Thursday, 24 November 2022

मिलन कविता में व्यक्त संदेश

(१) प्रस्तावना :-

           हिंदी कविता की ‘आधुनिक मीरा’ महादेवी वर्मा अपने अनोखे व्यक्तित्व एवं सर्जन से साहित्य जगत में चर्चित है | इनका अमूल्य योगदान हिंदी साहित्य के पाठक कभी नहीं भूल पायेंगे | सरस्वती की सच्ची साधिका के रूप में  इनका नाम सादर लिया जाता है | इस भक्ति के लिए इन्होंने शब्द के साधनों का उपयोग किया है तथा ह्रदय की पवित्र संवेदना को आँसू की स्याही से कविता लिखी है | वे अलौकिक प्रेम की विरह वेदना और पीड़ा सहते हुये प्रियतम को मिलने की आकांक्षी रहती है | कविता में प्रकृति चित्रण, रहस्यवाद, दुख, पीड़ा, आंसू, सूनापन आदि की सहज अभिव्यक्ति है, लेकिन कवयित्री की यह भावनाएँ सर्वव्यापक स्वरूप में पायी जाती है | इनकी कविता में मिलन-विरह, अलौकिक प्रियतम, स्वर्ग सुख एवं स्व-हदय के विकसित रूप अभिव्यक्ति है | ‘मिलन’ कविता में कवयित्री ने ह्रदय-मन की सुंदर और कोमल मूक मिलन की संवेदना को अभिव्यक्त दी है | जिसके लिए प्रकृति के प्रतीकों का उपयोग किया है | मिलन सुख के सुन्दर मूक सौंदर्य को व्यक्त किया हैं, किन्तु मिलन में छिपी पीड़ा भी झाकती हैं |

 

(२) मिलन कविता में व्यक्त संवेदना और संदेश :-

           मिलने की क्षण को बहुत ही सुक्ष्म, स्वच्छ, पवित्र तथा व्यथा युक्त ह्रदय की चुभन को शब्दो से अंकित की है | 


१. संसार की करुण कहानी :-

         मिलन कविता का शुरुआत महादेवी वर्मा ने प्रकृति के वर्णन से की है | इन पंक्तियों में ह्रदय छिपे प्रियतम मिलन के मूक और कोमल भावों की महक है | जिसमें विरह वेदना की खुशबू हदय के कोने-कोने में व्याप्त होने लगती हैं |


“रजतकरों की मृदुल तूलिका

से ले तुहिन-बिंदु सुकुमार,

कलियों पर जब आंक रहा था

करुण कथा अपनी संसार |”


         इन पंक्तियों में कवयित्री ने पुष्प की कोमल कली और तुषार के सुन्दर बिन्दु के मिलन कहानी के द्वारा मानव हदय की प्रेम भावना को अभिव्यक्ति दी है | कली के प्रियतम चांदनी रंग के उज्जवल और कोमल हिम या तुषार बिंदु हैं | जो दिखने में सुंदर और कोमल किशोर बालक के समान प्रियतमा पुष्प की कोमल कली यानी फूल के अविकसित रूप की दयनीय प्रेम कहानी लिखता हैं | प्रेम के माया जाल में कली को बाँधकर विरह की वेदना दे जाता है | पुष्प कली के संसार को तुषार बिन्दु अपने प्रेम के बहाने उसे आने वाली पीड़ा की ओर ले जा रहा है | इनसे कली बिल्कुल अनजान दिखाई देती है | दिखने में तो यह मिलन सुख है, लेकिन मिलन से ज्यादा वियोग की पीड़ा नसीब होने वाली है | इसलिए कवयित्री ने कली की करुण कहानी संसार के सामने रखी है | नारी जीवन के यौवन काल में प्रियतम के प्रेम के साथ लिखी जाने वाली पीड़ा को व्यक्त की हैं | 


२. तरल हदय की उच्छवास :-

         कवियत्री ने काव्य की प्रस्तुत पंक्तियों में मेघ, बरसात, धुल कण के जरिए प्रेम की मीठी भावना को अभिव्यक्ति दी है | जिसमें प्रीति के बहाने कवयित्री के हदय प्रदेश की छवि को अंकित करी हैं | दिन के बाद रात्रि का अँधेरा होता हो तो कुछ दिखाय नहीं देता और अन्धकार दिन की चोट लगने से अपने नैनों से अश्रु रूप काजल बरसाने आते है |   


“तरल हदय की उच्छवास

जब भोले मेघ लूटा जाते,

अन्धकार दिन की चोटों पर

अंजन बरसाने आते !”


