१) "कुछ मिलना कुछ खोना भी होता है। हम जितना खोने को तैयार रहते हैं | उससे पता चलता है कि हम कितना पाना चाहते हैं।“ (पृष्ठ, २२)
२) “इस बकरी ने हमेशा दिया है। आपको आजादी दी, एकता दी, प्रेम दिया। आज भी बहुत कुछ देने को मुंतजिर है। पर आप लेना भूल गए है | क्योंकि, आप देना भूल गए हैं।" (पृष्ठ, २२)
३) “जिसकी आत्मा कमजोर हो, जिसे लालच ने, स्वार्थ ने घेर रखा हो, वह इस बकरी से क्या पाएगा? भगवान के पास खाली हाथ न जाने का मतलब यही है। जो फूल लेकर जाता है वह स्वर्ग लेकर लौटता है। इसीलिए श्रद्धा देना जानती है।"(पृष्ठ, २२)
४) "जो इतिहास को झुठलाता है वह समाजद्रोही है, देश द्रोही है। समय उसे कभी माफ नहीं करेगा। यह युग झूठे दातों का युग नही है। अधिकारों का दावा करने के पहले देखना होगा कि आपके कर्तव्यों की बुनियाद क्या है।" (पृष्ठ, २३)
५) "पढ़-लिख, अपने पैरों पर खड़ा होना सीख। किसी का मुँह न देख। अपने बच्चों को भी इस लायक बना कि वे अपने हाथ से कमा सकें। कम से कम में घर चला। फालतू खर्च मत कर। दूसरों की सेवा कर, सच बोल, त्याग कर।" (पृष्ठ,२३)
६) "गरीबी केवल मान की होती है, गरीबी केवल विचारों की होती है, दृष्टि की होती है।" (पृष्ठ, २४)
७) "आज बकरी गांधीजी की हुई, कल को गाय कृष्णजी की हो जाएगी, बैल बलरामजी के हो जायेंगे। ये सब ठग है ठग।" (पृष्ठ, ३)
८) "झूठ बोलने वाले से झूठ सहने वाला ज्यादा बड़ा पापी होता है।" (पृष्ठ, ३१)
९) "एक ही खेत में न सब धान एक-सा होत, न एक बाली में सब दाना एक-सा।" (पृष्ठ, ३३)
१०) "वोट, चुनाव सब मजाक हो गया है। सब झूठ पर चल रहा है। गरीबों की बकरी पकड़ कर उनसे पहले पैसा दुहा। अब वोट दुह रहे हैं, फिर पद और कुर्सी दुहेंगे।" (पृष्ठ, ४३)
११) "आप बकरी की पूजा इसलिए कराते हैं। ताकि सब बकरी बन जाएँ। मैं बकरी नहीं हूँ। किसी की बकरी नहीं बनूंगा।" (पृष्ठ, ४४)
१२) "यह धरती एक चारागाह है जिसकी घास जितना ही रौंदों उतना ही पनपती है। हमें यकीन है कि हम आप सब मिलकर इस हरियाली को खत्म नहीं होने देंगे।" (पृष्ठ, ५४)
१३) "बाढ में सारा गाँव बह जाने दिया पर आसरम को नहीं डूबने दिया। गाँव की जमीन खोद-खोदकर आसरम की जमीन ऊँची करते रहे। सूखा पड़ा, खुद भूखे रहे, घर का अनाज आसरम को दे आए। आसरम में दावतें उड़ती रहीं, खुद भूखें मरते रहे। फिर उन्हीं लुटेरों को कंधो पर बिठाकर देश की बागडोर थमा आए।" (पृष्ठ, ५१)