Sunday, 18 December 2022

सुनापन कविता का केन्द्रीय विचार

सुनापन कव्य का केन्द्रीय विचार - महादेवी वर्मा
सुनापन कविता का केन्द्रीय विचार 

(१) प्रस्तावना :-

           हिंदी काव्य साहित्य के नये पथ की यात्री महादेवी वर्मा है | उन्होंने  कविता में अनोखे एवं मर्मस्पर्शी भावों की काव्याभक्ति की है और ह्दय के अनुराग-विराग को शब्द बद्ध किया है | इनकी भोगी हुयी व्यथा, पीड़ा, सूनापन, खालीपन, अकेलापन, कविताओं में प्रतिबिंबित होता है | ऐसे मधुर शब्द की साधिका हिंदी साहित्य में अन्य कोई नहीं | ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरझा’, ‘सांध्य गीत’ ‘दीपशिखा’ और ‘यामा’ कवयित्री ह्रदय के दस्तावेज है |  महादेवी वर्मा ‘सूनापन’ कविता में जीवन के सूनापन, गहरे घाव, शून्यता, खालीपन को व्यक्त करते हैं | यह कविता इस लोकोक्ति को चरितार्थ करती है कि संसार के मैले में आदमी अकेला और अकेला आदमी भी मैले में दिखता हैं | ऐसे ही कवयित्री लौकिक जीवन के सूनापन के पंखों से चलते हृदय खालीपन से बार-बार पीड़ित करता है | जिसकी अभिव्यक्ति कविता केन्द्रीय विषय है |


(२) सूनापन कविता का भाव पक्ष :-

           कवयित्री ने कविता में विभिन्न उदाहरणों के द्वारा अपने जीवन के सूनापन की पीड़ा को व्यक्त की है और पीड़ा के दर्द को जीवंत किया है |


१. आकाश को संध्या से मिला सूनापन :-

           महादेवी वर्मा ने सूनापन कविता की शुरुआत में ह्दय की शून्यता, खालीपन, जनहिता, रिक्तता और अवकाश को संध्या एवं आकश के प्राकृतिक प्रेम से स्पष्ट करने का प्रयास किया है | यह सूनापन अपने जीवन से प्रियत्तम के स्नेह से विरक्त होने के बाद की स्थिति को स्पष्ट करता है | 

           कवयित्री ने अलौकिक और लौकिक जीवन को प्रस्तुत किया हैं, क्योंकि उनके पति की जीवन पथ के बीच में ही मृत्यु हो जाते हैं | जिसके कारण उनका जीवन सुनापान, खालीपन और जनहित हो चुका था, लेकिन दूसरी ओर अलौकिक प्रियतम के विरह की व्यथा को कविता में परोक्ष रूप व्यक्त की हैं | 


“मिल जाता काले अंजन में

संध्या की आंखों का राग,

जब तारे फैला फैलाकर

सूने में गिरता आकाश;


उसकी कोई सी चाहों में

घुट कर मूक हुई आंखों में !”


          उपरोक्त पंक्तियों में जीवन के सूनेपन को बहुत ही परिचित और सहज उदाहरण के द्वारा समझाने का प्रयास किया है | प्रियतमा के आंखों के अंजन में लगे सुरमा की बात की गई है | सुरमा से आंखें खूबसूरत दिखती हैं |  संध्या के समान आंखें सुन्दर और आकर्षक लगती है | ये आंखों का काला अंजन शाम की आंखों का प्रेम है | जिस प्रकार संध्या की आंखों में आकाश के लिए प्रेम उमड़ता है वैसे स्त्री की आंखों का काला अंजन प्रियतम के प्रेम को प्रदर्शित करता है |

          संध्या की आंखों में चमकते प्रेम से आकाश विरक्त हो जाता हैं | दिन ढलने का कुछ समय पश्चात् संध्या रानी अपना साम्राज्य समेट लेती है और रात्रि का सच सामने आता हैं | आकाश में चारों ओर तारे टीम-टीमा ने लगते हैं | आसमान में फैले तारें अनेक संख्या में दिखने लगते है | संध्या के प्यार भरे नयन दिखाई नहीं देता | जनहीन आकाश में प्रिय के सूनापन से आकाश तारे गिनता रहता है एवं अपने समय को व्यतीत करता है | 

          सूना गगन अपने खोये प्रेम को खोजता हुआ अकेलेपन की जिंदगी काट रहा है | आकाश के श्वसन मार्ग में अवरोध पैदा हो जाता है | उनकी सांस घुटने लगती है और आँखें बंद हो जाती हैं | लाचार एवं गूंगा आकाश दुख, पीड़ा, सूनापन, पश्चाताप की आग में जलकर अपने ह्रदय के भीतर से ठंडी सांस निकल रही है | आकाश संध्या को बहुत प्यार  करता था, लेकिन आज उनकी जिंदगी से चली गयी है | इसकी बदौलत उसे केवल शून्यता नसीब होती है | अपना प्रेम सुख विरह व्यथा की पीड़ा और शुन्यतासे घिर जाता हैं | अतः कवियत्री ने संध्या को स्त्री और आसमा को पुरुष प्रियतम बताकर प्रकृति के सुंदर प्रतीकों से ह्दय के खालीपन और घुटन का चित्रण किया हैं | 


२. मेघ को विद्युत से मिला सूनापन :-

          कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में वियोग से प्राप्त सूनापन का सुंदर वर्णन किया है | वर्षाऋतु के सुन्दर एवं अद्भुत प्रकृति के प्रतीक से संवेदना को व्यक्त किया है | वर्षा-ऋतु में चमकने वाली विद्युत प्रियतमा और मेघ को प्रिय के रूप में निरुपित किया हैं | यह चयनित प्रकृति के प्रतीक भाव को भली-भाँति स्पष्ट करता है | पाठक सहज, सरल और सूक्ष्म प्रतीकों से भावनात्मक रूप में जुड़ जाता हैं एवंअपनात्त्व महसूस करता है | इनकी कविता में सहज और सूक्ष्म शब्दों के जरिए सूनेपन की निर्मल एवं मधुर गंगा बहती है | 


“झूम झूम कर मतवाली सी

पिये वेदनाओं का प्याला,

प्राणों में रुँधी निश्वसें

आतीं ले मेघों की माला;


उनके रह रह कर रोने में

मिल कर विद्युत के खोने में !”


         उक्त पंक्तियों में प्रियतम के विरह में व्यथित एवं हदय की शून्यता से पीड़ित, संतप्त हृदय की व्यथा को व्यक्त की है | प्रियतम के नशे में चूर एवं मतवाली विद्युत दिखती है | प्रियतम के बगैर प्रियतमा का जीवन सूनेपन से भर गया है | ह्रदय के शून्यता में मिली वेदना का प्याला पिये जा रही है | वेदना उनका जीवन रस और सूनापन साथी बन चूका है | जिंदगी में को चलाने वाली साँसे धीमी- धीमी रूंधी हुई, अटकी हुई और निश्वास रूप में निकलती है | हदय की धीमी गति कब बंद हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता | प्राण गले में कब अटक जाये कुछ कहा नहीं जा सकता ! अपना जीवन शून्यता में व्यतीत हो रहा है | जिस प्रकार वर्षा ऋतु में बादल आसमान से बारिश की बुंदे बरसाता है तो यह लगता है कि मेघ की बारिश की माला प्रेमिका विद्युत के विरह में आंखों से रह-रह कर आँसू बह रहें है |  मेघ इसलिए निरंतर रो रहा है कि उनकी प्रियतमा विद्युत यानी बिजली उनको मिलने संसार को छोड़कर दूर हो चुकी है | उसकी यादों में यह आँसू की माला बरसात की बूंदों के रूप में धरती पर बरसती है अब प्रियतमा अचला को कभी नहीं मिल पायेंग | विरह में आंसू बहाने के अलावा कोई उपाय नहीं | वर्षाऋतु में मेघ के बीच बिजली चमक कर चली जाती है, उसी तरह अपना प्रियतम क्षणिक सुख देकर सूनापन और खालीपन से भरे जीवन को छोड़कर बीच रह में छोड़ कर चला गया है | 


३. रात को प्यासे किरण का चुंबन :- 

           कवयित्री ने जिंदगी की शून्यता को व्याख्यायित करने के लिए रात के अंधकार के बाद दिन के किरणों की रोशनी का वर्णन किया है | सूर्य का पहला किरण प्रियतम है और रात उसकी प्रियतमा है | जिसका विरह, मिलन, स्पर्श, चुंबन, आदि का रुचिकर वर्णन किया हैं |


“धीरे से सूने आँगन में

फैला जब जातीं हैं रातें,

भर भरकर ठंडी साँसों में

मोती से आँसू की पातें;


उनकी सिहराई कम्पन में

किरणों के प्यार से चुंबन में !”


