Tuesday, 1 October 2024

कुरुक्षेत्र काव्य के अति लघु-उत्तरीय

1. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर : रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 1908 में बिहार के मुंगेर, जिला के सिमरिया गाँव में हुआ था। (जिला-विभाजन के बाद वर्तमान में सिमरिया गाँव बेगूसराय जिला में है ।)


2. ‘दिनकर’ की पाँच काव्य-कृतियों के नाम लिखिए।

उत्तर : 1. रसवंती, 2. हुँकार, 3 रश्मिरथी, 4. परशुराम की प्रतीक्षा, 5. उर्वशी, 6. कुरुक्षेत्र।


3. ‘दिनकर’ किस धारा के कवि है ?

उत्तर : ‘दिनकर’ जी स्वच्छंदतावादी और राष्ट्रीय काव्यधारा के कवि है। 


4. हिन्दी साहित्य के इतिहास में ‘दिनकर’ किस काल के कवि है? 

उत्तर : रामधारीसिंह ‘दिनकर’ छायावादोत्तर काल के कवि है ।


5. दिनकर के ‘कुरुक्षेत्र’ पर कौन-कौन से चिन्तकों का प्रभाव है?

उत्तर : बर्नाल्ड रसेल, टाल्सटाय, लोकमान्य तिलक, गांधीजी आदि चिन्तकों और भारतीय संस्कृति का प्रभाव है।


6. ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य में मूल समस्या क्या है?  

उत्तर : ’कुस्क्षेत्र’ काव्य में मूल युद्ध की समस्या है।


7. माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘कुरुक्षेत्र’ को क्या कहा है? 

उत्तर : माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘कुरुक्षेत्र’ को “वर्तमान युग की गीता” कहा है।


8. ‘दिनकर’ की दृष्टि में अशांति और संघर्ष के कारण क्या हैं? 

उत्तर : ‘दिनकर’ की दृष्टि में अशांति और संघर्ष के कारण स्वार्थ, विषमता और युद्धलिप्सा हैं |


9. दिनकर ‘कुरुक्षेत्र’ विश्व में किसका दीप जलाने की बात करते हैं?

उत्तर : दिनकर ‘कुरुक्षेत्र’ विश्व में धर्म और दया का दीप जलाने की बात करते है।


10. ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य के अनुसार युद्ध कौन करना चाहता है ?

उत्तर : ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य के अनुसार पूरा समुदाय कभी युद्ध करना नहीं चाहता, किन्तु व्यक्ति विशेष, जो स्वार्थी और अहंकारी व्यक्ति युद्ध करना चाहते है। 


11. “युद्ध निन्दित और क्रूर कर्म है |” यह कथन किसका है ?

उत्तर : ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य में रामधारी सिंह दिनकर का कथन है। 


12. द्रौपदी के पाँच पुत्रों को किसने मार डाला था? 

उत्तर : ‘द्रौपदी’ के पाँच पुत्रों को अश्वत्थामा ने मार डाला था।


13. ‘उत्तरा’ के गर्भ पर किसने आग्नेयास्त्र चलाया था?

उत्तर : ‘उत्तरा’ के गर्भ पर अश्वत्थामा ने आग्नेयास्त्र चलाया था ।


14. ‘महाभारत’ में किसके गर्भ से जन्मा बालक मृत था?

उत्तर : महाभारत में ‘उत्तरा’ के गर्भ से जन्मा बालक (परीक्षित) मृत था | जिसे कृष्ण ने जीवित कर दिया था।


15. रामधारीसिंह ‘दिनकर’ के अनुसार रणभूमि में और इतिहास के अध्याय पर कौन रोता है?

उत्तर : रामधारीसिंह ‘दिनकर’ के अनुसार रणभूमि में और इतिहास के अध्याय पर सत्य और सत्य का पक्षधर रोता है।


16. रामधारीसिंह ‘दिनकर’ को किस काव्य के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था? 

उत्तर : रामधारीसिंह ‘दिनकर’ को 'उर्वशी' काव्य के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था ।


17. रामधारीसिंह ‘दिनकर’ विश्व में किसकी रश्मि खिलते देखना चाहते हैं?

उत्तर : रामधारीसिंह ‘दिनकर’ विश्व में समता की रश्मि खिलते देखना चाहते हैं।


18. कवि दिनकर ने मनुष्य को सियारों और कुत्तों से भी नीच क्यों कहा है?

उत्तर : कवि दिनकर ने मनुष्य को सियारों और कुत्तों से भी नीच कहा, क्योंकि मनुष्य ज्ञानी होकर भी अत्यंत क्रूर और गंदा काम करता है। 


19. दिनकर ने मनुष्य को किस चीज से सावधान रहने को कहा है?

उत्तर : दिनकर ने मनुष्य को विज्ञान रूपी तलवार से सावधान रहने को कहा है ।


20. महाभारत पर आधारित दिनकर की रचनाओं के नाम बताइए।

उत्तर : महाभारत पर आधारित दिनकर की दो रचना है- ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘रश्मिरथी’।


21. ‘कुरुक्षेत्र’ के छट्ठे सर्ग में किसका वर्णन है? 

उत्तर : मानवजीवन में विज्ञान की उपादेयता और उसके घातक चरित्र का वर्णन है ।


22. दिनकर की ‘विनयपत्रिका’ किसे कहा जाता है?

