Thursday, 15 September 2022

बीते दिन कब आने वाले ! कविता का सारांश

१. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।
२. हरिवंशराय बच्चन रचित ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता का भावार्थ लिखिए।
३. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता में व्यक्त संवेदना को स्पष्ट करें ।
४.‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता का अनुभूति-पक्ष को बताइए ।
५.‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता में व्यक्त कवि के विचार को स्पष्ट कीजिए ।
६. हरिवंशराय बच्चन की ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता का सार लिखिए ।
७. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता में व्यक्त मानवीय संवेदना ।
८. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता का केंद्रीय विचार/भावबोध को स्पष्ट कीजिए ।
९. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता का भाव-पक्ष अपने शब्दों में लिखिए ।
१०. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता का भावपक्ष की दृष्टि से मूल्यांकन करें ।
११. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता की समीक्षा कीजिए ।
१२. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता की आलोचना कीजिए ।
१३. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता का आस्वादन या रसास्वादन कीजिए ।
१४. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता का रसदर्शन कीजिए ।
१५. ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता का सौन्दर्य बोध |


(१) प्रस्तावना :-
हिंदी काव्य साहित्य में 'हरिवंशराय बच्चन' एक युग प्रवर्तक कवि है | इनका समय १९०७ से लेकर २००३ तक का रहा है । हिंदी कविता को नई जमीन देकर नये कलेवर में प्रस्तुत करने का श्रेय हरिवंशराय बच्चन को जाता है | हिन्दी कविता में 'हालावाद' नामक काल के वे प्रवर्तक रहे है | कवि की कविताओं में छायावादी आदर्शवादीता, रहस्यात्मकता एवं चित्रात्मकता को छोड़कर व्यक्तिक प्रेम एवं तद्जन्य सुख-दुख को सीधी-सरल भाषा में अभिव्यक्ति मिली है | छायावादोत्तर कविता को एक नई पृष्ठभूमि और मानसभूमि प्रदान की है | गंभीर से गंभीर विषयों पर भी जिस सरलता एवं सहजता से कवि प्रतिक्रिया करता रहा है | उससे उनकी कविता में रोचकता आयी है | कवि की अधिकतर कविताएँ स्वानुभूति जन्य प्रेम, वेदना, निराशा और अवसाद को प्रकट करने वाली कविता है तो कहीं-कहीं तत्कालीन परिवेश एवम् समस्याओं का किंचित संकेत भी दिये गये हैं | कवि की प्रसिद्धि का मूल आधार 'मधुशाला' रही है । ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कवि की प्रसिद्ध गीत कविता है ।

(२) कविता का मूल काव्य संग्रह :-
हरिवंशराय बच्चन की ‘बीते दिन कब आने वाले !’ कविता उनके प्रसिद्ध गीत संकलन ‘निशा-निमंत्रण’ से ली गई है । इस काव्य संग्रह का प्रकाशन ई. सन 1938 में हुआ था । जिसमें उनके लोकप्रिय और प्रचलित गीत संकलित किये हैं । संग्रह में संकलित सभी गीत लगभग १३-१३ पंक्तियों के गीत है और 'बीते दिन कब आने वाले !' गीत भी इसी स्वरूप में गठित गीत है | इस सर्वग्राह्य गेय शैली में कवि ने अपनी संवेदना को अभिव्यक्ति दी है तथा कविता में एकाकी जन की परिस्थिति और कठिन मानसिक द्वंद का सामना करते हुए मानव मन की गहराईयों को खोला है । पठित पाठ्यक्रम के डॉ. विकल गौतम द्वारा सम्पादित 'काव्य कलश' काव्य संकलन में यह कविता संकलित है |

(३) ‘बीते दिन कब आने वाले !’ काव्य का सारांश :-
कवि हरिवंशराय बच्चन ने 'निशा-निमंत्रण' काव्य संकलन में संकलित प्रस्तुत कविता में संक्षिप्त किन्तु विस्तृत भाव जगत को हदय मिट्टी की खुशबूदार पृष्ठभूमि तैयार की है | कविता में कवि का अंतर्मुखी व्यक्तित्व प्रकट होता है तथा कविता में कविने दार्शनिक भाव के साथ बीते दिन की बात करते है जो संसार भर के मनुष्य के जीवन में स्मरणीय होते हैं | जिन्दगी के जो दिन बीत जाते हैं वे कभी लौटकर नहीं आते | मनुष्य के पास बचता है तो केवल उनका वर्तमान | बीते दिनों की स्मृति शेष उनके हाथों में रह जाती है | 