          कविता की उपरोक्त पंक्तियों में घर के सूने आँगन में रात का फैलता हुआ घना अंधकार वर्णित किया है | दिन ढलते ही घर के खुले आँगन में सुनापन व्याप्त हो जाता हैं | रात का अंधेरा घिर आता है और वह डरावना बन जाता है | मंद-मंद गति से निशा अपना अंधकार फैलाती है | यहाँ कवयित्री के ह्रदय अंधकार को रात के अंधकार एवं सुनापन के साथ जोड़ दिया है | इसलिए रात ह्रदय के सुनेपन प्रतीक बनकर आई है | रात्रि के सूनापन की तरह धीरे-धीरे कवयित्री के हदय के अंदर प्रियतम के चले जाने के बाद कोने-कोने में उनका सूनापन भरता गया है | सूनापन उसे बार-बार खाये जा रहा है | उसे पीड़ित करता है, दर्द देता है, दुख देता है तथा अकेला महसूस करती है | यह हदय वो खालीपन जो कभी भरने वाला नहीं | 

            जीवन के सूनापन के कारण समुद्र की सिप की तरह आंखों में मोती से आंसू गिरने लगते हैं और ह्रदय से ठंडी साँसे निकल रही हैं | यह साँसे आँखों से भर-भर कर आँसू बाहर निकाल रही है | उनका शरीर पवन के झोंकों से वृक्ष के पत्ते कम्पित होते हैं वैसे कम्पन का अनुभव कर रहा है | थरथर कांपने लगा है | प्रिय मिलन में सूर्य की सुंदर कोमल किरणें प्रियतमा को चूमने के कारण महसूस हो रहा है | आँगन, रात, साँस, मोती से आंसू और सूर्य किरण के चुंबन के जरिए कवयित्री का खालीपन, अंधेरा, बेचैनी, पीड़ा, दर्द, घुटन, मिलन की यादें एवं पीड़ा के मीठे अनुभव आदि व्यक्त किया हैं | रात के बाद सूर्य की कोमल किरण धरती पर बढ़ने लगती है तो किरणें धरती को चुंबन करती हैं, क्योंकि वह पूरी रात भर प्यासी रही है | तड़पी और बेचैन रही है | जिसके कारण धरती का प्रेम सुख का कम्पन रोमांचित कर देता है | कवयित्री प्रियतम के चुंबन से शरीर कम्पित हो जाती है | अंधेरी रात को प्यासे किरण चुंबन उसे उज्जाले से भर देता है | पवन से हिलने वाले पर्ण की भाँति उनका शरीर हिलने लगता है | सूनापन कवियत्री के जीवन में बेचैनी भर देता है | जीवन का कण-कण शून्यता से भर जाता हैं | 


४. प्रियतम समीरण एवं फूलों के लोचन :- 

           निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में कवयित्री ने ह्रदय के कोमल भावों की अभिव्यक्ति की है | फूल और समीरण की प्रकृति प्रदत्त यात्रा से बहुत ही सुंदर ढंग सूने जीवन को समझाया है | हवा की सूक्ष्म हल-चल को इन्होंने शब्दों में कैद करने का सफल प्रयास किया है |


“जाने किस बीते जीवन का

संदेशा दे मंद समीरण,

छू देता अपने पंखों से

मुर्झाये फूलों के लोचन;


उनके फीके मुस्काने में

फिर अलसाकर गिर जाने में !”


             उपरोक्त पंक्तियों में समीरण और फूल के प्राकृतिक प्रेमी युगल का चित्रित किया है | समीरण प्रियतम के प्रियतमा के रूप में मुर्झाये फूल है | कवयित्री बाग के मुरझाये फूल के नयन धीरे-धीरे बहने वाला समीरण या पवन छुता है | यह दृश्य देखकर कवयित्री को प्रेम के मधुर मिलन का संदेशा मिल जाता हैं | धीरे-धीरे बहने वाला समीरण अपने पंखों से मुरझाये फूल के पास पहूँच कर सूखे दिनों में भी फूल को प्रेम का स्पर्श देता है, किन्तु परोक्ष रूप से कवयित्री के जीवन में चल रहे सूनेपन का अनुभव दिया हैं | सूखे फूलों को समीरण चुम्बन देता हैं मगर महादेवी का जीवन सूनेपन से पीड़ित है | उनके पास प्रियतम नहीं है | पवन के मुख्य मंडल पर हास्य दिखाई देता है | फीका हास्य हँसकर आंखों की अलको को क्षणिक उठाता है फिर बंद कर गिर जाता है | समीरण का बहना और मुरझाये फूलों की आंखों को फीका हास्य हँस कर चूमना और फिर गिर जाता है | मुरझाया पुष्प जीवन के आनंद, उल्लास, स्नेह, प्रेम, खुशी आदि के अभाव में शून्यता से घिरे जीवन को चित्रित किया हैं | 


५. कवयित्री के मानस का सूनापन :-

             काव्य की अंतिम पंक्तियों में कवयित्री ने आँखों के आँसू के दाग, ओठों पर हँसती पीड़ा, प्रेम के खुले पंख, खालीपन, सासों के बिखरे त्याग आदि को हदय स्पर्शी ढंग से व्यक्त किया है | 


“आंखों की नीरव भिक्षा में

आँसू के मिटते दाग़ों में,

ओठों की हँसती पीड़ा में

आहों के बिखरे त्यागों में;


कन-कन में बिखरा है निर्मम !

मेरे मानस का सूनापन !”


          उपरोक्त पंक्ति में कवयित्री मानस के सूनेपन और प्रेम तप्त प्रियतमा के रिक्त हृदय को प्रतिबिंबित किया है | कोमल शब्दों में संवेदना को जीवंत किया है | इनकी आंखों की गहराई में एक सूनापन छाया हुआ है | ये सूनापन एवं शांति प्रियतम के चले जाने के बाद उसे भिक्षा रुप मिली है तथा उसके आँसू अपना दाग छोड़ जाता है | जिस प्रकार मनुष्य के मुख पर आँख से निकले आँसू सूख जाने के बाद उसके दाग बने रहते है, वैसे ही अपने प्रियतम के स्नेह से विरक्त आँखों में मूक शान्ति सुनाई देती है, लेकिन आज उनके चले जाने के बाद के दाग जिंदगी में अंकित है | 

           कवयित्री के हृदय के भीतर से निकली हुई पीड़ा सुने ओठों पर हंसती दिखाई देती है | प्रियतम के विरह में ह्रदय की साँसे सुनी, ठंडी और बिखर गई है | इससे जीवन की धड़कन कब थम जाये कुछ पता नहीं, जिंदगी का अंत कब हो जाये कुछ भरोसा नहीं, क्योंकि उसका संगी प्रियतम साँसों प्राण बने हुआ था | वे अब उसे छोड़कर चले गए है | साँस के बिना शरीर का चलना मुमकिन नहीं |

           कवयित्री के सूनापन की पीड़ा निर्दय और निर्मम है | प्रियतम का मेरे प्रति थोडा भी प्रेम नहीं | ममत्वहीन मुझे छोड़कर चले गये है | उसकी यादें ह्रदय के कण-कण में समायी है तथा सूनापन पूरे जीवन में बिखर पड़ा है | मन के भीतर रिक्तता, खालीपन, सूनापन, अकेलापन आदि हलचल पैदा करते है | इसलिए सूनेपन से भरे जीवन में निर्मम पीड़ा व्याप्त रहती है | प्रियतम छोड़कर चला गया है फिरभी इनके कण-कण में बसा हुआ है और इनकी शून्यता की दौलत निर्मम बनकर मानस में व्याप्त है | इस प्रकार कवित्री ने प्रकृति के उदाहरण द्वारा अपने जीवन के खालीपन और शून्यता को बहुत ही भावनात्मक स्वरूप में व्यक्त किया है | इस कविता को पढ़ते ही व्यक्ति स्वयं की शून्यता से परिचित हो जाता है | 


