Monday, 2 November 2020

ताज कविता में व्यक्त मानवतावादी संदेश

प्रस्तावना :-
         हिन्दी साहित्य के सर्व प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार यानी सुमित्रानंदन ‘पंत’ । पंत जी को हिन्दी कव्य साहित्य में प्रकृति के चतुर चित्रकार और छायावाद के प्रमुख आधार स्तम्भ के रुप में पहचाना जाता है । सुमित्रानंदन ‘पंत’ ने  सात साल की छोटी उम्र से ही कविता लिखने लगे थे । हिन्दी काव्य जगत में पंत जी को ईस्वीसन् 1918 के आसपास नवीन धारा के कवि के रुप में पहचान मिलती हैं । सुमित्रानंदन पंत की प्रथम पहचान छायावादी कवि की है । इसके बाद दूसरी पहचान समाजवादी आदर्शो से प्रेरित प्रगतिवादी कवि के रुप में होती है और तीसरी धारा के अन्तर्गत अरविंद दर्शन से प्रभावित आध्यात्मवादी कवि की होती है । पंत अपने विस्तृत वाङमय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी कवि के रूप में सामने आते हैं । उनका संपूर्ण साहित्य सत्यं, शिवं और सुन्दरम् के आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा है ।

‘ताज’ कविता :-
          सुमित्रानंदन ‘पन्त’ की ‘ताज’ कविता हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध कविताओं में से एक हैं । इस प्रगतिशील विचारधारा से संपृक्त कविता की रचना ईस्वीसन् 1935 अक्तूबर में लिखीत मानी जाती है । ‘ताज’ कविता सुमित्रानंदन पंत के ईस्वीसन् 1936 में प्रकाशित ‘युगान्त’ नामक काव्य संग्रह में संग्रहीत हैं ।

‘ताज’ कविता में व्यक्त मानवतावादी संदेश :-
           हिन्दी साहित्य में छायावाद के महानतम कवि पंत जी ने ‘ताज’ कविता में व्यंगात्मक के साथ मानवतावादी और प्रगतिशील विचार को वयक्त करते हैं । आज तक ताज महल को खुबसूरत इमारत और शिल्प कला का अद्भूत नमुना माना जाता रहा है लेकिन, साहित्यकार उसे एक ओर दृष्टि से भी देखते हैं । ताज महल को मृत्यु का प्रतीक, एक समाधी या कब्र के तौर पर देखते हैं । ताज निर्माण के कारणों को उचित न मानकर अपने विचार व्यक्त करते हैं । मृतक के लिए संगमरमर की इतनी भव्य और बहुमूल्य इमारत बनाई गई हैं, जब्कि संसार भर में  जिन्दा लोगों के पास रहने के लिए घर नहीं हैं । जीवित लोगों का जीवन कुरुप और भद्दा हैं बल्कि, मृतकों को सजाया जा रहा हैं । कवि मुर्दा लोगों को मुर्दा लोगों के साथ ही रहने देना चाहते हैं और जीवित जन को ईश्वरीय चेतना के साथ जी कर आगे बढ़ना चाहिए ।

“हाय! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजन? 
जब विषण्ण, निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन!
संग सौध में हो श्रृंगार मरण का शोभन, 
नग्न, क्षुधातुर, वास-विहीन रहें जीवित जन?”1

            कवि काव्य की प्रथम पंक्ति में निहः साँस और दुःख के साथ कहते हैं कि मृतक लोगों का ऐसा अमरत्वपूर्ण पूजन करते हैं । जो व्यक्ति इस संसार में हैं ही नहीं, बल्कि अलौकिक हो गया इसका पूजन करते मानव को देखकर कवि को प्रश्न होता हैं । कवि ताज को भव्य सौंदर्यमयी, अलौकिक, चिरस्थायी तथा आस्था-श्रद्धा के प्रतीक मानते है, बल्कि यह स्मारक मृतकों के प्रति अपनी आस्था और श्रद्धा व्यक्त करता है जो उचित नहीं हैं ।  जब संसार में रहने वाले जीवित लोगों का जीवन विषादभरा और दुःखी है तथा निर्जीव, जड, चैतन्यहीन पड़ा हो येसे समय में मृत्यु के पीछे इतना बड़ा व्यय और श्रद्धा रखना उचित और न्याय संगत नहीं लगता है ।

           यहाँ मरण को संगमरमर के भव्य महलों में सुन्दर या शोभायुक्त तरीके से श्रृंगार करके सजाया जाता हैं । कवि संसार में रहने वाले जन को कहते हैं कि ये जन अपने तन-बदन को ढंकने के वस्त्र नहीं मिलते हैं । खाने को भोजन नहीं मिलता हैं । बेघर रहते हैं । अर्थात् जीवित जन अपनी सामान्य आवश्यकता के तौर पर अन्न, वस्त्र और आवास विहीन रहते हैं । तब यह कितना उचित हैं ? यहाँ कवि को प्रश्न होता हैं कि मृतक को स्वीकार और जीवित जन का इन्कार क्यों किया जाता है ? जो अन्याय और अनुचित भी हैं ।

“मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति?
आत्मा का अपमान, प्रेत औ' छाया से रति!!
प्रेम-अर्चना यही, करें हम मरण को वरण?
स्थापित कर कंकाल, भरें जीवन का प्रांगण?”2

           इन पंक्तियों में कवि मानवजाति को संबोधित करके कहते हैं कि जीवन के प्रति इतनी उदासीनता या वैराग्य क्यों रखते हो ? जीवित लोगों का अपमान करते हो ? आत्मा का अपमान क्यों करते हो । जो लोग जिन्दा हैं उनकी उपेक्षा करते हो । ये मानव येसा क्यों करते हो ? प्रेत का अर्थ हैं जो मर कर रह जाते हैं और छाया का मतलब हैं मृत्यु के बाद जिसकी छाया बचती हैं । जो मानव संसार को छोडकर मात्र प्रेत और छाया बनकर रह गये हैं जिसकी केवल स्मृतियाँ शेष रह गयी हैं  । उनके प्रति इतना ज्यादा प्रेम और लगाव क्यों रखते हो । मानव यही तुम्हारा प्रेम हैं या यही तुम्हारा लगाव हैं ? मृतक को हम अपनाये और उसे प्रेम करें, जब्कि जीवित जन की उपेक्षा, अपमान या अनादर करना ही तुम्हारी प्यार पुजा हैं ?

“शव को दें हम रूप, रंग, आदर मानव का?
 मानव को हम कुत्सित चित्र बना दें शव का? 
गत-युग के बहु धर्म-रूढ़ि के ताज मनोहर? 
मानव के मोहान्ध हृदय में किये हुए घर!”3

            हम संसार भर में मृतक के लिए भव्य और सुन्दर संगमरमर की इमारतें, कब्र तथा महल बनाये और उसमें कंकाल यानी अस्थि पिंजर को रखें । संसार में जो स्थान जीवित जन के लिए सुरक्षित हैं उसे मृतक को से नहीं भरना चाहिए । अतः जीवित मानव के प्रति प्रेम रखें, उनका पूजन करें और उसे जीवन में स्थान देना ही उचित है । पहले हमे जीवित लोगों के बारें में सोचना चाहिए और बाद में मृतकों की चिंता करनी चाहिए । दुनिया में जो मान, सम्मान, आदर, रंग-रुप, शोभा और सत्कार मानव को देने चाहिए । यही हम एक शव, मृतक या छाया को दे रहे हैं । कवि के अनुसार यह उचित नहीं हैं । कवि कहते हैं कि जीवन में जीवित मानव को एक भद्दा चित्र बनाकर छोड़ दें और जीवित मनुष्य को भद्दा प्रतीक समझकर उसे छोड़ देते हैं । जो उचित नहीं है । मुर्दे  को ज़िन्दा मनुष्य की तरह सज़ा रहे हैं, सवार रहे हैं, सम्मान दे रहे हैं, जब्कि जिन्दा मनुष्य को हम कुरुप बना रहे हैं जो कि उचित नहीं हैं ।  गत यानी बिता हुआ भूतकाल । ताज बितें हुए समय यानी भूतकाल के येसे नियम या सिद्धांत का प्रतीक है, जिसकी आज कोई उपयोगीता नहीं है । हम ताज महल जैसे भव्य और सुन्दर स्मारक को बीते हुए रुढिवादी और सामन्तवादी आदर्शो या सिद्धांतों के प्रतीक मानते हैं, जब्कि इनका वर्तमान समय में कोई स्थान नहीं हैं । होना भी नहीं चाहिए । अत्यधिक मोह या भ्रम, बहुत ज्यादा लगाव के कारण सत्य को न देख पाने कारण कवि कहते हैं कि ताज महल जैसे रुढिवादी स्मारक आज भी मानव जाति के दिलों में अपना स्थान बनाये हुये हैं, कयोंकि आदमी कि दिल अज्ञान, भ्रम या बहुत ज्यादा लगाव के कारण दिशा हीन हो गया हैं । लोग यह समझ पाने मैं असमर्थ हैं कि उन्हें किसको अपने मन में स्थान देना चाहिए या किस को नहीं देना चाहिए ! उसी अज्ञानता के कारण वे ताज महल जैसे स्मारकों को अपने ह्दय में स्थान देते हैं, जब्कि यह ताज मनुष्य के शोषण के प्रतीक भी है ।