(क) वीणा का मधुर स्वर और हदय की धड़कन :-
कवि का वर्तमान जीवन एकाकी और तनहाई में बीत रहा है | स्वयं को अकेला एवं एकांकी समझ रहे है | उनकी हदय वीणा का मधुर स्वर (काव्य पाठ) समग्र विश्व कान लगाकर सुनेगा, किन्तु कवि के हदयवाणी को सुननेवाला, समझने वाला उनकी जिंदगी से बहुत दूर चला गया है | जहां से वह कभी लौट कर नहीं आ सकते | इस तरह कवि के जीवन में बीते दिन लौटने वाले नहीं | 
कवि के हृदय की धड़कन को सुनाने वाला हदय रूप प्रियतमा (पत्नी) बहुत दूर चली गई है | जो इन सब सुखों के सामने मूल्यहीन और निम्न कोटी का है | उनके दिल की धड़कन सुन पाने वाला व्यक्ति का अभाव पीड़ा देता है और प्रतीक्षा की चाह में है | इसलिए अकेले एवं दुखी है | अपने पत्नी के साथ बिताए हुए जीवन के सुंदर और मधुर दिन कवि के जीवन में कवि लौट कर नहीं आने वाले इसलिए कभी कहते हैं कि बीते दिन कब आने वाले ।

(ख) विश्व का आदर-सत्कार एवं प्रतीक्षा में लगे नेत्र :-
कवि को अपने साहित्य जगत में अपने साहित्य के लिए बहुत प्रसिद्धि मिली | जीवन के चारों तरफ से आदर एवं सम्मान भी मिला | विश्व साहित्य के आकाश में 'मधुशाला' के कारण उनका नाम भी गूंज उठा | समग्र संसार ने कवि की कवि का हाथ बढ़ाकर, आदर से शीश झुका कर सम्मान किया | इतना ही नहीं, सम्मान के साथ इज्जत, सुख, दौलत भी बहुत अधिक मिली, परंतु कवि अपने अकेलेपन के कारण जिंदगी की रफ्तार से थक चुके हैं तब बीते दिन की स्मरण मात्र रहता है ।
कवि ने अपने जीवन में पत्नी (श्यामादेवी) के साथ उषाकाल के जीवन में बिताये मधुर दिन दिन स्मरण हो आते हैं | पत्नी की मृत्यु के बाद की पीड़ा का अनुभव को काव्य में अभिव्यक्त किया है | इन काव्य पंक्तियों में मानवीय मूल्यों में रिश्तो का महत्व दिखाया है | जिसमें कवि माता, पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, दोस्त ही हमारे शुभचिंतक हो सकते है ।
कविता निम्न पंक्तियों में कवि हरिवंशराय बच्चन अपने व्यक्तिगत जीवन की मधुर स्मृति का संस्मरण करते हैं | कवि के लिए प्रतिक्षण उनकी पत्नी की आंखें प्रतीक्षा में लगी रहती थी | आज वे आंखें उनके पास नहीं है | दु:ख और आभाव के साथ बच्चन जी ने कहा है कि संसार भर में मुझे आज सम्मान एवं लोकप्रियता बहुत मिली, परंतु प्रतिक्षण मेरे घर लौटने के इंतजार में दहलीज पर बेचैन और मतवाली होकर जो आंखें मेरी प्रतीक्षा में लगी रहती थी वे आंखें अब कभी नहीं खुलेगी | उन्होंने संसार से चिर विदाय ली है | कवि इस प्रतिक्षा के प्यार भरे दिन में लगी उन आंखों के लिए बेचैन एवं तड़पते नजर आते है | पंक्तियों के अंत में कवि कहते है कि यह दिन तो मेरी जिंदगी से चले गए जो कभी लौटकर नहीं आने वाले | ऐसे ही अभाव, पीड़ा और मानसिक संत्रास को व्यक्त किया है |

