सुनापन कविता का केन्द्रीय विचार
(१) प्रस्तावना :-
हिंदी काव्य साहित्य के नये पथ की यात्री महादेवी वर्मा है | उन्होंने कविता में अनोखे एवं मर्मस्पर्शी भावों की काव्याभक्ति की है और ह्दय के अनुराग-विराग को शब्द बद्ध किया है | इनकी भोगी हुयी व्यथा, पीड़ा, सूनापन, खालीपन, अकेलापन, कविताओं में प्रतिबिंबित होता है | ऐसे मधुर शब्द की साधिका हिंदी साहित्य में अन्य कोई नहीं | ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरझा’, ‘सांध्य गीत’ ‘दीपशिखा’ और ‘यामा’ कवयित्री ह्रदय के दस्तावेज है | महादेवी वर्मा ‘सूनापन’ कविता में जीवन के सूनापन, गहरे घाव, शून्यता, खालीपन को व्यक्त करते हैं | यह कविता इस लोकोक्ति को चरितार्थ करती है कि संसार के मैले में आदमी अकेला और अकेला आदमी भी मैले में दिखता हैं | ऐसे ही कवयित्री लौकिक जीवन के सूनापन के पंखों से चलते हृदय खालीपन से बार-बार पीड़ित करता है | जिसकी अभिव्यक्ति कविता केन्द्रीय विषय है |
(२) सूनापन कविता का भाव पक्ष :-
कवयित्री ने कविता में विभिन्न उदाहरणों के द्वारा अपने जीवन के सूनापन की पीड़ा को व्यक्त की है और पीड़ा के दर्द को जीवंत किया है |
१. आकाश को संध्या से मिला सूनापन :-
महादेवी वर्मा ने सूनापन कविता की शुरुआत में ह्दय की शून्यता, खालीपन, जनहिता, रिक्तता और अवकाश को संध्या एवं आकश के प्राकृतिक प्रेम से स्पष्ट करने का प्रयास किया है | यह सूनापन अपने जीवन से प्रियत्तम के स्नेह से विरक्त होने के बाद की स्थिति को स्पष्ट करता है |
कवयित्री ने अलौकिक और लौकिक जीवन को प्रस्तुत किया हैं, क्योंकि उनके पति की जीवन पथ के बीच में ही मृत्यु हो जाते हैं | जिसके कारण उनका जीवन सुनापान, खालीपन और जनहित हो चुका था, लेकिन दूसरी ओर अलौकिक प्रियतम के विरह की व्यथा को कविता में परोक्ष रूप व्यक्त की हैं |
“मिल जाता काले अंजन में
संध्या की आंखों का राग,
जब तारे फैला फैलाकर
सूने में गिरता आकाश;
उसकी कोई सी चाहों में
घुट कर मूक हुई आंखों में !”
उपरोक्त पंक्तियों में जीवन के सूनेपन को बहुत ही परिचित और सहज उदाहरण के द्वारा समझाने का प्रयास किया है | प्रियतमा के आंखों के अंजन में लगे सुरमा की बात की गई है | सुरमा से आंखें खूबसूरत दिखती हैं | संध्या के समान आंखें सुन्दर और आकर्षक लगती है | ये आंखों का काला अंजन शाम की आंखों का प्रेम है | जिस प्रकार संध्या की आंखों में आकाश के लिए प्रेम उमड़ता है वैसे स्त्री की आंखों का काला अंजन प्रियतम के प्रेम को प्रदर्शित करता है |
संध्या की आंखों में चमकते प्रेम से आकाश विरक्त हो जाता हैं | दिन ढलने का कुछ समय पश्चात् संध्या रानी अपना साम्राज्य समेट लेती है और रात्रि का सच सामने आता हैं | आकाश में चारों ओर तारे टीम-टीमा ने लगते हैं | आसमान में फैले तारें अनेक संख्या में दिखने लगते है | संध्या के प्यार भरे नयन दिखाई नहीं देता | जनहीन आकाश में प्रिय के सूनापन से आकाश तारे गिनता रहता है एवं अपने समय को व्यतीत करता है |