(३) सूनापन कविता का कला-पक्ष :-

             महादेवी वर्मा ने कविता के भाव-पक्ष को जितना महत्त्व दिया है, उतना ही कला-पक्ष को भी महत्त्व दिया है | काव्य सौंदर्य केवल भाव के बल पर निर्मित नहीं होता, अपितु इसमें कला के साधनों से भाव को सौंदर्य संपन्न बनाया जाता है | जिसमें निम्नलिखित तत्वों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है |


१. भाषा-शैली :-

          भाषा काव्य साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है, क्योंकि भाषा के जरिए ही भाव को अभिव्यक्ति मिलती है | महादेवी वर्मा भाषा की कुशल कलाकार है | भावों के अनुकूल शब्द गठन की कुशल चित्रकार है | उन्होंने कविता में शब्दों के विशिष्ट प्रयोग से काव्य सौंदर्य को निखार दिया है | सूक्ष्म से सूक्ष्म भाव को अभिव्यक्त करने के लिए तद्भव, तत्सम और देशज शब्दों का प्रयोग किया है | भाषा का व्यंजनात्मक एवं प्रभावशाली रूप कविता के सफलता का आधार है | वे कभी-कभी शब्दों से भाव में निर्मलता, स्वच्छता एवं ध्वनि प्रदान स्वरूप प्रस्तुत करने के लिए शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा जाता है | कविता में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है |

         प्रस्तुत कविता में भावनात्मक, व्यंजनात्मक, प्रतीकात्मक एवं आत्मा व्यंजक शैली का सुंदर संकलन किया है | इस प्रकार यह कविता भाषा-शैली की दृष्टि से बहुत ही सुंदर कविता कही जा सकती है |


२. अलंकार नियोजन :-

           अलंकारों के प्रोयग से महादेवी वर्मा ने अपने काव्य को सुंदर एवं मनोरम बनाया है | अपनी वेदना को शब्दों में अलंकारों के जरिए सजाया है और सुंदर रूप प्रदान किया है | मानवीकरण, उपमा, उदाहरण, अतिश्योक्ति आदि का प्रयोग कविता को नये कलेवर में प्रस्तुत करता है | कविता से एक उदाहरण प्रस्तुत है-

“छू देता अपने पंखों से

मुर्झाये फूलों के लोचन |”- मानवीकरण 


३. शब्द-शक्ति :-

          कविता में निहित शब्द के अर्थ को बहुत ही अच्छे तरीके से समझने के लिए शब्द शक्ति को पहचानना पड़ता है | शब्द में मुख्यत: मुख्यार्थ, लक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ निहित होता है | कवि ने प्रस्तुत कविता में तीनों शब्द शक्ति का अच्छा संयोजन किया है | अपने हदय की शुन्यता को प्रस्तुत करने के लिए उदाहरण प्रस्तुत करते हैं तो मुख्य अर्थ स्पष्ट होता है | प्रतीक के माध्यम से जीवन के सूनापन को व्यक्त करते समय व्यंजना शक्ति का परिचय मिलता है |


४. छंद योजना :- 

          छंदों के बिना कविता में लय, संगीत, ध्वनि एवं कर्णप्रियता मुश्किल से आती है, लेकिन महादेवी वर्मा ने सूनापन गीत कविता अतुकांत मुक्त छंद में लिखकर बहुत ही मधुर एवं कर्णप्रिय स्वरूप दिया हैं | जिससे छोटी सी कविता कर्णपट पर सुनते हैं, हदय के तार झंकृत होने लगते हैं | यही कविता की सफलता का आधार है |


५. प्रतीक एवं बिम्ब योजना :-

           महादेवी वर्मा की प्रत्येक कविता बिंब एवं प्रतीक की दृष्टि से बहुत ही सफल रही है | प्रकृति के बिम्ब प्रयोग में सुमित्रानंदन पंत के साथ महादेवी खड़ी रहती है एवं वे प्रतीक से हदय की उबलती संवेदना को व्यक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ती | उन्होंने प्रकृति के प्रतीक प्रयोग में बहुत ही सूक्ष्म भाव को चित्रात्मक स्वरूप में प्रतिबिंबित किया है | हदय का सूनापन आँसूओं के दाग से अंकित हैं |  संध्या का काला अंजन की तुलना स्त्री जीवन के सूनापन में स्पष्ट दिखाई देता है | इस प्रकार से यह कविता प्रतीक और बिंब की दृष्टि से बहुत ही सफल कही जा सकती हैं |


६. रस और गुण :-

          काव्य में रस हदय और मानस के भाव को भरने की प्रक्रिया होती है | यह प्रक्रिया शब्दों के साधन से पूर्ण होती हैं | प्रस्तुत कविता में प्रियतम के विरह में सूनेपन से भरे जीवन में शांत रस, वियोग श्रृंगार, अद्भुत रस एवं करुण रस का गीलापन हैं | इनसे कविता में हृदय की निर्मलता, स्वच्छता, पीड़ा और खालीपन, को दिखाने में माधुर्य गुण एवं प्रसाद गुण का चित्रण किया है | अतः यह कविता प्रसाद और माधुर्य गुण से संपन्न है | जिसमें कोमल, मधुर एवं हृदय को शांति से भरने वाले शब्दों का प्रयोग किया है |


(४) निष्कर्ष :-

          ‘सूनापन’ कविता में कवयित्री के जीवन का प्रतिबिंब चलकता है | इस जीवन को संध्या और आकाश, आँखें और आँसू, बादल और बिजली के प्रेम संबंध द्वारा वियोग के सूनापन को प्रस्तुत किया गया है | मानस स्मृति में मिलन सुख का मधुर प्रतिबिंब भी दिखाया है | आज वर्तमान में उसके जीवन का खालीपन आँसूओं के सूख जाने के बाद बने चिह्न के रूप में अंकित है | इसलिए यह कविता कवयित्री के प्रियतम विरह में अंकित चिन्हों की चित्र छवि है | यह कविता एक चित्रकार की तुलिका से बने चित्र समान हैं और मधुर शब्दावली कविता की काव्यानुभूति में चार चाँद लगा देती हैं | 

Tuesday, 13 December 2022

अनोखी भूल काव्य की व्याख्या

अनोखी भूल - महदेवी वर्मा
अनोखी भूल - महदेवी वर्मा

(१) प्रस्तावना :-

              हिंदी साहित्य की आधुनिक मीर महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य का अतुल्य हिस्सा हैं | इनकी कविताएँ छायावाद के आलोक में पली-बड़ी हैं | कवयित्री ने अपनी कविताओं में प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य वर्णन किया है और वे वेदना, पीड़ा, दुःख, तड़प, बैचेनी, रहस्यवाद, वियोग-श्रृंगार और आँसू में भी सौंदर्य मंडित प्रकृति का वर्णन करने में कुशल कलाकार हैं | निहार महादेवी वर्मा का प्रथम काव्य संग्रह इस काव्य संग्रह की कविताओं में जीवन का पहला स्पंदन, वेदना, सौंदर्य आदि का मधुर गीत शैली में कविता मिलते हैं | इन कविता की भावभूमि कवयित्री की निजी जिंदगी एवं अनोखे व्यक्तित्व  हा प्रतिबिंबि हैं | हदय के अंदर की वेदनाकालीन पुकार गूंजती रहती है | महादेवी का समस्त काव्य साहित्य रहस्यवाद के अंतर्गत आता है | रहस्यवाद आत्मा और परमात्मा की पारस्परिक प्राणयानुभूति को रहते हैं | अनोखी भूल नामक कविता में अज्ञात आराध्य की उपासना चलती रहती है | अज्ञात लोक से आह्वान आता है | हृदय के भाव स्पष्ट से व्यक्त नहीं होते फिर भी उसमें हो ओस बूंद समान निर्मलता पाई जाती हैं | जिसकी अभिव्यक्ति कवियत्री ने अपनी कविताओं की है | सांसारिक दुनिया में व्यक्ति से गलती ना हो, यह कभी संभव नहीं | जीवन में आने वाली परिस्थिति को ध्यान में रखकर अनुकूल निर्णय व्यक्ति लेता है, लेकिन हर वक्त तो यह निर्णय सही साबित हो यह संभव नहीं | भूल या गलती जीवन का अभिन्न हिस्सा है | जिससे मानव सीखता भी बहुत कुछ है और खोता भी बहुत कुछ है |  

        कवयित्री ने ‘अनोखी भूल’ कविता में अपने जीवन की एक अनोखी एवम् विशिष्ट संवेदनात्मक और भावनात्मक भूल की अभिव्यक्ति को केन्द्र बनाया हैं | जिसमें पृथ्वी लोक, देव लोक, अलौकिक प्रियत्तम, प्रेम, प्रकृति और व्यक्तिगत वेदना का स्वर सुनाई देता हैं |   