“भूल गये हम जीवन का सन्देश अनश्वर, 
मृतकों के हैं मृतक, जीवितों का है ईश्वर!”4

            हम मनुष्य जीवन मिलते ही जीवन के अनश्वर, अमर, सदा रहने वाला संदेश, नियम या सिद्धांत भूल गए हैं । कवि कहते हैं कि जीवन के प्रति हम इतने लापरवाह हो गये हैं कि ये अमर नियम या सिद्धांत भूल गए हैं । कवि के अनुसार ये विधाता, महापुरुषों या प्रकृति का नियम हैं कि मुर्दा लोगों को मृतकों के साथ ही रहने देना चाहिए, मृतकों की जिम्मेदारी मृतकों को लेनी या देनी चाहिए और जीवित लोगों को ईश्वर को साक्षी मानकर कर्म करते रहना चाहिए अथवा जीवन को श्रेष्ठ बननाने का प्रयास करना चाहिए । जो लोग जीवित हैं उनके भीतर ईश्वरीय तत्व है । चेतना हैं । इसी कारण उन्हें  एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए । ईश्वर से प्रेरेणा पाकर आगे बढते रहना चाहिए । उन्हें मृत लोगों के पीछे अपना समय और उर्ज़ा नष्ट नहीं करनी चाहिए । जीवित लोगों के साथ ईश्वर की करुणा होती हैं । मृत्यु को अनावश्यक महत्व नहीं देना चाहिए ।

संदर्भ :-

1) तारापथ-सुमित्रानंदन,लोकभारती-प्रकाशन संस्करण-2017, पृष्ठ-113
2)  वही, पृष्ठ -113
3)  वही, पृष्ठ -113
4)  वही, पृष्ठ -113

Wednesday, 21 October 2020

जो बीत गई सो बात गई ! कविता का सारांश


(1) प्रस्तावना :-
                हरिवंशराय बच्चन का नाम हिन्दी साहित्य के इतिहास में स्वणॅ अक्षरों से अंकित है । जिसको कोई चाहकर भी कभी मिटा नहीं सकता । हरिवंशराय बच्चन ने हिन्दी साहित्य में गद्य और पद्य की साहित्यिक समृद्धि को बढ़ाया हैं । हिन्दी साहित्य जगत में कवि की विशेष प्रसिद्धि अपनी ‘मधुशाला’ रचना के कारण है लेकिन, उनकी छोटी-छोटी कविताएँ भी पाठकों का दिल जीतने में काफ़ी सफल रही हैं । येसी ही एक महत्वपूर्ण कविता है ‘जो बीत गई सो बात गई !’ यह कविता अपने विषय की सहजता, सरलता एवं उद्देश्य के लिए आज भी बहुत लोकप्रिय है ।

(2) ‘जो बीत गई सो बात गई !’ काव्य में जीवन दर्शन :-
                   ‘जो बीत गई सो बात गई !’ काव्य को हिन्दी साहित्य के पाठकों से प्रसिद्धि का प्रमाणपत्र प्राप्त काव्य है । इसका भावविश्व बहुत उपदेशात्मक और सहज बोधगम्य हैं । काव्य में कवि जीवन के महत्वपूर्ण सत्य को उद्घाटित करते हैं कि जिन्दगी में भूतकाल और भविष्यकाल की मायझाल से मुक्त होकर अपने वर्तमान में जीवन यापन करना चाहिए । यानी जीवन में कल की उलझनों से दूर रहना ही समझदारी होगी । हिन्दी साहित्य में ‘कल’ बीते समय तथा आनेवाले समय के लिए भी प्रयुक्त होने वाला शब्द है ।


             व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा के दौरान विभिन्न जीवनानुभवों से गुज़रता हैं । जिसमें सुखद एवम् दु:खद भी होते है । सामान्यतः सुख के समय तो मानव को बहुत-बहुत अच्छा लगता हैं परंतु, जब दुःख का समय हो तो इसमें से आदमी जल्दी संभल नहीं सकता । इसमें अगर किसी अपने प्रिय को असमय गवाने की नौबत आ गई तो यह समय पुरे जीवन को दुःखी कर जाता हैं । कवि इस कविता माध्यम से यही विचार व्यक्त करते हैं कि जो जिन्दगी में बीत गया है । उसको भूलकर, चिंता छोड़कर एवं मुक्त होकर अपने वर्तमान के जीवन को अच्छे से जीये ।

                 कवि बच्चन जी ने यह बात समझाने के लिए अंबर, मधुवन और अपने को प्रिय मधुशाला का उद्धरण दिया हैं । कवि काव्य के माध्यम से हमे अपने जीवन में बीती हुई बातों को भूलने के लिए कहते हैं क्योंकि, कल किसी को फ़िर से लौटकर मिलने वाला नहीं । बीती बातें कितनी भी मूल्यवान और प्रिय हो परंतु जीवन दूसरी बार नहीं देंगे । उसके लिए आप कितने आँसू बहलाए, प्रलाप करें, दःखी रहें एवं पश्चात्ताप करे किन्तु, जीवन में कल कभी लौटकर नहीं आता और आनेवाला कल भी अनिश्चित होता हैं । इसलिए कवि वर्तमान को सुव्यवस्थित तरीके से जीवन उपयोगी बनाने के लिए कहते है । कवि काव्य भावना को वयक्त करने के लिए अंबर की बात करे है । जो सदाकाल से अपने अस्तित्व को बनायें रखें बैठा है । आकाश में चमकने वाले सितारे को अंबर उनको बेहद-बेपनाह प्यार करते हैं । वह सितारे अंबर के लिए खास और दिल के क़रीब थे किन्तु, वह सितारे डूब गये हैं । आसमान से मीट गये हैं । उनका अस्तित्व नहीं रहा । फिरभी कवि बरकरार अंबर के आनन को देखने के लिए कहते हैं कि इतने प्यारे छूटने पर भी दुःखी होकर अपने को कभी रोकता नहीं । अंबर ने अपने अस्तित्व से आज तक न जाने कितने सितारे टूट कर बिखर गये । यह टूटने वाले सितारे कभी भी फिर से मिलने वाले नहीं । यह स्मरण कर अंबर अपने जीवन में कभी शोक नहीं मनाता हैं । वे प्रत्येक समय यही सोचकर आगे बढ जाते हैं कि जो बीत गई सो बात गई ! यही बात हम मानव को अंबर से ग्रहण करके चलना चाहिए कि जिन्दगी में प्यारी व्यक्ति को खोने के शोक को भूलकर जीवन प्रवाह को आनंद से प्रवाहित रखना चाहिए ।

"जीवन में एक सितारा था,
माना, वह वेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया,
अम्बर के आनन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फिर कहाँ मिले,
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है !
जो बीत गई सो बात गई !"

                    बच्चन जी काव्य की अगली पंक्तियों में जीवन की सच्चाई को मधुवन के द्वारा समझाते हैं । मधुवन के जीवन में एक कुसुम यानी फूल था । जिस फूल पर मधुवन नित्य समय न्योछावर रहते थे । आज वह प्यारा कुसुम मधुवन से सुख गया है । कितने येसे सूखे कुसुम थे जिस पर मधुवन नित्य निछावर था लेकिन, सुखे फूल को देखकर कभी भी मधुवन दुःखी नहीं होता । बीती बातें याद कर अपने वर्तमान जीवन को बर्बाद करना नहीं चाहते हैं । इसके अलावा मधुवन में कितने कुसुम सूखे, कितनी इसकी कलियाँ असमय ही मुरझाँ कर गीर गई तथा कितनी वल्लरियाँ सूखकर अपने जीवन को मिटा कर चली गयी । यह कुसुम, कलियाँ और वल्लरियाँ फिर कभी खिलने वाली नहीं । मधुवन यह याद कर शोर नहीं मचाता और कहता फिरता नहीं । वह यही समझता है कि हमारे जीवन का सफर जब तक उनके साथ था वहीं तक चला । अब हमे यह स्मरण कर दुःखी होकर शोर नहीं मचाना चाहिए । शोर मचाने से कोई फ़ायदा नहीं हो सकता हैं । इसलिए हमारी भलाई इसी में हैं कि जो बीत गई सो बात गई ! कह कर उसे भूल जाये ।

"जीवन में वह था एक कुसुम,
थे उसपर नित्य निछावर तुम,
वह सूख गया तो सूख गया,
मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ,
मुझाईं कितनी बल्लरियाँ ,
जो मुझाईं फिर कहाँ खिली,
पर बोलो सूखे फूलों पर;
कब मधुबन शोर मचाता है !
जो बीत गई सो बात गई !"

