(१) प्रस्तावना :-
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवयित्री महादेवी वर्मा का ‘नीहार’ प्रथम काव्य संग्रह है | इस काव्य संग्रह की भूमिका अयोध्यासिंह उपाध्याय ने लिखी थी और ई. स. १९३० में प्रकाशित संग्रह में कुल ४७ कविताएँ संकलित हैं | इसमें मुरझाया फूल, अधिकार, सूनापन और आँसू जैसी महत्त्वपूर्ण कविताओं को पाठ्यक्रम में चयन किया है | ‘मेरा जीवन’ कविता बहुत ही ह्दय स्पर्शी कविता है | कवयित्री ने अपने जीवन के द्वारा मनुष्य के जीवन के यथार्थ को व्यक्त किया है | कविता में स्वर्ग या देवलोक, अलौकिक प्रियतम, वेदना, जीवन का भोलापन, मायावी संसार एवम् लौकिक सौंदर्य के प्रतीक से अपनी अनुभूति को व्यक्त करते है | इसके लिए गीत शैली में कोमलकान्त पदावली का प्रयोग किया है |
(२) ‘मेरा जीवन’ कविता का भाव-पक्षीय मूल्यांकन :-
मेरा जीवन कविता में कवयित्री अपने विचार निम्नलिखित रूप में व्यक्त किये है | अपने व्यक्तिगत अस्थायि जीवन के माध्यम से मानव को अपनी अस्थिरता याद दिलाई हैं | जिसको मनुष्य संसार में आने के बाद भूल जाता है | मिलन ही विरह का संदेश होता है | संसार की प्रत्येक वस्तु अस्थायि होती हैं |
१. जीवन की अस्थिरता का चित्रण :-
कविता की प्रथम पंक्तियों में मनुष्य जीवन की क्षनाभंगुरता और अस्थिरता का संदेश दिया है | हीरे जैसा मूल्यवान शरीर प्राणों का सौंदर्य हैं | मूर्ति में से प्राण निकलने के बाद वे जड़ एवं अचेतन हो जाती है | जिस वीणा का तार टूटने पर संगीत निकलना बंद हो जाता हैं ठीक वैसे ही मनुष्य के शरीर में से प्राण निकलने पर होता हैं | यह प्राणों के तार देव या ईश्वर से जुड़े रहने पर ही जीवित रहते है, लेकिन जब ईश्वर शरीर से प्राण खीच लेते है तो स्वर्ग में मिलने वाली शब्द रहित शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो जाता है | यह हमारे शरीर को मिली प्राणों की भेंट अस्थिर और क्षणिक है | इसीलिए शरीर पर ज्यादा घमंड नहीं करना चाहिए | आत्मा का परमात्मा से रिश्ता टूटने लगता है तो मृत्यु अपनी सौगात छीन लेता है | जीवन लीला पूर्ण हो जाती है |
“स्वर्ग का था नीरव उच्छवास
देव-वीणा का टूटा तार,
मृत्यु का क्षणभंगुर उपहार
रत्न वह प्राणों का श्रृंगार |”
२. मधुर आशाओं से भरे जीवन का चित्रण :-
प्रस्तुत पंक्तियों में जीवन की नई मधुर आशाओं का चित्रण किया हैं | कवयित्री का जीवन उपवन की तरह हैं | उपवन में सुबह होते ही नये-नये फूल खिलते है वैसे ही उनके जीवन में प्रिय मिलन की नई आशाएँ खिलती रहती हैं | यह आशाओं का संसार बहुत ही मीठा लगता है और मेरा जीवन सरल और निर्मल झरने की तरह है | जिस तरह समुद्र के भीतर दौलत के रूप में उनकी तरंगे सोई रहती है | अपने प्रियात्तम के लिए प्रेम का मीठा भाव हदय के भीतर संपति के रूप में संगृहीत हैं |
“नई आशाओं का उपवन
मधुर वह था मेरा जीवन !
क्षीरनिधि की थी सुप्त तरंग
सरलता का न्यारा निर्झर,
हमारा वह सोने का स्वप्न
प्रेम की चमकीली आकर;
शुभ्र जो था निर्मेघ गगन
सुभग मेरा जीवन !”