         उक्त पंक्तियों में स्थिर एवं चंचल हृदय की दुख के कारण निकलने वाली साँसों का चित्रण किया है | अस्थिर हदय की साँसों को सीधे-साधे अकाश के बादल छीन लेता है, क्योंकि अज्ञान एवं अंधेरे के कारण दिन में भी मेघ अंधकार की तरह घाव और प्रहार करता है | हदय को चोट पहूँचाता है | अंधकार आँखों के सूरमा या काजल रंग की वर्षा करने आता है | जिसमें दिन के उजाले में भी हदय को चोट पहूँचाता रहता है | प्रत्यक्ष तो यह मेघ बरसात के रूप में प्यासी धरती को प्यास बुझाता है, लेकिन अज्ञान के कारण वह साँसे छीनकर जीवन से रिक्त होने की संवेदना है |


३. विधुर हदय की कम्पन :-

           प्रस्तुत पंक्तियों में मधु की पवित्रता तथा आँखों की पुतली के संसार को प्रतिबिम्ब किया है | आँखों की पुतली का तिरसी नजर से देखना मीठा, उज्जवल और स्वच्छ लगता है, किन्तु इनमें प्यार की पवित्रता झलकती हैं | जिसकी अभिव्यक्ति निम्न पंक्तियों में की है |


“मधु की बूंदों में छलके जब

तारक लोकों के शूचि फूल,

विधुर हदय की मृदु कम्पन सा

सिहर उठा वह नीरव कुल |”


             इन पंक्तियों में मधु का शहद और शराब अर्थ जा सकता हैं | मधु जब प्याले से छलकने लगते है तो जीवन को तारने वाले प्रेम के रूप में पाया जाता हैं | मधु की बूंद या कतरा सुंदर आँख की पुतली सा दिखता है | इनकी शोभा पवित्र पुष्प की तरह हैं | यह शुद्धता और पवित्रता का संसार है | आँखों की पुतली का इस निगाह से देखने से हदय कंपित होता है | आंखों स्वच्छ पुतलियों का मृदु कम्पन विधुर स्त्री का कोमल ह्रदय की कंपन लगता है | सुहाना कंपन शब्द रहित आसमान के कम्पन सा लगता हैं | यह विधुर ह्रदय की वेदना से समग्र मानव शरीर खामोश और सूना हो जाता है | 


४. मूक प्रणय की मधुर व्यथा :-

         कविता की इन पंक्तियों में संसार में जीवित मनुष्य की मूक प्रणय व्यथा को अभिव्यक्ति दी है | इस मधुर व्यथा की पुकार जीवन में बार-बार सुनाई देती है | जिससे जीवन पर्यंत चैन नहीं मिलता | प्रिय आगमन की इन क्षणों को कवियत्री ने गीत की पंक्तियों में व्यक्त की है | प्रियतम का मूक चुपचाप चले आना और उसे अपने प्यार से लुभाना ही अच्छा लगता है | वे चुपचाप ह्रदय के अंदर समाहित हो जाता हैं | प्रेम बंधन में बांध लेता है तथा इस प्रेम की मधुर व्यथा एक ख्वाब सा लगता है |


“मूक प्रणय से, मधुर व्यथा से

स्वप्न लोक के से आह्वान,

वे आये चुपचाप सुनाने

तब मधुमय मुरली की तान |”


           उपरोक्त पंक्तियों में प्रियतम चुपचाप अपनी प्रियतमा से मिलने पहुँच जाता हैं | हदय के लाचार और गूंगे प्रेम का चित्रण किया है | मीठे प्रेम के अंदर क्लेश और दुख भरी मन की तरंगे संसार में पुकार कर रही है | उस समय प्रेम नशीले बांसुरी के संगीत के स्वर का विस्तार ही है | इस बाँसुरी के स्वर से मोहित होकर उसके पीछे-पीछे गोपियों की तरह चलने लगते हैं | इस प्रेम के नशे से मुक्त होना आसान नहीं है | जिस प्रकार गोपियां कृष्ण की बांसुरी के संगीत से मुक्त नहीं हो सकी | 