            हरिवंशराय बच्चन काव्य में मधुशाला के जरिए अपनी भावाभिव्यक्ति करते हैं । मानव हृदय फूल सा कोमल और लोहे से भी ज्यादा सख्त है । मनुष्य जीवन में जब टूट जाता हैं तब उसके बाद के जीवन में भी आशा किरण खोज नहीं पाता और स्वयं बिखर जाता । येसे मानव के लिए कवि मधुशाला उदाहरण द्वारा समझाते हैं कि सृष्टि पर कोई ऐसी व्यक्ति न होगी जिसके जीवन में दुःख न आया हो । जिसके कोई अपने बिछड़े न हो । जिसका कोई प्यारा न छूटा हो । सृष्टि में अस्तित्व रखने वाले के प्रत्येक का अपना नीजि संसार हैं । जिसमें सुख-दु:ख समान रुप से समाया हुआ हैं । कवि कहते हैं कि मधुशाला के जीवन में अपने प्याले हैं । इन पर मधुशाला अपना तन-मन न्योछावर करती हैं किन्तु, मधुशाला में प्याले टूटा ही करते हैं । येसे दुःख के समय में मदिरालय अपने आप को सम्हालती हैं । वह मधुपान करवाने का छोड़ती नहीं वे अपने संसार को आगे बढ़ाकर मदिरा बांटती-पिलाती रहती हैं । मधुशाला के कितने ही प्याले हिल कर, टूट कर मिट्टी में मिल जाते हैं । जो प्याले गिर कर टूट जाते हैं वे कभी मधुशाला के मधु पिलाने के लिए उठते नहीं । इतना कुछ लूटने बाद भी मधुशाला अपने टूटे प्यालों पर कब पछताता है ! इन पंक्तियों में कवि मानव को संबोधित करके कहते हैं कि मानव जीवन के सत्य को स्वीकार कर चले कि कल किसी का लौटकर नहीं आता हैं । हम अपने जीवन में समझ जाये  की

"जो बीत गई सो बात गई !
कितने प्याले हिल जाते हैं,
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं,
जो गिरते हैं, कब उठते हैं,
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है !
जो बीत गई सो बात गई !"

                 कवि बच्चन जी कविता में यहा तक रुकते नहीं ! मधुशाला के प्यालें मानव की तरह मृदु मिट्टी के बने होते हैं । इन प्यालों में प्यारा मधुघट (शराब रखने का घट) फूटता ही हैं । उनका जीवन लधु और छोटा होता हैं । मधुशाला में येसा प्यालें टूटते ही रहते हैं । फिरभी मदिरालय के अंदर मनुष्य को देखने के लिए कहते हैं कि मधुघट है, मधु पयाले है और यह प्याले मादकता (नशा) के मारे हैं । वे मधु (शराब) को लूटाया ही करते हैं । मधुशाला और मधु के प्याले कभी मधु पिलाना छोड़ते नहीं । बीती बातें भूल कर अपने में रत्त रहते हैं ।

"वह कच्चा पीनेवाला है
जिसकी ममता घट-प्यालों पर,
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है, चिल्लाता है !
जो बीत गई सो बात गई !"

              कवि काव्य की अंतिम पंक्तियों तक आते-आते जीवन सत्य को पिलाते हैं कि जिसकी ममता घट प्यालों पर होती हैं तो यही समझ लीजिए वह पीने वाला कच्चा हैं । जो सच्चे मधु से जला हुआ होता हैं वह कभी रोत-चिल्लाता नहीं । किसी के लिए हमारे दिल में सच्चे मन के भाव होते तो किसी के लिए रोते-चिल्लाते नहीं हैं । जीवन में यही सत्य है कि जो बीत गई सो बात गई ! यह भी कहा जाता है कि जख्म मिलने पर आदमी ज्यादा मौन होकर आगे बढ़ता है ।

(3) निष्कर्ष :-
                  प्रस्तुत कविता दुःखी, पीड़ित, टूटे-हारे, बिखरे, निराशा और जो यह समझते हैं कि जीवन में मैं लूट गया, मेरा सबकुछ चला गया, मेरा अपना प्रिय नहीं रहा, कैसे जीऊँगा आदि विचारों से घीरे मनुष्य को संदेश देती हैं कि बीती बातें भूल कर जीवन में आनंद के साथ आगे बढ़ना चाहिए । कवि बच्चन जी इसके लिए अंबर, मधुवन और मधुशाला के उद्धरणों का वर्णन हैं । जो अंबर अपने बेहद प्यारा सितारे को मिटने के बाद भी उसका आनन कम नहीं करता । मधुवन की कलियाँ, कुसुम और वल्लरियाँ जिस पर मधुवन न्योछावर थे । वह मुझाँई कर सुख गई । मधुवन इसके लिए शोर नहीं मचाना । मधुशाला या मदिरालय के प्यारे प्यालें टूट कर मिट्टी में मिल जाते हैं लेकिन मदिरालय कभी पछतावा नहीं करती । सच्चे हृदय-मन से जो जीता हैं वे रोता चिल्लाता नहीं । अतः जीवन में घटित अप्रिय घटना और अपने प्यारे जो दिल के क़रीब हैं । इनके चले जाने के दुःख को भूलकर जीवन में नये रंग भरते रहने चाहिए । जो बीत गई सो बात गई सो बात गई !

नागार्जुन का जीवन परिचय

(१) प्रस्तावना :- 

          हिन्दी साहित्य में वैधनाथ मिश्र को ‘यात्री’ और ‘नागार्जुन’ के नाम से पहचानते हैं | नागार्जुन ने भिन्न-भिन्न भाषा और साहित्यिक विधाओं में अपनी कलम के दम पर विशेष स्थान प्राप्त किया हैं | उनके काव्य को हम पूरी भारतीय काव्य परंपरा का जीवंत दस्तावेज कह सकते हैं | इनके काव्य में ‘कालिदास’ और ‘विद्यापति’ जैसे कई कालजयी कवियों के रचना संसार के गहन अवगाटन, बौद्ध दर्श, मार्क्सवाद, बहुजनहीताय और परिवेश की समस्याएँ, चिंताएँ और संस्कृति का एतिहासिक दस्तावेज हैं | नागार्जुन का काव्य लोक हदय एवं लोक-संस्कृति की गहरी पहचान से निर्मित काव्य हैं | कवि का यात्रीपन भारतीय जन मानस और विषयवस्तु को समग्र और सच्चें रूप में समजने का साधन हैं | जिसके जरिए अपने हम साध्य तक पहुँच सकते हैं | वे अपनी अभिव्यक्ति के लिए सीधी, सादी और सरल भाषा का नए ढंग से प्रयोग करने में सिधहस्त हैं | हिंदी काव्य साहित्य के सबसे अद्वितीय, मौलिक और बौद्धिक कवि है |  


(२) जन्म-जन्म स्थान :-

आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध प्रगतिशील और जनवादी साहित्यकार नागार्जुन का जन्म बिहार राज्य के दरभंगा जिले से जुड़े ‘सतलखा’ स्थान पर ईस्वीसन ११ जून १९११ को हुआ था, लेकिन उनका पैतृक गाँव दरभंगा जिले का ‘तरौनी’ गाँव था | नागार्जुन का वास्तविक नाम ‘वैधनाथ मिश्र’ है तथा  अपने बचपन का नाम ‘ठक्कन मिसर’ था | वे हिंदी साहित्य में ‘नागार्जुन’, मैथिली साहित्य में ‘यात्री’, संस्कृत में ‘चाणक्य’ तथा मित्रों एवम् राजनीति में ‘नागाबाबा’ के नाम से विभूषित हैं |


(३) परिवार और बचपन :-

नागार्जुन का जन्म निम्न मध्यम वर्गीय मैथिल ब्रामण परिवार में हुआ था |  उनके पिता का नाम ‘गोकुल मिश्र’ तथा माता का नाम ‘उमादेवी’ हैं | माता स्वभाव से सरल हदय, इमानदर, परिश्रमी एवं चरित्रवान महिला थी, लेकिन नागार्जुन चार साल के थे, उसी समय माता उमादेवी का देहान्त हो जाता है | माता के लिए कवि के मन में स्नेह और आदर की भावना विद्यमान रहती हैं |  पिता गोकुल मिश्र घुमक्कड़, भंगेड़ी, लापरवाह, रुढ़िवादी दरिद्र, संस्कार हीन, कठोर एवं फक्कड़ की मृत्यु सितम्बर १९४३ में काशी में गंगा किनारे मणिकर्णिका घाट पर होती है | नागार्जुन एक निर्धन कृषक परिवार में पैदा हुए थे | इसलिए बचपन और तरुणावस्था में ही विद्रोही वृतियों के शिकार होते हैं | अपने पिता के प्रति नफ़रत की भावना भी विद्रोही प्रवृति के लिए जिम्मेदार थी | नागार्जुन स्वभाव से चिन्तनशील, आतंरिक दृष्टी से सबल हदय के धनि, सह्द्यी, मिलनसार, अतिशय संवेदनशील व्यक्तित्व के मनुष्य थे | सीधा-सादा जीवन और स्वतंत्रता के चाहक हैं |  