मेरे जीवन में प्रिय मिलन का स्वप्न ही सुन्दर स्वर्ण का स्वप्न है | सूर्य किरणें धरती को उज्जवल और प्रकाशित करती है और प्रेम की यह उज्जवल किरणें मेरे हदय को आलोकित करती है | जिस तरह आकाश मेघ के काले-घने बादलों विहीन स्वच्छ और शुभ्र होता हैं | येसा मेरा जीवन सुखी, समृद्ध, और भाग्यवान हैं | यह सब मेरे प्रियात्तम के प्यार के कारण ही हैं |
३. भोले जीवन का चित्रण :-
कवयित्री ने काव्य की इन पंक्तियों में अपने जीवन को भोला जीवन कहा हैं, क्योंकि येसे व्यक्ति के साथ छल करने में सरल रहता हैं | मेरे अज्ञात, लक्ष्य विहीन और अनदेखे प्रियात्तम ने चुप-चाप आकर उसकी ओर आकर्षित कर लिया हैं और ये किसने मन-मोहक, कर्ण-प्रिय और मनोहर प्रेम का मीठा संगीत सुनाया ? और हमें उसकी ओर मोहित कर लिया है | इसने माया का प्रभुत्त्व दिखाकर हमें ज्ञान विहीन बना दिया हैं | हमारा सोचने-समझने का सामर्थ नष्ट हो गया | प्रेम और प्रियत्तम का स्वाद मदिरा जैसा हैं तथा मदिरा के मोह की तरह हमे उसकी ओर खीचता रहते हैं | इसलिए अगर जिंदगी में मदिरा का स्वाद चखना चाहते हो तो उनके मोह से दूर रहकर नहीं लिया जाता | तुमने जीवन में प्रेम स्वरूप मदिरा का स्वाद क्यों चखा ? यह मायावी संसार है; तुम बहुत ही भोले हो मेरे जीवन ! यहाँ अपने भोले जीवन को समझाने की बालिश कोशिश की गई है |
“अलक्षित आ किसने चुपचाप
सुना अपनी सम्मोहन की तान,
दिखाकर माया का साम्राज्य
बना डाला इसको अज्ञात;
मोह मदिरा का आस्वादन
क्या क्यों हें भोले जीवन !”
४. मायावी संसार का चित्रण :-
मेरा जीवन कविता की इन पंक्तियों में मायावी संसार का सहज और सरल शब्दों में वर्णन करते है | आशा, निराशा, मायावी संसार, सपने हास्य और विष रूप संजीवनी का कुशलता से चित्रण मिलता हैं |
“तुम्हें ठुकरा जाता नैराश्य
हँसा जाती है तुमको आस,
नचाता मायावी संसार
लुभा जाता सपनों का हास;
मानते विष को संजीवनी
मुग्ध मेरे भूले जीवन !”
मेरे सरल और भोले जीवन तुम भूल गये हो संसार की माया जाल को | तुमने भोले-पन में फिर एक गलती कर दी है | प्रिय मिलन की आशाएँ और हास्य को तुम जीवन की संजीवनी समझते हो ! सच तो यह है, वे तुम्हारे लिए विष है | यह विष जीवन को धीरे-धीरे करके नष्ट कर देता है | यही आशाएँ जीवनी में नयी-नयी खुशियाँ और हास्य प्रदान करती रहती है, किन्तु प्रिय मिलन अधुरा रहता है और निराशा के घने बादल छा जाते है | जो तुम्हें बार-बार ठुकराते रहते हैं | इस तरह आशा और निराशा के बीच निरंतर जीवन को मायावी संसार नचाता रहता हैं | मिथ्या वासना और मन की तरंगें जीवन में लुभाता रहता हैं | तुमने जीवन को अच्छी तरह से समझा ही नहीं |
५. जीवन और वसंत-ऋतु का चित्रण :-
इन पंक्तियों में कवयित्री ने प्रकृति में ऋतु-रानी वसंत ऋतु का चित्रण करती हैं | अपने भूले-भटके जीवन को प्रकृति के ऋतुओं से जीवन की क्षणभंगुरता का चित्रण किया हैं | प्रकृति वसंत ऋतु में नये अलंकरण धारण करके मधुर और सौंदर्य संपन्न हो जाती है, किन्तु वसंत का समय बीतने पर पतझड़ ऋतु का आगमन हो जाता हैं | यानि हमें भुलना नहीं चाहिए कि परिवर्तन सृष्टि का नियम हैं |
“न रहता भौरों का आह्वान
नहीं रहता फूलों का राज्य,
कोकिला होती अंतर्धान
चला जाता प्यारा ऋतुराज;
असम्भव है चिर सम्मलेन,
न भूलो क्षणभंगुर जीवन !”
