१) "हम हर बार सूर्य को बादलों से बाहर निकालने की कोशिश करते थे, पर हर बार सिंडिकेटवाले अड़ंगा डाल देते थे। अब हम वादा करते हैं कि अगले गणतंत्र के दिवस पर सूर्य को निकाल कर बताएंगे।" (पृ. १-२)
२) "रूस का पिछलग्गू बनने का और क्या नतीजा होगा।" (पृ. २)
३) “स्वतंत्रता दिवस भी तो भरी बरसात में होता है। अंग्रेज़ बहुत चालाक हैं। भरी बरसात में स्वतंत्र कर के चले गये। उस कपटी प्रेमी की तरह भागो, जो प्रेमिका का छाता भी ले जाये। वह बेचारी भीगती बस स्टैंड जाती है, तो उसे प्रेमी की नहीं, छाता-चोर की याद सताती है।" (पृ. २)
४) "लो, ये एक और वी. आई. पी. आ रहे हैं। अब इनका इंतज़ाम करो। नाक में दम है।" (पृ. ४)
५) "संस्कृति की हड्डी को अब कुत्ते चबाते घूम रहे है। संस्कृति की हड्डी कुत्ते का जबड़ा फोड़ कर उसके खून को उसी को स्वाद से चटवा रही है। हाँ, हम विश्व बंधुत्व भी मानते हैं, यानी अपने भाई के सिवा बाकी दुनिया भर को भाई मानते हैं।" (पृ. ८)
६) "अहा, जबलपुर पुण्यभूमि है। यहां की मिट्टी में इतिहास बिखरा पड़ा है। यहां की धूल चंदन है। मैं उसे मस्तक से लगाता हूं।" (पृ. ९)
७) "निंदा में विटामिन और प्रोटीन होते हैं। निंदा खून साफ करती है, पाचनक्रिया ठीक करती है, बल और स्फूर्ति देती है। निंदा से मांसपेशियां पुष्ट होती है।" (पृ. १०)
८) "अंग्रेजी भाषा का कमाल देखिए। थोड़ी ही पढ़ी है, मगर खाने की चीज़ को खूबसूरत कह रहे हैं। जो भी खूबसूरत दिखा, उसे खा गये। यह भाषा रूप में भी स्वाद देखती है। रुप देख कर उल्लास नहीं होता, जीभ में पानी आने लगता है। ऐसी भाषा साम्राज्यवाद के बड़े काम की होती है। कहा, 'इंडिया इज़ ए ब्यूटिफुल कंट्री।' " (पृ. १२)
९) " 'नुकसान' की ज़िम्मेदार कंपनी की नहीं होगी। मगर बात शराब की भी नहीं, उस पवित्र आदमी की हो रही थी, जो मेरे सामने बैठा किसी के दुराचार पर चिंतित था।" (पृ. १२)
१०) "ज़्यादा झंझट में मत पड़ो। मामला सरल कर लो। सारी नैतिकता को एक छोटे से दायरे में समेट लो।" (पृ. १३)
११) "बेटा, तंत्र कोई भी हो, अपनी पीठ पर हमेशा वेसलीन चुपड़े रहो। घूंसा तुम्हारी पीठ से फिसल कर किसी सूखी पीठ पर पड़ जाएगा।" (पृ. २०)
१२) "बेटा, बेइज़्ज़ती को खोल दो तो वह इज़्ज़त हो जाती है। जूते पड़ गये हैं, इस बात को छिपाओगे तो बदनामी फैलेगी। खुद ही कहते फिरोगे, तो बदनामी करने वालों की सेवा की ज़रुरत नहीं पड़ेगी और इज़्ज़त रह जाएगी।" (पृ. २१)
१३) "हमने तुम्हें नहीं पुकारा। हमें तुम्हारे द्वारा अपना उद्धार नहीं करवाना। तुम क्यों हमारा भला करने पर उतारु हो?" (पृ. २४)
१४) "भगवान, क्या गोरक्षा आंदोलन का नेतृत्व करने पधारे है ? चुनाव आ रहा है, तो गोरक्षा होगी ही। आप तो गोरक्षा आंदोलन के जरिये पालिटिक्स में घुस ही जाएंगे।" (पृ. २५)
१५) "भगवान, अगर सुदर्शन चक्र का लाइसेंस मिल जाये तो भी किसी को मारने पर दफा ३०२ में फंस जाएंगे।" (पृ. २६)
१६) "धर्म की संस्थापना तो सांप्रदायिक दंगो से हो रही है। आप एक हड्डी का टुकड़ा उठा कर मंदिर में डाल दीजिए और हिंदु धर्म के नाम पर दंगा करवा लीजिए। धर्म का उपयोग तो अब दंगा करने के लिए ही रह गया है।" (पृ. २६)