प्रथम सर्ग
(1) "वह कौन रोता है वहाँ-
इतिहास के अध्याय पर,
जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहू का मोल है
प्रत्यय किसी बूढ़े, कुटिल नीतिज्ञ के व्यवहार का;
जिसका हृदय उत्तना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है;
जो आप तो लड़ता नहीं,
कटवा किशोरों को मगर
आश्वस्त होकर सोचता,
शोणित बहा, लेकिन गयी बच लाज सारे देश की ?”
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-5)
(2) “विश्व मानव के हृदय निर्देष में
मूल हो सकता नहीं दोहाग्नि का;
चाहता लड़ना नहीं समुदाय है,
फैलती लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से।“
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-06)
(3) "लड़ना उसे पड़ता मगर।
औ' जीतने के बाद भी,
रणभूमि में वह देखता है सत्य को रोता हुआ,
वह सत्य, है जो रो रहा इतिहास के अध्याय में
विजयी पुरुष के नाम पर कीचड़ नयन का डालता।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-06)
(4) लेकिन, मनुज के प्राण शायद, पत्थरों के हैं बने।
इस दंश का दुख भूलकर
होता समर आरुढ़ फिर;
फिर मारता, मरता,
विजय पाकर बहाता अश्रु है।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-07)
द्वितीय सर्ग
(5) "बद्ध, विदलित और साधनहीन को
है उचित अवलम्ब अपनी राह का,
गिड़गिडाकर किन्तु, मांगे भीख क्यों
वह पुरुप जिसकी भुजा में शक्ति हो।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-19)
(6) "व्यक्ति का है धर्म, तप, करुणा, क्षमा,
व्यक्ति की शोभा विनय भी, त्याग भी,
किन्तु, उठता प्रश्न जब समुदाय का, भूलना पड़ता हमें तप त्याग को।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-19)
(7) "कौन केवल आत्मबल से जूझकर
जीत सकता देह का व्यापार है?
पाशविकता खड़ग जब लेती उठा,
आत्मवल का एक वश चलता नहीं।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-21)
तृतीय सर्ग
(8) "शान्ति नहीं तबतक, जबतक
सुख-भाग न नर का सम हो,
नहीं किसी को बहुत अधिक हो,
नहीं किसी को कम हो।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-25)
(9) "हिंसा का आघात तपस्या ने
कब, कहाँ सहा है?
देवों का दल सदा दानवों
से हारता रहा है।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-27)
(10) "क्षमा सोभती उस भुजंग को,
जिसके पास गरल रल हो।
उसको क्या, जो दन्तहीन, विषरहित,
विनीत, सरल हो।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-28)
(11) "भूल रहे हो धर्मराज, तुम,
अभी हिंस्र भूतल है,
खड़ा चतुर्दिक अहंकार है,
खड़ा चतुर्दिक छल है।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-32)
(12) "जियें मनुज किस भाँति परस्पर
होकर भाई-भाई,
कैसे रुके प्रदाह क्रोध का,
कैसे रुके लड़ाई।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-32)
चतुर्थ सर्ग
(13) "मगर, यह शान्तिप्रियता रोकती केवल मनुज को,
नहीं वह रोक पाती है दुराचारी दनुज को।
दनुज क्या शिष्ट मानव को कभी पहचानता है?
विनय को नीति कायर की सदा वह मानता है।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-38)
(14) "ज्यों-ज्यों साड़ी विवश द्रौपदी
की खिंचती जाती थी,
त्यों-त्यों वह आवृत,
दुरग्नि यह नग्न हुई जाती थी।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-45)
(15) "धर्मराज, अपने कोमल
भावों की कर अवहेला।
लगता है, मैंने भी जग को
रण की ओर ढकेला।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-56)
पंचम सर्ग
(16) "मनु का पुत्र बने पशु भोजन! मानव का यह अंत!
भरत-भूमि के नर-वीरों की यह दुर्गति, हा हन्त!"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-66)
(17) "विभव, तेज, सौन्दर्य, गये सब दुर्योधन के साथ,
एक शुष्क कंकाल लगा है मुझ पापी के हाथ।"
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-67)
षष्ठ सर्ग
(18) "धर्म का दीपक दया का दीप,
कब जलेगा, कब जलेगा, विश्व में भगवान?
कब सुकोमल ज्योति से अभिसिक्त
हो, सरस होंगे जली-सूखी रसा के प्राण ?”
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृ०-77)
(19) “किन्तु, है बढ़ता गया मस्तिष्क ही निःशेष,
छूटकर पीछे गया है रह हृदय का देश,
नर मनाता नित्य नूतन बुद्धि का त्योहार,
प्राण में करते दुखी हो देवता चीत्कार |”
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-78)
(20) “सावधान मनुष्य, यदि विज्ञान है तलवार,
तो इसे दे फेंक तज कर मोह, स्मृति के पार।
हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी नादान,
फूल-काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान।
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,
काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार।“
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-83)
सप्तम सर्ग
(21) “सबको मुक्त प्रकाश चाहिए,
सबको मुक्त समीरण,
बाधा-रहित विकास, मुक्त
आशंकाओं से जीवन।“
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-9०)
(22) “ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में
मनुज नहीं लाया है,
अपना सुख उसने
अपने भुजबल से ही पाया है।“
(रामधारी सिंह 'दिनकर'-कुरूक्षेत्र-पेपर बैक, पृष्ठ-93)