Monday, 28 November 2022

आँसू कविता का सारांश

आँसू कविता
 आँसू कविता का सारांश
(१) प्रस्तावना :- 

          हिंदी काव्य साहित्य में महादेवी वर्मा आँसू, पीड़ा, वेदना, खालीपन, सूनापन, दु:ख, दर्द, रहस्यवाद एवं अलौकिक प्रियतम की सौंदर्य चेतना की उन्मुक्त गायिका है | जिन्होंने जीवन को खर्च करके कविता की बैरी बोयी है | वे सांसारिक जीवन की पीड़ा देने वाली वस्तु में भी जीवन शक्ति का स्रोत खोज निकालने में समर्थ है | जीवन के अनगिनत ऐसे पहलू है जिस पर उन्होंने हदय की अनुभूति को व्यक्त की है | इसलिए पीड़ा की देवी के रूप में हिंदी काव्य साहित्य में अमर हो गयी है तथा भाव सौंदर्य व्यक्त करने के लिए मधुर कोमलकांत पदावली का प्रयोग करते है | जिससे कोई भी व्यक्ति उनकी कविता के साथ अपनत्व स्थापित कर लेता है | आँसू काव्य इनका उत्तम उदाहरण है | आँसू कविता में कवयित्री ने अपने निजी जीवन के इतिहास को गीत के रूप में संगीत बद्ध किया है तथा अविनाशी संदेश  दिया है | वसंत ऋतु के चित्रण सारगर्भित जीवन की नि:सार जीवन सत्य को अंकित करते हैं | कविता के अंत में प्रियतम अतिथि से प्रश्न करते हैं कि मेरे जीवन मूल्यवान निधि आँसू है, क्या तुम अपने साथ आँसू ले जाओंगे ? अतः यह कविता का भाव सौंदर्य संक्षिप्त होते हुए भी बहुत ही ह्रदय-मन को आकर्षित करने वाला है | 


(३) आँसू कविता का सारांश :-

       आँसू कविता के केन्द्रीय भाव को स्पष्ट करने वाली विशेषताएँ निम्न रूप में पायी जाती हैं |


१. विस्मृत संसार का संगीत :-

          आँसू कविता की शुरुआत में कवयित्री ने अपने जीवन के लिखे इतिहास को भावनात्मक स्वरूप में व्यक्त किया है | अपने ह्रदय के भीतर से जो संगीत दूर चला गया है | विस्मृत हो चुका है | यही इन पंक्तियों का मुख्य सार है | वह संगीत हदय के भीतर से खो चुका है | मुझे बारी-बारी से इस संगीत की कमी महसूस होती है | जिसकी झंकार और झनझनाहट मेरे भीतर आज भी ध्वनित हैं | वह ध्वनि मैं सुन नहीं पाती | येसा विशिष्ट संगीत विस्मृत हो चुका है | मुझे सुने ध्वनि रहित संसार में छोड़कर चला गया है | यही आँसू मेरे पास बचा है | इसके अलावा कुछ भी नहीं है, लेकिन यह विशुद्ध संगीत यहीं पर है | जिसको मैं खो चुकी हूँ | मेरे भीतर ही वह मधुर झंकार सुना रहा हैं और झंकार को महसूस करती हूँ | 


“यहीं है वह विस्मृत संगीत 

खो गयी है जिसकी झंकार,

यहीं सोते हैं वे उच्छवास

जहाँ रोता बीता संसार |”


          उक्त पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने अपने बीते जीवन को पीड़ित करने वाली ह्रदय की दर्द भरी कहानी को हमारे सामने खोल कर रख दी है | जिस संसार को इन्होंने दुःख और रोते बीताया है | वही संसार उसके जीवन से दूर हटने का नाम नहीं ले रहा है | उसके भीतर ही भीतर आँसू की बारिश हो रही है | जिसके कारण ह्रदय से ठंडी साँसे निकलती है | जीवन की कठिन एवं दर्दनाक परिस्थितियों का कभी सुनापन हटता नहीं | ईश्वर का अनन्यतम सृजन जीवन भी उसे आज कष्ट पहूँचा रहा है | जिस जिन्दगी को बीता चुकी है, फिरभी जीवन से पीड़ा विश्राम लेने का नाम नहीं ले रही है | इसलिए कवयित्री के आँसू निरंतर बहते रहते हैं | यही हदय की भीतरी पीड़ा पल-पल और क्षण-क्षण उसे कुरेद रही हैं | आँखों से आँसू का धारा प्रवाह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था | प्रेम का झरना सूखने के बाद भी उनकी छाप छोड़ गया है | जिसकी आहे आज भी ह्रदय से निकलती है | प्रेम से आप्लावित हदय संसार प्रत्यक्ष रूप से मिट चुका है, लेकिन आँसू का यह संसार आज भी हदय के भीतर जिंदा है |


२. जीवन बसंत का अक्षय संदेश :- 

            कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने पूरे जीवन के इतिहास को हमारे सामने प्रतिबिंबित कर दिया है | इनके प्राणों का इतिहास ईश्वर ने आंसूओं की स्याही से लिखा है | यहाँ कवयित्री ने जीवन के यौवनकाल के बसंत को इतिहास चित्रित किया है | हदय के शेष बचे प्राण बिखरे-बिखरे दिखायी देता है, धीरे-धीरे साँसें चलती हैं | जीवन के यौवनकाल में सुख के दिन भी दुःख की छाया से मुक्त नहीं रह पाया | यही जीवन का अविनाशी संदेश सुनायी देता है |


“यहीं है प्राणों का इतिहास 

यहीं बिखरे बसन्त का शेष,

नहीं जो अब आयेगा लौट 

यही उसका अक्षय संदेश |”

              

          प्रकृति की बसंतऋतु का सौंदर्य जाने की तैयारी में हो तब वे बिखरी-बिखरी दिखायी देती है | उसका सुंदर रूप कुछ दिनों का मेहमान लगता है | यह ऋतु फिर लौट आनेवाली नहीं | प्रकृति से अलिप्त हो रही हैं | चाहकर भी रुक नहीं सकती | वही कवयित्री के जीवन काल की बसन्त जाने वाली है | यह बसन्त कभी लौटकर आनेवाली नहीं | बसंत के चले जाने के बाद फिर से लौटकर नहीं आती और उसे पतझड़ ही नसीब होती है | कवयित्री के जीवन की बसन्त चली गई है, वह कभी लौट कर आने वाली नहीं है | यही उसका अविनाश संदेश सुनायी देता है | मनुष्य का जीवन कब इतिहास बन जाये इसका पता नहीं चलता, किन्तु बीता हुआ जीवन कभी लौटकर आता नहीं | उनके पास केवल उनका वर्तमान ही शेष बचता है यानि न आनेवाला कल | 


३. जीवन का सार तत्व :-

                कवयित्री ने काव्य की अंतिम पंक्तियों में जीवन के निष्कर्ष को चित्रित किया है | यह जीवन का सार अनंत एवं अविनाशी प्रियतम की पुकार के रूप में मेरे जीवन का सार है | यह मेरे प्राण-प्रिय अतिथि तुम मेरे पास से क्या ले जाओगे ? मेरे पास आकर तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी, क्योंकि मेरे पास से ले जाने के लिए कुछ भी नहीं | तुमने मुझे तड़पा-तड़पा कर सब कुछ ख़तम कर दिया | ये प्राणप्रिय अतिथि मेरे पास मेरी दौलत केवल आँसू है | मेरा पूरा जीवन आंसूओं की वेदी पर सुलगा हैं |


“समाहित है अनन्त आह्वान

यहि मेरे जीवन का सार,

अतिथि ! क्या ले जाओगे साथ 

मुग्ध मेरे आँसू डॉ चार ?” 