उत्तर : ‘हारे को हरिनाम' रचना को दिनकर की ‘विनयपत्रिका’ है |


23. भीम का वज्रांग और पविकाय नाम क्यों पड़ा? 

उत्तर : एक बार भीम जब नवजात शिशु थे तो माँ की गोद से चट्टान पर गिर गए थे। इससे भीम को कुछ नहीं हुआ, किन्तु वह चट्टान चूर-चूर हो गयी, इसी से भीम का नाम वज्रांग और पविकाय पड़ा।


24. महाभारत के किस पात्र के ललाट पर मणि था ?

उत्तर : महाभारत के अश्वत्थामा के ललाट पर मणि था ।


25. भीष्म के पास कौन जाकर कहता है-"हाय पितामह, महाभारत विफल हुआ।"

उत्तर : भीष्म के पास युधिष्ठिर जाकर कहता है-"हाय ! पितामह, महाभारत विफल हुआ।"।


26. महाभारत युद्ध के बाद किसका कथन है ?- "राजसुख लहू भरी कीचड़ का कमल है।" 

उत्तर : "राजसुख लहू भरी कीचड़ का कमल है।" युधिष्ठिर का कथन है।


27. भीष्म पितामह की दृष्टि में युद्ध का अंतिम परिणाम क्या है? 

उत्तर : भीष्म पितामह की दृष्टि में युद्ध का अन्तिम परिणाम ध्वंस है।


28. भीष्म पितामह युद्ध के उन्माद को कैसा मानते हैं?

उत्तर : भीष्म पितामह युद्ध के उन्माद संक्रामक मानते हैं।


29. भीष्म पितामह ने शूर-वीरों का श्रृंगार किसे कहा है?

उत्तर : भीष्म पितामह ने शूर-वीरों का श्रृंगार क्षमा करने की क्षमता को कहा है।


30. 'युवक' पत्रिका में दिनकर किस छद्म नाम से कविताएँ लिखते थे? 

उत्तर : 'युवक' पत्रिका में दिनकर ‘अमिताभ' और 'आफताब' नाम से कविताएँ लिखते थे ।


31. 'दिनकर' पर पहली समीक्षात्मक पुस्तक कौन-सी और किसकी है?

उत्तर : 'दिनकर' पर पहली समीक्षात्मक पुस्तक डॉ. कामेश्वर शर्मा द्वारा लिखित ‘दिग्भ्रमित राष्ट्रकवि’ है।


32. दिनकर ने मनुष्य को किसका आगार और किसका श्रृंगार कहा है? 

उत्तर : दिनकर ने मनुष्य को ज्ञान का आगार और सृष्टि का श्रृंगार कहा है।


33. दिनकर की ‘चूहे की दिल्ली यात्रा’ रचना किस साहित्य के अन्तर्गत आती है? 

उत्तर : दिनकर की ‘चूहे की दिल्ली यात्रा’ रचना ‘बाल-साहित्य’ के अन्तर्गत आती है ।


34. 'कुरुक्षेत्र' पर सन1949 में दिनकर को कौन सा पुरस्कार मिला था? 

उत्तर : 'कुरुक्षेत्र' पर सन1949 में दिनकर को ‘साहित्य संसद, प्रयाग’ पुरस्कार मिला था ।


35. दिनकर को "द्विवेदी पदक" पुरस्कार किस संस्था द्वारा मिला? 

उत्तर : दिनकर को ‘द्विवेदी पदक’ पुरस्कार ‘नागरी प्रचारिणी सभा, काशी’ द्वारा दो बार मिला था।


36. दिनकर काव्य की तीन विशेषताएँ लिखिए। 

उत्तर : दिनकर काव्य की तीन विशेषताएँ है, प्रेम, राष्ट्रीयता और क्रान्ति-चेतना।


37. ‘जनतंत्र का जन्म’ कविता किसकी है? 

उत्तर : ‘जनतंत्र का जन्म’ कविता रामधारी सिंह दिनकर की है ।


38. दिनकर की दृष्टि में मनुष्य का क्या आगे बढ़ता गया और क्या पीछे छुटता गया? 

उत्तर : दिनकर की दृष्टि में मनुष्य का मस्तिष्क आगे बढ़ता गया और हृदय पीछे छुटता गया।


39. ‘रामधारी सिंह दिनकर रचना-संचयन’ का सम्पादन किसने किया है? 

उत्तर : ‘रामधारी सिंह दिनकर रचना-संचयन’ का सम्पादन डॉ. कुमार विमल ने किया है ।


40. डॉ. कुमार विमल ने दिनकर की कविताओं से किस लोक का अंत माना है? 

उत्तर : डॉ. कुमार विमल ने दिनकर की कविताओं से ‘छायावाद के परीलोक’ का अंत माना है। 


41. भीष्म पितामह के अनुसार मनुष्य अपना सुख कैसे प्राप्त करता है?

उत्तर : भीष्म पितामह के अनुसार मनुष्य अपना सुख अपने भुजबल और उद्यम से प्राप्त करता है ।


42. ‘कुरुक्षेत्र' काव्य में कौन सा सर्ग 'क्षेपक' है? 