प्रकृति में वसंत-ऋतु के आगमन से ही वातावरण में फूलों पर भौरों की गुन्झार सुनाई देती है | तरो-ताजा नये-नये फूल खिले रहते है | कोयल की मीठी आवाज सुनाई देती है और जब वसंत-ऋतु निकलते ही पतझड़ में भ्रमर की पुकार या बुलावा नहीं सुनाई देता है | पौधे, उपवन, बाग और प्रकृति में खिले फूलो का राज्य भी चला जाता है | प्रकृति के पेड़ ठूँठ बनकर रह जाते हैं | वन, कुंज और उपवन में सुनाई देनेवाली कोकिल की मधुर गुंजन अदृश्य हो जाता है | कोयल दिखाय नहीं देती है |
इस तरह मेरे अस्थिर जीवन तुम्हें समझा रही हूँ कि किसी का भी किसी पर चिर काल तक नियंत्रण रहता नहीं | प्रकृति की ऋतु इसका प्रमाण हैं | प्रिय और प्रियात्तम, आत्मा और परमात्मा तथा जीवन की वसंत का सम्मलेन भी चिरकाल नहीं रहता | यह तुम्हें भुलाना नहीं चाहिए कि ये जीवन अस्थिर, क्षणिक, गतिशील और नश्वंत है |
६. अस्थिर यौवन का चित्रण :-
कवयित्री ने काव्य की निम्न पंक्तियों में फूल, चंद्रमा, मेघ और दीप के प्रतीक द्वारा अपने प्यारे जीवन को अस्थिर यौवन के बारे में समझाया गया हैं |एक छोटे से जीवन में यौवन का सौंदर्य, शारीरिक-मानसिक शक्ति, और यौवन का मधुर मधु कुछ समय के लिए ही होता हैं |
“विकसते मुरझाने को फूल
उदय होता छिपने को चंद,
शून्य होने को भरते मेघ
दीप जलता होने को मंद;
यहाँ किसका अनन्त यौवन ?
अरे अस्थिर छोटे जीवन !”
कवयित्री ने स्वयं के जीवन को समझती है कि जीवन-काल का चक्र निरंतर चलता रहता है | पौधे पर लगी कली फूल के रूप में विकसित होती है, क्योंकि वह सुंदर और सुगंधयुक्त फूल शाम ढलते ही मुरझाने का आनंद ले सके | रात में दूध-सी सुनहरी चाँदनी बिखरने वाला चाँद भी उदित होता है कि वे दिन निकलते ही चाँद छिप जाता है | बारिश से पहले के जलभरे बादल को देखा है ? कितने घने, काले और जल-भरे होते है | वे अपनी जलराशि से धरती को तृप्त करके स्वयं शून्य और रिक्त हो जाते है | दीपक जलता है तो निरंत्तर जलता ही नहीं रहता, किन्तु समय आने पर दीप की रोशनी धीमी और मंद हो जाती हैं |
यहाँ संसार में किसी का यौवन स्थिर नहीं | जीवन की प्रक्रिया गतिशील हैं | इसलिए सृष्टि में किसी का भी यौवन काल स्थिर नहीं रहता और न तो अनंत काल तक चलता नहीं रहता | मेरे अस्थिर छोटे जीवन तुम्हारा यौवन भी चिरकालीन नहीं, यह समझ जाना चाहिए | एक बालक की भाँती बोध करवाया हैं |
७. मतवाले जीवन और प्यारे मीत का चित्रण :-
उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री ने मित्रवत जीवन को जागृति का संदेश दिया हैं | यौवन के नशे में चकनाचूर जीवन को जगाने की कोशिश की गई हैं | अपनी आँखों से विचार-विमर्श करके संसार की सच्चाई देखने के लिए कहा हैं | परोक्ष रूप में प्यारे मन के मित्र यानि अपने प्रियात्तम को कहा है और उसकी प्रतीक्षा भी करते हैं | एक मित्र जीवन एवं दूसरा मित्र अपना प्रियतम हैं |
“छलकती जाती है दिन रैन
लबालब मेरी प्याली मीत
ज्योति होती जाती हैं क्षीण
मौन होता जाता संगीत
करो नयनों का उन्मीलन
क्षणिक हें मतवाले जीवन !”
