ ના માંગ, 
તું વિશ્વાસ જેવું તો કંઈક રાખ. 

ભરતી ને ઓટ આવ - જા કરે, 
તું કિનારા જેવું તો કંઈક રાખ. 

મૌનમાં પણ મોહબ્બત સમજું છું, 
તું ક્યારેક તો કંઈક કહેવાનું રાખ. 

મારી અપેક્ષા વધારે ક્યાં છે ? 
તું પહેલાં જેવું તો કંઈક રાખ.

(13)
સવાર ઊઘડે કે ના ઊઘડે
તું રાત આખી જાગી તો જો.

સંધ્યા ઢળે કે ના ઢળે
તું મધ્યાહને તપી તો જો.

રસ્તે કોઈ મળે કે ના મળે
તું ડગ એક ભરી તો જો.

આનંદ મળે કે ના મળે 
તું ખડખડાટ હસી તો જો.

કોઈ ચાહે કે ના ચાહે
તું ભીતરે કોઈના વસી તો જો.

તું તને મળે કે ના મળે
બંધ આંખે સમરી તો જો

પત્થર તરે કે ના તરે
તું નામ રામનું લખી તો જો. 

(૧૦/૫/૨૦૨૧ સોમ, સાંજ ૦૬:૧૫)

(14)
ક્યાં સુધી બીજાની દોરી કાપીને એ પતંગ ચગવના ?
કયારેક તો એ પતંગ ચોક્ક્સ આકાશેથી નીચે પડવાના.

      * * *


સ્વરચિત કાવ્ય પંક્તિ.....

हिंदी काव्य पंक्ति

हिंदी काव्य
स्वरचित हिन्दी काव्य पंक्ति
(1) 

"ऐ जिन्दगी तुम मुझे बार-बार गिराया मत करो !
हर बार मेरी संभलने की शक्ति दूगनी हो जाती हैं ।"

(2) 
"हे ईश्वर ! 
अब हँसकर कैसे दर्द छीपाऊँ मैं ?
जब भी हँसने जाता हूँ तब,
ये आँखें आँसू बहाकर सच बोल देती हैं !"

(3)
"मैं जिन्दगी की आग में जलता रहा ।
लोग देखते रहे कि रोशनी अच्छी हैं ।"

(4)
"दिल का ज़हर आखों में उतरने मत देना ।
दुनिया में जैसा है, वैसा दिखाई मत देना ।।
तुझे गिराने के लिए परिचित भीड़ खड़ी हैं ।
दुनिया के सामने अकेला दिखाई मत देना ।।"

(5)
"तुने जिन्दगी की दौलत बहुत अच्छी दी हैं,
मगर जीने का किराया भी बहुत लगाया है !"

(6)
"तेरी हर एक अदाओं से घायल रहता हूँ,
तब तो मैं दिन-ब-दिन बिमार रहता हूँ ।"

(7)
"अब चेहरा पढ़ने की आदत हो गई हैं ,
इसलिए ज़ेब में आईना नहीं रखता हूँ ।"

(8)
"राज को राज ही रहने दो,
मुझे आज कुछ कहने दो ।

ये दिल के अंदर की बात है,
उसे आज लब्ज़ों से बहने दो ।"

(9)
"तेरी हर चालाकी पर चुप रहता हूँ,
इसलिए तुम्हें करीब से जानता हूँ ।"

(10)
"तेरी आँखें हर राज खोल देती हैं,
टूटे दिल का हाल बता देती हैं ।

ईश्क में टूटता कौन नहीं, यहाँ ?
खामोशी भी सब राज बोल देती हैं ।"

(11)
"दुनिया से हारा, मैं भीतर तक गया ।
अब लगता है, मैं समंदर तक गया ।"

(12)
"मैं उस जगह रोशनी खोजने चला गया,
जो पहले से मेरे दीये को हवा दे चुके थे ।

(13)
"तुम भी कितनी मयस्सर निकलती हो ।
दिन ढलते-निकलते याद बन आती हो ।
सफर चलने का इरादा तुम भी रखती हो ।
मगर मतलब-बेमतलब रुठती बहुत हो ।"

(14)
"मैं खुद ही खुद से रु-ब-रु होता हूँ,
तब तो दुनिया से बेखबर रहता हूँ ।

दूसरों की खरी-खोटी क्यों करें-सुने ?
खुद की करनी का खुद भोगता हूँ ।"

(15)
"मेरे खुदा तकदीर बना दे या फकीर बना दे ।
न हो सके तो दिल से हमे अमीर बना दे ।।"

(16)
"आज-कल चाय सी चाहत हो गई है,
 दिन निकलते ही  याद आती  है ।"

(17)
"अदब से रहता हूँ तो शहद सा लगता हूँ ।
सच बया करूँ तो निकम्मा लगता हूँ ।
यहाँ ज़िन्दगी ज़ीने सलीका क्या है ?
मैं सबके चेहरे पे नकाब देखता हूँ ।"   
    
(18)       
गौरैया,
पंछी छोटा ।
आंगन-आंगन फूदकता ।
घर आंगन में रहता
चहकता-महकता रखता ।
धूप-धूल में न्हाता,
बारिश की सूचना देता !
कस्बें, नगर, महानगर बढ़ते चले...
आंगन छोटे हो चले ।
पंछियों के बसेरें कम हो चले !
गौरैया, 
रहेगी कहाँ ? 
मनुष्य बढ़ा और मनुजता घटी ।
इसीलिए गौरैया मीटी । 

(19)
कौन है ?
अजनबी रहने वाली ।
तुम्हें पता नहीं है !
तुम कौन हो ?
कहाँ रहती हो ?
तुम्हें कई लोग पाना चाहते हैं !
तुम्हें ढूँढने के लिए दर-दर भटकते है,
आखिर तक थक जाते है !
तुम हो कि ईधर-उधर भागती फिरती हो ।
और तुम किसी को मिलती नहीं !
तुम्हें नहीं पता, तुम कौन हो ?
कहाँ रहती हो ?
मैं बता दूँ ?    
गलत मत समझना
नाम है, खुशी ।
ठिकाना, मानव हृदय के भीतर ।

(20)
मैं तुम्हें खत लिखता हूँ,
दो दिलों की बात लिखता हूँ । 
खत दोनों ओर खाली छोड़ता हूँ ,
दिल के भीतर ही भीतर लिखता हूँ ।
खत पढ़कर उत्तर चाहता हूँ ,
मैं अपना इन्तज़ार लिखता हूँ ।
उत्तर के बदले उत्तर लिखता हूँ, 
तुम से जुड़ने का पैगाम भेजता हूँ ।
प्यार में अनपढ़ हूँ, इसलिए तुम्हें
दिल की बात दिल से ही कहता हूँ ।

(21)
मैं अपनी ही उलझनों में उलझा हूं ।
लोग समझते रहे, मैं बड़ा आदमी हूं ।

(22) जन्म दिन पर कविता

आज तुम्हारे लिए खास लिखता हूँ ।
नयी खुशियों की बौछार लिखता हूँ ।

‘जन्म दिन’ की बधाई लिखता हूँ ।
तेरे लिए हजारों साल लिखता हूँ ।

दोस्त का नाम ‘........’ लिखता हूँ ।
इसमें भी दुवाएँ खास लिखता हूँ ।

देखों ! ‘कनु’ मेरा नाम रखता हूँ ।
दोस्ती का मीठा पैगाम भेजता हूँ ।


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* स्वरचित