उत्तर : ‘कुरुक्षेत्र' काव्य का षष्ठम सर्ग सर्ग 'क्षेपक' है | 

कुरुक्षेत्र काव्य के आलोचनात्मक प्रश्न और टिप्पणी का प्रारूप

+आलोचनात्मक प्रश्न का प्रारूप+

1) रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के जीवनवृत्त, व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचय दीजिए। 


2) रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय दीजिए।


3) ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य की कथावस्तु (कथासार) संक्षेप में लिखिए।


4) ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य के भावपक्ष और कलापक्ष की समीक्षा कीजिए।


5) ‘कुरुक्षेत्र’ के काव्य-सौन्दर्य की चर्चा कीजिए।


6) ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य में निरूपित समस्याओं पर प्रकाश डालिए।


7) कुरुक्षेत्र काव्य की मूल समस्या युद्ध की है” इस कथन की समीक्षा कीजिए।


8) ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य में कवि के जीवन-दर्शन की समीक्षा कीजिए।


9) खण्डकाव्य के रूप में ‘कुरुक्षेत्र’ की समीक्षा कीजिए।


10) शास्त्रीय दृष्टि से कुरुक्षेत्र किस काव्यरूप के अन्तर्गत आता है, स्पष्ट कीजिए।


11) ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य के आधार पर भीष्म पितामह का चरित्र-चित्रण कीजिए।


12) ‘कुरक्षेत्र’ काव्य के आधार पर युधिष्ठिर की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।


13) ‘कुरुक्षेत्र’ का प्रतिपाद्य मानवतावाद है” इस कथन की समीक्षा कीजिए।


14) ‘कुरुक्षेत्र’ के प्रेरणास्रोत पर प्रकाश डालिए।


15) ‘कुरुक्षेत्र’ की भाषा-शैली की चर्चा कीजिए।


+टिप्पणी का प्रारूप+

1. दिनकर के 'कुरुक्षेत्र' काव्य के प्रेरणास्रोत


2. दिनकर के 'कुरुक्षेत्र' के पष्ठ सर्ग का कथ्य।


3. दिनकर के 'कुरुक्षेत्र' में युद्ध-दर्शन ।


4. दिनकर के 'कुरुक्षेत्र' के भीष्म पितामह।


5. कुरुक्षेत्र काव्य की भाषा-शैली।


6. समकालीन जीवन में 'कुरुक्षेत्र' की प्रासंगिकता।


7. विचार प्रधान काव्य के रूप में दिनकर का 'कुरुक्षेत्र'


8. 'कुरुक्षेत्र' काव्य में कर्म का संदेश।


9. 'कुरुक्षेत्र' काव्य में मानवतावाद।


10. 'कुरुक्षेत्र' काव्य के युधिष्ठिर।


11. कुरुक्षेत्र खण्ड काव्य का शीर्षक


कुरुक्षेत्र काव्य से सन्दर्भ पंक्तियाँ

कुरुक्षेत्र काव्य की संदर्भ पंक्तियाँ
प्रथम सर्ग

(1) "वह कौन रोता है वहाँ-

इतिहास के अध्याय पर,

जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहू का मोल है

प्रत्यय किसी बूढ़े, कुटिल नीतिज्ञ के व्यवहार का;

 जिसका हृदय उत्तना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है;

जो आप तो लड़ता नहीं,

कटवा किशोरों को मगर

आश्वस्त होकर सोचता,

शोणित बहा, लेकिन गयी बच लाज सारे देश की ?”

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-5)


(2) “विश्व मानव के हृदय निर्देष में

मूल हो सकता नहीं दोहाग्नि का;

चाहता लड़ना नहीं समुदाय है,

फैलती लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से।“

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-06)


(3) "लड़ना उसे पड़ता मगर।

औ' जीतने के बाद भी,

रणभूमि में वह देखता है सत्य को रोता हुआ,

वह सत्य, है जो रो रहा इतिहास के अध्याय में

विजयी पुरुष के नाम पर कीचड़ नयन का डालता।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-06)


(4) लेकिन, मनुज के प्राण शायद, पत्थरों के हैं बने।

इस दंश का दुख भूलकर

होता समर आरुढ़ फिर;

फिर मारता, मरता,

विजय पाकर बहाता अश्रु है।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-07)


द्वितीय सर्ग

(5) "बद्ध, विदलित और साधनहीन को

है उचित अवलम्ब अपनी राह का,

गिड़गिडाकर किन्तु, मांगे भीख क्यों

वह पुरुप जिसकी भुजा में शक्ति हो।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-19)


(6) "व्यक्ति का है धर्म, तप, करुणा, क्षमा,

व्यक्ति की शोभा विनय भी, त्याग भी,

किन्तु, उठता प्रश्न जब समुदाय का, भूलना पड़ता हमें तप त्याग को।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-19)


(7) "कौन केवल आत्मबल से जूझकर

जीत सकता देह का व्यापार है?

पाशविकता खड़ग जब लेती उठा,

आत्मवल का एक वश चलता नहीं।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-21)


तृतीय सर्ग

(8) "शान्ति नहीं तबतक, जबतक

सुख-भाग न नर का सम हो,

नहीं किसी को बहुत अधिक हो,

नहीं किसी को कम हो।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-25)


(9) "हिंसा का आघात तपस्या ने

कब, कहाँ सहा है?