(४) शिक्षा :-

नागार्जुन का जीवन ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हैं | यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं हैं, क्योंकि बालक नागार्जुन के चाहने के बाद भी रुढ़िवादी पिता गोकुल मिश्र उन्हें अंग्रेजी की प्रारंभिक शिक्षा देना पसंद नहीं करते थे | फिरभी प्रारंभिक  पांचवी कक्षा तक उनके गाँव तरौनी में होती हैं | वे पढ़ने-लिखने में बहुत तेज थे, किन्तु उनकी पढाई संस्कृत पाठशाला में होती थी | मध्यम की पढाई पूरी करने के बाद बनारस जाकर राजनीति का ज्ञान प्राप्त करते हैं और ‘साहित्याचार्य’ तथा ‘कवि रत्न’ की उपाधि प्राप्त करते हैं | इसके बाद कभी अंग्रेजी स्कूल या विश्वविद्यालय की पढाई नहीं की, किन्तु जिन्दगी की परीक्षाओं ने नागार्जुन को शिक्षित बना दिया | कवि संस्कृत, हिंदी, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, सिंहली, मैथिली, बिहारी, अंग्रेजी आदि भाषा के ज्ञाता थे | 


(५) शादी :-

        घुमक्कड़ वृति के धनि और ज्ञान प्रप्तिके जिज्ञासु नागार्जुन की शादी उन्नीस वर्ष की आयु में अठारह वर्षिय ‘अपराजिता देवी’ से होती हैं | अपनी पत्नी के प्रति सदैव सहानुभूति की भावना रखते थे, किन्तु यायावरी जीवन यापन करने वाले कवि को कभी अपनी पत्नी को उचित स्नेह नहीं दे पाये |  वे परिवार के भरण-पोषण की चिंता कभी नहीं करते थे | उनकी पत्नी अपराजिता देवी थोड़ी सी पुस्तैनी खेती के सहारे खाने-पीने का प्रबंध करती थी | इनके लिए कहा जाता है कि ऐसे गृहस्थ से तो सन्यासी ही भला | कवि नागार्जुन ईस्वीसन १९३८ से १९४१ ईस्वीसन तक भ्रमण करते है और इसके पश्चात् गृहस्थ जीवन जीने लगते हैं | अत : नागार्जुन अपने घर को कभी अपना स्थिर ठिकाना नहीं बना सके | 


(६) व्यवसाय :- 

     नागार्जुन जीवन विर्वाह की कभी चिंता नहीं करते थे | अपने गृहस्थ जीवन के लिए लेखन, अध्यापन और कृषक का कार्य करते हैं | अपनी निर्धनता के कारण अपने पुत्र-पुत्री को अच्छी शिक्षा भी प्रदान नहीं कर पाये थे | 


(७) राजनीतिक जीवन :-

    कवि नागार्जुन अपने राजनीतिक जीवन में अनेक राजनीतिक एवं विशिष्ट व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं | जिनमें आजाद हिंद सेना नायक सुभाषचन्द्र बोस, जयप्रकाश नारायण, मैथिली कवि पंडित सीतार झा, महारानी लक्ष्मीवती देवी, मदन मोहन मालवीया, गंगाप्रसाद उपाध्याय, स्वामी सहजानंद तथा महात्मा गाँधी प्रमुख हैं | बनारस से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत होती हैं | ईस्वीसन १९३८ में बिहारी कृषक क्रांति के समय महीने के लिए केन्द्रिय कारागारों में बंदी बनाये गए थे | श्रीलंका में अध्ययन करते समय बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर अनुआयी हो जाते है |  


(८) प्रिय साहित्यकार :-

 महाकवि कालिदास नागार्जुन के सबसे प्रिय कवि है | नोबल पुरस्कार प्राप्त ‘गीतांजलि’ के कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर से भी प्रभावित है | कवि पाश्चात्य सर्जक गोर्की की श्रमिक चेतना से बहुत प्रभावित और आकर्षित होते है | उनके जीवन में ज्ञान और राजनीतिक चेतना जगाने का कार्य हिंदी साहित्य के महापंडित राहुल संकृत्यायन करते है और कवि केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में व्यक्त जन-भावना भी काफी प्रभावित करती हैं |  इनके अलावा हिंदी साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र, मुंशी प्रमचंद, हरिशंकर परसाई, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, राजकम चौधरी, काल मार्क्स, लुम्बा, श्रीपाद हाँरो, शैलेन्द्र आदि नागार्जुन के प्रेरक रहे हैं |


(९) पुरस्कार :-

१. नागार्जुन को मैथिली भाषा में रचित ‘पत्र हीन नग्न गाछ’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार |

२. उत्तर प्रदेश हिंदी संसथान-लखनऊ द्वारा कवि को ‘भारत-भारती’ सम्मान |

३. मध्य प्रदेश सरकार की ओर से ‘मैथिलीशरण गुप्त’ सम्मान | 

४. पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा ‘राहुल सांकृत्यायन’ सम्मान | 

५. साहित्य अकादमी की ‘सर्वोच्च फेलोशिप’ से सम्मानित है | 


(१०) मृत्यु :-

          हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध जनवादी साहित्यकार नागार्जुन का निधन ५ नवम्बर १९९८ को बिहार के दरभंगा जिले के खाजा सारे में गुरुवार प्रात: ६ बजाकर ३० मिनट पर ८७ वर्ष की आयु में होता हैं |  


@कृतित्त्व :-

            नागार्जुन संस्कृत, हिंदी और मैथिली भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार हैं | उन्होंने साहित्य की गद्य और पद्य दोनों विधाओं में सर्जन करके साहित्य को समृद्ध किया हैं | उसने कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, आलोचना, बाल-साहित्य, अनुवाद तथा संपादन में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई हैं | कवि की प्रारंभिक कविताएँ ‘यात्री’ के नाम से प्रकाशित होती थी, बल्कि सन १९४१ के बाद मित्रों के आग्रह पर ‘नागार्जुन’ के नाम से लिखने लगे थे | यह नाम हिंदी साहित्याकाश में अमर हो गया | नागार्जुन द्वारा मैथिली भाषा में रचित कविता सन १९२९ में लहेरियासराय दरभंगा से प्रकशित ‘मिथिला’ पत्रिका में छपी थी, लेकिन हिंदी भाषा में लिखित प्रथम  कविता ‘राम के प्रति’ है |  जो सन १९३४ ई. में लाहौर से निकलने वाले साप्ताहिक पत्रिका ‘विश्वबंधु’ में प्रकाशित होती है | कुल मिलाकर नागार्जुन का रचना काल सन १९२९ ई. से आरंभ करके सन १९९७ ई. तक के अड़सठ वर्ष का रहा हैं |


(१) काव्य साहित्य :-

हिंदी प्रबंध काव्य :- (१) ‘भस्मांकुर’-१९७० (खंड-काव्य), (२) ‘भूमिजा’, (३) ‘राम-कथा’ (अपूर्ण)

हिंदी काव्य संग्रह :- (१) युगधारा-१९५३, (२) सतरंगे पंखों वाली-१९५९, (३) प्यासी पथराई आँखें-१९६२, (४) तालाब की मचलियाँ-१९७४, (५) तुमने कहा था-१९८०, (६) खिचड़ी विप्लव देखा हमने-१९८०, (७) हजार-हजार बाँहों वाली-१९८१, (८) पुरानी जूतियों को कोरस-१९८३, (९) रत्नगर्भ-१९८४, (१०) ऐसे भी हम क्या ! ऐसे भी तुम क्या !-१९८५, (११) आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने-१९८६, (१२) इस गुब्बारे की चाय में-१९१०, (१३) भूल जाओ पुराने सपने-१९९४, (१४) अपने खेत में-१९९७

मैथिल काव्य संग्रह :- (१) चित्रा-१९४९, (२) विशाख, (३) पत्रहीन नग्न गाछ-१९६७ |

संस्कृत काव्य :- (१) देश दशंक, (२) श्रमिक दशंक, (३) कृषक दशंक, (४) धर्मलोक शतक |


(२) गद्य साहित्य :-

👉हिंदी उपन्यास :- (१) रतिनाथ की चची-१९४८ (२) गरीबदास-१९९० (१९७९ में लिखित)      (३) नयी पौध-१९५३ (४) बाबा बटेसरनाथ-१९५४ (५) वरुण के बेटे-१९५७ (६) दु:ख मोचन-१९५७ (७) कुंभीपाक-१९६० (१९७२ में ‘चंपा’ नाम से भी प्रकाशित) (८) हीरक जयंती-१९६२ (१९७९ में ‘अभिनंदन’ नाम से भी प्रकाशित) (९) जमनिया का बाबा-१९६८ (१९६८ में ही ‘इमरतिया’ नाम से प्रकाशित)


👉मैथिली कथा साहित्य :- (१) पारो-१९४६ (उपन्यास) (२) नव तुरिया-१९५४ (३) बलचनमा-१९५२ 


👉कहानी साहित्य :- (१) आसमान में चंदा तैरे-१९८२ 


👉बांगला रचनाएँ :- (१) मैं मिलिट्री का बुढा घोडा-१९९७ 


👉बाल साहित्य :- (१) कथा मंजरी भाग-१-१९५८ (२) कथा मंजरी भाग-२ (३) मर्यादा पुरुषोत्तम राम-१९ (‘भगवान राम’ और ‘मर्यादा पुरोशोत्तम’ के नाम से प्रकाशित) (४) विद्यापति की कहानियाँ-१९६४ (५) वीर विक्रम (६) प्रेमचंद 