४. चितवन के दूत की रहस्य कथा :-

            प्रस्तुत पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने आँखों की प्रेम निगाह को कहा है कि तेरी यह रहस्य पूर्ण बात हमें बता दो | जिसने हदय में उछालन और उत्पात मचायी हैं | आँख प्रेम का दूत है | 


“चल चितवन के दूध सुना

उनके, पल में रहस्य की बात,

मेरे निर्निमेष पलकों में

मचा गये क्या क्या उत्पात !”


          उक्त पंक्तियों में कवियत्री ने मानव मन की चंचल चाल को देख कर कहा है कि तू बता मन तेरा यह प्रेम पूर्वक देखने का ढंग किस लिए है ? तेरा यह कटाक्ष-दृष्टि से देखना ही प्रेम के संदेशवाहक का कार्य करता है | उनके ह्रदय से मेरे ह्रदय में प्रेम पहुंचाने का कार्य निगाह ने किया है | इस प्रतिज्ञा और वचन के बारे सुना कि एक क्षण में ही सारी बात का रहस्य गुप्त का वर्णन कर दे | जो तुमने निगाह से कहा हुआ है | तुम अपनी स्थिर दृष्टि मुझ पर टिकाये हुये बैठे है | आँखों की पुतली भी स्थिर है और इसके भीतर बहती उछालन दिखायी देती है | मुझे इस रहस्य के बारे में जल्दी से बता दे, क्योंकि मेरे प्रेम के दूत बनकर निगाह तुम ही आयी थी | मेरे प्रेम का संदेशा तुमने सुनाया था | इसलिए कवयित्री उत्तर माँगती है | 


६. विपुल वेदना की नीधि :-

        महादेवी वर्मा की कविता में वेदना का चित्रण न हो ऐसा कभी संभव ही नहीं | मिलन काव्य की इन पंक्तियों में भी प्रेम के वेदना युक्त संसार को चित्रित किया हैं | वहाँ पर हदय बार-बार लौट कर आने को कहता है | वेदना हदय की वह संपत्ति जो खत्म नहीं होती |


“जीवन है उन्माद तभी से

निधियाँ प्राणों के छाले,

माँग रहा है विपुल वेदना

के मन प्याले पर प्याले !”


          उपरोक्त पंक्तियों में जीवन के पागलपन को व्यक्त किया गया है | प्रेम में न्यौछावर होने के बाद हदय की संपत्ति, धन और दौलत स्वरूप साँसों की स्थिति फफोले की तरह हो गई है | प्रेम वेदना से बने छाले याचना करता हुआ विशाल जीवन को कह रहा है कि उसे मानसिक व्यथा चाहिए | मन बार-बार कहता है कि व्यथा से भरे नशे बाज जीवन में पीड़ा चाहिए | परंतु यह पीड़ा हदय की संपत्ति बन चुकी है | जिसके बीना जीवन की साँसों का चलना मुनकिन नहीं | विपुल वेदना से भरे प्याले पर प्याले मन माँग रहा है | अतः यह पंक्तियां जीवन की विशाल व्यथा को व्यक्त करती है |


७. पीड़ा का बसेरा क्षितिज पार :-

       उक्त पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने अपने जीवन के हृदय में व्याप्त पीड़ा के साम्राज्य को व्यक्त किया है | यह साम्राज्य शांति के स्थान पर छाया हुआ है | जिस ह्रदय में पहले शांति एवं सुख की स्थिति की छाया रहती थी | वही आज रोदन सुनाय देता है |


“पीड़ा का साम्राज्य बस गया

उस दिन दूर क्षितिज के पार

मिटता था निर्वाण जहाँ

नीरव रोधन था पहरेदार !”