            हमारे हदय के भीतर व्यवस्थित किये हुये अनन्त और असिम आँसू का अज्ञ हैं | हम तो मेहमान बनकर आये थे | मेरे पास दो-चार आँसू के सिवा कुछ भी नहीं | क्या तुम उसे साथ लेकर जाओंगे ! इस प्रकार कविता में अपने जीवन प्राण को यही समझाया हैं कि मैं जीवन पर्यंत विरह की पीड़ा, दुख, दर्द और आँसू से लिखित पगदंडी पर चलती रही और आज सुन्दर और भोले आँसू बचे हैं, क्या तुम उसे साथ ले जाओंगे ? 

 

() आंसू कविता का कला-पक्ष :-

           आँसू कविता को काव्य स्वरूप प्रदान करने वाले निम्नलिखित तत्वों का प्रयोग किया है | इसलिए कविता का काव्य शरीर सुगठित हो पाया  है | सृजक अपने भाव के अनुकूल भाषा, शैली, अलंकार, छंद, शब्द-शक्ति, रस प्रतीक, बिम्ब आदि का सफल गुम्फन करता हैं |


१. भाषा-शैली :-

            आंसू कविता में कवयित्री ने अपने जीवन के इतिहास को अंकित करने के लिए साहित्यिक खड़ी-बोली का सहज, सरल एवं देशज शब्दावली से युक्त भाषा को प्रयुक्त किया है | कविता में संस्कृत गर्भित शब्दावली से अनुभूति को सहज ही बोधगम्य बनायी है | आत्मकथात्मक, भावनात्मक और चित्रात्मक शैली के प्रयोग से कविता की सूक्ष्म अनुभूति को प्रत्यक्ष की हैं | 


२. छंद प्रयोग :- 

           आँसू कविता हिंदी के अतुकांत मुक्त छंद में लिखा गीत हैं, लेकिन यह कविता पाठकों का प्यार प्राप्त करने में बहुत ही सफल रही | 

३. शब्द-शक्ति :-

        अभिधा एवं लक्षण शब्द शक्ति के कारण कविता रस युक्त बनी है | प्रकृति के प्रतीक में अभिधा और जीवन के आँसू में व्यंग्य अर्थ निष्पन्न होता हैं |


४. रस योजना :-

       एक छोटी सी कविता भी हदय को काव्य रस से भर देती हैं | इसका अच्छा प्रमाण आँसू कविता हैं | प्रस्तुत कविता में शृंगारा के संयोग और वियोग का सुन्दर वर्णन किया हैं | कवयित्री के जीवन के आँसू को अंकित करते हुये वियोग श्रृंगार परिचय दिया है तो पवन के मुर्झाये फूल को चूमने में संयोग श्रृंगार का सुख दिखाया है | काव्य के अंत में शान्त रस के प्रवाह को बहाया है | हदय की मधुर भावनाओं को प्रसाद एवं माधुर्य गुण के योग से अभिव्यक्ति की हैं | 


५. अलंकार योजना :- 

         अलंकार से काव्य सौंदर्य बढ़ता है, लेकिन काव्य में अलंकार के बोझ से दबनी नहीं चाहिए | इनसे कविता का सहज सौंदर्य दब जाता | आँसू कविता में अलंकार का खास प्रयोग देखने मिलता नहीं | 


(४) निष्कर्ष :-

          कविता के निष्कर्ष के रूप सकते है कि महादेवी वर्मा रचित आँसू कविता बहुत ही कम शब्दों में लिखी गई है, लेकिन इसमें छिपे अनुभूति तीव्रता और गहराई बहुत है | वे संक्षिप्त में बहुत कुछ कहने की क्षमता मिलती हैं | कवयित्री के पुरे जीवन का निष्कर्ष कविता में बता दिया है | उसके पति के सांसरिक प्रेम की यादों से मिले आँसू एवं अलौकिक प्रियतम के विरह में जिंदगी के बहते आँसू की कहानी हैं | जिसमें जीवन का अविनाशी संदेश भेज सुनाया गया है | यही मेरे जीवन की व्यथा-कथा रही है | अपने प्राण प्रिय अतिथि तथा स्वयं प्राण को यह कहा है कि तुम मेरे जीवन से क्या लेकर जाओगे ? मेरा जीवन का इतिहास और वर्तमान आंसूओं से बना हैं | मेरे जीवन से आंसू साथ लेकर जाओगे ? मेरा आंसू ही मेरा सत्य है, मेरा शिव और मेरा सुन्दर है |

Sunday, 27 November 2022

मेरा जीवन कविता का मूल्यांकन

 (१) प्रस्तावना :- 

        भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवयित्री महादेवी वर्मा का ‘नीहार’ प्रथम काव्य संग्रह है | इस काव्य संग्रह की भूमिका अयोध्यासिंह उपाध्याय ने लिखी थी और ई. स. १९३० में प्रकाशित संग्रह में कुल ४७ कविताएँ संकलित हैं | इसमें मुरझाया फूल, अधिकार, सूनापन और आँसू जैसी महत्त्वपूर्ण कविताओं को पाठ्यक्रम में चयन किया है | ‘मेरा जीवन’ कविता बहुत ही ह्दय स्पर्शी कविता है | कवयित्री ने अपने जीवन के द्वारा मनुष्य के जीवन के यथार्थ को व्यक्त किया है | कविता में स्वर्ग या देवलोक, अलौकिक प्रियतम, वेदना, जीवन का भोलापन, मायावी संसार एवम् लौकिक सौंदर्य के प्रतीक से अपनी अनुभूति को व्यक्त करते है | इसके लिए गीत शैली में कोमलकान्त पदावली का प्रयोग किया है | 


(२) ‘मेरा जीवन’ कविता का भाव-पक्षीय मूल्यांकन :- 

          मेरा जीवन कविता में कवयित्री अपने विचार निम्नलिखित रूप में व्यक्त किये है | अपने व्यक्तिगत अस्थायि जीवन के माध्यम से मानव को अपनी अस्थिरता याद दिलाई हैं | जिसको मनुष्य संसार में आने के बाद भूल जाता है | मिलन ही विरह का संदेश होता है | संसार की प्रत्येक वस्तु अस्थायि होती हैं |  