सूना गगन अपने खोये प्रेम को खोजता हुआ अकेलेपन की जिंदगी काट रहा है | आकाश के श्वसन मार्ग में अवरोध पैदा हो जाता है | उनकी सांस घुटने लगती है और आँखें बंद हो जाती हैं | लाचार एवं गूंगा आकाश दुख, पीड़ा, सूनापन, पश्चाताप की आग में जलकर अपने ह्रदय के भीतर से ठंडी सांस निकल रही है | आकाश संध्या को बहुत प्यार करता था, लेकिन आज उनकी जिंदगी से चली गयी है | इसकी बदौलत उसे केवल शून्यता नसीब होती है | अपना प्रेम सुख विरह व्यथा की पीड़ा और शुन्यतासे घिर जाता हैं | अतः कवियत्री ने संध्या को स्त्री और आसमा को पुरुष प्रियतम बताकर प्रकृति के सुंदर प्रतीकों से ह्दय के खालीपन और घुटन का चित्रण किया हैं |
२. मेघ को विद्युत से मिला सूनापन :-
कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में वियोग से प्राप्त सूनापन का सुंदर वर्णन किया है | वर्षाऋतु के सुन्दर एवं अद्भुत प्रकृति के प्रतीक से संवेदना को व्यक्त किया है | वर्षा-ऋतु में चमकने वाली विद्युत प्रियतमा और मेघ को प्रिय के रूप में निरुपित किया हैं | यह चयनित प्रकृति के प्रतीक भाव को भली-भाँति स्पष्ट करता है | पाठक सहज, सरल और सूक्ष्म प्रतीकों से भावनात्मक रूप में जुड़ जाता हैं एवंअपनात्त्व महसूस करता है | इनकी कविता में सहज और सूक्ष्म शब्दों के जरिए सूनेपन की निर्मल एवं मधुर गंगा बहती है |
“झूम झूम कर मतवाली सी
पिये वेदनाओं का प्याला,
प्राणों में रुँधी निश्वसें
आतीं ले मेघों की माला;
उनके रह रह कर रोने में
मिल कर विद्युत के खोने में !”
उक्त पंक्तियों में प्रियतम के विरह में व्यथित एवं हदय की शून्यता से पीड़ित, संतप्त हृदय की व्यथा को व्यक्त की है | प्रियतम के नशे में चूर एवं मतवाली विद्युत दिखती है | प्रियतम के बगैर प्रियतमा का जीवन सूनेपन से भर गया है | ह्रदय के शून्यता में मिली वेदना का प्याला पिये जा रही है | वेदना उनका जीवन रस और सूनापन साथी बन चूका है | जिंदगी में को चलाने वाली साँसे धीमी- धीमी रूंधी हुई, अटकी हुई और निश्वास रूप में निकलती है | हदय की धीमी गति कब बंद हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता | प्राण गले में कब अटक जाये कुछ कहा नहीं जा सकता ! अपना जीवन शून्यता में व्यतीत हो रहा है | जिस प्रकार वर्षा ऋतु में बादल आसमान से बारिश की बुंदे बरसाता है तो यह लगता है कि मेघ की बारिश की माला प्रेमिका विद्युत के विरह में आंखों से रह-रह कर आँसू बह रहें है | मेघ इसलिए निरंतर रो रहा है कि उनकी प्रियतमा विद्युत यानी बिजली उनको मिलने संसार को छोड़कर दूर हो चुकी है | उसकी यादों में यह आँसू की माला बरसात की बूंदों के रूप में धरती पर बरसती है अब प्रियतमा अचला को कभी नहीं मिल पायेंग | विरह में आंसू बहाने के अलावा कोई उपाय नहीं | वर्षाऋतु में मेघ के बीच बिजली चमक कर चली जाती है, उसी तरह अपना प्रियतम क्षणिक सुख देकर सूनापन और खालीपन से भरे जीवन को छोड़कर बीच रह में छोड़ कर चला गया है |
३. रात को प्यासे किरण का चुंबन :-
कवयित्री ने जिंदगी की शून्यता को व्याख्यायित करने के लिए रात के अंधकार के बाद दिन के किरणों की रोशनी का वर्णन किया है | सूर्य का पहला किरण प्रियतम है और रात उसकी प्रियतमा है | जिसका विरह, मिलन, स्पर्श, चुंबन, आदि का रुचिकर वर्णन किया हैं |
“धीरे से सूने आँगन में
फैला जब जातीं हैं रातें,
भर भरकर ठंडी साँसों में
मोती से आँसू की पातें;
उनकी सिहराई कम्पन में
किरणों के प्यार से चुंबन में !”
