Monday, 31 October 2022

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

(१) प्रस्तावना :-

           महादेवी वर्मा हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती है | आधुनिक हिंदी साहित्य की सबसे सशक्त एवं प्रतिभावान कवयित्री है | उन्हें हिंदी साहित्य में ‘आधुनिक मीरा’ के नाम से जाना जाता है | छायावाद युग के प्रमुख चार आधार स्तंभ में एक मात्र कवयित्री के रूप में महादवी वर्मा का नाम सम्मान से लिया जाता हैं | आधुनिक हिंदी साहित्य की पद्य और गद्य साहित्य में अपनी लेखनी से विशेष जगह बनाई हैं | उन्हें साहित्य के अलावा चित्रकला, संगीत, पशु-पक्षी का लालन-पालन, समाज सेवा, नारी-शिक्षा एवं प्रकृति के प्रति विशेष स्नेह रखती थी | कविता में व्यक्त आलौकिक प्रियतम के प्रति ही हदय-मन की विरह वेदना एवं मधुर कोमलकांत पदावली युक्त भाषा-शैली उनकी निजी पहचान हैं | इसे पीड़ा का पर्याय कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होंगी | उन्हें ‘यामा’ काव्य संकलन के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था | महादेवी वर्मा का जीवन और उनका साहित्य विशाल रहस्यों का आलेखन हैं | जो पाठकों को बार-बार पढ़ने के लिए आकर्षित करता हैं |   

(२) महादेवी वर्मा का व्यक्तित्व :-

महादेवी वर्मा के जीवन से सम्बन्धी कुछ सामान्य पहलू   निम्नलिखित रूप में मिलते हैं | यह उनके व्यक्तित्व का आंशिक परिचय मात्र हैं |  

१. जन्म और जन्म स्थान :-

    हिंदी साहित्य की प्रतिभावान कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म २६ मार्च १९०७ ई. स. में फ़ारूँखाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था | उस समय में फ़ारूँखाबाद, संयुक्त प्रान्त, आगरा व अवध ब्रिटिश राज था |

२. ‘महादेवी’ का नामकरण :-

महादेवी वर्मा के जन्म के साथ परिवार में एक नये इतिहास का अध्याय लिखा गया, क्योंकि उनके परिवार में लगभग २०० वर्षो यानि सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था | इसीलिए उनके बाबा बाबू बाँके बिहारी हर्ष से झूम कर घर की देवी का नाम ‘महादेवी’ रख देते हैं | इसी ऐतिहासिक घटना के आधार पर कवयित्री का नामकरण महादेवी वर्मा होता हैं | 

३. बचपन और परिवार :-  

  कवयित्री महादेवी वर्मा का बचपन बड़े लाड-प्यार से बितता हैं | इनके के पिता का नाम गोविन्द प्रसाद वर्मा और माता का नाम हेमरानी देवी हैं | पिता भागलपुर के एक कालेज में प्रधानाध्यापक थे तथा वे व्यक्तिक रूप से सुन्दर, विद्वान्, संगीत प्रेमी, नास्तिक, शिकार और धूमने के शौक़ीन एवं हँसामुखे स्वभाव के व्यक्ति थे | माता हेमरानी देवी शिक्षा, साहित्य, संगीत, धर्म परायण, कर्मनिष्ठ, भावुक  एवं संवेदनशील विचारों की धनि थी |

४. शिक्षा-दीक्षा :- 

    महादेवी वर्मा के परिवार में बचपन से उनकी शिक्षा-दीक्षा की चिंता शुरू हो जाती हैं | उन्हें शिक्षा और साहित्य का वतावरण विरासत में मिलता हैं | इनकी प्राम्भिक शिक्षा मिशन स्कूल के जरिए संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत एवं चित्रकला के विषयों में घर पर होती हैं | उनके विवाह के कारण शिक्षा प्राप्त करने में बाधा आती हैं, फिरभी ई. स. १९१९ में क्रास्थवेट कोलेज इलाहबाद के छात्रावास में रहकर पढाई करने लगी और ई. स. १९२१ में आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त करती हैं | इसी शिक्षा जीवन के दौरान सात साल की छोटी उम्र से काव्य लेखन की शुरुआत होती है | ई. स. १९२५ में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण के दौरान वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थी | हिंदी साहित्य की राष्ट्रिय भावना की कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता थी और ई. स. १९३३ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत विषय के साथ एम. ए. की उच्च-शिक्षा प्राप्त करती हैं एवं इनके कार्य को देखकर कई विश्वविद्यालयों महादेवी वर्मा को डी. लिट्. की मानक उपाधि से सम्मानित किया हैं तथा वे संस्कृत, बांगला, ब्रज, अंग्रेजी, हिंदी आदि भाषा की अच्छी जानकार थी | 