१. जीवन की अस्थिरता का चित्रण :- 

        कविता की प्रथम पंक्तियों में मनुष्य जीवन की क्षनाभंगुरता और अस्थिरता का संदेश दिया है | हीरे जैसा मूल्यवान शरीर प्राणों का सौंदर्य हैं | मूर्ति में से प्राण निकलने के बाद वे जड़ एवं अचेतन हो जाती है | जिस वीणा का तार टूटने पर संगीत निकलना बंद हो जाता हैं ठीक वैसे ही मनुष्य के शरीर में से प्राण निकलने पर होता हैं | यह प्राणों के तार देव या ईश्वर से जुड़े रहने पर ही जीवित रहते है, लेकिन जब ईश्वर शरीर से प्राण खीच लेते है तो स्वर्ग में मिलने वाली शब्द रहित शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो जाता है | यह हमारे शरीर को मिली प्राणों की भेंट अस्थिर और क्षणिक है | इसीलिए शरीर पर ज्यादा घमंड नहीं करना चाहिए | आत्मा का परमात्मा से रिश्ता टूटने लगता है तो मृत्यु अपनी सौगात छीन लेता है | जीवन लीला पूर्ण हो जाती है | 


“स्वर्ग का था नीरव उच्छवास 

देव-वीणा का टूटा तार,

मृत्यु का क्षणभंगुर उपहार 

रत्न वह प्राणों का श्रृंगार |” 


२. मधुर आशाओं से भरे जीवन का चित्रण :- 

        प्रस्तुत पंक्तियों में जीवन की नई मधुर आशाओं का चित्रण किया हैं |  कवयित्री का जीवन उपवन की तरह हैं | उपवन में सुबह होते ही नये-नये फूल खिलते है वैसे ही उनके जीवन में प्रिय मिलन की नई आशाएँ खिलती रहती हैं | यह आशाओं का संसार बहुत ही मीठा लगता है और मेरा जीवन सरल और निर्मल झरने की तरह है | जिस तरह समुद्र के भीतर दौलत के रूप में उनकी तरंगे सोई रहती है | अपने प्रियात्तम के लिए प्रेम का मीठा भाव हदय के भीतर संपति के रूप में संगृहीत हैं | 


“नई आशाओं का उपवन

मधुर वह था मेरा जीवन !

क्षीरनिधि की थी सुप्त तरंग

सरलता का न्यारा निर्झर,

हमारा वह सोने का स्वप्न 

प्रेम की चमकीली आकर;

शुभ्र जो था निर्मेघ गगन

सुभग मेरा जीवन !”

  

        मेरे जीवन में प्रिय मिलन का स्वप्न ही सुन्दर स्वर्ण का स्वप्न है | सूर्य किरणें धरती को उज्जवल और प्रकाशित करती है और प्रेम की यह उज्जवल किरणें मेरे हदय को आलोकित करती है | जिस तरह आकाश मेघ के काले-घने बादलों विहीन स्वच्छ और शुभ्र होता हैं | येसा मेरा जीवन सुखी, समृद्ध, और भाग्यवान हैं | यह सब मेरे प्रियात्तम के प्यार के कारण ही हैं |


३. भोले जीवन का चित्रण :- 

            कवयित्री ने काव्य की इन पंक्तियों में अपने जीवन को भोला जीवन कहा हैं, क्योंकि येसे व्यक्ति के साथ छल करने में सरल रहता हैं | मेरे अज्ञात, लक्ष्य विहीन और अनदेखे प्रियात्तम ने चुप-चाप आकर उसकी ओर आकर्षित कर लिया हैं और ये किसने मन-मोहक, कर्ण-प्रिय और मनोहर प्रेम का मीठा संगीत सुनाया ? और हमें उसकी ओर मोहित कर लिया है | इसने माया का प्रभुत्त्व दिखाकर हमें ज्ञान विहीन बना दिया हैं | हमारा सोचने-समझने का सामर्थ नष्ट हो गया | प्रेम और प्रियत्तम का स्वाद मदिरा जैसा हैं तथा मदिरा के मोह की तरह हमे उसकी ओर खीचता रहते हैं | इसलिए अगर जिंदगी में मदिरा का स्वाद चखना चाहते हो तो उनके मोह से दूर रहकर नहीं लिया जाता | तुमने जीवन में प्रेम स्वरूप मदिरा का स्वाद क्यों चखा ? यह मायावी संसार है; तुम बहुत ही भोले हो मेरे जीवन ! यहाँ अपने भोले जीवन को समझाने की बालिश कोशिश की गई है | 


 “अलक्षित आ किसने चुपचाप

सुना अपनी सम्मोहन की तान,

दिखाकर माया का साम्राज्य 

बना डाला इसको अज्ञात;


मोह मदिरा का आस्वादन

क्या क्यों हें भोले जीवन !”


४. मायावी संसार का चित्रण :- 

        मेरा जीवन कविता की इन पंक्तियों में मायावी संसार का सहज और सरल शब्दों में वर्णन करते है | आशा, निराशा, मायावी संसार, सपने हास्य और विष रूप संजीवनी का कुशलता से चित्रण मिलता हैं | 


“तुम्हें ठुकरा जाता नैराश्य

हँसा जाती है तुमको आस,

नचाता मायावी संसार

लुभा जाता सपनों का हास;


मानते विष को संजीवनी 

मुग्ध मेरे भूले जीवन !” 


     मेरे सरल और भोले जीवन तुम भूल गये हो संसार की माया जाल को | तुमने भोले-पन में फिर एक गलती कर दी है | प्रिय मिलन की आशाएँ और हास्य को तुम जीवन की संजीवनी समझते हो ! सच तो यह है, वे तुम्हारे लिए विष है | यह विष जीवन को धीरे-धीरे करके नष्ट कर देता है | यही आशाएँ जीवनी में नयी-नयी खुशियाँ और हास्य प्रदान करती रहती है, किन्तु प्रिय मिलन अधुरा रहता है और निराशा के घने बादल छा जाते है | जो तुम्हें बार-बार ठुकराते रहते हैं | इस तरह आशा और निराशा के बीच निरंतर जीवन को मायावी संसार नचाता रहता हैं | मिथ्या वासना और मन की तरंगें जीवन में लुभाता रहता हैं | तुमने जीवन को अच्छी तरह से समझा ही नहीं |  


५. जीवन और वसंत-ऋतु का चित्रण :- 

        इन पंक्तियों में कवयित्री ने प्रकृति में ऋतु-रानी वसंत ऋतु का चित्रण करती हैं | अपने भूले-भटके जीवन को प्रकृति के ऋतुओं से जीवन की क्षणभंगुरता का चित्रण किया हैं | प्रकृति वसंत ऋतु में नये अलंकरण धारण करके मधुर और सौंदर्य संपन्न हो जाती है, किन्तु वसंत का समय बीतने पर पतझड़ ऋतु का आगमन हो जाता हैं | यानि हमें भुलना नहीं चाहिए कि परिवर्तन सृष्टि का नियम हैं | 


“न रहता भौरों का आह्वान

नहीं रहता फूलों का राज्य,

कोकिला होती अंतर्धान

चला जाता प्यारा ऋतुराज;

असम्भव है चिर सम्मलेन,

न भूलो क्षणभंगुर जीवन !”