(ग) देवत्व का सम्मान एवम् दुर्बलता का दुलार :-
कवि पुनः कहता है कि महान होने से या लोकप्रिय होने से क्या हो जाएगा | जब उसके जीवन में व्याप्त कमियों, दुर्बलता एवं कमजोरियों को प्यार-दुलार करने वाला कोई इस दुनिया में नहीं रहा, फिर तो जीवन अंधकारमय नजर आता है | जहां कवि को अंधकार भरे जीवन में बीते दिन की स्मृति शेष रह जाती है जो कभी लौट कर आने वाला नहीं है |
कवि हरिवंशराय बच्चन इन पंक्तियों में कहते हैं कि मुझ में जहां अच्छाइयां, सफलता, सत्य आदि गुण विद्यमान रहते हैं | वहां अपने आप ही संसार के लोग मुझे सम्मान एवं आदर देंगे | जिसके द्वारा हम महान लोकप्रिय और सम्माननीय व्यक्ति कहे जायेंगे, किन्तु मनुष्य के जीवन में सबलता के साथ दुर्बलता भी पाई जाती है | मेरे लिए तो दुर्बलता को प्यार करने वाली व्यक्ति ही महान है | प्यारी है | न्यारी है | पर अब मेरी दुर्बलता को चाहने वाली प्रिय व्यक्ति अब नहीं मिलेगी | अब हमारे मन में उनकी स्मृति ही रह जाती है | इसके अलावा कुछ नहीं | सच ही है कि जीवन में जो दिन आते हैं वह चले जाते हैं और बीते दिन कभी लौट कर वापस नहीं आते | वर्तमान ही व्यक्ति का सत्य होता है | बीते दिन का अभाव, वर्तमान का अकेलापन एवं कवि व्यक्तित्व का मानसिक द्वंद्व को सहज और सरल गीत शैली में प्रस्तुत किया गया है |

(५) निष्कर्ष :-
    निष्कर्षत: कह सकते हैं कि हिंदी साहित्य के सहज, सरल एवं गीत के गायक कवि हरिवंशराय बच्चन ने 'बीते दिन कब आने वाले !' गीत कविता में अपने ह्रदय की सहज अनुभूति को सरल भाषा में अभिव्यक्ति दी है | जिसके केंद्र में अपना हदय, पत्नी, अपना एकांत, मानसिक द्वंद्व और बीते दिन के स्मरण को किया है | जिससे पाठक सहज ही काव्य भाव के साथ एकात्मकता की अनुभूति करने लगता है | बच्चन जी की लोकप्रियता एवं सर्वग्राह्यता का मूलाधार सहज आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति है | इस कविता में भी कवि गेय काव्य शैली का प्रयोग करने में सफल रहे हैं | कविता से प्रमाणित होता है, कवि की कविता सामान्य से सामान्य जन को भी अपनी ओर खींच लेती है | यह उनकी काव्य कला की अनोखी उपलब्धि कही जा सकती है | हदय के भाव और सरल काव्य शैली का सामंजस्य करने में भी सफल रहे हैं | उनके रस समुद्र में डूबा देती है | यह कला सभी कवियों को हस्तगत नहीं होती | अंततः प्रस्तुत कविता को हिंदी साहित्य के अमर गीतकार की एक अमर रचना कह सकते हैं |

समकालीन हिंदी दलित कविता

दलित कविता
दलित कविता
           हिंदी में दलित साहित्य का प्रादुर्भाव लगभग आठवें दशक से मना जाता है | विभिन्न साहित्यिक विधाओं में कविता एक सशक्त और सबसे पुराणी विधा है | हिंदी साहित्य के आदिकाल से ही काव्य में दलित जीवन का चित्रण दिखाई पड़ता है | दलित कवियों का सबसे अधिक लेखन इस विधा में ही हुआ है | विश्व भाषा हिंदी दलित साहित्य की समसामयिक कविता यथार्थ के अधिक पास दृष्टीगोचर लगाती है | “दलित साहित्यकारों ने अपने समाज की संवेदनाओं और आकांक्षाओं तथा उनकी अनुभूतियों को कविताओं में ही सबसे ज्यादा अभिव्यक्त किया है | वैसे भी कविता मनुष्य की संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने का सबसे पुराना माध्यम रही है |”१ श्री रणजीत सहा हिंदी दलित साहित्य की कविता के बारेमें अपने विचार प्रस्तुत करते है कि “दलित कविता समूचे दलित साहित्य की केन्द्रीय विधा ही नहीं, दलित चेतना की संबल संवाहिका रही है |”२ 

