(१) प्रस्तावना :-
मैथिलीशरण गुप्त राम के अनन्य भक्त थे । पंचवटी खंडकाव्य के अतिरिक्त अन्य कृतियों में भी राम का यशोगान किया हैं । गुप्त जी 'साकेत' में राम के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा प्रकट करते हुए कहते हैं कि "राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है ।"(साकेत-मैशिलीशरण गुप्त) इस प्रकार कवि ने प्रस्तुत काव्य में राम का दर्शन काव्यारंभ और काव्यान्त में करवायें हैं । राम का संबंध केवल उस घटनाओं से है कि जिसमें उषा-बेला के समय सीता अपने देवर लक्ष्मण को शूर्पणखा के साथ बाते करते हुये देखकर स्वयं राम को कुटिया से बाहर नया दृश्य देखने बुलाती है । तब से लेकर पंचवटी में राम, लक्ष्मण और सीता के सामने आई विघ्नों-बाधाओं से मुक्त होकर सामान्य मनुष्य की तरह अपना जीवनयापन करने लगते हैं । कवि पंचवटी खंडकाव्य में राम के जीवन की बहुत सीमित रेखाएँ अंकित करते हैं, लेकिन इसके द्वारा राम के जीवन की महत्वपूर्ण विशेषताओं को स्पष्ट कर दिया हैं ।
(२) आदर्श प्रजा पालक :-
भारतीय संस्कृति में कहा जाता है कि राज्य कैसा होना चाहिए ? यही उत्तर मिलता है, राम राज्य । किसी भी राज्य के राजा का पहला दायित्व होता हैं कि वे अपनी प्रजा कल्याण करें । कवि ने इस कविता में राम के चरित्र को प्रजापालक और वात्सल्य मूर्ति के रूप में चित्रित किया हैं । राम का व्यवहार पशु-पक्षी तथा सामान्य से सामान्य मनुष्य के प्रति समभावपूर्ण रहा है । राम का जीवन शबरी और निषाद के लिए भी ममत्वपूर्ण रहा हैं । राजा केवल राज महेल तक मर्यादित नहीं रहते ! वे जहाँ रहेंगे वहीं राज्य करेंग और उनके राज्य में सब मुक्त होकर अपना जीवन-यापन करते हैं । राम के ह्दय में सर्व-कल्याण की भावना ही विद्यमान रहती हैं ।
"जो हो, आर्य रहते हैं,
वहीं राज्य वे करते हैं,
उनके शासन में वनचारी
सब स्वछन्द विहरते हैं ।"
(पंचवटी-पृ.10)
प्रस्तुत पंक्तियों में राम के द्वारा संचालित भय मुक्त और एक आदर्श राज्य व्यवस्था की उदाहरण स्थापित किया हैं । रामराज्य में शेर व बकरी एक ही घाट पर पानी पीते हैं । राम अपने राज्य के अंतिम से अंतिम मानवी का दुःख-दर्द समझते हैं -
"गुह निषाद शबरों तक का मन
रखते हैं प्रभु कानन में ।"
(पंचवटी, पृ.19)
(३) सहनशीलता का पर्याय :-
'रामायण' और 'रामचरितमानस' के अन्तर्गत राम के पात्र में सहशीलता कूट-कूट कर भरी पडी हैं । उसी तरह गुप्त जी ने 'पंचवटी' खंड-काव्य में भी राम चरित्र के आदर्श गुणों खरोंच तक आने नहीं दी । राम को सहनशील और संतुलित राजा के रूप में चित्रित किया हैं । प्रतिकूल परिस्थितियों में भी राम अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने में समर्थ है । उषा के आलोक में लक्ष्मण और शूर्पणखा का संवाद जब विषादयुक्त बन जाते हैं । उस समय सीता राम को परिस्थिति को संभाल ने को आमंत्रित करती हैं, परंतु जैसे ही शूर्पणखा राम को देखती है तो राम के प्रति लालाईत एवं आकृष्ट हो जाती हैं । कान्त तुम्हीं मेरी जयमाला सी वरमाला स्वीकार करों । शूर्पणखा का यह मत प्रत्यक्ष रूप से आपत्तिजनक था, ब्लकि राम मानसिक संतुलन के साथ संयमित होकर उत्तर देते है । तुम्हें कहने की आवश्यकता नहीं हैं । तुम्हारी वाणी और आकृति ही तुम्हारें मनोभावों को प्रकट करती हैं ।
"राघवेन्द्र रमणी से बोले-
बिना कहें भी यह वाणी,
आकृति से ही तुम्हारी
प्रकटित है हे कल्याणी
निश्चय अद्भुत गुण हैं तुममें,
फिर भी मैं यह कहता हूँ-
गृहत्याग करके भी वन में
सपत्नीक मैं रहता हूँ ।"
(पंचवटी-पृ. 44)
राम शूर्पणखा को बहुत संयत ढंग से समझातें हैं कि तुम सर्वगुण संपन्न हो, किन्तु मैं वन में अपनी पत्नी के साथ ही रहता हूँ । यहाँ राम चरित में अन्तर्गतभूल मर्यादा और सहनशीलता प्रकट होती हैं । जो राम के चरित्र को और भी ऊँचाई प्रदान करते हैं ।
(४) राम का ममत्वभाव :-