             प्रकृति में वसंत-ऋतु के आगमन से ही वातावरण में फूलों पर भौरों की गुन्झार सुनाई देती है | तरो-ताजा नये-नये फूल खिले रहते है | कोयल की मीठी आवाज सुनाई देती है और जब वसंत-ऋतु निकलते  ही पतझड़ में भ्रमर की पुकार या बुलावा नहीं सुनाई देता है | पौधे, उपवन, बाग और प्रकृति में खिले फूलो का राज्य भी चला जाता है | प्रकृति के पेड़ ठूँठ बनकर रह जाते हैं | वन, कुंज और उपवन में सुनाई देनेवाली कोकिल की मधुर गुंजन अदृश्य हो जाता है | कोयल दिखाय नहीं देती है | 

        इस तरह मेरे अस्थिर जीवन तुम्हें समझा रही हूँ कि किसी का भी किसी पर चिर काल तक नियंत्रण रहता नहीं | प्रकृति की ऋतु इसका प्रमाण हैं | प्रिय और प्रियात्तम, आत्मा और परमात्मा तथा जीवन की वसंत का सम्मलेन भी चिरकाल नहीं रहता | यह तुम्हें भुलाना नहीं चाहिए कि ये जीवन अस्थिर, क्षणिक, गतिशील और नश्वंत है | 


६. अस्थिर यौवन का चित्रण :- 

        कवयित्री ने काव्य की निम्न पंक्तियों में फूल, चंद्रमा, मेघ और दीप के प्रतीक द्वारा अपने प्यारे जीवन को अस्थिर यौवन के बारे में समझाया गया हैं |एक छोटे से जीवन में यौवन का सौंदर्य, शारीरिक-मानसिक शक्ति, और यौवन का मधुर मधु कुछ समय के लिए ही होता हैं | 


“विकसते मुरझाने को फूल 

उदय होता छिपने को चंद,

शून्य होने को भरते मेघ

दीप जलता होने को मंद;  


यहाँ किसका अनन्त यौवन ?

अरे अस्थिर छोटे जीवन !”

       

        कवयित्री ने स्वयं के जीवन को समझती है कि जीवन-काल का चक्र निरंतर चलता रहता है | पौधे पर लगी कली फूल के रूप में विकसित होती है, क्योंकि वह सुंदर और सुगंधयुक्त फूल शाम ढलते ही मुरझाने का आनंद ले सके | रात में दूध-सी सुनहरी चाँदनी बिखरने वाला चाँद भी उदित होता है कि वे दिन निकलते ही चाँद छिप जाता है | बारिश से पहले के जलभरे बादल को देखा है ? कितने घने, काले और जल-भरे होते है | वे अपनी जलराशि से धरती को तृप्त करके स्वयं शून्य और रिक्त हो जाते है | दीपक जलता है तो निरंत्तर जलता ही नहीं रहता, किन्तु समय आने पर दीप की रोशनी धीमी और मंद हो जाती हैं | 

        यहाँ संसार में किसी का यौवन स्थिर नहीं | जीवन की प्रक्रिया गतिशील हैं | इसलिए सृष्टि में किसी का भी यौवन काल स्थिर नहीं रहता और न तो अनंत काल तक चलता नहीं रहता | मेरे अस्थिर छोटे जीवन तुम्हारा यौवन भी चिरकालीन नहीं, यह समझ जाना चाहिए | एक बालक की भाँती बोध करवाया हैं |       

७. मतवाले जीवन और प्यारे मीत का चित्रण :- 

        उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री ने मित्रवत जीवन को जागृति का संदेश दिया हैं | यौवन के नशे में चकनाचूर जीवन को जगाने की कोशिश की गई हैं | अपनी आँखों से विचार-विमर्श करके संसार की सच्चाई देखने के लिए कहा हैं | परोक्ष रूप में प्यारे मन के मित्र यानि अपने प्रियात्तम को कहा है और उसकी प्रतीक्षा भी करते हैं | एक मित्र जीवन एवं दूसरा मित्र अपना प्रियतम हैं | 


“छलकती जाती है दिन रैन

लबालब मेरी प्याली मीत

ज्योति होती जाती हैं क्षीण 

मौन होता जाता संगीत


करो नयनों का उन्मीलन 

क्षणिक हें मतवाले जीवन !”


        कवयित्री ने लापरवाह जीवन को अत: दृष्टि से देखने के लिए कहा है | तुम यौवन के नशे में लापरवाह हो गए हो | क्या तुम्हें पता है ? ये जीवन क्षण में मिट जायेंगा | हमारा अस्तित्व ही संसार से लुप्त हो जायेंगा | तुम अपनी आँखें खोलकर देखो तो महसूस होंगा कि मेरा जीवन रस से लबालब भरा हुआ हैं और यह मधु-रस दिन-रात जीवन से कम हो रहा हैं | मेरे मित-प्रियात्तम दिन-रात जीवन की रोशनी अंधकार की ओर बढ़ रही है | रोशनी विलीन हो रही है, बुझ रही है | मेरे जीवन का चालक और प्राण संगीत मौन होने जा रहा हैं | हें जीवन अब तो तुम अपनी आँखें खोलकर देखों कि जीवन एक क्षण मात्र के लिए हमें मिलता हैं | जो धीरे-धीरे मिटाता ही चला जा रहा है, इसको कोई रोक नहीं सकता | मनुष्य के जीवन में कितना ही रस क्यों भरा हो, कितना ही प्यार जीवन से क्यों न हो, किसी को कितना ही चाहते क्यों न, लेकिन संसार में किसी मनुष्य को अमरत्व प्राप्त नहीं | मानव को वक्त के साथ ही चलना पड़ता हैं | 


८. प्रियात्तम-जीवन को आह्वान :- 

        मेरा जीवन कविता की इन पंक्तियों में कवयित्री संसार को त्यागकर स्वयं के भीतर समाहित हो जाने के लिए प्रियात्तम को कहती हैं | लौकिक का अलौकिक में एकाकार की अपेक्षा स्पष्ट झलकती हैं | 


“शून्य से बने जाओ गंभीर 

त्याग की हो जाओ झंकार,

इसी छोटे प्याले में आज

डूबा डालो सारा संसार;


लजा जाये यह मुग्ध सुमन

बनो ऐसे छोटे जीवन !”


            कवयित्री ने जीवन को आकाश की तरह निराकार और संयमित बन जाने के लिए कहा है तथा सांसरिक विषयों एवम् व्यवहारों को छोड़कर अपने भीतर से त्याग की गूंज पैदा कर गहरा हो जाओ | जीवन के छोटे से प्याले की गहराई में आज तुम्हारा सारा संसार डूबा डालो | पुष्प के कोमल एवं मोहित करने वाला सौन्दर्य को भी शरम आने लगे इतने छोटे और कोमल हो जाओ, जीवन | ईश्वर के चरणों में जाने के लिए सांसारिक मोह माया को त्यागकर छोटा बनना पड़ता हैं | फूल ईश्वर के चरणों में चड़ता है, किन्तु तुम फूल को शरम लगे येसे बन जाओ तब लौकिक और अलौकिक में एकाकार हो पायेंगा | अपने अस्तित्त्व को मिटाने का भाव-बोध प्रमुख व्यक्त हुआ हैं | इसी में जीवन की सार्थकता महसूस होती है | इसलिए मेरे भोले जीवन तुम अपनी जीवन यात्रा को सुफ़ल कर सकते हो | जीवन के जरिए समग्र मानव समाज को अहंकार त्यागकर छोटे बनकर जीने 


९. क्षणिक मिलन और चिर वियोग चित्रण :- 

        ‘मेरे जीवन’ कविता की अंतिम पंक्तियों में समग्र कविता के सार तत्त्व को व्यक्त किया हैं | कवयित्री ने प्रियतम जीवन को सखे का संबोधन किया हैं, क्योंकि मित्र या सखा के सामने हम हदय खोलकर बात कर सकते है | जीवन की सखावत का परिचय दिया | एक अच्छा मित्र जीवन को उज्जवल करता है और कवयित्री का तारणहार सखा अलौकिक ईश्वर हैं |  


“सखे ! यह माया का देश 

क्षणिक है मेरा तेरा संग,

यहाँ मिलता काँटों में बन्धु !