कविता की उपरोक्त पंक्तियों में घर के सूने आँगन में रात का फैलता हुआ घना अंधकार वर्णित किया है | दिन ढलते ही घर के खुले आँगन में सुनापन व्याप्त हो जाता हैं | रात का अंधेरा घिर आता है और वह डरावना बन जाता है | मंद-मंद गति से निशा अपना अंधकार फैलाती है | यहाँ कवयित्री के ह्रदय अंधकार को रात के अंधकार एवं सुनापन के साथ जोड़ दिया है | इसलिए रात ह्रदय के सुनेपन प्रतीक बनकर आई है | रात्रि के सूनापन की तरह धीरे-धीरे कवयित्री के हदय के अंदर प्रियतम के चले जाने के बाद कोने-कोने में उनका सूनापन भरता गया है | सूनापन उसे बार-बार खाये जा रहा है | उसे पीड़ित करता है, दर्द देता है, दुख देता है तथा अकेला महसूस करती है | यह हदय वो खालीपन जो कभी भरने वाला नहीं |
जीवन के सूनापन के कारण समुद्र की सिप की तरह आंखों में मोती से आंसू गिरने लगते हैं और ह्रदय से ठंडी साँसे निकल रही हैं | यह साँसे आँखों से भर-भर कर आँसू बाहर निकाल रही है | उनका शरीर पवन के झोंकों से वृक्ष के पत्ते कम्पित होते हैं वैसे कम्पन का अनुभव कर रहा है | थरथर कांपने लगा है | प्रिय मिलन में सूर्य की सुंदर कोमल किरणें प्रियतमा को चूमने के कारण महसूस हो रहा है | आँगन, रात, साँस, मोती से आंसू और सूर्य किरण के चुंबन के जरिए कवयित्री का खालीपन, अंधेरा, बेचैनी, पीड़ा, दर्द, घुटन, मिलन की यादें एवं पीड़ा के मीठे अनुभव आदि व्यक्त किया हैं | रात के बाद सूर्य की कोमल किरण धरती पर बढ़ने लगती है तो किरणें धरती को चुंबन करती हैं, क्योंकि वह पूरी रात भर प्यासी रही है | तड़पी और बेचैन रही है | जिसके कारण धरती का प्रेम सुख का कम्पन रोमांचित कर देता है | कवयित्री प्रियतम के चुंबन से शरीर कम्पित हो जाती है | अंधेरी रात को प्यासे किरण चुंबन उसे उज्जाले से भर देता है | पवन से हिलने वाले पर्ण की भाँति उनका शरीर हिलने लगता है | सूनापन कवियत्री के जीवन में बेचैनी भर देता है | जीवन का कण-कण शून्यता से भर जाता हैं |
४. प्रियतम समीरण एवं फूलों के लोचन :-
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में कवयित्री ने ह्रदय के कोमल भावों की अभिव्यक्ति की है | फूल और समीरण की प्रकृति प्रदत्त यात्रा से बहुत ही सुंदर ढंग सूने जीवन को समझाया है | हवा की सूक्ष्म हल-चल को इन्होंने शब्दों में कैद करने का सफल प्रयास किया है |
“जाने किस बीते जीवन का
संदेशा दे मंद समीरण,
छू देता अपने पंखों से
मुर्झाये फूलों के लोचन;
उनके फीके मुस्काने में
फिर अलसाकर गिर जाने में !”
उपरोक्त पंक्तियों में समीरण और फूल के प्राकृतिक प्रेमी युगल का चित्रित किया है | समीरण प्रियतम के प्रियतमा के रूप में मुर्झाये फूल है | कवयित्री बाग के मुरझाये फूल के नयन धीरे-धीरे बहने वाला समीरण या पवन छुता है | यह दृश्य देखकर कवयित्री को प्रेम के मधुर मिलन का संदेशा मिल जाता हैं | धीरे-धीरे बहने वाला समीरण अपने पंखों से मुरझाये फूल के पास पहूँच कर सूखे दिनों में भी फूल को प्रेम का स्पर्श देता है, किन्तु परोक्ष रूप से कवयित्री के जीवन में चल रहे सूनेपन का अनुभव दिया हैं | सूखे फूलों को समीरण चुम्बन देता हैं मगर महादेवी का जीवन सूनेपन से पीड़ित है | उनके पास प्रियतम नहीं है | पवन के मुख्य मंडल पर हास्य दिखाई देता है | फीका हास्य हँसकर आंखों की अलको को क्षणिक उठाता है फिर बंद कर गिर जाता है | समीरण का बहना और मुरझाये फूलों की आंखों को फीका हास्य हँस कर चूमना और फिर गिर जाता है | मुरझाया पुष्प जीवन के आनंद, उल्लास, स्नेह, प्रेम, खुशी आदि के अभाव में शून्यता से घिरे जीवन को चित्रित किया हैं |
५. कवयित्री के मानस का सूनापन :-
काव्य की अंतिम पंक्तियों में कवयित्री ने आँखों के आँसू के दाग, ओठों पर हँसती पीड़ा, प्रेम के खुले पंख, खालीपन, सासों के बिखरे त्याग आदि को हदय स्पर्शी ढंग से व्यक्त किया है |
“आंखों की नीरव भिक्षा में
आँसू के मिटते दाग़ों में,
ओठों की हँसती पीड़ा में
आहों के बिखरे त्यागों में;
कन-कन में बिखरा है निर्मम !