देवों का दल सदा दानवों

से हारता रहा है।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-27)


(10) "क्षमा सोभती उस भुजंग को,

जिसके पास गरल रल हो।

उसको क्या, जो दन्तहीन, विषरहित,

विनीत, सरल हो।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-28)


(11) "भूल रहे हो धर्मराज, तुम,

अभी हिंस्र भूतल है,

खड़ा चतुर्दिक अहंकार है,

खड़ा चतुर्दिक छल है।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-32)


(12) "जियें मनुज किस भाँति परस्पर

होकर भाई-भाई,

कैसे रुके प्रदाह क्रोध का,

कैसे रुके लड़ाई।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-32)


चतुर्थ सर्ग

(13) "मगर, यह शान्तिप्रियता रोकती केवल मनुज को,

नहीं वह रोक पाती है दुराचारी दनुज को।

दनुज क्या शिष्ट मानव को कभी पहचानता है?

विनय को नीति कायर की सदा वह मानता है।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-38)


(14) "ज्यों-ज्यों साड़ी विवश द्रौपदी

की खिंचती जाती थी,

त्यों-त्यों वह आवृत,

दुरग्नि यह नग्न हुई जाती थी।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-45)


(15) "धर्मराज, अपने कोमल

भावों की कर अवहेला।

लगता है, मैंने भी जग को

रण की ओर ढकेला।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-56)


पंचम सर्ग

(16) "मनु का पुत्र बने पशु भोजन! मानव का यह अंत!

भरत-भूमि के नर-वीरों की यह दुर्गति, हा हन्त!"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-66)


(17) "विभव, तेज, सौन्दर्य, गये सब दुर्योधन के साथ,

एक शुष्क कंकाल लगा है मुझ पापी के हाथ।"

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-67)


षष्ठ सर्ग

(18) "धर्म का दीपक दया का दीप,

कब जलेगा, कब जलेगा, विश्व में भगवान?

कब सुकोमल ज्योति से अभिसिक्त

हो, सरस होंगे जली-सूखी रसा के प्राण ?”

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृ०-77)


(19) “किन्तु, है बढ़ता गया मस्तिष्क ही निःशेष,

छूटकर पीछे गया है रह हृदय का देश,

नर मनाता नित्य नूतन बुद्धि का त्योहार,

प्राण में करते दुखी हो देवता चीत्कार |”

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-78)


(20) “सावधान मनुष्य, यदि विज्ञान है तलवार,

तो इसे दे फेंक तज कर मोह, स्मृति के पार।

हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी नादान,

फूल-काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान।

खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,

काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार।“

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-83)


सप्तम सर्ग

(21) “सबको मुक्त प्रकाश चाहिए,

सबको मुक्त समीरण,

बाधा-रहित विकास, मुक्त

आशंकाओं से जीवन।“

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-9०)


(22) “ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में

मनुज नहीं लाया है,

अपना सुख उसने

अपने भुजबल से ही पाया है।“

(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-93)

Saturday, 4 May 2024

एक और द्रोणाचार्य नाटक के नाट्यांश

१) “अब किस-किस से डरूं, लीला? कालेज को दुकान की तरह चलाने वाले उस प्रेसिडेंट से (विराम) अंगोठा-छाप कमेटी मेम्बरों से चुगली खाने वाले अपने सहयोगियों से (विराम) उस लिजलिजे बेहूदे प्रिंसिपल से विद्यार्थियों से? क्या पूरी उम्र डरते ही रहना होगा ?” (पृ. १६)


२) “इसीलिए तो कहता हूं नौकरी करनी है तो कान बन्द कर लो। आंखे मूंद लो। मुंह खुला रखो-बोलने के लिए नहीं, रोटी खाने के लिए।“ (पृ. १९)


३) “पूरे तीस साल। चुंगी नाके के मुहर्रिर से बढता-बढता प्रिंसिपल हो गया। लडता तो क्या बनता ? लडो मत-झुको, सोचो मत-मानो।“ (पृ. २०)


४) “जो व्यवस्था तोडी नहीं जा सकती उसमें विश्वास करके ही जिया जा सकता है।“ (पृ. ५१)


५) “एकलव्य का अंगूठा बने रहने का अर्थ समझते हो ? धनर्विधा पर उसका अधिकार हो जाएगा। धीरे-धीरे उसकी जाति का अधिकार हो जाएगा। (विराम) शक्तिशाली होने के बाद ये क्षत्रियों से स्पर्धा करेंगे और परिणाम होगा वर्णाश्रम धर्म पर संकट।“ (पृ. ५३)


६) “इतिहास तो फिर भी कल हंसेगा आप पर। जब भी प्रतिभा को जाति और व्यवस्था के नाम पर कुचला जाएगा तो लोग आपको ही याद करेंगे। इतिहास आपको कभी क्षमा नहीं करेगा।“ (पृ. ५४)


७) “उनका कहना है, ऐसे मामलों में लोगों की कल्पना-शक्ति बडी उपजाऊ होती है। बलात्कार की कोशिश बढती-बढ़ती गर्भपात तक जा पहुंचेगी।“ (पृ. ६८) 


८) “अपने क्षुद्र होने का आत्मज्ञान। सडे हुए आटे में विलबिलाने वाला कीडा होने का आत्मज्ञान | प्रेसिडेंट के फोन ने मुझे अपनी तस्वीर दिखा दी | समझौते के फंदे पर अपने-आपको पचीसो बार लटकाने मैं... दूसरों की नकाब उतारने की कोशिश में खुद नंगा हो जाने वाला मैं...मुझ पर थूको |” (पृ. ७४)