सजीला सा फूलों का रंग;


तुम्हें करना विच्छेद सहन 

न भूलो हें प्यारे जीवन !” 

   

             यह दुनिया मोहित करनेवाली माया का देश है | वे जीवन का ममत्त्व तुम्हें बार-बार आकर्षित करके अपनी गह्वर में फंसाता रहता है, किन्तु जीवन अस्थिर है | उस आत्मा और परमात्मा का मधुर मिलन क्षणिक और अस्थायि होता हैं | तेरा संग कब टूट जायेंगा तुझे पता भी नहीं चलेगा | इस छल से आज तक कोई बचकर निकला नहीं | सुन्दर और कोमल रंगों से युक्त पुष्प काँटों के बीच खिलता है, वैसे ही प्रिय आत्मीय के मधुर मिलन की सप्तरंगी खुशियाँ वेदना और पीड़ा के कंटकों के बीच मिलती है | यही आत्मा में प्रियतम परमात्मा रूप फूलों का रंग सजता है | इस मिलन के बाद तुम्हें विरह वियोग ही सहन करना है | हें प्यारे, जीवन में मिलन के बाद मिलनेवाले विरह को स्वीकारकर जीना होंगा | जिसे तुम अपनी मासूमियत में भूल गये हो | इस संसार के ईश्वरीय कालक्रम को कभी नहीं भुलना चाहिए | यही सत्य और यथार्थ हैं |


(३) ‘मेरा जीवन’ कविता का कला-पक्षीय मूल्यांकन :-  

        उस पार कविता के कला-पक्षीय तत्त्वों का परिचय निम्न लिखित हैं |

१. भाषा-शैली :-

          काव्य की भाषा ही भावों की पहचान बनती है | सरल भाषा काव्य को चिरजीवी बनाती है | मेरा जीवन काव्य में महादेवी वर्मा ने भाषा-शैली का सोच- समझकर सहज सरल काव्य की विषय वस्तु के अनुकूल सामान्य बोलचाल के शब्दों से युक्त शब्दावली प्रयोग किया हैं | खड़ीबोली हिंदी में संस्कृत, बांग्ला, अरबी, फारसी, शब्दों की मिलावट है | कोमल और मधुर शब्दावली भी इस कविता की पहचान है | कविता गीत शैली में लिखी गई हैं | यह गीत कथन-कहन और व्यंजन आत्मक शैली में लिखित है | संसार ज्ञान के परिचय में व्यंजना प्रयोग किया हैं, जबकि अपने जीवन को समझाते ने में एक बाल सहज शब्दावली से सांसरिक जगत का ज्ञान दिया | स्वर्ग लोक की प्रकृति वर्णन में चमत्कार प्रदर्शित किया हैं | इस प्रकार भाषा की दृष्टि से यह कविता बहुत ही सफल कही जा सकती है तथा मेरा जीवन कविता का स्थान आज भी लोकों के ह्रदय में बना हुआ है |

२. अलंकार योजना :- 

           काव्य साहित्य में अलंकार के द्वारा कविता के देह सौंदर्य अर्थात भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित, सुंदर, मनोरंजक एवम् चमत्कार पूर्ण स्वरूप दिया जाता है | मेरा जीवन कविता में कवयित्री अपने जीवन को छोटे बालक की तरह समझाने का प्रयास करती है | इसके लिए उन्होंने शब्द, शब्द के अर्थ तथा शब्द-अर्थ साथ मिलकर काव्य सौंदर्य में रंग भरे हैं | इनमें मुख्यतः मानवीकरण, सजीवा रोपण, अनुप्रास, उपमा, उदहारण, श्लेष आदि अलंकारों से काव्य में सौंदर्य वृद्धि की है | अत: कविता आकर्षक, सुंदर, एवं चमत्कार पूर्ण लगती है | कविता से एक उदाहरन प्रस्तुत है-

“नई आशाओं का उपवन

मधुर वह था मेरा जीवन !” – अनुप्रास 


३. छंद नियोजन :- 

        मेरा जीवन कविता अतुकान्त-मुक्त छंद में लिखी गई है | छंद युक्त शब्दों के प्रयोग से काव्य कथन में आनंद मिलता है, ह्रदय की सौंदर्य भावना जागृत होती है, भाव की निर्मलता महसूस होती है एवं कविता की अमिट छाप हृदय में बस जाती है और कविता दीर्घ जीवी बन जाती है | 

४. शब्द-शक्ति :-

        कवि कविता में शब्दों का प्रयोग भाव, अनुभूति, संवेदना, प्रसन्नता एवं भाषा-शैली के अनुसार करता है और इन शब्दों का उचित अर्थ ज्ञान भी करना महत्वपूर्ण है | मेरा जीवन कविता में तीन प्रकार के शब्दार्थ मिलते है-मुख्यार्थ, लक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ | शब्द का अर्थ का बोध कराने वाली शब्द-शक्ति कहते है | कविता में कवि द्वारा निहित अर्थ स्पष्ट करना अति आवश्यक हो जाता है | जिससे कविता का मूल भावार्थ हमें हो सकें | उनके रसास्वादन का आनंद मिल सकें और ह्रदय को शीतलता प्रदान कर सकें | यही कार्य शब्द-शक्ति होता है |

५. रस एवं गुण :- 

            काव्य साहित्य में नौ रसों की संकल्पना है | इनमें काव्य विषय के अनुकूल कवि रसों का आस्वादन करवाता रहता है | यह रस का संचार शब्द की शक्ति या शब्द के निहित अर्थ से करवाया जाता है | मेरा जीवन कविता में शान्त, श्रृंगार, अद्भुत, भयानक आदि रसों का मनभावन आस्वादन किया है उदाहरण दृष्टव्य है कि- “नचाता मायावी संसार/लुभा जाता सपनों का हास |” हदय को आनंद उल्लास से द्रवित करने वाली कोमलकान्त पदावली से युक्त 

कविता में माधुर्य गुण चित्रांकन किया हैं | 


६. प्रतीक योजना :-

        प्रतीक किसी वस्तु, व्याक्ति, चित्र, लिखित शब्द, ध्वनी या विशिष्ट चिह्न को कहते हैं | सादृश्यता या समानता के कारण किसी वस्तु का प्रतिनिधित्व करता हैं | महादेवी वर्मा ने प्रकृति के प्रतीकों का सहारा लिया हैं | जीवन की दशा और दिशा निर्दिष्ट करने को प्रकृति के सहायक बनते हैं | 