       उक्त पंक्तियों में हदय के अंदर पूर्ण प्रभुता के साथ वेदना का अधिकार हो चुका है | यह वेदना धरती और आसमान की क्षितिज रेखा के पार मिलते है | इस प्रेम की सृष्टि की सीमा पार किनारे पर दिखाई देती है | वेदना की स्थिति में शब्द रहित रुदन एवं क्रंदन सुनाय देता है | जिसके रक्षक पहरेदार रोदन था | ह्रदय की के भीतर दूसरी कोई भावना प्रवेश नहीं कर सकती | पूर्ण रूप से हृदय पर पीड़ा का आधिपत्य हो चुका है | यह पीड़ा मिलन के भेंट रूप मिली है | हृदय की शांति को मिटाती चली है | हदय को शून्य ओर ले जा रही है | खालीपन की ओर ले जा रही है | जहाँ मूक रोदन का पहरा हैं | 


८. मूक मिलन की कथा :- 

        निम्न लिखित काव्य पंक्तियाँ मिलन कविता की अंतिम पंक्तियाँ है | इन पंक्तियों में कवयित्री ने मिलन के मौन को व्यक्त किया है | मिलन के समय प्रिया एवं प्रियतम की हदय मौन हो जाता है, लेकिन जब वह विरह में बदल जाता है तो कवयित्री के क्रंदन, आँसू और उनके अलौकिक प्रियतम का हास्य व्यक्त है | जो फूलो पर तुषार बूंद के रूप में चित्रित हैं | 


कैसे करती हो सपना है

अलि ! उस मूक मिलन की बात ?

भरे हुए अब तक फूलों में

मेरे आँसू उनके हास !”


         उक्त पंक्ति में अपनी सहेली को संबोधित करते हुये लिखी है | तुम्हारे सामने अपने मूक मिलन की बात कैसे करूँ ? मेरे प्रियतम के मिलन मिथ्या वासना और मन की तरंगे समझ लो | उसे एक कल्पना समझ कर भूल जाओं | यह हमारे मिलाप की पूर्ण मात्रा से भरे हुये फूलों में तुषार बिंदु के रूप में मेरे आँसू है और मेरे प्रियतम का हास्य है | अतः आंसू और हास्य का सुन्दर समन्वय ही प्रेम का मूक  मिलन है | जिसको कवयित्री ने कविता में व्यक्त की है | मधुर मौन मिलन की पीड़ा एवं हृदयस्पर्शी सूक्ष्मा संवेदन को बहुत ही कुशलता से अभिव्यक्ति की है | 


(३) मिलन कविता का कला-पक्ष :-

          मिलन कविता की निम्नलिखित कलागत विशेषताओं का चित्रण किया हैं | जिसके कारण महादेवी वर्मा के हदय मंदिर संवेदना सुंदर माला के मोतियों की तरह व्यक्त की है |


१. भाषा-शैली :-

         महादेवी वर्मा काव्य लेखन की शुरुआत ब्रजभाषा से करती है, लेकिन निहार काव्य संग्रह की कविता तक आते-आते खड़ीबोली हिंदी के संस्कृत गर्भित रूप में गीत मिलते है | भाव या अनुभूति के अनुकूल शब्द चयन करने के लिए उन्होंने कोमलकांत शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है | कहीं-कहीं भाव को शब्द से प्रबल रूप में व्यक्त करने के लिए उसको तोड़ा मरोड़ा भी गया है | इसके अलावा देशज, अरबी, फारसी, बांग्ला के शब्दावली के समन्वय से कविता को जीवंत बनायी हैं | हिंदी कविता के क्षेत्र में अनुभूति और अभिव्यक्ति में अपनी विशिष्ट पहचान बनायी हैं | मिलन कविता में भावात्मक, चित्रात्मक, व्यंजनात्मक एवं कथन कहन शैली में गीत के मधुर बनाया है | यह मधुर भावशैली के समर्थ प्रयुक्ता के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं | 


२. छंद योजना :-

            छायावाद युग की कविता में छंद की नयी परंपरा शुरू होती है | जिसके प्रथम प्रयुक्त सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है | छंद के बन्धनों से कविता को मुक्त किया और इसके पदचिन्ह पर चलने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा है | अपनी गीत कविता को अतुकांत मुक्त छंद में लिखकर नयी परंपरा का समर्थन करती है एवम् लोगों के दिल में स्थान भी बना लेती हैं | नीहार संग्रह में संकलित मिलन गीत अच्छा उदहारण हैं | 