९) “मेरी चमडी अब गैंडे की तरह मोटी हो गयी है। मैं जानता हूँ कि सडे-गले मकान का मलवा गिरने वाला है। फिर भी गांखे मूंदकर अपनी रोटी खा रहा हूं।“ (पृ. ७५)


१०) “उस कमीने आदमी ने दुकानों की तरह बीस शिक्षण संस्थाएं खोल रखी हैं। साथ ही लेन-देन का व्यापार करता है।“ (पृ. ७५)


११) “अपना नपुंसक आचरण ढंकने के लिए मुझ पर आरोप लगाते हुए तुम्हें थोडी भी लज्जा नहीं आती ? मैं पूछती हूँ तुम्हारा आचार्यत्व कहाँ मर गया था ? क्या वह केवल एकलव्य का अंगूठा कटवाने या सूतपुत्र कहकर कर्ण की अवहेलना करने तक सीमित था ?” (पृ. ८४)


१२) “उस दिन भूख मेरे सिद्धांत से बड़ी हो गई थी। प्रतिशोध ने विवेक को जीता। उस दिन तुमने मुझे भडकाया। उस दिन तुमने मुझे राजकीय अन्न की दासता में धकेला।“ (पृ. ८६)


१३) मां, उस दिन तुमने आटे के घोल के बदले विष क्यों नहीं पिलाया ? मुझे समझौते की सन्तान क्यों बनाया तुमने ? पिताजी को ऋषि-परम्परा से गिराकर राजपुत्रों की दासता में क्यों धकेला तुमने ?” (पृ. ८६)


१४) “उस दासता ने मुझे सुरक्षा दी। झूठी प्रतिष्ठा दी। सुविधाओं ने मेरी धार भोंथरी कर दी। मेरे भीतर के उस आदमी को जगाया, जो बदला लेता हैं, जो अपने अहंकार को संसार से बडा मानता हैं।“ (पृ. ८७)


१५) “यदि व्यवस्था तुम्हें अपने इसारे पर भौंकने वाला कुत्ता बनाना चाहती हैं तो भोंको, कुत्ते के पिल्लों को जन्म दो। चंदू और युधिष्ठिर मत पैदा करो। राजकुमार और दुर्योधन पैदा करो।“ (पृ. १०७)


१६) “तू द्रोणाचार्य हैं। व्यवस्था और सत्ता के कीडों से पिटा हुआ द्रोणाचार्य-इतिहास की धार में लकडी की ठूंठ की तरह बहता हुआ, वर्तमान के कगार से लगा हुआ, सडा-गला द्रोणाचार्य। व्यवस्था के लाइटहाउस से अपनी दिशा मांगने वाले टूटे जहाज-सा दोणाचार्य।“ (पृ. १०७)

हिन्दी कहावतें तथा लोकोक्तियाँ

कहावत और लोकोक्ति एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। "कहावत अथवा लोकोक्ति पारिभाषिक रूप से ऐसा मुहावरेदार वाक्य होता हैं, जिसे व्यक्ति अपने कथन की पुष्टि में प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत करता है ।" कहावत एक वाक्य है जिसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से होता है । इसका प्रयोग किसी घटना विशेष पर किया जाता है । कहावत प्रायः किसी कथा या चिर सत्य पर आधारित होती है । नीचे कुछ कहावतों के अर्थ दिए गये है ।


१. अंधे पीसे कुत्ते खायें - ठीक न्याय न होना | 


२. ऊँची दुकान फीका पकवान - केवल बाहरी आडम्बर होना ।


३. खोदा पहाड़ निकली चुहिया - अधिक परिश्रम करने पर भी लाभ थोड़ा ही मिलना ।


४. चार दिन की चांदनी, फिर अँधेरी रात - थोड़े दिन का सुख  ।


५. जिसकी लाठी उसकी भैंस - बलवान का ही अधिकार होता है ।


६. बगल में लड़का नगर में टेर - नजदीक मिलने वाली वस्तु के लिए व्यर्थ ही दूर तक परेशान होना ।


७. अधजल गगरी छलकत जाय थोड़ा धन या विद्या चाकर घमंड करना ।


८. नाच न आवै आँगन टेढ़ा - अपनी गलती का दोष किसी और पर डालना ।


९. दिया तले अंधेरा - पास रखी वस्तुओं में दोष दिखाई नहीं देते ।


१०. मुँह में राम बगल में छुरी - ऊपर से सीधा सच्चा दिखाई पड़े, किन्तु हृदय में कपट भरा हो ।


११. आप भला तो जग भला - भले के लिए सब भले होते हैं ।


१२. घर का भेदी लंका ढाए - आपस की फूट से दूसरों का भला होता है ।


१३. घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध - घर के बुद्धिमान व्यक्ति का सम्मान न करके दूसरों को सम्मान देना ।

१४. छोटे मुँह बड़ी बात - अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना ।


१५. जल में रहकर मगर से बैर - जिसके अधीन रहे, उससे बैर रखना ठीक नहीं |


१६. बद अच्छा बदनाम बुरा - बुरा होना उतना नहीं खटकता, जितना झूठा कलंक या दोष लगना ।


१७. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी - झगड़े की जड़ को ही नष्ट कर देना ।