कवयित्री ने लापरवाह जीवन को अत: दृष्टि से देखने के लिए कहा है | तुम यौवन के नशे में लापरवाह हो गए हो | क्या तुम्हें पता है ? ये जीवन क्षण में मिट जायेंगा | हमारा अस्तित्व ही संसार से लुप्त हो जायेंगा | तुम अपनी आँखें खोलकर देखो तो महसूस होंगा कि मेरा जीवन रस से लबालब भरा हुआ हैं और यह मधु-रस दिन-रात जीवन से कम हो रहा हैं | मेरे मित-प्रियात्तम दिन-रात जीवन की रोशनी अंधकार की ओर बढ़ रही है | रोशनी विलीन हो रही है, बुझ रही है | मेरे जीवन का चालक और प्राण संगीत मौन होने जा रहा हैं | हें जीवन अब तो तुम अपनी आँखें खोलकर देखों कि जीवन एक क्षण मात्र के लिए हमें मिलता हैं | जो धीरे-धीरे मिटाता ही चला जा रहा है, इसको कोई रोक नहीं सकता | मनुष्य के जीवन में कितना ही रस क्यों भरा हो, कितना ही प्यार जीवन से क्यों न हो, किसी को कितना ही चाहते क्यों न, लेकिन संसार में किसी मनुष्य को अमरत्व प्राप्त नहीं | मानव को वक्त के साथ ही चलना पड़ता हैं |
८. प्रियात्तम-जीवन को आह्वान :-
मेरा जीवन कविता की इन पंक्तियों में कवयित्री संसार को त्यागकर स्वयं के भीतर समाहित हो जाने के लिए प्रियात्तम को कहती हैं | लौकिक का अलौकिक में एकाकार की अपेक्षा स्पष्ट झलकती हैं |
“शून्य से बने जाओ गंभीर
त्याग की हो जाओ झंकार,
इसी छोटे प्याले में आज
डूबा डालो सारा संसार;
लजा जाये यह मुग्ध सुमन
बनो ऐसे छोटे जीवन !”
कवयित्री ने जीवन को आकाश की तरह निराकार और संयमित बन जाने के लिए कहा है तथा सांसरिक विषयों एवम् व्यवहारों को छोड़कर अपने भीतर से त्याग की गूंज पैदा कर गहरा हो जाओ | जीवन के छोटे से प्याले की गहराई में आज तुम्हारा सारा संसार डूबा डालो | पुष्प के कोमल एवं मोहित करने वाला सौन्दर्य को भी शरम आने लगे इतने छोटे और कोमल हो जाओ, जीवन | ईश्वर के चरणों में जाने के लिए सांसारिक मोह माया को त्यागकर छोटा बनना पड़ता हैं | फूल ईश्वर के चरणों में चड़ता है, किन्तु तुम फूल को शरम लगे येसे बन जाओ तब लौकिक और अलौकिक में एकाकार हो पायेंगा | अपने अस्तित्त्व को मिटाने का भाव-बोध प्रमुख व्यक्त हुआ हैं | इसी में जीवन की सार्थकता महसूस होती है | इसलिए मेरे भोले जीवन तुम अपनी जीवन यात्रा को सुफ़ल कर सकते हो | जीवन के जरिए समग्र मानव समाज को अहंकार त्यागकर छोटे बनकर जीने
९. क्षणिक मिलन और चिर वियोग चित्रण :-
‘मेरे जीवन’ कविता की अंतिम पंक्तियों में समग्र कविता के सार तत्त्व को व्यक्त किया हैं | कवयित्री ने प्रियतम जीवन को सखे का संबोधन किया हैं, क्योंकि मित्र या सखा के सामने हम हदय खोलकर बात कर सकते है | जीवन की सखावत का परिचय दिया | एक अच्छा मित्र जीवन को उज्जवल करता है और कवयित्री का तारणहार सखा अलौकिक ईश्वर हैं |
“सखे ! यह माया का देश
क्षणिक है मेरा तेरा संग,
यहाँ मिलता काँटों में बन्धु !