(४) निष्कर्ष :- 

            मेरा जीवन कविता में कवयित्री ने अपने जीवन के जरिए समग्र मानव जाती को संदेश दिया है कि मानव जीवन आशा, निराशा, मिलन, विरह आदि अनुभूतियों का सयुक्त रूप हैं | प्रकृति में वसंत ऋतु चिरकालीन टिकती नहीं, वैसे ही प्रिय मिलन का संगम भी क्षणिक एवं अस्थिर हैं | इस संसार की रचना ही सम्मोहित करनी वाली हैं | इसलिए कवयित्री ने अपने भोले और अस्थिर जीवन को समझाना का प्रयास किया हैं | कोमलकांत पदावली से युक्त भाषा का प्रयोग भी कविता को गुण ग्राह्य बनाती हैं | अत: भाव-पक्ष एवं कला-पक्ष की दृष्टि से यह काव्य बहुत ही सफल हैं |       

Thursday, 24 November 2022

मिलन कविता में व्यक्त संदेश

(१) प्रस्तावना :-

           हिंदी कविता की ‘आधुनिक मीरा’ महादेवी वर्मा अपने अनोखे व्यक्तित्व एवं सर्जन से साहित्य जगत में चर्चित है | इनका अमूल्य योगदान हिंदी साहित्य के पाठक कभी नहीं भूल पायेंगे | सरस्वती की सच्ची साधिका के रूप में  इनका नाम सादर लिया जाता है | इस भक्ति के लिए इन्होंने शब्द के साधनों का उपयोग किया है तथा ह्रदय की पवित्र संवेदना को आँसू की स्याही से कविता लिखी है | वे अलौकिक प्रेम की विरह वेदना और पीड़ा सहते हुये प्रियतम को मिलने की आकांक्षी रहती है | कविता में प्रकृति चित्रण, रहस्यवाद, दुख, पीड़ा, आंसू, सूनापन आदि की सहज अभिव्यक्ति है, लेकिन कवयित्री की यह भावनाएँ सर्वव्यापक स्वरूप में पायी जाती है | इनकी कविता में मिलन-विरह, अलौकिक प्रियतम, स्वर्ग सुख एवं स्व-हदय के विकसित रूप अभिव्यक्ति है | ‘मिलन’ कविता में कवयित्री ने ह्रदय-मन की सुंदर और कोमल मूक मिलन की संवेदना को अभिव्यक्त दी है | जिसके लिए प्रकृति के प्रतीकों का उपयोग किया है | मिलन सुख के सुन्दर मूक सौंदर्य को व्यक्त किया हैं, किन्तु मिलन में छिपी पीड़ा भी झाकती हैं |

 

(२) मिलन कविता में व्यक्त संवेदना और संदेश :-

           मिलने की क्षण को बहुत ही सुक्ष्म, स्वच्छ, पवित्र तथा व्यथा युक्त ह्रदय की चुभन को शब्दो से अंकित की है | 


१. संसार की करुण कहानी :-

         मिलन कविता का शुरुआत महादेवी वर्मा ने प्रकृति के वर्णन से की है | इन पंक्तियों में ह्रदय छिपे प्रियतम मिलन के मूक और कोमल भावों की महक है | जिसमें विरह वेदना की खुशबू हदय के कोने-कोने में व्याप्त होने लगती हैं |


“रजतकरों की मृदुल तूलिका

से ले तुहिन-बिंदु सुकुमार,

कलियों पर जब आंक रहा था

करुण कथा अपनी संसार |”


         इन पंक्तियों में कवयित्री ने पुष्प की कोमल कली और तुषार के सुन्दर बिन्दु के मिलन कहानी के द्वारा मानव हदय की प्रेम भावना को अभिव्यक्ति दी है | कली के प्रियतम चांदनी रंग के उज्जवल और कोमल हिम या तुषार बिंदु हैं | जो दिखने में सुंदर और कोमल किशोर बालक के समान प्रियतमा पुष्प की कोमल कली यानी फूल के अविकसित रूप की दयनीय प्रेम कहानी लिखता हैं | प्रेम के माया जाल में कली को बाँधकर विरह की वेदना दे जाता है | पुष्प कली के संसार को तुषार बिन्दु अपने प्रेम के बहाने उसे आने वाली पीड़ा की ओर ले जा रहा है | इनसे कली बिल्कुल अनजान दिखाई देती है | दिखने में तो यह मिलन सुख है, लेकिन मिलन से ज्यादा वियोग की पीड़ा नसीब होने वाली है | इसलिए कवयित्री ने कली की करुण कहानी संसार के सामने रखी है | नारी जीवन के यौवन काल में प्रियतम के प्रेम के साथ लिखी जाने वाली पीड़ा को व्यक्त की हैं | 


२. तरल हदय की उच्छवास :-

         कवियत्री ने काव्य की प्रस्तुत पंक्तियों में मेघ, बरसात, धुल कण के जरिए प्रेम की मीठी भावना को अभिव्यक्ति दी है | जिसमें प्रीति के बहाने कवयित्री के हदय प्रदेश की छवि को अंकित करी हैं | दिन के बाद रात्रि का अँधेरा होता हो तो कुछ दिखाय नहीं देता और अन्धकार दिन की चोट लगने से अपने नैनों से अश्रु रूप काजल बरसाने आते है |   


“तरल हदय की उच्छवास

जब भोले मेघ लूटा जाते,

अन्धकार दिन की चोटों पर

अंजन बरसाने आते !”


         उक्त पंक्तियों में स्थिर एवं चंचल हृदय की दुख के कारण निकलने वाली साँसों का चित्रण किया है | अस्थिर हदय की साँसों को सीधे-साधे अकाश के बादल छीन लेता है, क्योंकि अज्ञान एवं अंधेरे के कारण दिन में भी मेघ अंधकार की तरह घाव और प्रहार करता है | हदय को चोट पहूँचाता है | अंधकार आँखों के सूरमा या काजल रंग की वर्षा करने आता है | जिसमें दिन के उजाले में भी हदय को चोट पहूँचाता रहता है | प्रत्यक्ष तो यह मेघ बरसात के रूप में प्यासी धरती को प्यास बुझाता है, लेकिन अज्ञान के कारण वह साँसे छीनकर जीवन से रिक्त होने की संवेदना है |


३. विधुर हदय की कम्पन :-

           प्रस्तुत पंक्तियों में मधु की पवित्रता तथा आँखों की पुतली के संसार को प्रतिबिम्ब किया है | आँखों की पुतली का तिरसी नजर से देखना मीठा, उज्जवल और स्वच्छ लगता है, किन्तु इनमें प्यार की पवित्रता झलकती हैं | जिसकी अभिव्यक्ति निम्न पंक्तियों में की है |


“मधु की बूंदों में छलके जब

तारक लोकों के शूचि फूल,

विधुर हदय की मृदु कम्पन सा

सिहर उठा वह नीरव कुल |”


             इन पंक्तियों में मधु का शहद और शराब अर्थ जा सकता हैं | मधु जब प्याले से छलकने लगते है तो जीवन को तारने वाले प्रेम के रूप में पाया जाता हैं | मधु की बूंद या कतरा सुंदर आँख की पुतली सा दिखता है | इनकी शोभा पवित्र पुष्प की तरह हैं | यह शुद्धता और पवित्रता का संसार है | आँखों की पुतली का इस निगाह से देखने से हदय कंपित होता है | आंखों स्वच्छ पुतलियों का मृदु कम्पन विधुर स्त्री का कोमल ह्रदय की कंपन लगता है | सुहाना कंपन शब्द रहित आसमान के कम्पन सा लगता हैं | यह विधुर ह्रदय की वेदना से समग्र मानव शरीर खामोश और सूना हो जाता है | 