१८. धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का - दोनों तरफ की साधने वाले को किसी ओर सफलता नहीं मिलती ।


१९. हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दिवान - किसी अच्छे व्यक्ति के स्थान पर दुर्जन का अधिकार होना |


२०. अन्धों में काना राजा - मूर्खों में थोड़ा पढ़ा-लिखा पूज्य होता है ।


२१. झूठ के पाँव नहीं होते - अपराधी में दृढ़ता नहीं होती ।


२२. दमड़ी की हँडिया गई, कुत्ते की जाति पहिचानी - जब थोड़ी वस्तु के लिए बेईमानी की जाय ।


२३. देशी मुर्गा पंजाबी बोली - मातृभाषा की उपेक्षा कर विदेशी बोली बोलना ।



२४. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है - संगति का अधिक प्रभाव पड़ता है ।


२५. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता - एक अकेला व्यक्ति कोई बड़ा काम नहीं कर सकता ।


२६. आँखों का अन्धा नाम नैन सुख - नाम और गुण में अन्तर होना ।


२७. आम के आम गुठलियों के दाम - सब प्रकार से लाभ होना ।


३०. अधजल गगरी छलकत जाय - ओछा आदमी दिखावा अधिक करता है ।


३१. दूध का जला छाछ फूंक-फूंक कर पीता है - हानि उठाने के बाद आदमी को समझ आती है।


३२. नाम बड़े दर्शन छोटे - झूठा वश


३३. भागते भूत की लंगोटी भली - जहाँ कुछ न मिलना हो वहाँ थोड़ा लाभ ही बहुत ।


३४. आसमान से गिरा खजूर पर अटका - एक मुसीबत से छूटे तो दूसरी में फँस गये ।


३५. नौ नगद न तेरह उधार - नगद का थोड़ा अच्छा, उधार का अधिक अच्छा नहीं |


३६. सीधी उंगलियों से भी नहीं निकलता - सरलता से काम पूरा नहीं होता ।


३७. मान न मान में तेरा मेहमान - जबरदस्ती किसी से रिश्ता जोड़ना ।


३८. पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती - सबलोग एक समान नहीं होते। 


३९. साँप मरे न लाठी टूटे - बिना हानि हुए काम हो जाना ।


४०. राम नाम जपना, पराया माल अपना - कपटपूर्ण व्यवहार करना ।


४१. सदा नाव कागज की चलती नहीं - धोखा एक ही बार दिया जा सकता है।


४२. खग जाने खग ही की भाषा - समानधर्मी लोग एक दूसरे की बात जल्दी समझ जाते हैं।


४३. आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास - भले काम के लिए जाकर बुराई में फँस जाना ।


४४. मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते - मुफ्त मिली हुई वस्तु पर टीका टिप्पणी करना व्यर्थ है ।


४५. दूर के ढोल सुहावने - दूर से सभी चीजें अच्छी लगती ।


४६. नौ दिन चले अढ़ाई कोस - काम कम, समय अधिक लगना ।


४७. मानो तो देव नहीं तो पत्थर - विश्वास से ही तो फल मिलता है।


४८. हथेली पर सरसों नहीं जमती - कोई काम तत्काल नहीं होता ।


४९. दापा भला न भैया, सबसे बड़ा रुपैया - संसार में धन ही सबसे बड़ी वस्तु है ।


५०. नीम न मीठी होय भले सींचो गुड़ घी से - दुष्ट स्वभाव नहीं बदलता ।

Friday, 3 May 2024

ठिठुरता हुआ गणतंत्र के गद्यांश

१) "हम हर बार सूर्य को बादलों से बाहर निकालने की कोशिश करते थे, पर हर बार सिंडिकेटवाले अड़ंगा डाल देते थे। अब हम वादा करते हैं कि अगले गणतंत्र के दिवस पर सूर्य को निकाल कर बताएंगे।" (पृ. १-२)


२) "रूस का पिछलग्गू बनने का और क्या नतीजा होगा।" (पृ. २)


३) “स्वतंत्रता दिवस भी तो भरी बरसात में होता है। अंग्रेज़ बहुत चालाक हैं। भरी बरसात में स्वतंत्र कर के चले गये। उस कपटी प्रेमी की तरह भागो, जो प्रेमिका का छाता भी ले जाये। वह बेचारी भीगती बस स्टैंड जाती है, तो उसे प्रेमी की नहीं, छाता-चोर की याद सताती है।" (पृ. २)


४) "लो, ये एक और वी. आई. पी. आ रहे हैं। अब इनका इंतज़ाम करो। नाक में दम है।" (पृ. ४)


५) "संस्कृति की हड्डी को अब कुत्ते चबाते घूम रहे है। संस्कृति की हड्डी कुत्ते का जबड़ा फोड़ कर उसके खून को उसी को स्वाद से चटवा रही है। हाँ, हम विश्व बंधुत्व भी मानते हैं, यानी अपने भाई के सिवा बाकी दुनिया भर को भाई मानते हैं।" (पृ. ८)


६) "अहा, जबलपुर पुण्यभूमि है। यहां की मिट्टी में इतिहास बिखरा पड़ा है। यहां की धूल चंदन है। मैं उसे मस्तक से लगाता हूं।" (पृ. ९)