सजीला सा फूलों का रंग;
तुम्हें करना विच्छेद सहन
न भूलो हें प्यारे जीवन !”
यह दुनिया मोहित करनेवाली माया का देश है | वे जीवन का ममत्त्व तुम्हें बार-बार आकर्षित करके अपनी गह्वर में फंसाता रहता है, किन्तु जीवन अस्थिर है | उस आत्मा और परमात्मा का मधुर मिलन क्षणिक और अस्थायि होता हैं | तेरा संग कब टूट जायेंगा तुझे पता भी नहीं चलेगा | इस छल से आज तक कोई बचकर निकला नहीं | सुन्दर और कोमल रंगों से युक्त पुष्प काँटों के बीच खिलता है, वैसे ही प्रिय आत्मीय के मधुर मिलन की सप्तरंगी खुशियाँ वेदना और पीड़ा के कंटकों के बीच मिलती है | यही आत्मा में प्रियतम परमात्मा रूप फूलों का रंग सजता है | इस मिलन के बाद तुम्हें विरह वियोग ही सहन करना है | हें प्यारे, जीवन में मिलन के बाद मिलनेवाले विरह को स्वीकारकर जीना होंगा | जिसे तुम अपनी मासूमियत में भूल गये हो | इस संसार के ईश्वरीय कालक्रम को कभी नहीं भुलना चाहिए | यही सत्य और यथार्थ हैं |
(३) ‘मेरा जीवन’ कविता का कला-पक्षीय मूल्यांकन :-
उस पार कविता के कला-पक्षीय तत्त्वों का परिचय निम्न लिखित हैं |
१. भाषा-शैली :-
काव्य की भाषा ही भावों की पहचान बनती है | सरल भाषा काव्य को चिरजीवी बनाती है | मेरा जीवन काव्य में महादेवी वर्मा ने भाषा-शैली का सोच- समझकर सहज सरल काव्य की विषय वस्तु के अनुकूल सामान्य बोलचाल के शब्दों से युक्त शब्दावली प्रयोग किया हैं | खड़ीबोली हिंदी में संस्कृत, बांग्ला, अरबी, फारसी, शब्दों की मिलावट है | कोमल और मधुर शब्दावली भी इस कविता की पहचान है | कविता गीत शैली में लिखी गई हैं | यह गीत कथन-कहन और व्यंजन आत्मक शैली में लिखित है | संसार ज्ञान के परिचय में व्यंजना प्रयोग किया हैं, जबकि अपने जीवन को समझाते ने में एक बाल सहज शब्दावली से सांसरिक जगत का ज्ञान दिया | स्वर्ग लोक की प्रकृति वर्णन में चमत्कार प्रदर्शित किया हैं | इस प्रकार भाषा की दृष्टि से यह कविता बहुत ही सफल कही जा सकती है तथा मेरा जीवन कविता का स्थान आज भी लोकों के ह्रदय में बना हुआ है |
२. अलंकार योजना :-
काव्य साहित्य में अलंकार के द्वारा कविता के देह सौंदर्य अर्थात भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित, सुंदर, मनोरंजक एवम् चमत्कार पूर्ण स्वरूप दिया जाता है | मेरा जीवन कविता में कवयित्री अपने जीवन को छोटे बालक की तरह समझाने का प्रयास करती है | इसके लिए उन्होंने शब्द, शब्द के अर्थ तथा शब्द-अर्थ साथ मिलकर काव्य सौंदर्य में रंग भरे हैं | इनमें मुख्यतः मानवीकरण, सजीवा रोपण, अनुप्रास, उपमा, उदहारण, श्लेष आदि अलंकारों से काव्य में सौंदर्य वृद्धि की है | अत: कविता आकर्षक, सुंदर, एवं चमत्कार पूर्ण लगती है | कविता से एक उदाहरन प्रस्तुत है-