मेरे मानस का सूनापन !”
उपरोक्त पंक्ति में कवयित्री मानस के सूनेपन और प्रेम तप्त प्रियतमा के रिक्त हृदय को प्रतिबिंबित किया है | कोमल शब्दों में संवेदना को जीवंत किया है | इनकी आंखों की गहराई में एक सूनापन छाया हुआ है | ये सूनापन एवं शांति प्रियतम के चले जाने के बाद उसे भिक्षा रुप मिली है तथा उसके आँसू अपना दाग छोड़ जाता है | जिस प्रकार मनुष्य के मुख पर आँख से निकले आँसू सूख जाने के बाद उसके दाग बने रहते है, वैसे ही अपने प्रियतम के स्नेह से विरक्त आँखों में मूक शान्ति सुनाई देती है, लेकिन आज उनके चले जाने के बाद के दाग जिंदगी में अंकित है |
कवयित्री के हृदय के भीतर से निकली हुई पीड़ा सुने ओठों पर हंसती दिखाई देती है | प्रियतम के विरह में ह्रदय की साँसे सुनी, ठंडी और बिखर गई है | इससे जीवन की धड़कन कब थम जाये कुछ पता नहीं, जिंदगी का अंत कब हो जाये कुछ भरोसा नहीं, क्योंकि उसका संगी प्रियतम साँसों प्राण बने हुआ था | वे अब उसे छोड़कर चले गए है | साँस के बिना शरीर का चलना मुमकिन नहीं |
कवयित्री के सूनापन की पीड़ा निर्दय और निर्मम है | प्रियतम का मेरे प्रति थोडा भी प्रेम नहीं | ममत्वहीन मुझे छोड़कर चले गये है | उसकी यादें ह्रदय के कण-कण में समायी है तथा सूनापन पूरे जीवन में बिखर पड़ा है | मन के भीतर रिक्तता, खालीपन, सूनापन, अकेलापन आदि हलचल पैदा करते है | इसलिए सूनेपन से भरे जीवन में निर्मम पीड़ा व्याप्त रहती है | प्रियतम छोड़कर चला गया है फिरभी इनके कण-कण में बसा हुआ है और इनकी शून्यता की दौलत निर्मम बनकर मानस में व्याप्त है | इस प्रकार कवित्री ने प्रकृति के उदाहरण द्वारा अपने जीवन के खालीपन और शून्यता को बहुत ही भावनात्मक स्वरूप में व्यक्त किया है | इस कविता को पढ़ते ही व्यक्ति स्वयं की शून्यता से परिचित हो जाता है |
(३) सूनापन कविता का कला-पक्ष :-
महादेवी वर्मा ने कविता के भाव-पक्ष को जितना महत्त्व दिया है, उतना ही कला-पक्ष को भी महत्त्व दिया है | काव्य सौंदर्य केवल भाव के बल पर निर्मित नहीं होता, अपितु इसमें कला के साधनों से भाव को सौंदर्य संपन्न बनाया जाता है | जिसमें निम्नलिखित तत्वों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है |
१. भाषा-शैली :-
भाषा काव्य साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है, क्योंकि भाषा के जरिए ही भाव को अभिव्यक्ति मिलती है | महादेवी वर्मा भाषा की कुशल कलाकार है | भावों के अनुकूल शब्द गठन की कुशल चित्रकार है | उन्होंने कविता में शब्दों के विशिष्ट प्रयोग से काव्य सौंदर्य को निखार दिया है | सूक्ष्म से सूक्ष्म भाव को अभिव्यक्त करने के लिए तद्भव, तत्सम और देशज शब्दों का प्रयोग किया है | भाषा का व्यंजनात्मक एवं प्रभावशाली रूप कविता के सफलता का आधार है | वे कभी-कभी शब्दों से भाव में निर्मलता, स्वच्छता एवं ध्वनि प्रदान स्वरूप प्रस्तुत करने के लिए शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा जाता है | कविता में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है |
प्रस्तुत कविता में भावनात्मक, व्यंजनात्मक, प्रतीकात्मक एवं आत्मा व्यंजक शैली का सुंदर संकलन किया है | इस प्रकार यह कविता भाषा-शैली की दृष्टि से बहुत ही सुंदर कविता कही जा सकती है |
२. अलंकार नियोजन :-