कवि ने पंचवटी खंडकाव्य में राम के चरित्र को संवेदनशील और ममत्वपूर्ण चित्रित किया हैं । राम का ह्दय ममता का अगाध समुद्र हैं । जिससे काव्य के प्रत्येक पात्र तृप्त होते हैं । ममता का यह निर्बाध प्रवाह तीन रूप से प्रवाहित हैं । एक अपने परिवार के प्रति, दो अपने भक्तों एवं प्रजा के लिए तथा तीसरा पशु-पक्षी व समग्र प्रकृति के प्रति दिखाई पडता हैं । सीता के कहने पर लक्ष्मण ने घड़ा उठा लिया तब राम के अंदर की ममता प्रकट होती हैं-
"तनिक देर ठहरो, मैं देखूँ
तुम देवर-भाभी की ओर,
शीतल करुँ ह्दय यह अपना
पाकर दुर्लभ हर्ष-हिलोर ।"
(पंचवटी-पृ.56)
(५) दूरदर्शी व्यक्तित्व :-
पंचवटी खंडकाव्य में राम के चरित्र की एक विशेषता यह भी हैं कि वे दूरदर्शी व्यक्तित्व के धनी हैं । जहाँ लक्ष्मण कभी-कभी अपने जीवन में उग्रता से पेश आते हैं । वहाँ राम का व्यवहार बिलकूल सहज, स्वाभाविक और दूरदर्शी होता है । जब शूर्पणखा ने लक्ष्मण के सामने वरमाला ग्रहण करने का प्रस्ताव रखती हैं । उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप लक्ष्मण शूर्पणखा को मानवी, दानवी, वनदेवी एवं अंततः चण्डी का संबोधन कर देते हैं । पर राम इसके विपरीत सारी परिस्थिति में अत्यन्त सहजता से प्रस्तुत होते हैं । वे न आवेश में आते है और न अपना मानसिक संतुलन बिगडने देते हैं । राम यह जानते है कि शूर्पणखा जैसे-तैसे करके लक्ष्मण को प्राप्त करने के लिए दृढ संकल्प हैं, फ़िर भी राम जानते हैं कि सच्चा प्रेम स्वयं उत्पन्न होता न कि भय या स्वार्थ से । राम अपने भाव को इस प्रकार व्यक्त करत हैं-
"बोले तब रघुराज-तुम्हारा
ऐसा ही क्यों न हो प्रताप ।
किन्तु प्राणियों के स्वभाव की
होती है ऐसी ही रीति,
पर-वशता हो सकती है पर
होती नहीं भीति में प्रीति ।"
(पंचवटी-पृ. 46)
राम ने शूर्पणखा के जीवन व्यवहार को पशु जैसा व्यवहार कहा है । मनुष्य विवश हो सकता हैं, लेकिन भय से कभी प्रेम को पाया नहीं जाता हैं ।
(६) मानव सहज विनोदमय :-
कवि ने राम के चरित्र में मानव सहज विनोवृत्ति का गान किया हैं । जिससे पात्र सहज, सजीव और स्वाभाविक लगते हैं । राम के विनोद में मानव गरिमा एवं मर्यादा की निर्वाह बराबर होता रहा है । कहीं पर भी राम के आदर्श गरिमापूर्ण जीवन को दाग नहीं लगा । कवि ने काव्य में राम के विनोद को दो जगह पर प्रस्तुत किया हैं । एक-जब शूर्पणखा राम के प्रति आसक्त होती है तो राम रहज यह कहकर लक्ष्मण ओर भेज देते हैं कि इस वन में सपत्नीक रहता हूँ तथा तुम पहले तो मेरे अनुज लक्ष्मण के प्रति आसक्त थी । इसीलिए तुम मेरी अनुजा हुई । अब उन्हें तुम अपने वश में करलो तो परम धन्य होगी ।
"किन्तु विवाहित होकर भी यह
मेरा अनुज अकेला है,
मेरे लिये सभी स्वजनों की
कर आया अवहेला है ।"
(पंचवटी-पृ. 44)
"इसके इसी प्रेम को यदि तुम
अपने वश में कर लोगी,
तो मैं हँसी नहीं करता हूँ,
तुम भी परम धन्य होगी। "
(पंचवटी-पृ. 45)
काव्य के अंत में शूर्पणखा को विकलांगीनी कर के छोड दिया जाता है तथा सीता और लक्ष्मण को गृह काम में एक साथ देखकर अपने मधुर भाव व्यक्त करते हैं । इस प्रकार कवि ने राम के चरित्र में मर्यादा पालन एवं आदर्श गुण के साथ मानवीय सहज गुणों का चित्रण किया है ।
(७) निष्कर्ष :-
मैथिलीशरण गुप्त ने 'पंचवटी' खंड-काव्य में प्रमुखतः राम, सीता, लक्ष्मण और शूर्पणखा के पात्रों द्वारा सजृत किया है । कवि ने सभी पात्रों की सांस्कृतिक गरिमा अक्षुण्ण रखकर काव्य को उद्देश्य तक पहुँचया हैं । यह एक महान कवि की पहचान होती हैं । पंचवटी के राम आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, पत्नी के लिए आदर्श पति और प्रजा के लिए आदर्श व वात्सल्यमय राजा है । फिर भी राम के पात्र को मानवीय सहज विशेषताओं से गूम्फित किया है । राम के लिए राज वैभव की तरह वन वैभव भी सुख व संतोष पूर्ण है । राजा-प्रजा भी एक समान हैं ।
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