७) "निंदा में विटामिन और प्रोटीन होते हैं। निंदा खून साफ करती है, पाचनक्रिया ठीक करती है, बल और स्फूर्ति देती है। निंदा से मांसपेशियां पुष्ट होती है।" (पृ. १०)


८) "अंग्रेजी भाषा का कमाल देखिए। थोड़ी ही पढ़ी है, मगर खाने की चीज़ को खूबसूरत कह रहे हैं। जो भी खूबसूरत दिखा, उसे खा गये। यह भाषा रूप में भी स्वाद देखती है। रुप देख कर उल्लास नहीं होता, जीभ में पानी आने लगता है। ऐसी भाषा साम्राज्यवाद के बड़े काम की होती है। कहा, 'इंडिया इज़ ए ब्यूटिफुल कंट्री।' " (पृ. १२)


९) " 'नुकसान' की ज़िम्मेदार कंपनी की नहीं होगी। मगर बात शराब की भी नहीं, उस पवित्र आदमी की हो रही थी, जो मेरे सामने बैठा किसी के दुराचार पर चिंतित था।" (पृ. १२)


१०) "ज़्यादा झंझट में मत पड़ो। मामला सरल कर लो। सारी नैतिकता को एक छोटे से दायरे में समेट लो।" (पृ. १३)


११) "बेटा, तंत्र कोई भी हो, अपनी पीठ पर हमेशा वेसलीन चुपड़े रहो। घूंसा तुम्हारी पीठ से फिसल कर किसी सूखी पीठ पर पड़ जाएगा।" (पृ. २०)


१२) "बेटा, बेइज़्ज़ती को खोल दो तो वह इज़्ज़त हो जाती है। जूते पड़ गये हैं, इस बात को छिपाओगे तो बदनामी फैलेगी। खुद ही कहते फिरोगे, तो बदनामी करने वालों की सेवा की ज़रुरत नहीं पड़ेगी और इज़्ज़त रह जाएगी।" (पृ. २१)


१३) "हमने तुम्हें नहीं पुकारा। हमें तुम्हारे द्वारा अपना उद्धार नहीं करवाना। तुम क्यों हमारा भला करने पर उतारु हो?" (पृ. २४)


१४) "भगवान, क्या गोरक्षा आंदोलन का नेतृत्व करने पधारे है ? चुनाव आ रहा है, तो गोरक्षा होगी ही। आप तो गोरक्षा आंदोलन के जरिये पालिटिक्स में घुस ही जाएंगे।" (पृ. २५)


१५) "भगवान, अगर सुदर्शन चक्र का लाइसेंस मिल जाये तो भी किसी को मारने पर दफा ३०२ में फंस जाएंगे।" (पृ. २६)


१६) "धर्म की संस्थापना तो सांप्रदायिक दंगो से हो रही है। आप एक हड्डी का टुकड़ा उठा कर मंदिर में डाल दीजिए और हिंदु धर्म के नाम पर दंगा करवा लीजिए। धर्म का उपयोग तो अब दंगा करने के लिए ही रह गया है।" (पृ. २६)

Saturday, 27 April 2024

एक और दोणाचार्य नाटक की प्रश्न सूचि

(अ) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक के आलोचनात्मक प्रश्न

 

१) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक आज के बुद्धिजिवियों पर व्यंग्य करता है-चर्चा कीजिए |


२) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक आधुनिक सामाजिक यथार्थवादी नाटक है-चर्चा कीजिए।


३) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक शिक्षण में व्याप्त भष्ट्राचार का नाटक है-चर्चा कीजिए।


४) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक का ऐतिहासिक संदर्भ प्रस्तुत करते हुए कथानक के परिप्रेक्ष में उसकी प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।


५) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक के आधार पर कृपि का चरित्र चित्रण कीजिए। 


६ नाटक के तत्वों के आधार पर ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक की समीक्षा कीजिए।


७) कल का द्रोणाचार्य आज का अरविंद है-चर्चा कीजिए।


८) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक में वर्णित समस्याओं का चित्रण कीजिए।


९) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक के कथानक की विशेषताएँ निरूपित कीजिए। 


१०) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक आधार पर अरविंद का चरित्र चित्रण कीजिए।


(ब) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक के लघुत्तरी प्रश्न


१. 'एक और द्रोणाचार्य' नाटक का शीर्षक


२. 'एक और द्रोणाचार्य' नाटक की समस्याएँ


३. 'एक और द्रोणाचार्य' नाटक का नामकरण


४. 'एक और दोणाचार्य' नाटक का उद्देश्य 


५. 'एक और द्रोणाचार्य' नाटक का अरविंद


६. 'एक और द्रोणाचार्य' नाटक की कृपि


७. 'एक और द्रोणाचार्य' नाटक की प्रतीकात्मकता


८. 'एक और द्रोणाचार्य' नाटक का संदेश


९. 'एक और द्रोणाचार्य' नाटक की भाषा-शैली


१०. 'एक और द्रोणाचार्य' नाटक की रंगमंचीयता


११. शंकर शेष की नाट्य साधना

एक और दोणाचार्य नाटक के अतिलघुत्तरी प्रश्नोत्तर

१) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक के नाटककार कौन है?

    शंकर शेष 


२) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक के प्रमुख पात्र बताइए?

    अरविंद, लीला, यदु, विमलेंद्, चन्दु, अनुराधा, प्रिन्सीपल, राजकुमार, द्रोणाचार्य, कृपि, अश्वत्थामा आदि है।


३) कालेज में नकल करते हुए प्रेसिडेंट के लडके को किसने पकडा था?