                 प्रथम हिंदी दलित कवि और कविता के लिए प्रमाण जुटाना कठिन है, लेकिन दलित साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर केशव मेश्राम के अनुसार “संत रैदास ही हिंदी के प्रथम कवि माने जाते है”३ वैसे तो मध्यकालीन हिंदी साहित्य में संतों के काव्यों में जाति-पाती का विरोध मिलता है, चाहे कबीर हो, संत रैदास हो, संत दादू दयाल हो या पंजाब में गुरु नानक एवं महाराष्ट  में नामदेव की वाणी ने जन्म के स्थान पर कर्म को वर्ग व्यवस्था का आधार बनाने का प्रयास किया है | हिंदी दलित समसामयिक कविता विशेष रुप से बहु रूपात्मक परिलक्षित होती है | हिंदी की अन्य कविताओं के समान दलित कविताओं में भी शहरी तथा ग्राम्य जीवन में बसने वाले दलितों की पीड़ा, वेदना का सर्वस्पर्शी चित्रण है | हिंदी कविताओं में कल्पनाओं के पंख जोड़कर भले उड़ान भरने  की कोशिश की गई, लेकिन दलित कविताओं में यथार्थ के आधार पर स्वभोक्ति के साथ कविता प्रस्तुत की गई है | “आधुनिक काल में १९१४ में प्रकाशित हिरादोम की कविता ‘अछूत की शिकायत’ महत्वपूर्ण दलित कविता मानी जा सकती है | भोजपुरी में लिखी गई इस कविता में ४० पंक्तियाँ है, जो ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपी, हिंदी की पहली दलित कविता मानी जा सकती है |”४ ‘दलित साहित्य विधा शास्त्र और इतिहास’ किताब के अनुसार “डॉ. जयप्रकाश कर्दम ने अपनी दलित कविता संकलन में ‘गूंगा नहीं था मैं’ दलित समाज के संदर्भ में काफी वेदना, पीड़ा प्रकट की है, जो दलित साहित्य विधा की आत्मा है |”५