(२) ‘अनोखी भूल’ कविता का भावार्थ :-

            महादेवी वर्मा ने ‘अनोखी भूल’ शीर्षक कविता में अपने जीवन में की गई अनोखी, विशिष्ट, संवेदनात्मक और भावनात्मक भूल को काव्य रूप दिया हैं | 


१. अलौकिक प्रियात्तम का सौंदर्य वर्णन :-

              अनोखी भूल कविता की शुरुआत में कवयित्री ने अपने प्रियतम के अद्भुल अलोकिक सौंदर्य का वर्णन किया है | इस पर ईश्वर सब अपना कुछ न्यौछावर  करते हैं | ऐसा उनका प्रियतम है |


“जिन चरणों पर देव लुटाते

थे अपने अमरों के लोक,

नखचंद्रों की कांति लजाती

थी नक्षत्रों के आलोक;”


           इन पंक्तियों में ईश्वर भी जिस प्रियतम पर अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार है | ऐसे अद्भुत और अप्राप्य सौंदर्य संपन्न प्रियतम का सौंदर्य वर्णित किया है | इन प्रियतम के चरणों में देवता भी अपना अविनाशी संसार लुटाने के लिए तैयार है | अमरत्व पूर्ण संसार प्रियतम के चरणों अर्पित कर देते है, क्योंकि प्रियतम नखशिख खूबसूरती खान है | सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हैं | जिसके सामने सौंदर्य की चमक भी लज्जाशील अनुभव करती है | पूरी कायनात को अपने प्रकाश से रोशन करने वाले चंद्रमा की चाँदनी भी उनके सामने तुच्छ लगती है | इनकी सुषमा प्रिय चरणों के पास कुछ भी नहीं, जिसकी अद्भुत सौंदर्य सुषमा को देखकर मानव प्रभावित होता है | रात के अँधेरे में मोती से पानीदार चमकीले नक्षत्र के दर्शन का मूल्य अपने प्रियतम के सामने मूल्यहीन हो जाता हैं | कवयित्री ने प्रियतम के सौंदर्य का बेजोड़ एवम् अलौकिक वर्णन किया हैं | जिसे प्रेम करती हैं और उसे पाना चाहती है | जिस तरह नायिका के नखशिख वर्णन सूक्ष्मरूप किया जाता हैं, वैसे ही अपने प्रियतम के चरणों का देहिक सौंदर्य का आकर्षक ढ़ंग से किया हैं | पढ़ने वाले के मन-मस्तिष्क में प्रियतम की छबि चित्रित हो जाती है | 


२. प्रियतम के सुख-सुषमा का रहस्य :-

           प्रस्तुत पंक्ति में महादेवी वर्मा ने प्रियतम के सौंदर्य और आनंद का रहस्य का उद्घाटन किया हैं | जिसे कवयित्री के अलावा कोई नहीं जानते थे | यह हमारी उत्सुकता को बढाती है, क्योंकि अद्भुत और आराम से सब कोई रहना चाहते है |

 

“रवि शशि जिन पर चढा रहे

अपनी आभा अपना राज

जिन चरणों पर लौट रहे थे

सारे सुख सुषमा के साज |”


           उक्त पंक्तियों में अपने प्रियतम की आभा को बहुत ही आकर्षक ढंग से वर्णित की है | सूर्य और चंद्र चमकीली कांति उसे प्रकाशित है | सूर्य स्वयं उसके सौंदर्य अर्पित करने का कार्य करता हैं और रात्रि के अँधेरें प्रियतम पर चंद्रमा सौंदर्य बनाए रखने के लिए स्वयं चंद्रमा अपनी शुभ को अपनी हुकूमत को उस पर अपनी उज्जवल दूध सी चाँदनी का सौंदर्य न्यौछावर करते है | यही उसके खुबसूरत और आनंद से रहने का रहस्य है | इसके चरणों में ईश्वर स्वयं समग्र सृष्टि के प्राकृतिक सौंदर्य प्रभा का समान लोटा रहे थे | अत: इनके आनंद, आराम, चैन, सुख और शोभा का आधार ईश्वर खुद है | इसलिए प्रकृति में सूर्य और चंद्रमा का ओजस्वी और कोमल तेज जिसकी रखवाली करते हैं | यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कवयित्री के अलौकिक प्रियतम के सुख-सुषमा को कभी आँच भी नहीं आयेंगी |


३. नभ-मेघ की रखवाली :-

         उपरोक्त पत्तियों में अलौकिक सौंदर्य संपन्न प्रियतम की देख-भाल करने की जिम्मेदारी आकाश और मेघ स्वयं लेते हैं | 

 

“जिनकी रज धो धो जाता था

मेघों का मोती सा नीर,

जिनकी छवि अंकित कर लेता

नभ अपने अंत सथल चीर |”


         कवयित्री के प्रियतम अद्भुत सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हैं | प्रियतम के चरणों में चलने से या किसी भी कारण धूल लग जाती है या उनके चरण धूल-धूसरित हो जाते हैं तो उसको धोने के लिए आकाश निर्मल, स्वच्छ और मोती सा जल-कण बरसता है | इस जल से प्रियतम के चरणों पर लगी धूल धोने का काम मेघ करता है | प्रकृति में सबसे निर्मल और स्वच्छा जल पवित्र चरणों की राज धोने का सोभाग्य मिलता हैं | कवयित्री ने यह बताने का प्रयास किया हैं कि विश्व में सबसे पवित्र और निर्मल उनका प्रियतम है | आसमान हदय के अंदर प्रियतम की छवि को समाहित कर लेता है और उसे  ह्रदय में विश्राम स्थान देता है | उसकी रखवाली करता है | ऐसे अद्भुत और अलौकिक प्रियतम की कवियत्री प्रेमिका है | ऐसे मंदिर के देव को सुरक्षित रखने का कार्य आसमान का नभ-मंडल करता है | उनके दर्शन करने मात्र से हम अमर हो जाते हैं तो उसे मिलने के लिए हमें आसमान की ओर दृष्टि लगानी पड़ती है, क्योंकि प्रिय को नभ अपने हदय चीर कर रखता है | जिसकी सुष्मा को इन्द्रधनुषी रंगों में बिखेरता हैं | जिस प्रकार राम के अनन्य भक्त राम, सीता और लक्ष्मण को हदय में समाहित रखते थे | यहाँ कवयित्री अपने ह्दय में छिपे प्रियतम प्रेम की ओर दृष्टि डालना चाहती हैं | मैं उनकी अनन्य प्रेमिका हूँ, किन्तु मुझसे ज्यादा रखवाली तो आकाश के नभ और बादल करते हैं | मैं उनकी किस प्रकार की सेवा करूँ जिससे हमारा मिलन संभव हो | यही निर्मल भावना हदय ने पवित्र भावभूमि से निकली हैं | 


४. प्रिय मंदिर के द्वार :-

            कविता की निम्नलिखित पंक्ति में कवयित्री ने निज जीवन की पीड़ा को व्यक्त की है | उस पीड़ा से मुक्ति के लिए वे अपने प्रिय मंदिर के द्वार पहूँचती है | जहाँ उसे पीड़ा के मुक्ति का मार्ग मिलने की उम्मीद दिखाय देती है तथा प्रिय मिलन की संभावना दिखाई देती है |

  

“मैं भी भर झीने जीवन में

इच्छाओं के रुदन अपार,

जला वेदनाओं के दीपक

आई उस मंदिर के द्वार |”