👉आलेख संग्रह :- (१) अन्नहीनम्-१९८३ (२) बम्भोलेनाथ-१९८७


👉संस्मरण :- (१) एक व्यक्ति : एक युग-१९६३


👉अनुदित साहित्य :- (१) गुजराती उपन्यास ‘पृथ्वी वल्लभ’ का हिंदी अनुवाद-१९४५ (२) विद्यापति के सौ गीतों का भावानुवाद-१९६५ (३) ‘मेघदूत’ का मुक्त छंद में अनुवाद-१९५३ (४) जयदेव के ‘गीत गोविन्द’ का भावानुवाद-१९४८ (५) विद्यापति की ‘पुरुष परीक्षा’ (संस्कृत) की तेरह कहानियों का भावानुवाद करके ‘विद्यापति की कहानियाँ’ नाम से ई. स. १९६४ में प्रकाशित (६) परणिता 


👉संपादन :- (१) ‘वैदेही’ पत्रिका में काशी से ‘वैदेह’ उपनाम से लेखन (२) भारती पत्रिका में काशी से ‘वैदेह’ उपनाम से लेखन (३) कौमी बोली (सिंध) (४) साप्ताहिक ‘विश्व बंधु’ (लाहौर) (५) जोगी (पटना) (६) पंचायती राज (लहरिया सराय) (७) जन युग (दिल्ली) (८) बाल-सखा (९) चुत्रू-मुत्रू | 


निष्कर्ष :- 

  

       

        

  


Tuesday, 20 October 2020

मुंशी प्रेमचंद रचित ‘निर्मला’


1. निर्मला उपन्यास के लेखक कौन है ?
निर्मला उपन्यास के लेखक मुंशी प्रेमचंद है |

2. निर्मला किस प्रकार उपन्यास है ?
निर्मला एक सामाजिक समस्या प्रधान उपन्यास है |

3. निर्मला उपन्यास की नायिका कौन है ?
निर्मला उपन्यास की नायिका ‘निर्मला’ है |

4. निर्मला उपन्यास का शीर्षक किस आधार पर दिया गया है ?
निर्मला उपन्यास का शीर्षक कथा नायिका निर्मला के प्रमुख चरित्र के आधार पर दिया गया है |

5. निर्मला किसकी लड़की है ?
निर्मला बाबू उदयभानु लाल के की बड़ी लड़की है |

6. बाबू उदय भानु लाल की छोटी लड़की का नाम क्या है ?
बाबू उदयभानु लाल की छोटी लड़की का नाम कृष्णा है |

7. बाबू उदयभानु लाल कौन-सा व्यवसाय करते थे ?
बाबू उदयभानु लाल एक अच्छे वकील थे |

8. निर्मला की उम्र क्या है ?
निर्मला का 15वाँ साल चल रहा था |

9. निर्मला की छोटी बहन कृष्णा कितने साल की है ?
निर्मल की छोटी बहन कृष्णा का 10वाँ साल चल रहा था |

10. निर्मला उपन्यास का प्रकाशन समय क्या हैं ?
 निर्मला उपन्यास सन 1927 में प्रकाशित हुआ था |

11. निर्मला का विभिन्न किस्तों में कब और किस पत्रिका में प्रकाशन हुआ
 था ?
 निर्मला सन 1925 से 1926 तक इलाहाबाद से प्रकाशित ‘चाँद’ पत्रिका में विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ था |

12. निर्मला की प्रमुख समस्या कौन-सी है ?
 निर्मला की प्रमुख समस्या दहेजप्रथा और अनमेल विवाह की है |

13. मुंशी प्रेमचंद का प्रथम यथार्थवादी एवं हिंदी का प्रथम मनोवैज्ञानिक
 उपन्यास कौन सा है
 मुंशी प्रेमचंद का प्रथम यथार्थवादी एवं मनोवैज्ञानिक उपन्यास निर्मला है |

14. निर्मला का विवाह प्रथम किस से तय होता है ?
 निर्मला का शादी भुवन मोहन से तय होती है |

15. भुवन मोहन किसका पुत्र है ?
 भुवन मोहन बाबू भालचंद्र सिन्हा का जयेष्ठ पुत्र है |

16. चंदर किसका लड़का है ?
 चंदर बाबू उदयभानु लाल का लड़का है |

17. निर्मला और कृष्णा के भाई का नाम क्या है ?
 निर्मला और कृष्णा के भाई का नाम चंद्रभानु उर्फ चंदर है |

18. निर्मला की माता कौन है ?
 निर्मला की माता कल्याणी है |

19. बाबू उदयभानु लाल के सबसे छोटे बेटे का नाम क्या है ?
 बाबू उदयभानु लाल के सबसे छोटे बेटे का नाम सूर्य भानु है |

20. कल्याणी और उदयभानु का कितने साल का दाम्पत्य जीवन है ?
 कल्याणी और उदयभानु का 25 साल का लम्बा दाम्पत्य जीवन है |

21. उदयभानु पत्नी कल्याणी को कैसे सबक सिखाना चाहते थे ?
 उदयभानु लाल पत्नी कल्याणी को इस प्रकार सबक सिखाना चाहते थे कि अपना कुर्ता गंगा के किनारे रखकर पाँच दिन के लिए मिर्जापुर चले जाने का निश्चय किया था |

22. बाबू उदयभानु ने डाके का अभियोग चलाकर किसको तीन साल की सजा दिलवाई थी ?
 वकील बाबू उदयभानु लाल ने डाके का अभियोग चलाकर मतई को तीन साल की सजा दिलवाई थी |

23. कल्याणी किसको शोक संदेश के साथ निर्मला के विवाह की सूचना भेजती है ?
 निर्मला की मां कल्याणी महाशय बाबू भालचंद्र को शोक संदेश के साथ निर्मला के विवाह की सूचना भेजती है |

24. बाबू उदयभानु लाल का हत्यारा कौन है ?
 बाबू उदयभानु लाल की हत्यारा मतई है |

25. निर्मला के विवाह संदेश किसके साथ भिजवाया जाता है ?
निर्मला के विवाह संदेश की सूचना पंडित मोटेराम के साथ भिजवाया जाता है |

26. भालचंद्र कहाँ नौकरी करते थे ?
 भालचंद्र आबकारी विभाग में एक ऊंचे ओहदे पर नौकरी करते थे |

27. बाबू भालचंद्र को प्रति माह कितना वेतन मिलता था ?
बाबू भालचंद्र को प्रति माह पाँच हजार का वेतन मिलता था |

28. बाबू भालचंद्र मेहमान आते ही कितने नौकरों को झूठे नामों से पुकारते है ?
 बाबू भालचंद्र के घर पंडित मोटेराम पहुंचते ही जगड़ु, गुरदीन, चकौड़ी, भवानी, रामगुलाम के नाम पुकारते लगता है |

29. निर्मला का विवाह प्रस्ताव बाबू भालचंद्र किस बहाने ठुकराता है ?
निर्मला के विवाह प्रस्ताव को बाबू भालचंद्र यह कहकर ठुकरा देते है कि “वह मृत्यु एक प्रकार की अमंगल सूचना है, जो विधाता की ओर से हमें मिली है | यह किसी आने वाली मुसीबत की आकाशवाणी है |”

30. पंडित मोटेराम को कौन सा भोजन बहुत प्रिय था ?
 पंडित मोटेराम को रसगुल्ले और बेसन के लड्डू भोजन में बहुत प्रिय थे |

31. रंगीलीबाई किसकी पत्नी का नाम है ?
रंगीलीबाई बाबू भालचंद्र सिन्हा की पत्नी है |

32. भुवन मोहन अपनी शादी कहाँ करना चाहता चाहता है ?
भुवन मोहन ऐसी जगह अपनी शादी करना चाहते है, जहां खूब रुपये मिले या दहेज मिले | ऐसी धनी लड़की से शादी करना चाहता है | जिसकी एक ही लड़की हो |

33. पंडित मोटेराम कौन सी आस लेकर बाबू भालचंद्र के घर गया था ?
पंडित मोटेराम त्रिवेणी स्नान करने की आस लेकर बाबू भालचंद्र के घर गया था |

34. बाबू भालचंद्र पंडित मोटेराम को कितने रुपये देकर बिदा करते है ?
बाबू भालचंद्र अपनी बची कुची इज्जत बचाने के लिए पंडित मोटेराम को दस रूपये देकर बिदा करता है |

35. बाबू भालचंद्र कहाँ के रहने वाले थे ?
बाबू भालचंद्र लखनऊ के रहने वाले थे |

36. पंडित मोटेराम निर्मला के विवाह की बात कितनी जगह कर आते है ?
पंडित मोतीराम निर्मला के विवाह की बात पाँच जगह कर आते है |

37. निर्मला की शादी किसके साथ होती है ?
निर्मला की शादी वकील मुंशी तोताराम के साथ होती है |

38. मुंशी से तोताराम की उम्र कितनी थी ?
 मुंशी तोताराम की उम्र 35 से 40 के बीच की थी |

39. वकील तोताराम की आमदनी कितनी थी ?
 वकील मुंशी तोताराम की आमदनी तीन सौ से चार सौ थी |