३. शब्द शक्ति :-

           कविता में व्यक्त भाव को पहचानने के लिए कवयित्री द्वारा प्रयुक्त शब्दों की शक्ति को पहचानना अनिवार्य है | मिलन कविता में मुख्य रूप से अभिधा और व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग किया गया है | जिससे शब्दों का सीधा एवं अन्य प्रतीक अर्थ भावों की गहराई तक ले जाता है | यह कहने में कोय अतिशयोक्ति नहीं होगी कि शब्द को अच्छी तरह से संचालित करने वाली एक संचालिका महादेवी वर्मा है | जो कविता की चाल ढाल को पहचान कर शब्द को चयनित करती हैं |


४. अलंकार योजना :-

        अलंकार के बीना कविता का शरीर सौंदर्य अधूरा रहता है | मिलन कविता भी अलंकारों के सहज तथा सरल प्रयोग से सुंदर बन पड़ी है | जो पाठकों के ह्रदय और मन के अंत:करण को मधुर लगती है | प्रस्तुत कविता में मानवीकरण, उपमा, अनुप्रास, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों से काव्य की सुंदरता बढ़ाने का प्रयास किया है | कविता में कहीं पर भी ऐसा लगता नहीं कि अलंकारों के बोझ से काव्य सौंदर्य दब गया है, बल्कि और भी निखर कर सामने आया है |


“विधुर हदय की मृदु कम्पन सा

सिहर उठा वह नीरव कुल |” –उपमा


५. रस और गुण :-

         कविता में व्यक्त अनुभूतियों के जरिए हदय में रस के झरने फूट निकलते है | जो सृजक के मन और हदय से निकलकर पाठक के ह्रदय तक पहूँच जाते है | प्रस्तुत कविता का मुख्य रस संयोग श्रृंगार एवं वियोग श्रृंगार का चित्रण है, किन्तु करुण, शांत, एवं अद्भुत रस की धारा बहती है | जो नदी की धारा की तरह विशाल नहीं, बल्कि मीठे मधु बूंदों के समान लगता है |

        मिलन कविता में हदय के कोमल भाव को व्यक्त करने के लिए माधुर्य गुण संपन्न कविता है तो प्रसाद गुण का समन्वय कविता को संपूर्ण स्वरूप प्रदान करने में योगदान देता है |


६. प्रतीक और बिम्ब :-

        छायावाद काल की कविता प्रतीकों के प्रयोग के बिना स्पष्ट नहीं हो सकती हैं, क्योंकि इस कविता के सूक्ष्म अनुभूति को प्रकट रूप देने के लिए प्रतीक अनिवार्य है | जो सामान्य पाठक को सहज बोध गम्य पायेंगे | अतः मिलन कविता में प्रकृति के प्रतीक का प्रयोग है और काल्पनिक चित्र, बिम्ब एवं भावना को बखूबी प्रत्यक्ष की है | अतः मिलन कविता प्रतीक और बिंब की दृष्टि से भी अपनी पहचान छोड़ जाती है |


(४) उपसंहार :-

           मिलन महादेवी वर्मा की एक प्रसिद्ध कविता है | इस कविता में प्रकृति के मिलन को जरिया बनाकर अपने प्रियतम के मिलन को प्रस्तुत किया है | यह मिलन सामान्य प्रेम के मिलन कुछ अलग एवं विशिष्ट है, क्योंकि कवयित्री का यह मिलन मूक मिलन है | आँखों से शुरू होकर आँसू में ख़तम होता है | मुख्यतः इस कविता में संसार की करुण कथा, तरल ह्रदय के साँसों में दिखाई देती है, लेकिन प्रेम के मधुर बंधन से व्यथा का लेखन शुरू होता है और यह आँखों की तिरसी निगाह के मिलन सुख से शुरू होअकर मौन के बसेरा छा जाने तक चलती रहती हैं | मिलन सुख की अनुभूति कविता का प्राण है | आंखों से शुरू हुआ प्रेम ह्रदय में जाकर मौन हो जाता है, शून्य में समा जाता है और यही शून्यता खालीपन से भर जाती हैं | हदय के मधुर भावों को खड़ीबोली हिंदी में बहुत ही सुंदर ढंग से गीत में व्यक्त किया है |