५. शादी :-

महादेवी वर्मा की शादी ई. स. १९१६ में नौ साल की छोटी आयु में बरेली के पास नवाब गंज कसबे के निवासी स्वरूप नारायण वर्मा से हो जाती है | वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी के बीच कोई वैमनस्य नहीं था, लेकिन कवयित्री को वैवाहित जीवन से विरक्ति थी | उन्होंने अपने पति के कहने पर भी दुसारा विवाह नहीं किया | वे जीवन पर्यंन्त श्वेत वस्त्र पहनती, तख़्त पर सोती और कभी शीशा नहीं देखती थी | ई. स. १९६६ में उनके पति स्वरूप नारायण वर्मा की मृत्यु हो जाती है, किन्तु उन्होंने अलौकिक प्रियतम को ही अपना पति मान लिया था | अपने रहस्यवादी प्रियतम को ईश्वर, प्रिय, देव, प्रियतम एवं परलोकवासी के विशेषणों से कविताओं में सम्बोधित करती रहती थी | 


६. नौकरी :-              

महादेवी वर्मा शिक्षा संपन्न करके तुरंत ही इलाहाबाद प्रयाग के प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्य के पड़ पर नियुक्त होती है | उसके बाद प्रयाग महिला महिला विद्यापीठ की कुलपति के उच्च पद को शोभायमान करती हैं | उस दौरान महिला शिक्षा के लिए क्रन्तिकारी कदम भी उठाती हैं | 

७. विशेष कार्य :- 

महादेवी वर्मा अपने जीवन में बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थी तथा महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित होकर जनसेवा का व्रत लेकर उसी कार्य को करती हैं | जिसमें ग्रामीण विकास, सामाजिक उत्थान, आत्मनिर्भरता तथा ग्राम्य-शिक्षा के लिए विशेष कार्य करती हैं | उन्हें महिला विकास के कार्य के लिए समाज-सुधारक भी कहा जाता था | समाज में बदलाव की अदम्य ईच्छा शक्ति रखती थी |

८. मृत्यु :- 

         महादेवी वर्मा ने अपने जीवन कल का अधिकांश समय उत्तर-प्रदेश के इलाहाबाद में बिताया था और ११ सितम्बर १९८७ को इलाहाबाद में रात के ९ बजाकर ३० मिनट पर उनका देहांत हो गया | अत: पीड़ा की देवी महादेवी अपने प्रियतम को प्यारी हो गई |


(३) साहित्य सर्जन :- 

महादेवी वर्मा को साहित्य के संस्कार अपने परिवार से ही मिलते हैं | माता हेमरानी देवी और पाठशाला के हिंदी प्राध्यापक से प्रभावित होकर साहित्य लेखन का आरंभ ब्रजभाष की समस्यापूर्ति से करते हैं | नौ साल की छोटी उम्र में ही उनका काव्य सर्जन आरंभ हो जाता हैं | कवयित्री बाद में खड़ीबोली से प्रभावित होकर उसी में लिखने लगती है और हिंदी साहित्य के गद्य और पद्य क्षेत्र में उनका विशिष्ट एवं अविस्मरणीय योगदान रहा हैं | 

१. कविता संग्रह :- 

१. नीहार-१९३० २. रश्मि-१९३२ ३. नीरजा-१९३४ ४. सांध्यगीत-१९३६ ५. दीपशिखा-१९४२ ६. सप्तपर्णा (अनुदित)-१९५९ ७. प्रथम आयाम-१९७४ ८. अग्निरेखा-१९९० ९. संधिनी-१९६५ १०. यामा-१९३६ (नीहार, रश्मि, नीरजा, संधिनी का एक संकलन) 

कवयित्री ने अपने काव्य-ग्रंथों का जो नामकरण किया हैं | उसमें एक क्रम हैं और भाव की दृष्टी से उसे अत्यंत उपयुक्त कहा जा सकता है | प्रभात में पहले ‘नीहार’ आता है, फिर ‘रश्मि’ अवतीर्ण होती है, फिर ‘नीरजा’ खिलती है, फिर ‘सांध्य गीत’ की बेला आती है और तब कहीं रात की छाया धिर आने पर ‘दीपशिखा’ जलाई जाती है |   

२. रेखा-चित्र :-  

१. अतीत के चलचित्र-१९४१ २. स्मृति की रेखाएँ-१९४३. 

३. संस्मरण :-

१. पता के साथी-१९५६ २. मेरा परिवार-१९७२ ३. संस्मरण-१९८३ ४. स्मृति-चित्र-१९७३. 

४. निबंध साहित्य :- 

१. शृखला की कड़ियाँ-१९४२ २. विवेचनात्म गद्य-१९४२ ३. संकल्पित-१९६९ ४. क्षणदा (ललित निबंध)-१९५६ ५. साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध-१९६२.