          इस वुशाल जगत में मेरा जीवन छोटा और तुच्छ है | इतने छोटे जीवन इच्छा अनंत सागर में रुदन तूफान और उफन है | इच्छाओं को मैंने हदय  भीतर पाली है | वे इच्छाएँ तुमसे मिलने के बाद ही पूर्ण होगी | तेरे प्यार की चाहत मुझे अपार रुदल की आग में जला रही है | आँसू बहाने मजबूर करती है | ह्रदय की आशा आंखों से आँसू बनकर गिर रहे हैं | निरंतर रुदन की पीड़ा मेरे जीवन को गलाये जा रहा है | मेरे हृदय के बंद कपाट में वेदन का दीपक जालता रहता है | मंदिर में वेदना के दीप जलाकर आयी हूँ | यह दीपक कवयित्री के जीवन में व्याप्त एवं फैली पीड़ा का प्रतीक मन कर आया है | जो पीड़ा उसके भीतर निर्मल रोशनी से भर देती है और उसे वेदना की आग से उसे प्रकाश तो मिलता है, किन्तु खुराक के रूप में पूरा जीवन भी लेती है | अब उनसे रहा नहीं जाता है | वे अपने प्रियतम के मंदिर  द्वार पर पहुँच जाती है और सारी वेदना का तिनका-तिनका दिखाती है | वेदना जेलना का सामर्थ टूट चुका है और मंदिर के द्वार पर खड़ी है | जिस प्रकार मीरा कृष्ण के मंदिर के द्वार पर खड़ी मस्त हो जाती थी, इस प्रकार कवयित्री मंदिर के द्वार पहूँच जाती है और जीवन का सर्वस्व उसे अर्पित करने के लिए तैयार है | 


५. ईश्वर-प्रियतम का उपहार :-

          कवयित्री ने प्रियतम एवं ईश्वर के द्वार पर पहुँच गयी है, लेकिन वहाँ जाकर उसे ज्ञात होता है, कि ईश्वर के चरणों में क्या अर्पित करूँ ? उसको भेंट स्वरुप क्या दूँ ? मेरे पास तो कुछ भी नहीं | मेरे पास जीवन में व्याप्त पीड़ा, सूनापन, एकेलापन, खालीपन, वेदना, विरह और आँसू की संपति है | इसके अलावा मेरे पास क्या है ! अब उनके चरणों को उपहार स्वरुप क्या दूँ ? उसके पास किसी भी वस्तु कोई कमी नहीं ! जिनकी रखवाली और सेवा में सूर्य, चंद्र, मेघ, नभ हर पल उपस्थित होते हैं तो मैं उसे अपने तुच्छ जीवन से क्या दूँ | अत: मेरा सूनापन उसे क्या दे पायेंगे ?


“क्या देता मेरा सूनापन 

उनके चरणों को उपहार ?

बेसुध सी मैं धर आई

उन पर अपने जीवन की हार !”


          महादेवी वर्मा को बार-बार यह प्रश्न सताता रहता है कि मैं ईश्वर स्वरूप प्रियतम के चरणों में क्या अर्पित करूँ ? प्रेम और भावना से भरे हदय लेकर मंदिर के द्वार बेसुध और बैचेन होकर पहुँचती है और मन के उपवन में खिले फूलों का हार उनके चरण में धर कर चली आई | उसे अच्छा लगे और स्वीकार ले तथा मेरी असफलता आँगन में मिलन के पुष्प खिलने लगे | यहाँ मन के उपवन में खिले सुन्दर फूल से बने हार को उपहार स्वरूप श्रीचरणों में चढ़ाती हैं | 


६. जीवन की अनोखी भूल :-

         कवयित्री ने काव्य की अंतिम पंक्तियों में जीवन की संवेदनात्मक, भावनात्मक एवं विशिष्ट भूल को पंक्ति बद्ध की है |


“मधुमाते हो विहँस रहे थे

जो नंदन कानन के फूल

हीरक बन कर चमक गई

उनके अंचल में मेरी भूल !”


         प्रस्तुत पंक्ति में कवयित्री ने अपनी भूल की चमत्कारिक अनुभूति को अभिव्यक्ति दी है | प्रियतम ईश्वर के मंदिर गई और उसे मन के सुमनों की माला उपहार स्वरूप चढाती हैं, लेकिन वहाँ से लौटते वक्त कवयित्री की निगाह मंदिर के करीब बनें घने उपवन और वाटिका में खिले पुष्प पर पड़ती है | जहाँ इंद्र को आनंदित करने वाले सुगंधित फूलों की महक आ रही थी | ये पुष्प कवयित्री की ओर देखकर मीठी हँसी हँस रहे थे, क्योंकि मैंने ईश्वर के चरणों में मन के सुमनों की माला अर्पित की थी | यह तो पहले से ही उस के पास था | इसलिए तुरंत ही मेरी भूल मुझे समझ में आती है, कि प्रियतम के चरणों में अपने मन की भावनाओं को अर्पित कर आई थी | इससे अच्छे कोमल, मीठी सुगंध युक्त पुष्प इंद्र देवता की पुष्प वाटिका और जंगल में खिले हैं | जिसमें नैसर्गिक सौंदर्य और निर्मलता हैं |  अब मुझे लगता है कि मैंने प्रियतम की प्रेमानुभूति की भावना और संवेदना के कारण बड़ी भूल कर दी | ईश्वर के क्षेत्र विस्तार में जा कर मुझसे यह भूल होती हैं | हीरे की चमक की तरह हदय के भीतर दर्द का झटका लगता हैं और मैं चौंक जाती हूँ | यही भूल महसूस कर रही हूँ | 


(३) ‘अनोखी भूल’ कविता के कला तत्त्व :-

            काव्य को सर्वगुण संपन्न बनाने के लिए काव्य के कला-पक्ष में भाषा-शैली, अलंकार, छंद, शब्द शक्ति, प्रतीक, बिंब आदि का सफल सुयोग होना अति आवश्यक हो जाता है तब जाकर कविता का बाह्य रूप निर्मित होता है | कवयित्री ने ‘अनोखी भूल’ कविता में निम्नलिखित कला तत्वों का उपयोग किया है |


१. भाषा-शैली :-

            महादेवी वर्मा ‘अनोखी भूल’ कविता की भाषा गागर में सागर भरने का काम करती है, क्योंकि काव्य में विस्तृत वर्णन की आवश्यकता नहीं, कम से कम शब्दों में भावाभिव्यक्ति करनी होती है | इस कला में महादेवी वर्मा बहुत ही प्रसिद्ध है | अनुभूति को चुने हुये शब्दों में व्यक्त करना कोई इन से सीखे | प्रस्तुत कविता में अपने अलौकिक प्रियतम का सौंदर्य वर्णन एवं मंदिर द्वार भावनात्मक अभिव्यक्ति दी है | सौंदर्य वर्णन के समय सहज, सरल एवं साहित्यिक शब्दों का अद्भुत मणिकांचन योग मिलता है | हिंदी भाषा का संस्कृत गर्भित खड़ी बोली रूप का उपयोग किया है तथा आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग काव्य को सुबोध बनता हैं | जैसा भाव वैसी भाषा का सूत्र रक्खा है | यह कविता आधुनिक हिंदी गीत शैली में लिखी गई है | इसमें भावात्मक, चित्रात्मक, व्यंजनात्म और आत्मिक शैली में गुम्फन किया है |

जना पूर्णा है


२. अलंकार योजना :-

           सौंदर्य मानव मात्र को आकर्षक लगता है | आदि अनादि काल से मानव सौंदर्य की खोज कर रहा है और सौंदर्य को देखते ही अभिभूत हो जाता है | काव्य साहित्य का सृजन सत्यम, शिवम और सुंदरम के उद्देश्य से होता है | काव्याभिव्यक्ति को सार्थक, असरकारक, प्रभावक बनाने के लिए भाषा में अलंकारों का प्रयोग किया जाता है | ‘अनोखी भूल’ कविता में शब्दालंकार एवं अर्थालंकार से काव्य शोभा में वृद्धि की गई है | इससे कविता आकर्षक, कर्णप्रिय एवं सुंदर लगता है | कविता से एक उदाहरण प्रस्तुत है-


“मेघों का मोती सा नीर |” – उपमा अलंकर


३. छंद :-

       छंद का संस्कृत अर्थ वृत्त है | वृत्त यानि बार-बार आया हुआ | छंद का प्राण पुनरावृत्ति हैं | आवाज के कुछ तत्त्व बार-बार पुनरावृत्त होने लगे वे छंद है | छंद कविता में मधुरता और बाह्य कलेवर तैयार करता है | वर्ण के उच्चारण में से जन्मा नापने योग्य बानी आकार यानि छंद | यह कविता गीत शैली के अतुकांत-मुक्त छंद में लिखी गई है | 


४. शब्द-शक्ति :-

          शब्द के अर्थ ज्ञान के बीना कविता को समझना कठिन होता हैं | कविता की माला में पिरोये शब्द को समझने के लिए अभिधा, लक्षणा और व्यंजना शक्ति का बोध होना चाहिए | प्रस्तुत कविता में अभिधेयार्थ और व्यंजनार्थ शब्दार्थ से निष्पन्न होते हैं | मंदिर के सामने खिले फूल का मुस्कुराना व्यंजना की अभिव्यक्ति है, क्योंकि परोक्ष रूप से कवयित्री की मज़बूरी पर मुस्काते थे | 