40. मुंशी तोताराम के कितने लड़के है ?
मुंशी तोताराम के तीन लड़के है | जिसमें 16 वर्ष का बड़ा मंसाराम, 12 साल का सियाराम और छोटा 7 साल का जियाराम |

41. मुंशी तोताराम के बच्चे क्या पढ़ रहे थे ?
 मुंशी तोताराम के बच्चे निर्मला की शादी से पहले अंग्रेजी पढ़ रहे थे |

42. निर्मला की शादी से पहले मुंशी तोताराम के घर की मालकिन कौन बनी रहती थी ?
निर्मला की शादी से पहले मुंशी तोताराम के घर की मालकिन उनकी विधवा बहन रुक्मिणी बनी रहती थी |

43. रुक्मिणी की आयु कितनी थी ?
 रुकमणी की आयु 50 साल के ऊपर की थी |

44. मुंशी तोताराम किसको बोर्डिंग हाउस भेजना चाहते थे ?
 मुंशी तोताराम अपने पुत्र मंसाराम को बोर्डिंग हाउस भेजना चाहते थे |

45. मंसाराम के प्रिय खेल कौन-कौन से थे ?
 मंसाराम के प्रिय खेल हॉकी और फुटबॉल था |

46. मुंशी तोताराम के सहपाठी कौन रह चुके थे ?
 मुंशी तोताराम के सहपाठी नयनसुखराम रह चुके थे |

47. नयनसुखराम मुंशी तोताराम को जवान होने के लिए क्या सुझाव देता है ?
 मुंशी तोताराम को अपना सहपाठी मित्र नयनसुख राम जवान होने के होने के लिए बिजली के डॉक्टर के पास बुढ़ापा मिटाने का मशीन है | अपने रंगीलेपन का स्वाँग रचना और जवामर्दी के प्रसंग सुनाना |

48. मुंशी तोताराम ने निर्मला को सुनाई कहानी के तीन चोरों का सामना कहां करते है ?
 मुंशी तोताराम अपनी पत्नी के सामने दिखावे के लिए झूठी कहानी में कहता है कि तीन चोरों से मेरा सामना हुआ था, लेकिन वह शिवपुर की तरफ चले जाते है |

49. मुंशी तोताराम साँप मारने के लिए क्या लेने जता है ?
 मुंशी तोताराम अपने डर के मारे दूर भागते हुये भाला लाने के लिए जाते है |

50. निर्मला को किसके सामने हंसने बोलने में संकोच होता था ?
 निर्मला को अपने पति मुंशी तोताराम के सामने हंस ने बोलने में संकोच होता था, क्योंकि उनकी उम्र निर्मला से कहीं बहुत अधिक है |

51. मुंशी तोताराम के घर में निकले सांप को कौन मार देता है ?
 मुंशी तोताराम के घर में निकले सांप को उनका पुत्र मंसाराम मार देता है |

52. भारत में मंसाराम किसके साथ हॉकी मैच खेलना चाहता है ?
 भारत में गोरों के साथ मंसाराम हॉकी मैच खेलना चाहता है |

53. मंसाराम पढ़ाई-लिखाई में कैसा था ?
 मंसाराम पढ़ाई-लिखाई में मेहनती, क्लास में प्रथम और उनके जवाबों से पिता भी जलाते थे |

54. मंसाराम कहाँ नहीं रहना चाहता था ?
 मंसाराम पढ़ाई के दौरान छात्रावास में रहना नहीं चाहता था |

55. मंसाराम के पास से कौन थोड़ी बहुत अंग्रेजी पढ़ता था ?
 मंसाराम के पास से अपनी सौतेली माँ निर्मला थोड़ी बहुत अंग्रेजी पढ़ती थी |

56. मुंशी तोताराम के शंकित हदय का कोप भोजन कौन बनता है ?
 मुंशी तोताराम के शंकित हदय का कोप भोजन अपना ही पुत्र मंसाराम बनता है |

57. निर्मला उपन्यास के अनुसार युवा अवस्था में चरित्र के लिए क्या हानिकारक होता है ?
 निर्मला उपन्यास के अनुसार युवा अवस्था में चरित्र के लिए एकांत वास हानिकारक होता है |

58. तोताराम का परिवार क्यों टूट जाता हैं ?
 तोताराम का परिवार अपने ही शक्की मिजाज के कारण टूट जाता है |

59. निर्मला के मातृ स्नेह को निर्वासन की भूमिका कौन मानता है ?
 निर्मला के मातृ स्नेह को निर्वासन की भूमिका मंसाराम मानता है |

60. मंसाराम को रात के 10:00 बजे भोजन के लिए कौन बुलाने जाती है ?
मंसाराम को रात के दस बजे भोजन के लिए महरी बुलाने जाती है |

61. निर्मला अपने जीवन में किससे ज्यादा चिंतित थी ?
 निर्मला पुत्र मंसाराम के स्वास्थ्य और उस पर लगे चरित्र हीनता के कलंक को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित थी |

62. मंसाराम दुःख में बार-बार किस का स्मरण करता है ?
 मंसाराम दु:ख के समय बार-बार अपनी माता का स्मरण करता है ।

63. मंसाराम परिवार से परेशान होकर प्रातः काल किसको और क्यों मिलने के लिए जाता है ?
मंसाराम परिवार से परेशान होकर अपने स्कूल के हेड मास्टर साहब से मिलने के लिए जाता है, क्योंकि वह अब घर के स्थान पर छात्रावास में रहने का प्रबंध करने जाता है |

64. मंसाराम भूंगी के साथ क्या लौटा देता है ?
निर्मला के द्वारा भेजें मूंग के लड्डू वापिस भिजवा देता है |

65. मंसाराम छात्रावास में रहकर किस रोग से ग्रसित हो जाता है ?
 मंसाराम छात्रावास में रहकर ज्वर से ग्रसित हो जाता है |

66. “बाधाओं पर विजय पाना और अवसर देखकर काम करना ही मनुष्य का कर्तव्य है |” यह कथन मुंशी प्रेमचंद के किस उपन्यास से लिया गया है ?
 उपरोक्त कथन मुंशी प्रेमचंद के निर्मला उपन्यास से लिया गया है और मंसाराम बोलता है |

67. मंसाराम को छात्रावास से घर लाने के लिए निर्मला कहां जाने की तैयारी दिखाती है ?
 मंसाराम की बीमारी के दौरान छात्रावास से घर लाने के लिए निर्मला अपने मायके चले जाने की तैयारी दिखाती है, क्योंकि निर्मला के रहते तोताराम मंसाराम को घर लाना नहीं चाहते थे |

68. मुंशी तोताराम किस रिश्ते पर कलंक लगता है ?
 मुंशी तोताराम माता निर्मला और पुत्र मंसाराम के पवित्र रिश्ते पर कलंक लगाता है |

69. छात्रावास के दौरान औषधालय के डॉक्टर मंसाराम को कौन सा रोग लगने की बात बताते है ?
छात्रावास के दौरान औषधालय के डॉक्टर मंसाराम को थाइसिस रोग होने की बात बताते है |

70. मंसाराम छात्रालय में कौन सी शरारत करता है ?
मंसाराम छात्रालय में रहकर एक लडके की चारपाई उलट देता है | कमरे के द्वार बाहर से बंद कर देता है और भीतर की खटखट को सुनकर हँसता रहता है |

71. मंसाराम कहाँ पर पढ़ाई करता था ?
 मंसाराम बनारस में रहकर पढ़ाई करता था |

72. मंसाराम के स्कूल हेड मास्टर कौन सी शंका जताते है ?
 मंसाराम के स्कूल हेड मास्टर बीमारी बढ़ जाने की शंका जताते है |

73. मंसाराम को अस्पताल ले जाते समय तोताराम को कौन-सा प्रश्न सताता है ?
 मंसाराम को अस्पताल ले जाते समय तोताराम को यह प्रश्न सताता है कि कहीं मंसाराम उनके भावों को ताड तो नहीं गया है !