    कॉलेज में नकल करते हुए प्रेसिडेंट के लडके को प्रो.अरविंद ने पकड़ा था।


४) अरविंद के मित्र का क्या नाम है?

    अरविंद के मित्र का नाम चन्दु है। 


५) राजकु‌मार के खिलाज की गई रिपोर्ट वापस लेनेके लिए अरविंद को समजाने कौन कौन आता है?

   अरविंद को समझाने चन्दु, प्रिन्सीपल, प्रसिडेंट, विमलेंदु आदि आते है।


६) अरविंद की पत्नी का क्या नाम है? 

    अरविंद की पत्नी का नाम लीला है। 


७) विमलेदु कौन है?

    विमलेंदु प्रेत है और वह अरविंद का मित्र है। 


८) विमलेंदु ने कौन-सा नाटक खेला था?

   विमलेंदु ने एक और द्रोणाचार्य नाटक खेला था। 


९) प्रिसिपल अरविंद के बारे में लीला को क्या समजाते है? 

    प्रिंसिपल अरविंद के बारे में लीला को समझाते है कि नौकरी करनी है तो कान बंध करलो, आँखे मुंदलो, और मुँह खुला रखो बोलने के लिए नहीं सिर्फ खाने के लिए।


१०) राजकु‌मार कौन है?

      राजकुमार प्रेसिडेंट का बेटा है।


११) राजकुमार के खिलाफ की गइ रिपोर्ट वापस लेने के लिए अरविंद को प्रेसिडेंट क्या धमकी देता है?

      प्रेसिडेंट कहता है कि अगर आपने रिपोर्ट वापस नहीं ली नो मैं आप पर लगादूँगा कि आप मेरे खिलाफ लडको को भडका रहे है, बदमास लडको की नेतागिरी कर रहे है और शहर की शांति पर खतरा पहुंचा रहे हैं।


१२) विमलेंदु की मौत कैसे हुई थी? 

विमलेंदु को राजकुमार और उसके साथियों ने मिलकर उसे बीच चौराहे पर मार डाला था।


१३) द्रोणाचार्य की पत्नी का क्या नाम था? 

     द्रोणाचार्य की पत्नी का नाम कृपि था।


१४) अश्वत्थामा के माता-पिता कौन थे? 

      अश्वत्थामा के माता कृपि तथा पिता द्रोणाचार्य थे।


१५) कृपि अश्वत्थामा को गोरस की जगह क्या पिलाती है? 

      कृपि अश्वत्थामा को गोरस की जगह आटे का घोल पिलाती है।


१६) द्रोणाचार्य एकलव्य से गुरु-दक्षिणा में क्या मांगते है? 

      द्रोणाचार्य एकलव्य से गुर-दक्षिणा में उसके हाथ का अंगूठा मांगते है।


१७) अनुराधा पर किसने बलात्कार किया था?

       अनुराधा पर राजकुमार ने बलात्कार किया था।


१८) अनुराधा के प्रेमि का नाम क्या था? 

      अनुराधा के प्रेमि का नाम चन्दु था।


१९) अनुराधा ने आत्महत्या क्यों की? 

       क्योंकि अनुराधा राजकुमार के खिलाफ रिपोर्ट करना चाहती थी।


२०) प्रेसिडेंट की हत्या के जुर्म में किसे जेल भेजा गया? 

      प्रेसिडेंट की हत्या के जुर्म में अरविंद को जेल भेजा गया।


२१) चंदु ने अदालत में क्या गवाही दी ? 

      जब चंदु से पूछा गया, क्या प्रेसिडेंट को अरविंद ने पहाड़ी की ओर से धक्का दीया था या नहीं? तब वह कहता है, हो सकता है !


२२) द्रोणाचार्य ने युधिष्टिर से क्या पुछा था? 

     द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से पुछा कि गुर-दक्षिणा के रूप में मुझे बताओं कि कौन मारा गया ? अश्वत्थामा मान का हाथी या मेरा पुत्र ?


२३) दाणाचार्य के प्रश्न का युधिष्ठिर ने क्या उत्तर दीया ? 

      युधिष्ठिर ने कहा अश्वत्थामा अवश्य मारा गया | वह नर था या...हाथी !


२४) अरविंद का पात्र किस पौराणिक पात्र से मिलता है ? 

      अरविंद का पात्र पौराणिक पात्र दोणाचार्य से मिलता है।


२५) ‘एक और दोणाचार्य’ नाटक का उद्देश्य क्या है?

      आधुनिक युग के शिक्षित वर्ग की पीड़ा को नाटक के माध्यम से व्यक्त करना।


२६) अरविंद किस पौराणिक पात्र का प्रतीक है?

       अरविंद द्रोणाचार्य नामक पौराणिक पात्र का प्रतीक है।


२७) लीला किसका प्रतीक है?

       लीला द्रोणाचार्य की पत्नी कृपि का प्रतीक है। 


२८) चन्दु किसका प्रतीक है?

      चन्दु युधिष्ठिर का प्रतीक है। 


२९) अनुराधा किसका प्रतीक है?

       अनुराधा द्रौपदी का प्रतीक है।


३०) राजकुमार किसका प्रतीक है

      राजकुमार दुर्योधन का प्रतीक है।