५. प्रतीक योजना :-

           प्रतीक के बल कविता तस्वीर बन जाती हैं, क्योंकि सूक्ष्म भावनाओं को अन्य प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक संकेतो से अभिव्यक्त की जाती है | जिसके इसका चित्र स्पष्ट हो जाता हैं | कवयित्री ने वेदना के लिए दीपक और हदय के लिए नभ के अंत:स्थल का प्राकृतिक प्रतीक नियोजित किया हैं |   


६. रस और गुण :-

            रस को कवियों ने कविता की आत्मा कहा है | जब कवि मनोभावों को व्यक्त करना चाहते हैं तब रस ही तो है जो रचना में जान डाल देता हैं | साहित्य में विद्वानों ने मुख्यत: नौ रस को स्वीकार किया है | इनमें अनोखी भूल कविता में फूलों के हँसने में हास्य रस, उससे उत्पन्न विस्मय में अद्भुत, कवयित्री के शोकपूर्ण जीवन के वर्णन में करुण आदि रसों का वर्णन किया है | 


(४) निष्कर्ष :-

          ‘अनोखी भूल’ कविता महादेवी वर्मा के हदय में छिपे अलौकिक प्रियात्तम के प्रेमाभिव्यक्ति की कविता हैं | जीवन में प्रेम के सुनहरे काल में प्रिय स्नेही को देने के लिए कुछ भी नहीं | इनका प्रिय तो अमर लोक के अत्यधिक सुन्दरता से शोभायमान है | रवि और शशि उन पर सौंदर्य का नैसर्गिक सामान  लुटाते है | नभ के भीतर आश्रय स्थान और मेघ की सेवा प्राप्त है | उनके मंदिर द्वार जाकर कवयित्री मन के सुमनों की माला अर्पित करती है, किन्तु ये उनकी भावनात्मक भूल थी | इस पर मंदिर के आँगन में खिले पुष्प हँस रहे थे तब कवयित्री को अपनी भूल मोती की चमक की भाँती समजाती है | ये गीत ईश्वर स्वरूप प्रियतम के मिलन समय भावना से हुयी भूल की अभिव्यक्ति है | कोमल शब्दावली से युक्त कविता ह्दय को प्रभावित कर देती है |  

Tuesday, 6 December 2022

मिटने का खेल कविता का मूल्यांकन

(१) प्रस्तावना :-

           हिंदी काव्य साहित्य में महादेवी वर्मा वेदना और आँसू के अनंत पथ की यात्री है | हिंदी कविता में प्रेम, अलौकिक प्रियतम, रहस्यवाद, दु:ख, पीड़ा एवं सूक्ष्म संवेदनाओं की अभिव्यक्ति में उनका शीर्षस्थ स्थान है | इनकी कविताएँ छोटे-छोटे मीठे झरने की तरह है | उनकी कविता में वेदना, पीड़ा, व्यथा और स्मृति, प्रेम, अलौकिक प्रेम एवं वियोग विरह की एक अनंत रागिनी गूंजती रहती है | इसी भाव संपदा को उन्होंने सूक्ष्म से सूक्ष्म और विविध रूपी छवियाँ कविता में अंकित की है | ई. स. 1930 में प्रकाशित पहला काव्य संग्रह ‘निहार’ की ‘मिटने का खेल’ कविता इसका बखूबी परिचय करवाती है | ‘मिटने का खेल’ का सामान्य अर्थ होता है कि मन को बहलाने वाली क्रीडा | जिसमें स्वयं को नष्ट करके आनंद लिया जा सकता है | प्रियतम स्वयं चर्म चक्षु से क्रीडा का देख सके | जिसमें ह्रदय के निर्मल, पवित्र एवं असीम भावों को व्यक्त किया है | स्वयं के जीवन को वेदना से मिटता हुआ दिखती कवयित्री आंसूओं से आह्वान करती है कि मेरे जीवन को मिटाया नहीं जा सकता | आँसू और वेदना मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती तो परोक्ष रूप से नारी जीवन के गीले हदय की खुशबू भी महकती है | जो वेदना के गीत में गुनगुनाती है | अपने जीवन में आने वाली अनंत वेदना की ओर भावनात्मक दृष्टि की है | जिसको कभी आंसू मिटा नहीं सकता | जिस प्रकार वीणा के तार जब अपने सफ़र में लीन हो जाते हैं तब वीणावादक भी अंतर्धान हो जायेंगा | यही भाव कविता का केन्द्रीय भाव है | 


(२) मिटने का खेल कविता का भाव-पक्ष 

          महादेवी वर्मा ने मिटने का खेल कविता में अपने हृदय की कोमल मधुर-मीठी एवं वेदना युक्त पीड़ा को व्यक्त की हैं |


१. अनंत पथ की पथिका :-

          प्रस्तुत कविता की शुरुआत महादेवी वर्मा बहुत ही समझदारी एवं भावनात्मक ढंग से करती है | काव्य आरंभ में ‘मैं’ सर्वनाम का प्रयोग करके कविता सर्जन में निहित वेदना स्वयं के हदय की वेदना है, किन्तु वे वेदना संसार में व्याप्त प्रेम के मीठे सपनों में साथ चलकर आती है और यह प्रत्येक व्यक्ति की निजी संवेदना की अनुभूति हैं | इसलिए सांकेतिक दृष्टि से कविता की वेदना व्यक्ति विशेष न रहकर सर्वव्यापक संसार के हदय लोक में घुल-मिल जाती है |


“मैं आनन्त पथ में लिखती जो

सस्मित सपनों की बातें,

उनको कभी न धो पायेंगी

अपने आँसू से रातें !”


         इन काव्य पंक्तियों में कवयित्री जीवन की असीम कृष्ण प्रेम की यात्रा को व्याख्यायित करती है | प्रेम के मार्ग पर वह निकल चुकी है | जिस मार्ग का कहीं अंत नहीं | ये प्रेम का मार्ग एक व्यवहार पद्धति की तरह अनंत एवं असीम है | प्रेम के इस पथ में दु:ख और पीड़ा अच्छी लगती है | जहाँ क्षण-क्षण जीवन को मिटाती हुयी वेदनाओं को झेलना पड़ता है, फिर भी मैं वेदना को सुनहरे भविष्य के लिए मुस्कुराते हुये लिखती हूँ | अपने सपनों की बात लिखते ही जा रही हूँ, क्योंकि मुझे अपने प्रियतम ईश्वर को प्राप्त करना है | इसलिए पथ में आने वाली प्रत्येक समस्या से वह सस्मित अंगिकार करती हैं | मुझे यकीन है कि मेरे वचन एवं प्रसंग से भविष्य उज्जवल होगा | अतः जीवन में आने वाली प्रत्येक बाधाओं को सहर्ष स्वीकार करके अनंत पथ पर निकल पड़ी हूँ |

           जीवन के सपनों को निराशा की रात्रि कभी नहीं साफ कर पायेंगी | इसके लिए मुझे कदम-कदम पर आँसू बहाने पडते हैं, लेकिन आँसू की रातें भी सपनों को तोड़ नहीं पायेंगी | मेरे सपने अपने आंसूओं से बढ़कर है | इन पंक्तियों में कवियत्री ने अपने दृढ़ मनोबल, लक्ष्य सिद्धि एवं प्यार प्राप्ति का अथक प्रयत्न दिखाकर अपनी जिजीविषा और चाहत का परिचय दिया है | प्रियतम के मिलने की चाह को घने अंधकार की रात, आंसू, दु:ख एवं अनंत पथ उसको रोक नहीं पायेगा | अनुराग उन बाधाओं से बढ़कर है | प्रेम विरह पथ की यात्री महादेवी वर्मा ऐसे लक्ष्य की ओर निकल पड़ी है | जिसका कहीं अंत नहीं, फिर भी अपने जीवन को मिटा कर हँसते हुये सुनहरे भविष्य के सपनों को लिखती जा रही है और इस पथ में पीड़ा, बाधा, आँसू के अंधकार मिलने वाला है, लेकिन कवयित्री के सपनों को कोई मिटा नहीं सकेगा |