74. रुक्मिणी के अनुसार मंसाराम की बीमारी का कारण क्या है ?
   मंसाराम की बीमारी के लिए रुक्मिणी मानती है कि उसे कोई बीमारी नहीं है, केवल घर से निकाले जाने का शोक है | यही दु:ख ज्वर के रूप में प्रकट हुआ है |

75. रुक्मिणी घर बिगड़ी दशा के लिए किसको जिम्मेदार ठहराती है ?
 रुक्मिणी घर बिगड़ी दशा के लिए निर्मला को जिम्मेदार ठहराती है |

76. बीमारी के दौरान मंसाराम को बार-बार किस का दौरा पड़ता है ?
 बीमारी के दौरान मंसाराम को बार-बार ‘डिलीरियम’ का दौरा पड़ता है |

77. मंसाराम के मुँह से बार-बार कौन सी आवाज सुनाई देती है ?
 मंसाराम के मुंह से बार-बार ‘अम्माँ जी, तुम कहाँ हो !’ की पुकार सुनाई देती है |

78. मंसाराम के इलाज के लिए कितने डॉक्टर उपस्थित हो जाते है ?
 मंसाराम के इलाज के लिए मुंशी तोताराम डॉक्टर लाहिरी, डॉक्टर भाटिया, डॉक्टर माथुर, डॉ विनायक शास्त्री को उपस्थित रखते है |

79. मुंशी तोताराम के जन्म के समय उनके पिताजी की अवस्था क्या थी ?
 मुंशी तोताराम के जन्म समय उनके पिताजी की उम्र 7 साल की थी |

80. निर्मला के प्रति कौन अन्याय का भाव अनुभव करता है ?
 निर्मला के प्रति उनका पति मुंशी तोताराम अन्याय के भाव को अनुभव करता है |

81. “मैं बड़ी अभागिनी हूँ बहिन ! विवाह के एक महीने पहले पिताजी का देहांत हो गया |” - यह वाक्य कौन किसको कहता है ?
 उपरोक्त वाक्य निर्मला अपनी सखी सुधा को अपनी व्यथा-कथा सुनाते समय कहती है |

82. मुंशी तोताराम का किसके साथ याराना हो जाता है ?
मंसाराम के इलाज करने वाले डॉक्टर सिन्हा से मुंशी तोताराम का याराना हो जाता है |

83. अलबत्ता देवी कौन थी ?
 अलबत्ता देवी डॉ.सिन्हा की माँ और सुधा की सास थी |

84. निर्मला की सहेली कौन है ?
 निर्मला की सहेली सुधा है |

85. सुधा का पति कौन है ?
 सुधा का पति डॉक्टर सिन्हा है |

86. डॉ.सिन्हा और सुधा के पुत्र का नाम क्या है ?
 सुधा और डॉक्टर सिन्हा के पुत्र का नाम सोहन है |

87. सुधा की शादी में कितना दहेज दिया जाता है ?
 सुधा की शादी में उनके दादा द्वारा पाँच हजार का दहेज दिया जाता है |

88. निर्मला और वकील तोताराम के जीवन में कौन सी तीन घटना एक साथ घटित होती है ?
(१) एक निर्मला ने कन्या को जन्म दिया (२) कृष्णा का विवाह निश्चित हुआ (३) मुंशी तोताराम का मकान नीलाम हो गया |

89. “धन मानव जीवन में अग्रसर व प्रधान वस्तु नहीं तो वह उसके निकट की वस्तु अवश्य है |” यह कथन मुंशी प्रेमचंद के किस उपन्यास का है ?
उपर्युक्त गद्यांश मुंशी प्रेमचंद के सन 1927 में प्रकाशित निर्मला का है |

90. निर्मला के शिशु की सूरत किस से मिलती जुलती थी ?
 निर्मला के शिशु की सूरत मंसाराम से मिलती-जुलती थी |

91. निर्मला और तोताराम के बीच के क्लेश को मिटाने के लिए कौन अपना प्राण त्याग देता है ?
 निर्मला और तोताराम के बीच क्लेश मिटाने के लिए उनका मँझला पुत्र मंसाराम अपने प्राण त्याग देते है |

92. कृष्णा की शादी से एक दिन पहले उनके घर पर कौन-कौन पहुंच जाते है ?
 कृष्णा की शादी से एक दिन पहले उनके घर पर सुधा और मुंशी तोताराम पहुंच जाते हैं |

93. पंडित मोटेराम के साथ कृष्णा का तिलक लेकर कौन जाता है ?
 पंडित मोटे राम के साथ कृष्णा का तिलक लेकर नाई जाता है |

94. कृष्णा की जेठानी कौन थी ?
 कृष्णा की जेठानी सुधा था |

95. कृष्णा के घर में बहू बनकर जाने वाली थी ?
 डॉ.सिन्हा और सुधा के घर में बहू बनकर जाने वाली थी |

96. सोहन के इलाज के लिए किस प्रकार के उपाय किये जाते है ?
 सुधा के पुत्र सोहन के लिए महंगू दीठ का इलाज, मौलवी से फूँक डलवाना और नजर उतारने जैसे उपाय किये जाते हैं |

97. सोहन की मृत्यु कहाँ पर होती है ?
 सोहन की मृत्यु बीमारी के कारण निर्मला के घर पर होती है |

98. जिंदगी के बुरे दिन में कौन तोताराम के खिलाफ हो जाता है ?
 जिंदगी के बुरे दिन में तोताराम के खिलाफ अपना ही पुत्र जियाराम हो जाता है |

99. माता-पिता से बढ़कर हमारा हितेषी और कौन हो सकता है ? उनके ऋण से कौन मुक्त हो सकता है |” - यह विधान कौन किसके लिए बोलता है ?
निर्मला उपन्यास में डॉ. सिन्हा साहब जियाराम को समझाने के लिए कहते है |

100. निर्मला की पुत्री का नामकरण कौन करता है ?
निर्मला की पुत्री का नामकरण अपनी सहेली सुधा करती है |

101. सुधा ने निर्मला की पुत्री का नाम क्या रखा है ?
सुधा ने निर्मला की पुत्री का नाम आशा रखा है |

102. निर्मला के गहनों की संदूक कौन उठा लेता है ?
निर्मला के गहनों की संदूक अपने ही घर में से सियाराम उठा लेता है |

103. निर्मला के चोरी हुई गहनों का मूल्य कितना था ?
निर्मला के चोरी हुई गहनों का मूल्य 5000 से 5100 के करीब था |

104. “ईश्वर भी बड़ा अन्यायी है | जो मरे हैं उन्हीं को मारता है | मालूम होता है, अदिन आ गये हैं |” यह कथन किसका है ?
उक्त कथन निर्मला उपन्यास के मुंशी तोताराम का है |

105. थानेदार अलायार खां ने चोरी के लिए क्या सा सुझाव दिया ?
अलायार खां ने मुंशी तोताराम को यह सुझाव दिया कि यह किसी घर के आदमी का काम है | अगर बाहर का निकले तो थानेदार ही छोड़ दूँ |

106. निर्मला को बाजार में कोई बनिया जल्दी सौदा क्यों नहीं देता ?
निर्मला को बाजार में कोई बनिया जल्दी सौदा इसलिए नहीं देता कि निर्मला एक एक चीज को तोलती और जरा भी कोई चीज तोल में कम पड़ती तो उसे लौटा देती |

107. बनिये की दुकान पर कौन सियाराम का तमाशा देख रहा था ?
बनिया की दुकान पर बैठा-बैठा एक जटाधारी साधु सियाराम का तमाशा देख रहा था |

108. जियाराम की मुलाकात किस महात्मा से होती है ?
जियाराम की मुलाकात पहली बार स्वामी परमानंद जी और दूसरी बार हरिहरानंद महात्मा के साथ होती है |

109. बाबा परमानंद कहाँ की यात्रा के लिए जानेवाले थे ?
बाबा परमानंद हरिद्वार की यात्रा के लिए जाने वाले थे |

110. जियाराम को खोजने कौन निकलता है ?
जियाराम को खोजने के लिए मुंशी तोताराम निकल पड़ते है |

111. निर्मला अपनी सहेली सुधा के कमरे में पहुंच कर क्या करती है ?
निर्मला अपनी सहेली सुधा के कमरे में जाकर कहते है कि अलमारी से तस्वीरों की एक किताब उतार ली और केस खोलकर पलंग पर लेट कर चित्र देखने लगती है |

112. निर्मला की मृत्यु किस समय होती है ?
निर्मला की मृत्यु संध्या के समय होती है |

113. निर्मला की मृत्यु के समय एक बुड्ढे पति के रूप में कौन देखने आता है ?
निर्मला की मृत्यु के समय एक बुड्ढ़े पति के रूप में अपना पति मुंशी तोताराम देखने आते है |

114. निर्मला की मृत्यु के समय पुत्री आशा की जिम्मेदारी किसको देती है ?
निर्मला की मृत्यु के समय पुत्री आशा के लालन-पालन की जिम्मेदारी अपने सहेली सुधा को देती है |

115. निर्मला उपन्यास का अंत कैसा है ?
 निर्मला की मृत्यु के साथ ही दुखद अंत होता है |
                 *।     *।     *।  

Monday, 19 October 2020

मुंशी प्रेमचंद का जीवन-कवन


१. मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही नामक गांव में हुआ था |


२. मुंशी प्रेमचंद का मूल नाम क्या है ?

मुंशी प्रेमचंद का मूल नाम ‘धनपतराय श्रीवास्तव’ है |


३. मुंशी प्रेमचंद की माँ का नाम क्या है ?

मुंशी प्रेमचंद की माँ का नाम ‘आनंदी देवी’ है |


४. मुंशी प्रेमचंद के पिता का नाम क्या है ?

मुंशी प्रेमचंद के पिता का नाम ‘अजायब राय’ है |


५. मुंशी अजायबराय कौन सी नौकरी करते थे ?

मुंशी अजायबराय लमही गाँव के ड़ाक में मुंशी की नौकरी करते थे |


६. मुंशी प्रेमचंद का शिक्षारंभ किस भाषा से होता है ?

उर्दू और फारसी भाषा में मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा शुरू होती है |


७. मुंशी प्रेमचंद ने 13 साल की छोटी उम्र में कौन सी रचना पढ़ी थी ?