अलंकारों के प्रोयग से महादेवी वर्मा ने अपने काव्य को सुंदर एवं मनोरम बनाया है | अपनी वेदना को शब्दों में अलंकारों के जरिए सजाया है और सुंदर रूप प्रदान किया है | मानवीकरण, उपमा, उदाहरण, अतिश्योक्ति आदि का प्रयोग कविता को नये कलेवर में प्रस्तुत करता है | कविता से एक उदाहरण प्रस्तुत है-
“छू देता अपने पंखों से
मुर्झाये फूलों के लोचन |”- मानवीकरण
३. शब्द-शक्ति :-
कविता में निहित शब्द के अर्थ को बहुत ही अच्छे तरीके से समझने के लिए शब्द शक्ति को पहचानना पड़ता है | शब्द में मुख्यत: मुख्यार्थ, लक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ निहित होता है | कवि ने प्रस्तुत कविता में तीनों शब्द शक्ति का अच्छा संयोजन किया है | अपने हदय की शुन्यता को प्रस्तुत करने के लिए उदाहरण प्रस्तुत करते हैं तो मुख्य अर्थ स्पष्ट होता है | प्रतीक के माध्यम से जीवन के सूनापन को व्यक्त करते समय व्यंजना शक्ति का परिचय मिलता है |
४. छंद योजना :-
छंदों के बिना कविता में लय, संगीत, ध्वनि एवं कर्णप्रियता मुश्किल से आती है, लेकिन महादेवी वर्मा ने सूनापन गीत कविता अतुकांत मुक्त छंद में लिखकर बहुत ही मधुर एवं कर्णप्रिय स्वरूप दिया हैं | जिससे छोटी सी कविता कर्णपट पर सुनते हैं, हदय के तार झंकृत होने लगते हैं | यही कविता की सफलता का आधार है |
५. प्रतीक एवं बिम्ब योजना :-
महादेवी वर्मा की प्रत्येक कविता बिंब एवं प्रतीक की दृष्टि से बहुत ही सफल रही है | प्रकृति के बिम्ब प्रयोग में सुमित्रानंदन पंत के साथ महादेवी खड़ी रहती है एवं वे प्रतीक से हदय की उबलती संवेदना को व्यक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ती | उन्होंने प्रकृति के प्रतीक प्रयोग में बहुत ही सूक्ष्म भाव को चित्रात्मक स्वरूप में प्रतिबिंबित किया है | हदय का सूनापन आँसूओं के दाग से अंकित हैं | संध्या का काला अंजन की तुलना स्त्री जीवन के सूनापन में स्पष्ट दिखाई देता है | इस प्रकार से यह कविता प्रतीक और बिंब की दृष्टि से बहुत ही सफल कही जा सकती हैं |
६. रस और गुण :-
काव्य में रस हदय और मानस के भाव को भरने की प्रक्रिया होती है | यह प्रक्रिया शब्दों के साधन से पूर्ण होती हैं | प्रस्तुत कविता में प्रियतम के विरह में सूनेपन से भरे जीवन में शांत रस, वियोग श्रृंगार, अद्भुत रस एवं करुण रस का गीलापन हैं | इनसे कविता में हृदय की निर्मलता, स्वच्छता, पीड़ा और खालीपन, को दिखाने में माधुर्य गुण एवं प्रसाद गुण का चित्रण किया है | अतः यह कविता प्रसाद और माधुर्य गुण से संपन्न है | जिसमें कोमल, मधुर एवं हृदय को शांति से भरने वाले शब्दों का प्रयोग किया है |
(४) निष्कर्ष :-
‘सूनापन’ कविता में कवयित्री के जीवन का प्रतिबिंब चलकता है | इस जीवन को संध्या और आकाश, आँखें और आँसू, बादल और बिजली के प्रेम संबंध द्वारा वियोग के सूनापन को प्रस्तुत किया गया है | मानस स्मृति में मिलन सुख का मधुर प्रतिबिंब भी दिखाया है | आज वर्तमान में उसके जीवन का खालीपन आँसूओं के सूख जाने के बाद बने चिह्न के रूप में अंकित है | इसलिए यह कविता कवयित्री के प्रियतम विरह में अंकित चिन्हों की चित्र छवि है | यह कविता एक चित्रकार की तुलिका से बने चित्र समान हैं और मधुर शब्दावली कविता की काव्यानुभूति में चार चाँद लगा देती हैं |