Saturday, 4 May 2024

हिन्दी कहावतें तथा लोकोक्तियाँ

कहावत और लोकोक्ति एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। "कहावत अथवा लोकोक्ति पारिभाषिक रूप से ऐसा मुहावरेदार वाक्य होता हैं, जिसे व्यक्ति अपने कथन की पुष्टि में प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत करता है ।" कहावत एक वाक्य है जिसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से होता है । इसका प्रयोग किसी घटना विशेष पर किया जाता है । कहावत प्रायः किसी कथा या चिर सत्य पर आधारित होती है । नीचे कुछ कहावतों के अर्थ दिए गये है ।


१. अंधे पीसे कुत्ते खायें - ठीक न्याय न होना | 


२. ऊँची दुकान फीका पकवान - केवल बाहरी आडम्बर होना ।


३. खोदा पहाड़ निकली चुहिया - अधिक परिश्रम करने पर भी लाभ थोड़ा ही मिलना ।


४. चार दिन की चांदनी, फिर अँधेरी रात - थोड़े दिन का सुख  ।


५. जिसकी लाठी उसकी भैंस - बलवान का ही अधिकार होता है ।


६. बगल में लड़का नगर में टेर - नजदीक मिलने वाली वस्तु के लिए व्यर्थ ही दूर तक परेशान होना ।


७. अधजल गगरी छलकत जाय थोड़ा धन या विद्या चाकर घमंड करना ।


८. नाच न आवै आँगन टेढ़ा - अपनी गलती का दोष किसी और पर डालना ।


९. दिया तले अंधेरा - पास रखी वस्तुओं में दोष दिखाई नहीं देते ।


१०. मुँह में राम बगल में छुरी - ऊपर से सीधा सच्चा दिखाई पड़े, किन्तु हृदय में कपट भरा हो ।


११. आप भला तो जग भला - भले के लिए सब भले होते हैं ।


१२. घर का भेदी लंका ढाए - आपस की फूट से दूसरों का भला होता है ।


१३. घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध - घर के बुद्धिमान व्यक्ति का सम्मान न करके दूसरों को सम्मान देना ।

१४. छोटे मुँह बड़ी बात - अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना ।


१५. जल में रहकर मगर से बैर - जिसके अधीन रहे, उससे बैर रखना ठीक नहीं |


१६. बद अच्छा बदनाम बुरा - बुरा होना उतना नहीं खटकता, जितना झूठा कलंक या दोष लगना ।


१७. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी - झगड़े की जड़ को ही नष्ट कर देना ।


१८. धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का - दोनों तरफ की साधने वाले को किसी ओर सफलता नहीं मिलती ।


१९. हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दिवान - किसी अच्छे व्यक्ति के स्थान पर दुर्जन का अधिकार होना |


२०. अन्धों में काना राजा - मूर्खों में थोड़ा पढ़ा-लिखा पूज्य होता है ।


२१. झूठ के पाँव नहीं होते - अपराधी में दृढ़ता नहीं होती ।


२२. दमड़ी की हँडिया गई, कुत्ते की जाति पहिचानी - जब थोड़ी वस्तु के लिए बेईमानी की जाय ।


२३. देशी मुर्गा पंजाबी बोली - मातृभाषा की उपेक्षा कर विदेशी बोली बोलना ।



२४. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है - संगति का अधिक प्रभाव पड़ता है ।


२५. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता - एक अकेला व्यक्ति कोई बड़ा काम नहीं कर सकता ।


२६. आँखों का अन्धा नाम नैन सुख - नाम और गुण में अन्तर होना ।


२७. आम के आम गुठलियों के दाम - सब प्रकार से लाभ होना ।


३०. अधजल गगरी छलकत जाय - ओछा आदमी दिखावा अधिक करता है ।


३१. दूध का जला छाछ फूंक-फूंक कर पीता है - हानि उठाने के बाद आदमी को समझ आती है।


३२. नाम बड़े दर्शन छोटे - झूठा वश


३३. भागते भूत की लंगोटी भली - जहाँ कुछ न मिलना हो वहाँ थोड़ा लाभ ही बहुत ।


३४. आसमान से गिरा खजूर पर अटका - एक मुसीबत से छूटे तो दूसरी में फँस गये ।


३५. नौ नगद न तेरह उधार - नगद का थोड़ा अच्छा, उधार का अधिक अच्छा नहीं |


३६. सीधी उंगलियों से भी नहीं निकलता - सरलता से काम पूरा नहीं होता ।


३७. मान न मान में तेरा मेहमान - जबरदस्ती किसी से रिश्ता जोड़ना ।


३८. पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती - सबलोग एक समान नहीं होते। 


३९. साँप मरे न लाठी टूटे - बिना हानि हुए काम हो जाना ।


४०. राम नाम जपना, पराया माल अपना - कपटपूर्ण व्यवहार करना ।


४१. सदा नाव कागज की चलती नहीं - धोखा एक ही बार दिया जा सकता है।


४२. खग जाने खग ही की भाषा - समानधर्मी लोग एक दूसरे की बात जल्दी समझ जाते हैं।


४३. आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास - भले काम के लिए जाकर बुराई में फँस जाना ।


४४. मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते - मुफ्त मिली हुई वस्तु पर टीका टिप्पणी करना व्यर्थ है ।


४५. दूर के ढोल सुहावने - दूर से सभी चीजें अच्छी लगती ।


४६. नौ दिन चले अढ़ाई कोस - काम कम, समय अधिक लगना ।


४७. मानो तो देव नहीं तो पत्थर - विश्वास से ही तो फल मिलता है।


४८. हथेली पर सरसों नहीं जमती - कोई काम तत्काल नहीं होता ।


४९. दापा भला न भैया, सबसे बड़ा रुपैया - संसार में धन ही सबसे बड़ी वस्तु है ।


५०. नीम न मीठी होय भले सींचो गुड़ घी से - दुष्ट स्वभाव नहीं बदलता ।