४. मूक प्रणय की मधुर व्यथा :-

         कविता की इन पंक्तियों में संसार में जीवित मनुष्य की मूक प्रणय व्यथा को अभिव्यक्ति दी है | इस मधुर व्यथा की पुकार जीवन में बार-बार सुनाई देती है | जिससे जीवन पर्यंत चैन नहीं मिलता | प्रिय आगमन की इन क्षणों को कवियत्री ने गीत की पंक्तियों में व्यक्त की है | प्रियतम का मूक चुपचाप चले आना और उसे अपने प्यार से लुभाना ही अच्छा लगता है | वे चुपचाप ह्रदय के अंदर समाहित हो जाता हैं | प्रेम बंधन में बांध लेता है तथा इस प्रेम की मधुर व्यथा एक ख्वाब सा लगता है |


“मूक प्रणय से, मधुर व्यथा से

स्वप्न लोक के से आह्वान,

वे आये चुपचाप सुनाने

तब मधुमय मुरली की तान |”


           उपरोक्त पंक्तियों में प्रियतम चुपचाप अपनी प्रियतमा से मिलने पहुँच जाता हैं | हदय के लाचार और गूंगे प्रेम का चित्रण किया है | मीठे प्रेम के अंदर क्लेश और दुख भरी मन की तरंगे संसार में पुकार कर रही है | उस समय प्रेम नशीले बांसुरी के संगीत के स्वर का विस्तार ही है | इस बाँसुरी के स्वर से मोहित होकर उसके पीछे-पीछे गोपियों की तरह चलने लगते हैं | इस प्रेम के नशे से मुक्त होना आसान नहीं है | जिस प्रकार गोपियां कृष्ण की बांसुरी के संगीत से मुक्त नहीं हो सकी | 


४. चितवन के दूत की रहस्य कथा :-

            प्रस्तुत पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने आँखों की प्रेम निगाह को कहा है कि तेरी यह रहस्य पूर्ण बात हमें बता दो | जिसने हदय में उछालन और उत्पात मचायी हैं | आँख प्रेम का दूत है | 


“चल चितवन के दूध सुना

उनके, पल में रहस्य की बात,

मेरे निर्निमेष पलकों में

मचा गये क्या क्या उत्पात !”


          उक्त पंक्तियों में कवियत्री ने मानव मन की चंचल चाल को देख कर कहा है कि तू बता मन तेरा यह प्रेम पूर्वक देखने का ढंग किस लिए है ? तेरा यह कटाक्ष-दृष्टि से देखना ही प्रेम के संदेशवाहक का कार्य करता है | उनके ह्रदय से मेरे ह्रदय में प्रेम पहुंचाने का कार्य निगाह ने किया है | इस प्रतिज्ञा और वचन के बारे सुना कि एक क्षण में ही सारी बात का रहस्य गुप्त का वर्णन कर दे | जो तुमने निगाह से कहा हुआ है | तुम अपनी स्थिर दृष्टि मुझ पर टिकाये हुये बैठे है | आँखों की पुतली भी स्थिर है और इसके भीतर बहती उछालन दिखायी देती है | मुझे इस रहस्य के बारे में जल्दी से बता दे, क्योंकि मेरे प्रेम के दूत बनकर निगाह तुम ही आयी थी | मेरे प्रेम का संदेशा तुमने सुनाया था | इसलिए कवयित्री उत्तर माँगती है | 


६. विपुल वेदना की नीधि :-

        महादेवी वर्मा की कविता में वेदना का चित्रण न हो ऐसा कभी संभव ही नहीं | मिलन काव्य की इन पंक्तियों में भी प्रेम के वेदना युक्त संसार को चित्रित किया हैं | वहाँ पर हदय बार-बार लौट कर आने को कहता है | वेदना हदय की वह संपत्ति जो खत्म नहीं होती |


“जीवन है उन्माद तभी से

निधियाँ प्राणों के छाले,

माँग रहा है विपुल वेदना

के मन प्याले पर प्याले !”


          उपरोक्त पंक्तियों में जीवन के पागलपन को व्यक्त किया गया है | प्रेम में न्यौछावर होने के बाद हदय की संपत्ति, धन और दौलत स्वरूप साँसों की स्थिति फफोले की तरह हो गई है | प्रेम वेदना से बने छाले याचना करता हुआ विशाल जीवन को कह रहा है कि उसे मानसिक व्यथा चाहिए | मन बार-बार कहता है कि व्यथा से भरे नशे बाज जीवन में पीड़ा चाहिए | परंतु यह पीड़ा हदय की संपत्ति बन चुकी है | जिसके बीना जीवन की साँसों का चलना मुनकिन नहीं | विपुल वेदना से भरे प्याले पर प्याले मन माँग रहा है | अतः यह पंक्तियां जीवन की विशाल व्यथा को व्यक्त करती है |


७. पीड़ा का बसेरा क्षितिज पार :-

       उक्त पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने अपने जीवन के हृदय में व्याप्त पीड़ा के साम्राज्य को व्यक्त किया है | यह साम्राज्य शांति के स्थान पर छाया हुआ है | जिस ह्रदय में पहले शांति एवं सुख की स्थिति की छाया रहती थी | वही आज रोदन सुनाय देता है |


“पीड़ा का साम्राज्य बस गया

उस दिन दूर क्षितिज के पार

मिटता था निर्वाण जहाँ

नीरव रोधन था पहरेदार !”


       उक्त पंक्तियों में हदय के अंदर पूर्ण प्रभुता के साथ वेदना का अधिकार हो चुका है | यह वेदना धरती और आसमान की क्षितिज रेखा के पार मिलते है | इस प्रेम की सृष्टि की सीमा पार किनारे पर दिखाई देती है | वेदना की स्थिति में शब्द रहित रुदन एवं क्रंदन सुनाय देता है | जिसके रक्षक पहरेदार रोदन था | ह्रदय की के भीतर दूसरी कोई भावना प्रवेश नहीं कर सकती | पूर्ण रूप से हृदय पर पीड़ा का आधिपत्य हो चुका है | यह पीड़ा मिलन के भेंट रूप मिली है | हृदय की शांति को मिटाती चली है | हदय को शून्य ओर ले जा रही है | खालीपन की ओर ले जा रही है | जहाँ मूक रोदन का पहरा हैं | 


८. मूक मिलन की कथा :- 

        निम्न लिखित काव्य पंक्तियाँ मिलन कविता की अंतिम पंक्तियाँ है | इन पंक्तियों में कवयित्री ने मिलन के मौन को व्यक्त किया है | मिलन के समय प्रिया एवं प्रियतम की हदय मौन हो जाता है, लेकिन जब वह विरह में बदल जाता है तो कवयित्री के क्रंदन, आँसू और उनके अलौकिक प्रियतम का हास्य व्यक्त है | जो फूलो पर तुषार बूंद के रूप में चित्रित हैं | 


कैसे करती हो सपना है

अलि ! उस मूक मिलन की बात ?