मुंशी प्रेमचंद ने 13 साल की छोटी उम्र में ही ‘तिलिस्म-ए-होशरूबा’ रचना पढ़ते हैं |


८. मुंशी प्रेमचंद छोटी उम्र से ही उर्दू के किस उपन्यासकारों से परिचित हो जाते हैं ?

मुंशी प्रेमचंद, रतननाथ ‘शरसार’, मिर्जा हादी रुस्वा और मौलाना शरार आदि उर्दू के उपन्यासकारों से परिचित हो जाते हैं | 


९. मुंशी प्रेमचंद सन 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद क्या करते हैं ?

मुंशी प्रेमचंद सन 1898 में मैट्रिक के परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद स्थानीय विद्यालय में शिक्षक के रूप में नियुक्त होते हैं |


१०. मुंशी प्रेमचंद सन 1910 में कौन सी परीक्षा उत्तीर्ण करते है ?

मुंशी प्रेमचंद सन 1910 में अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास विषय को लेकर इन्टर की परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं |


११. मुंशी प्रेमचंद सन 1919 में बी. ए. की परीक्षा उतीर्ण करने के बाद क्या करते है ?

मुंशी प्रेमचंद सन 1919 में बी. ए. की परीक्षा उतीर्ण करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर के पद पर नौकरी करते है |


१२. मुंशी प्रेमचंद की माता-पिता का निधन कब होता है ?

मुंशी प्रेमचंद की सात की छोटी उम्र में माँ और 14 साल की उम्र में पिता का निधन हो जाता हैं |


१३. मुंशी प्रेमचंद का पहली शादी कब होती है ?

मुंशी प्रेमचंद की पहली शादी परंपरा अनुसार 15 साल की छोटी आयु में होती है |


१४. मुंशी प्रेमचंद किससे प्रभावित होकर विधवा विवाह का समर्थन करते है ?

मुंशी प्रेमचंद आर्य समाज से प्रभावित होकर विधवा विवाह का समर्थन करते है |


१५. मुंशी प्रेमचंद का दूसरा विवाह कब और किसके साथ होता है ?

मुंशी प्रेमचंद की दूसरी शादी सन 1906 में अपने प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल विधवा शिवरानी देवी से होती है |


१६. मुंशी प्रेमचंद के कितने संतान हैं ?

मुंशी प्रेमचंद के तीन संतान हैं : श्रीपतराय, अमृतराय और कमलादेवी श्रीवास्तव |


१७. मुंशी प्रेमचंद को ‘उपन्यास सम्राट’ उपाधि किसने प्रदान की थी ?

मुंशी प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट की उपाधि बंगाल के विख्यात उपन्यासकार ‘शरतचंद्र चट्टोपाध्याय’ प्रदान थी ?


१८. मुंशी प्रेमचंद उर्दू में किस नाम से लिखते थे ?

मुंशी प्रेमचंद उर्दू में नवाबराय के नाम से लिखते थे |


१९. मुंशी प्रेमचंद को ‘कलम के सिपाही’ का सम्मान किसने दिया था ?

मुंशी प्रेमचंद को कलम के सिपाही का सम्मान हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार और अपने पुत्र अमृतराय दिया था |


२०. मुंशी प्रेमचंद का निधन कब हुआ था ?

मुंशी प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 में हुआ था ?


२१. मुंशी प्रेमचंद को सन 1910 में हमीरपुर जिला कलेक्टर ने क्यों पकड़ा था ?

मुंशी प्रेमचंद को सन 1910 में हमीरपुर जिला कलेक्टर ने ‘सोजे वतन’  (राष्ट्र का विलाप) कहानी संग्रह में जनता को भड़काने के आरोप लगाकर पकड़ा था |


२२. धनपतराय को प्रेमचंद नाम से लिखने का सुझाव कौन देता है ?

मुंशी प्रेमचंद को धनपतराय से प्रेमचंद के नाम से लिखने का सुझाव उर्दू भाषा में प्रकाशित ‘जमाना’ पत्रिका के संपादक और उनके अजीज दोस्त मुंशी दयानारायण निगम देते है |


२३. मुंशी प्रेमचंद के अपूर्ण उपन्यास कौन पूरा करता है ?

मुंशी प्रेमचंद के अधूरे उपन्यास को उनका पुत्र अमृतराय पूरा करता है |


२४. मुंशी प्रेमचंद के अपूर्ण उपन्यास का नाम क्या है ?

मुंशी प्रेमचंद के अपूर्ण उपन्यास का नाम ‘मंगलसूत्र’ है |


२५. मुंशी प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का आरंभ कब होता है ?

मुंशी प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ में पर १९१५ में सरस्वती पत्रिका से प्रकाशित ‘सौत’ कहानी के प्रकाशन से होता है |


२६. मुंशी प्रेमचंद की अंतिम कहानी कौन सी है ?

मुंशी प्रेमचंद की अंतिम कहानी सन 1936 में प्रकाशित ‘कफन’ है |


२७. मुंशी प्रेमचंद का आरंभिक लेखन कैसा होता था ?

मुंशी प्रेमचंद का आरंभिक लेखन यथार्थवादी होता था |


२८. मुंशी प्रेमचंद की पहली रचना कौन सी है ?

मुंशी प्रेमचंद के लेख के अनुसार उनकी प्रथम अनुपलब्ध रचना अपने मामा पर लिखा व्यंग्य है |


२९. मुंशी प्रेमचंद का उर्दू में लिखित प्रथम उपन्यास कौन सा है ?

मुंशी प्रेमचंद का उर्दू में लिखित प्रथम उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ है |


३०. ‘प्रेमा’ (१९०७) मुंशी प्रेमचंद के किस उपन्यास का अनुवाद है ?

प्रेमा मुंशी प्रेमचंद के उर्दू उपन्यास ‘हमखुर्मा व हम सवाब’ का हिंदी अनुवाद हैं |


३१. मुंशी प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह कौन सा है ?

मुंशी प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ हैं |

३२. ‘सोजे वतन’ कहानी संग्रह में किस प्रकार की कहानियाँ संकलित हैं ?

सन १९०७-१९०८ में प्रकाशित सोजे वतन कहानी संग्रह में देशभक्ति की भावना से भरपूर कहानियाँ संकलित है |


३३. मुंशी प्रेमचंद नाम से लिखित प्रथम कहानी कौन सी है ?

मुंशी प्रेमचंद नाम से लिखित प्रथम कहानी सन 1910 के ‘जमाना’ पत्रिका के अंक में प्रकाशित ‘बड़े घर की बेटी’ है |


३४. मुंशी प्रेमचंद ने सन 1921 में किसके कहने पर अपनी नौकरी छोड़ दी थी ?

मुंशी प्रेमचंद ने महात्मा गांधी के कहने पर अपनी नौकरी छोड़ दी थी |


३५. मुंशी प्रेमचंद कितनी पत्रिकाओं के संपादक रह चुके थे ?

मुंशी प्रेमचंद कुछ महीने के लिए मर्यादा, छ: साल माधुरी और हंस के संपादक रह चुके थे |


३६. मुंशी प्रेमचंद हंस पत्रिका की शुरुआत कब और कहाँ से करते है ?

मुंशी प्रेमचंद हंस पत्रिका की शुरुआत सन 1930 में बनारस से मासिक पत्रिका के रूप में करते है |


३७. मुंशी प्रेमचंद भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ की अध्यक्षता कब और कहाँ करते है ?

मुंशी प्रेमचंद सन 1936 में लखनऊ अधिवेशन के दौरान प्रगतिशील भारतीय लेखक संघ की अध्यक्षता करते है |


३८. मुंशी प्रेमचंद कहानी लेखक के रूप में कहाँ नौकरी करते है ?

मुंशी प्रेमचंद कहानी लेखक के रूप में ‘मोहन दयाराम भवनानी’ की अजंता सिनेटोन कंपनी में नौकरी करते है |


३९. मुंशी प्रेमचंद ने सन 1934 में किस फिल्म की पटकथा लिखी थी ?

मुंशी प्रेमचंद ने सन 1934 में ‘मजदूर’ फिल्म की पटकथा लिखी थी तथा कंपनी के साल भर के कांट्रेक्ट और दो महीन का वेतन छोड़कर बनारस भाग आये थे |


४०. मुंशी प्रेमचंद के हिंदी का पहला उपन्यास कौन-सा है ? 

मुंशी प्रेमचंद का सन 1918 में प्रकाशित ‘सेवा सदन’ है |


४१. मुंशी प्रेमचंद कौन कितनी भाषा जानते थे ?

मुंशी प्रेमचंद हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, रूसी और जर्मनी देशी और विदेशी भाषा के जानकार थे |


४२. मुंशी प्रेमचंद के किस उपन्यास को कृषक जीवन का महाकाव्य कहा जाता है ?

मुंशी प्रेमचंद के ‘गोदान’ उपन्यास को कृषक जीवन का महाकाव्य कहा जाता है |


४३. होरी और धनिया किस उपन्यास के पात्र है ?

होरी और धनिया मुंशी प्रेमचंद के गोदान उपन्यास के मुख्य पात्र है |


४४. मुंशी प्रेमचंद का निधन कब और कहां हुआ था ?

मुंशी प्रेमचंद का निधन १९३६ में हुआ था ।