२.  अमिट पीड़ा की रेखाओं का अंकन :-

            काव्य की निम्न पंक्तियों में प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से कवयित्री ने अपने पीड़ा का अनंत अंकन किया है | जिसको जिंदगी भर ढोती रही है | जो उन्हें कष्ट कर लगते हुये भी मीठी एवं मनभावन लगती है | जिसकी अमिट छाप उसके हदय में अंकित मिलती है | इसकी रेखाओं का अंकन इतनी मजबूती से किया गया है कि उसे कोय मिटा या साफ नहीं कर सकता | इस पूरे संसार में वे एक सामान्य तुच्छ रेत के कण के समान है | जो अपने प्रियतम के विरहाग्नि में जल कर आकाश तक पहुँचती हैं |


“उड़ उड़ कर जो धूल करेगी

मेघों का नभ में अभिषेक,

अमिट रहेगी उसके अंचल

में मेरी पीड़ा की रेखा |”


         प्रस्तुत प्रतिबिम्ब ग्रामांचल में सहज देखने को मिलता है | प्रकृति के छोटे प्रतीक से बहुत सूक्ष्म भावाभिव्यक्ति को अभिव्यक्त किया है | सूखी मिट्टी के सूक्ष्म कण उड़-उड़ कर आसमान तक जाते हैं और अपने प्रियतम बादल को विरह संदेश सुनाते है | बादल प्रियात्तमा सूखी मिट्टी के सूक्ष्म कण पर बारिश के बूंदों से जल छिड़कने का कार्य करता है | जिससे धूल-कण की वेदना शांत हो जाती है | इसकी प्रेम प्यास को तृप्त कर दिया जाता है | जिससे धूल के हदय कण में अंदर छिपी हुयी वेदना मिलन में बदल जाती है | 

           प्रकृति में वर्षाऋतु से पहले तेज पवन चलने लगता है और धूल आसमान तक पहुंच जाती है | धूल के छोटे-छोटे सूक्ष्म कणों में विभाजित होकर अपने अस्तित्व को मिटाकर बादल के प्रेम को प्राप्त करती हैं | उसकी निरंतर पीड़ा की ज्वाला बुज जाती है, लेकिन कवयित्री के ह्रदय में छिपी प्रिय विरह की अमिट पीड़ा को कोय नहीं मिटा सकता ! हदय में छिपा वेदना का चित्र उसके पल्लू में ही छिपा रहेगा | इस मिटने वाली पीड़ा की लकीरे जिंदगी पर्यंत मेरे हदय में अंकित रहेगी | संसार में मेरा अस्तित्व तक मेरी पीड़ा अंकित मिलेगी |  


३. अनंत पथ की अभिलाषा का चित्रण :- 

          मानव जीवन में इच्छा और चाह का होना सहज है | प्रत्येक मनुष्य के हदय मंदिर में मनोकामनाएँ एवं आकांक्षा अनुभूत होती है | प्रस्तुत पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने खुद की अनंत अभिलाषाओं का प्रकृति के प्रतीक तारे, आँखें, आकाश तथा लोगों के माध्यम से प्रत्यक्ष की है |


“तारों में प्रतिबिंबित हो

मुस्कुरायेंगी आनन्त आँखें,

होकर सीमाहीन, शून्य में

मंडरायेंगी अभिलाषें |”


           आकाश के भीतर दिन के उजाले में रात को चमकने वाले तारे दिखाई देते नहीं, बल्कि शाम ढलने के बाद ही छोटे बड़े सभी तारक गण जगमगाने लगते हैं | तारों की यह परछाई स्वयं में भी दिखाई देती है | यह तारे अनंत आकाश की आँखों की मुस्कुराहट है | आसमान के शून्य होते ही अनंत आंखें मुस्कुरायेंगी | इन तारों की तरह मेरी आंखें चमकने लगेगी | जब मेरा जीवन सीमाहीन खाली आकाश की तरह घेरा बांधकर मेरी चारों ओर मेरी इच्छा, आकांक्षा, ख्वाब, कामना एवम् मन की चाह मेरी चारों ओर मंडराकर चक्कर काटने लगेगी | यहाँ कवयित्री ने परोक्ष रूप में मृत्यु के बाद के जीवन को रेखांकित किया हैं |

           इन पंक्तियों में जिंदगी के खालीपन को व्यक्त किया है | जिंदगी में कोई चाहने वाला हमारे पास होता है तब हम उसका मूल्य समझते नहीं, लेकिन जब वे अस्तित्व हीन हो जाते है तो हमारी चाहत बढ़ने लगती है | उस प्रिय के चारों ओर मन घूमने लगता हैं | इसलिए कवयित्री कहना चाहती है कि जब हमारे पास सब कुछ है तब उस को महत्व देना चाहिए | उसके चले जाने के बाद स्वयं का कुछ नहीं बचता | प्रियतम के लिए क्षण-क्षण और पल-पल जिंदगी को खपाने वाली महादेवी अपने प्रियतम के मिलन सुख की आकांक्षी है, लेकिन प्रियतम उस प्रेम से वंचित रखता है और विरह भरा जीवन काट रही है | वे दुनिया में नहीं होंगी तब वे वक्त प्रियतमा को चाहकर भी नहीं मिल पायेंगे | 


४. विस्मृति में निर्वाण की गुंज :-

            कविता की निम्नलिखित पंक्तियों में जीवन प्राण की सुंदर व्याख्या की है | प्रतीकों के जरिए विस्मरण बोध करवाया है तथा बुजती प्रेम विरही आग की ओर बढ़ते कदम की यात्रा को प्रतिबिम्बित की है | 


“वीणा होगी मूक बजाने

वाला होगा अन्तर्धान

विस्मृति के चरणों पर आकर

लौटेंगे सौ सौ निर्वाण !”


          उक्त पंक्तियों में हदय की साँसों को वीणा के तार से निसृत संगीत के प्रतीक से सहज दिया है तथा आत्मा और परमात्मा के तार को जोड़ा गया है | वीणा एक प्राचीन भारतीय बाजा है, सितार के जैसा वाद्य होता है | इस वाद्य से संगीत के स्वर निकलते हैं | जब वीणा के तार टूट जायेंगे तब इनसे निकलने वाला मधुर संगीत गूंगा और मूक हो जायेंगा | उस समय वीणा वादक यानी वीणा को बजाने वाला भी अन्तर्धान हो जायेंगा | यहाँ कवयित्री ने वीणा के संगीत के रूप में अपने हदय की साँसों के तार जोड़े है | वीणावादक ईश्वर अपना प्रियतम है | दूसरी वीणा रूपी शरीर का अस्तित्व खत्म हो जायेंगा | जीवन संगीत की यह प्रवाह पूर्ण महफिल पूरी हो जायेंगी | 

           जीवन वीणा के तार मूक होने से उसमें केवल विस्मरण बचेंगा | उसकी याद बचेंगी | जो बार-बार हमें जीवन की प्यार भरी यादों की ओर मुड़ने के लिए कहती रहेंगी, लेकिन सब बातों के निचोड़ के रूप में सबके पास केवल जीवन का अंत होगा | शुन्य में व्याप्त जीवन होंगा | जहाँ से लौटकर आने की इजाज़त किसी को नहीं मिलती | जीवन के इस मोड़ पर हृदय के अंदर से प्रिय की यादें भी मिट चुकी होंगी तब तुम्हारें पास स्मृतियों के सहारे रहने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा होगा ! यह स्मृतियाँ तुम्हें बार-बार लौटने के लिए कहेंगे, लेकिन उस समय जीवन की प्यार भरी उज्जवल रोशनी समाप्त हो चुकी होगी, बुझ चुकी होंगी | तुमे जीवन का बुजा हुआ दीप मिलेगा | इस मुकाम पर हमारे पास सब कुछ होता है तब उसका मूल्य स्वीकार नहीं करते, लेकिन वह छीन जाने के बाद उसके बारे में बार-बार स्मरण होता है | उसका मूल्य हमें समझ में आता है, लेकिन वह दुबारा लौटकर आने वाला नहीं है | यहाँ कवयित्री ने आत्मा और परमात्मा तथा प्रिय और प्रियतम के सह अस्तित्व स्वीकार हैं | 


५. लौकिक का अलौकिक से एकाकार :-

         कवयित्री ने ‘मिटने का खेल’ कविता के अंत में आत्मा और परमात्मा के मिलन की उम्मीद कायम की है | मनुष्य जीवन की उनकी अपनी सीमा, बाधा और सरहदें होती है | इसीलिए जीवन को संसार के तौर-तरीके से जीना पड़ता है, लेकिन अलौकिक शक्ति के एकाकार से बहुत ही बदलाव हो सकता है | जिसका चित्रण निम्न पंक्तियों में किया है |


“जब असीम से हो जायेगा

मेरी लघु सीमा का मेल,

देखोगे तुम देव ! अमरता

खेलेगे मिटने का खेल !”