“नई आशाओं का उपवन
मधुर वह था मेरा जीवन !” – अनुप्रास
३. छंद नियोजन :-
मेरा जीवन कविता अतुकान्त-मुक्त छंद में लिखी गई है | छंद युक्त शब्दों के प्रयोग से काव्य कथन में आनंद मिलता है, ह्रदय की सौंदर्य भावना जागृत होती है, भाव की निर्मलता महसूस होती है एवं कविता की अमिट छाप हृदय में बस जाती है और कविता दीर्घ जीवी बन जाती है |
४. शब्द-शक्ति :-
कवि कविता में शब्दों का प्रयोग भाव, अनुभूति, संवेदना, प्रसन्नता एवं भाषा-शैली के अनुसार करता है और इन शब्दों का उचित अर्थ ज्ञान भी करना महत्वपूर्ण है | मेरा जीवन कविता में तीन प्रकार के शब्दार्थ मिलते है-मुख्यार्थ, लक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ | शब्द का अर्थ का बोध कराने वाली शब्द-शक्ति कहते है | कविता में कवि द्वारा निहित अर्थ स्पष्ट करना अति आवश्यक हो जाता है | जिससे कविता का मूल भावार्थ हमें हो सकें | उनके रसास्वादन का आनंद मिल सकें और ह्रदय को शीतलता प्रदान कर सकें | यही कार्य शब्द-शक्ति होता है |
५. रस एवं गुण :-
काव्य साहित्य में नौ रसों की संकल्पना है | इनमें काव्य विषय के अनुकूल कवि रसों का आस्वादन करवाता रहता है | यह रस का संचार शब्द की शक्ति या शब्द के निहित अर्थ से करवाया जाता है | मेरा जीवन कविता में शान्त, श्रृंगार, अद्भुत, भयानक आदि रसों का मनभावन आस्वादन किया है उदाहरण दृष्टव्य है कि- “नचाता मायावी संसार/लुभा जाता सपनों का हास |” हदय को आनंद उल्लास से द्रवित करने वाली कोमलकान्त पदावली से युक्त
कविता में माधुर्य गुण चित्रांकन किया हैं |
६. प्रतीक योजना :-
प्रतीक किसी वस्तु, व्याक्ति, चित्र, लिखित शब्द, ध्वनी या विशिष्ट चिह्न को कहते हैं | सादृश्यता या समानता के कारण किसी वस्तु का प्रतिनिधित्व करता हैं | महादेवी वर्मा ने प्रकृति के प्रतीकों का सहारा लिया हैं | जीवन की दशा और दिशा निर्दिष्ट करने को प्रकृति के सहायक बनते हैं |
(४) निष्कर्ष :-
मेरा जीवन कविता में कवयित्री ने अपने जीवन के जरिए समग्र मानव जाती को संदेश दिया है कि मानव जीवन आशा, निराशा, मिलन, विरह आदि अनुभूतियों का सयुक्त रूप हैं | प्रकृति में वसंत ऋतु चिरकालीन टिकती नहीं, वैसे ही प्रिय मिलन का संगम भी क्षणिक एवं अस्थिर हैं | इस संसार की रचना ही सम्मोहित करनी वाली हैं | इसलिए कवयित्री ने अपने भोले और अस्थिर जीवन को समझाना का प्रयास किया हैं | कोमलकांत पदावली से युक्त भाषा का प्रयोग भी कविता को गुण ग्राह्य बनाती हैं | अत: भाव-पक्ष एवं कला-पक्ष की दृष्टि से यह काव्य बहुत ही सफल हैं |