भरे हुए अब तक फूलों में

मेरे आँसू उनके हास !”


         उक्त पंक्ति में अपनी सहेली को संबोधित करते हुये लिखी है | तुम्हारे सामने अपने मूक मिलन की बात कैसे करूँ ? मेरे प्रियतम के मिलन मिथ्या वासना और मन की तरंगे समझ लो | उसे एक कल्पना समझ कर भूल जाओं | यह हमारे मिलाप की पूर्ण मात्रा से भरे हुये फूलों में तुषार बिंदु के रूप में मेरे आँसू है और मेरे प्रियतम का हास्य है | अतः आंसू और हास्य का सुन्दर समन्वय ही प्रेम का मूक  मिलन है | जिसको कवयित्री ने कविता में व्यक्त की है | मधुर मौन मिलन की पीड़ा एवं हृदयस्पर्शी सूक्ष्मा संवेदन को बहुत ही कुशलता से अभिव्यक्ति की है | 


(३) मिलन कविता का कला-पक्ष :-

          मिलन कविता की निम्नलिखित कलागत विशेषताओं का चित्रण किया हैं | जिसके कारण महादेवी वर्मा के हदय मंदिर संवेदना सुंदर माला के मोतियों की तरह व्यक्त की है |


१. भाषा-शैली :-

         महादेवी वर्मा काव्य लेखन की शुरुआत ब्रजभाषा से करती है, लेकिन निहार काव्य संग्रह की कविता तक आते-आते खड़ीबोली हिंदी के संस्कृत गर्भित रूप में गीत मिलते है | भाव या अनुभूति के अनुकूल शब्द चयन करने के लिए उन्होंने कोमलकांत शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है | कहीं-कहीं भाव को शब्द से प्रबल रूप में व्यक्त करने के लिए उसको तोड़ा मरोड़ा भी गया है | इसके अलावा देशज, अरबी, फारसी, बांग्ला के शब्दावली के समन्वय से कविता को जीवंत बनायी हैं | हिंदी कविता के क्षेत्र में अनुभूति और अभिव्यक्ति में अपनी विशिष्ट पहचान बनायी हैं | मिलन कविता में भावात्मक, चित्रात्मक, व्यंजनात्मक एवं कथन कहन शैली में गीत के मधुर बनाया है | यह मधुर भावशैली के समर्थ प्रयुक्ता के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं | 


२. छंद योजना :-

            छायावाद युग की कविता में छंद की नयी परंपरा शुरू होती है | जिसके प्रथम प्रयुक्त सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है | छंद के बन्धनों से कविता को मुक्त किया और इसके पदचिन्ह पर चलने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा है | अपनी गीत कविता को अतुकांत मुक्त छंद में लिखकर नयी परंपरा का समर्थन करती है एवम् लोगों के दिल में स्थान भी बना लेती हैं | नीहार संग्रह में संकलित मिलन गीत अच्छा उदहारण हैं | 


३. शब्द शक्ति :-

           कविता में व्यक्त भाव को पहचानने के लिए कवयित्री द्वारा प्रयुक्त शब्दों की शक्ति को पहचानना अनिवार्य है | मिलन कविता में मुख्य रूप से अभिधा और व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग किया गया है | जिससे शब्दों का सीधा एवं अन्य प्रतीक अर्थ भावों की गहराई तक ले जाता है | यह कहने में कोय अतिशयोक्ति नहीं होगी कि शब्द को अच्छी तरह से संचालित करने वाली एक संचालिका महादेवी वर्मा है | जो कविता की चाल ढाल को पहचान कर शब्द को चयनित करती हैं |


४. अलंकार योजना :-

        अलंकार के बीना कविता का शरीर सौंदर्य अधूरा रहता है | मिलन कविता भी अलंकारों के सहज तथा सरल प्रयोग से सुंदर बन पड़ी है | जो पाठकों के ह्रदय और मन के अंत:करण को मधुर लगती है | प्रस्तुत कविता में मानवीकरण, उपमा, अनुप्रास, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों से काव्य की सुंदरता बढ़ाने का प्रयास किया है | कविता में कहीं पर भी ऐसा लगता नहीं कि अलंकारों के बोझ से काव्य सौंदर्य दब गया है, बल्कि और भी निखर कर सामने आया है |


“विधुर हदय की मृदु कम्पन सा

सिहर उठा वह नीरव कुल |” –उपमा


५. रस और गुण :-

         कविता में व्यक्त अनुभूतियों के जरिए हदय में रस के झरने फूट निकलते है | जो सृजक के मन और हदय से निकलकर पाठक के ह्रदय तक पहूँच जाते है | प्रस्तुत कविता का मुख्य रस संयोग श्रृंगार एवं वियोग श्रृंगार का चित्रण है, किन्तु करुण, शांत, एवं अद्भुत रस की धारा बहती है | जो नदी की धारा की तरह विशाल नहीं, बल्कि मीठे मधु बूंदों के समान लगता है |

        मिलन कविता में हदय के कोमल भाव को व्यक्त करने के लिए माधुर्य गुण संपन्न कविता है तो प्रसाद गुण का समन्वय कविता को संपूर्ण स्वरूप प्रदान करने में योगदान देता है |


६. प्रतीक और बिम्ब :-

        छायावाद काल की कविता प्रतीकों के प्रयोग के बिना स्पष्ट नहीं हो सकती हैं, क्योंकि इस कविता के सूक्ष्म अनुभूति को प्रकट रूप देने के लिए प्रतीक अनिवार्य है | जो सामान्य पाठक को सहज बोध गम्य पायेंगे | अतः मिलन कविता में प्रकृति के प्रतीक का प्रयोग है और काल्पनिक चित्र, बिम्ब एवं भावना को बखूबी प्रत्यक्ष की है | अतः मिलन कविता प्रतीक और बिंब की दृष्टि से भी अपनी पहचान छोड़ जाती है |


(४) उपसंहार :-

           मिलन महादेवी वर्मा की एक प्रसिद्ध कविता है | इस कविता में प्रकृति के मिलन को जरिया बनाकर अपने प्रियतम के मिलन को प्रस्तुत किया है | यह मिलन सामान्य प्रेम के मिलन कुछ अलग एवं विशिष्ट है, क्योंकि कवयित्री का यह मिलन मूक मिलन है | आँखों से शुरू होकर आँसू में ख़तम होता है | मुख्यतः इस कविता में संसार की करुण कथा, तरल ह्रदय के साँसों में दिखाई देती है, लेकिन प्रेम के मधुर बंधन से व्यथा का लेखन शुरू होता है और यह आँखों की तिरसी निगाह के मिलन सुख से शुरू होअकर मौन के बसेरा छा जाने तक चलती रहती हैं | मिलन सुख की अनुभूति कविता का प्राण है | आंखों से शुरू हुआ प्रेम ह्रदय में जाकर मौन हो जाता है, शून्य में समा जाता है और यही शून्यता खालीपन से भर जाती हैं | हदय के मधुर भावों को खड़ीबोली हिंदी में बहुत ही सुंदर ढंग से गीत में व्यक्त किया है |