५. भाषण संकलन :- 

१. संभाषण-१९७४. 

७. कहानी साहित्य :-   

१. गिल्लू और अन्य कहानियाँ चंडीगर |

८. बाल-साहित्य :- 

१. ठाकुरजी भोले हैं २. आज खरीदेंगे हम ज्वाला |

९. संपादन :- 

१. चाँद (पत्रिका) २. साहित्यकार (पत्रिका) ३. हिमालय (नये-पुराने साहित्यकारों की रचनाएँ, संस्मरण, रेखाचित्र और निबंधों का संकलन) 

१०. अनुवाद साहित्य :-

१. सप्तपर्णा (ऋग्वेद से लेकर, संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के महा-कवियों की चुनी हुई रचनाओं का अनुवाद) २. रधुवंश (अप्रकाशित) 

११. नाट्य साहित्य :- 

१. प्रह्लाद-१९५८ २. शेष पूजा-१९५९, ३. मीराबाई-१९६९ ४. पारिजात अभिषेक-१९५९.  

(४) पुरस्कार और सम्मान :-

हिंदी साहित्य की प्रतिभासंपन्न कवयित्री महादेवी वर्मा को अपने साहित्यिक योगदान के लिए प्रशासनिक, अर्ध-प्रशासनिक और व्यक्तिगत संस्थानों की ओर से पुरस्कार एवं सम्मान दिये गये हैं | जो निम्नलिखित हैं- 

१. ‘यामा’ काव्य संकलन पर ई. स. १९४३ में ‘मंगला प्रसाद’ पारितोषिक तथा ‘भारत भारती’ पुरस्कार |

२. ई. स. १९५२ में उत्तर-प्रदेश परिषद की सदस्य मनोनीत | 

३. ई. स. १९५६ में भारत सरकार ने उन्हें साहित्यिक सेवा के लिए ‘पद्म-भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया |

४. ई. स. १९७९ में ‘साहित्य अकादमी’ की सदस्य बनाने वाली प्रथम महिला | 

५. ई. स. १९८८ में उन्हें परणोपरांत भारत सरकार की ओर से ‘पद्म-विभूषण’ की उपाधि से सम्मानित | 

६. ई. स. १९६९ में विक्रम विश्वविद्यालय, ई. स. १९७७ में कुमाऊँ विश्विद्यालय नैनीताल, ई. स. १९८० में दिल्ली विश्वविद्यालय एवम् ई. स. १९८४ में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी ने उन्हें डी. लिट्. की उपाधि से सम्मानित किया था | 

७. ई. स. १९३४ में ‘नीरजा’ काव्य संग्रह के लिए ‘सेक्सरिया’ पुरस्कार | 

८. ई. स. १९४२ में ‘स्मृति की रेखाएँ’ नामक संकलन के लिए उन्हें ‘द्विवेदी पदक’ मिला था | 

९. ई. स. १९६८ में प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्मकार मृणालसेन  ने उनके संस्मरण ‘वह चीनी भाई’ पर एक बांगला फिल्म का निर्माण किया था | जिसका नाम नील अकाशरे नीचे’ | 

१०. १६ सितम्बर १९९१ को भारत सरकार के डाकतार विभागने जयशंकर प्रसाद के साथ उनके सम्मान में डॉ रूपये का एक युगल टिकट जारी किया था | 

११. भारत की पचास शक्तिशाली महिलओं में महादेवी वर्मा नाम शामिल था |   

१२. ई. स. १९८२ में ‘यामा’ काव्य संकलन के उन्हें भारत सरकार का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था | 


(५) निषकर्ष :-  

महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के छायावाद युग की विशिष्ट एवं प्रतिभासंपन्न कवयित्री है | उन्होंने हिंदी साहित्य की गद्य और पद्य दोनों विधाओं में अपना मूल्यवान योगदान दिया हैं | इनकी कविओं में वैचारिक परिपक्वता है तथा कविता में व्यक्त प्रेम,  अलौकिक प्रियतम, वेदना, पीड़ा, दुख और कोमलकान्त मधुर पदावती हदय में चिरकालीन स्थान प्राप्त कर लेती हैं | यह वेदना और पीड़ा व्यक्तिक जीवन से शुरू होकर विश्वकल्याण की भावना में समाहित हो जाती हैं | इसलिए रचनाओं में छिपा मानव-कल्याण का उद्देश्य सफ़ल सिद्ध होता हैं | गद्य साहित्य में लेखिका ने नया रास्ता चुना हैं | जिसमें पशु-पक्षी और सामान्य मनुष्य को अपने साहित्य का विषय बनाया हैं | भाषा-शैली का प्रयोग भी विषय, पात्र, परिवेश के आधार पर किया हैं | अत: महादेवी वर्मा को याद किये बीना छायावाद युग की साहित्यिक चर्चा संभव ही नहीं हैं |