          उक्त पंक्तियों में कवयित्री कहना चाहती है कि जब मेरे ह्रदय के तार बेहद, अपार एवं सीमाहीन से जोड़े जायेंगे तब मेरे छोटे से कोमल जीवन की सारी सरहदे मिट जायेंगी | मेरा मिलन उस अलौकिक प्रियतम से हो जायेंगा, किन्तु उसके लिए मुझे स्वयं के अस्तित्व को मिटाना पड़ेगा | परमात्मा यह खेल आत्मा के शाश्वत अस्तित्व का है | यह खेल ईश्वर तुम स्वयं देखोंगे | इस खेल में तुम मेरे जीवन को नष्ट होते एवं लुप्त होते देख पाओंगे | यही मेरे मन को बहलाने की चेष्टा और क्रीडा है | यह क्रीडा को तुम स्वयं अपनी आंखों से निहारते रहोंगे, लेकिन जीवन की इस क्रीडा का अवलोकन करते रह जाओंगे | अपनी बुद्धि से सोचते रह जाओंगे | यही मेरा मन बहलावन एवं मनभावन प्रेम करने का सलिका हैं | 


(३) मिटने का खेल कविता का कला-पक्ष :-


१. भाषा-शैली :-

           प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने अभिव्यक्ति बहुत ही सूक्ष्म, स्पष्ट एवं हदय के तार को झंकृत करने भावना को अभिव्यक्ति दी है | इसलिए हिंदी खड़ीबोली की माधुर  अर्थपूर्ण शब्दावली का चयन किया है, लेकिन इसमें संस्कृत गर्वित शब्दावली का साहित्यिक रूप मिलता है | बोलचाल के शब्दों के प्रयोग रूचि पूर्ण लगते हैं तो कभी-कभी शब्दों का तोड़-मरोड़ भी प्रत्यक्ष दिखाई देता है | जिसमें भाव अपने संपूर्ण सामर्थ्य के साथ प्रस्तुत हो सकें | यही उनका मुख्य लक्ष्य रहा है | उनका शब्द चयन अत्यंत सुंदर और भावनाओं के अनुकूल काव्य चित्र है |  इनके कव्य को हदय चित्र भी कह सकते है | वह कम से कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती है | इनकी सांकेतिक भाषा पाठक को सोचने के लिए बाध्य करती है | कविता में भावनात्मक, चित्रात्मक, व्यंजनात्मक शैली को अपनाया गया है | यह एक गीत काव्य है | अतः गीत-शैली के शब्द की माला पिरोने महादेवी वर्मा कुशल कलाकार है |  

२. अलंकार योजना :-

         कविता में व्यक्त ह्रदय की अनुभूति को सौंदर्य पूर्ण ढंग से शब्दों के सौंदर्य के लिए कवयित्री अलंकारों का सहारा लेती है | यह भाव सौंदर्य तीन रूपों में विद्यमान होता है, एक शब्द के आधार पर निर्मित काव्य सौंदर्य और दूसरा शब्द में निहित अर्थ के आधार पर काव्य सौंदर्य तो तीसरी अवस्था में कभी-कभी सयुक्त रूप में शब्द एवं अर्थ के संयोग से काव्य सौंदर्य बढ़ाने का सहज प्रयत्न किया जाता है | मिटने का खेल कविता को अलंकारों के उपयोग से सुन्दर स्वरूप दिया गया है | 


३. छंद-योजना :-

           मिटने का खेल एक गीत कविता है | जिसमें हृदय के भावों को मुक्त रूप से लय, संगीत, ध्वनि एवं वर्ण व्यवस्था के आधार पर स्वरूप निर्मित किया है, लेकिन उसमें मुक्तकता और स्वच्छंदता देखने को मिलती है | इसलिए महादेवी वर्मा ने यह कविता अतुकांत मुक्त छंद में लिखी है, फिर भी लय माधुर्य, भाव माधुर्य एवं कर्ण माधुर्य ध्यान खींचता है | यह कार्य छंद का हैं | 


४. शब्द-शक्ति :-

         शब्द में असीम शक्ति निहित होती है | हमारे प्राचीन शास्त्रों से लेकर वर्तमान साहित्य इसका जीवंत दस्तावेज है | शब्द में पूरे जीवन को बदलने की क्षमता पायी जाती है | शब्दों में तीन स्वरूप की शक्ति पायी जाती है | वह मुख्य, गौण एवं अन्य तीसरे अर्थ में रहती है | जिसको अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना के रूप में पहचानते है | प्रस्तुत कविता में कवयित्री कविता के सरल सहज भावाभिव्यक्ति के लिए अभिधा प्रयोग किया है, जबकि प्रतीकों के माध्यम से सूक्ष्म भाव को व्यक्त करने में व्यंजना का प्रयोग किया है | अलौकिक ईश्वर के मिलन की प्रतीक्षा कविता में व्यंजना को चरितार्थ करती है | इन शब्दों में हदय की नयी चित्रात्मकता एवं व्यंजनात्मकता पैदा होती हैं |  


५. प्रतीक एवं बिम्ब :-

          हदय और मन की सूक्ष्म भावना को व्यक्त करने के लिए प्रत्यक्ष प्रकृति के प्रतीक जोड़कर प्रयुक्त करने में महादेवी वर्मा कुशल कलाकार है | अप्रस्तुत को प्रस्तुत करने के लिए कवि हमारे सामने शब्दों की भाव छपियाँ अंकित करते है कि हम उसे प्रत्यक्ष देख सकते है | प्रकृति के प्रतीक प्रयुक्ति में कवयित्री अग्रगण्य है | इस कविता में तारें, मेघ, नभ, वीणा, वीणावादक आदि प्रतीकों का प्रयोग करते है | अभिलाषा का कलात्मक शब्द-बिम्ब हमारा ध्यान किये बीना नहीं रहता |


६. रस एवं गुण :-

        महादेवी वर्मा ने मिटने का खेल कविता में रस एवं गुण का मधुर झरना बहता है | जिसके जरिए मानव ह्रदय के भीतर रस के छोटे-छोटे फव्वारे फूटने लगते हैं | मुख्य रस भले ही करुण रहा हो, लेकिन उसके अलावा अद्भुत, हास्य एवं शांत रस का योग मन को लुभाता है | जिसकी खुशबु महसूस किये बीना पाठक रह नहीं सकता | कोमलकांत शब्दावली में निर्मित यह कविता माधुर्य गुण से संपन्न है | पीड़ा भरे ह्रदय के भाव को मधुर शब्दों में व्यक्त करने की विशेष खूबियाँ दिखाई देती है | पीड़ा से मिले आनंद में मन रम जाता हैं | 


(४) निष्कर्ष :-

          हिंदी साहित्य की गणमान्य कवयित्री महादेवी वर्मा ने मिटने के खेल कविता में मुख्य रूप से ह्रदय की मन बहलाने वाली क्रीडा का चित्रण किया है | यह क्रीड़ा अपने प्रियतम में एकाकार होने की हैं, किन्तु उसमें स्वयं को मिटाकर पिघल जाने की प्रवृत्ति मुख्य है | मुख्य रूप से प्रतीकों का सहारा लेकर अनंत पथ की यात्री ने पीड़ा के लोक में असीम चाहत की आग को हमारे सामने प्रस्तुत की है | पीड़ा यह झरना हदय के अंदर बहता है | जिसके चिन्ह महादेवी के ह्रदय में अंकित है | जिसको कभी कोई मिटा नहीं सकता | उसे कभी कोई शांत नहीं कर सकता | जीवन की अभिलाषाओं का चारों ओर मंडराते वक्त एक दिन उसे वीणा के तार की तरह मौन और लाचार कर देता है और इस विस्मृति के सहारे वह एक शून्य में खो जायेंगे और एक दिन महादेवी वर्मा के जीवन का दीपक बुझता नजर आता हैं तब अलौकिक से जुड़े आत्मा के तार टूट कर बे हिसाब ईश्वर से मिल जायेंगी | इस समय आत्मा की शाश्वत शक्ति से परिचित होकर मन की मनोरम और मिटने की क्रीडा को देख पाओंगे ! यही भाव कोमलकान्त शब्दावली में व्यक्त किया हैं |