               समकालीन दलित कविता डॉ.अम्बेडकर से प्रेरणा ग्रहण करती हुई विकसित है | डॉ. अम्बेडकर के ‘शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो’ आह्वान का शिक्षित नव युवकों पर बड़ा प्रभाव पड़ा | अस्सी और नब्बें के दशक में अनेक दलित कवियों ने मूल्यवान कविताएँ लिखी है | जिसमें लक्ष्मीनारायण सुधाकर ‘भीमराव’, अनंगदास ‘भीम चरित मानस’, जवाहरलाल कौल ‘मसीहा दलितों का’, माता प्रसाद ‘भीम शतक’, लालचंद राही ‘मूक नहीं मेरी कविताएँ’, डॉ. पुरुषोतम सत्यप्रेमी ‘द्वार का दस्तक’, ‘सवालों के सूरज’, ‘मूक माटी की मुखरता’, डॉ.सोहनपाल सुमनाक्षर ‘अंधा समाज बहरे लोग’, ‘सिन्धु घाटी बोल उठी’, मोहनदास नैमिशराय ‘सफ़दर बयान’, ओमप्रकाश वाल्मीकि ‘सदियों का संताप’, ‘बस बहुत हो चूका’, डॉ. श्यौराजसिंह  बेचैन ‘क्रोच हुँ में’, ‘नई फसल’, जय प्रकाश कर्दम ‘ गूंगा नहीं था मैं’, डॉ. दयानंद बटोही ‘यातना की चीख’, शिवनारायण ‘सफ़ेद जनतंत्र’, एन.आर. सागर ‘आजाद हैं हम ?’, डॉ. कुसुम जी ‘व्यवस्था के विषधर’, डॉ.मुकेश मानस ‘पतंग और चरखी’, जयप्रकाश वाल्मीकि ‘कहाँ है ईश्वर के हस्ताक्षर’, सुशीला टाकभौरे ‘स्वाति बूंद और खरे मोती’, ‘संघर्ष’, कावेरी ‘नदी की लहर’, मलखासिंह ‘सुनो ब्राह्मण’, सूरजपाल चौहान ‘प्रयास’, क्यों विशवास करूँ’, मोहनदास ‘आग और आन्दोलन’, जय प्रकाश लीलावन ‘अब हमें चलना है’, डॉ. दयानंद बटोही ‘यातना की आखें’, डॉ.एन.सिंह ‘सतह से उठाते हुए’, ‘दर्द के दस्तावेज’, ‘चेतना के स्वर’, सुदेश तनवर ‘नियति नहीं यह मेरी’, असंग घोष ‘खामोश नहीं हूँ मैं’, अरुणकुमार गौतम ‘काबलियत’, ‘मुँह  में राम बगल में छुरी’, ‘हाथी काटे सजा’, निराकार देव सेवक ‘चिनगारी’, कँवल भारती ‘तब तुम्हारी निष्ठा क्या होती ?’, ‘अम्बेडकर की कविताएँ’, डॉ. धर्मवीर ‘कम्पिला’, ‘हिरामन’, ‘किनारे भी मजधार’, डॉ. प्रेमशंकर ‘भूख से रोटी तक’, ‘कवि अनुपस्थित है’, ‘समिधा’, ‘अन्याय’, डॉ.सी.बी.भारती ‘आक्रोश’, एन.आर.सागर ‘आजाद है हम’, ‘भीम प्रशस्ति’, ‘ध्वंस का निर्माण’, बी.एल.नय्यर ‘एक रात का’, एल.निर्मल ‘अम्बेडकर’, रामदास शास्त्री ‘चढ़ती धरती, उतरता आकाश और सुहानी सिख’, पारसनाथ ‘चक्रव्यूह’, डॉ.शांति यादव ‘तोडुंगी मौन’, विपिन बिहारी ‘अनुभूति से अभिव्यक्ति तक’, लक्ष्मीनारायण सुधाकर ‘उत्पीडन की यात्रा’, कर्मशील भारती ‘दलित मंजरी’, ‘कलम को दर्द कहने दो’, निशांत ‘जुलसा हुआ मौं’, ‘समय बहुत कम है’, भागीरथ मेघवाल ‘पीढियों के सवाल’, ‘उजाले की अगवानी’, जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’ ‘मसिहा दलितों का’, प्रभाकर गजमिया ‘पुना पैक्ट’, रवीन्द्र भारती ‘आठ कविता’, शंकर शैलेन्द्र ने ‘चित्रपट काव्य’, राम गुलाम रावत ‘जंगल की भैरवी’, हरिकिशन संतोषी ‘दलितों में दलित’, श्यामलाल शमी ‘गीतायन’, ‘अधर प्रिया’, दहकते स्व’, गंगाराम ‘यशोगान’, भगवान स्वरूप कटियार ‘जिन्दा कौमों का दस्तावेज’, रामजीवन भारती ‘आदमी तूफान है’, सुरेश पंजम ‘भीख नहीं अधिकार चाहिए’, हरिवंश तरुण ‘धनु रश्मि’, ‘कागद कोरे’, इत्यादि कृतियाँ व कृतिकार उल्लेखनीय है | 

             हिंदी दलित कविता की उपलब्धियों ने साहित्य जगत में अपना निश्चित महत्वपूर्ण स्थान स्थापित कर दिया है, लेकिन उपलब्धियों के साथ कुछ सीमाएँ भी सामने आती है | इस सम्बन्ध में लिखा है कि “हिंदी दलित कविता की नई संभावनाएँ खुल रही है, लेकिन उसकी कुछ सीमाएँ भी स्पष्ट होती जा रही हैं | जैसे प्रत्येक दलित कवि लगभग एक ही प्रकार की संवेदनाओं को अभिव्यक्ति दे रहे है |”६ निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि “आनेवाला कल दलित साहित्य का होगा, दलित कवियों का होगा |”७ दलित साहित्य में कविताएँ काफी लिखी गई हैं, लिखी जा रही हैं और लिखी जाएँगी | नए-नए कवि उभरकर सामने आ रहे हैं | यह कहने में अतिशयोक्ति न ओगी कि हिंदी में दलित कविता का सागर उमड़ पड़ा हैं |

      

संदर्भ :-

१. हिंदी और मरठी का दलित साहित्य: एक मुल्यांकन-डॉ.सुनीता साखरे, पृ. ३१

२. दलित साहित्य में प्रमुख विधाएँ-माता प्रसाद, पृ.७ 

३. दलित साहित्य विधा और इतिहास-डॉ.बापुराव देसाई, पृ.१४३ 

४. दलित विमर्श-डॉ.धीरजभाई वणकर, पृ.१५ 

५. दलित साहित्य विधा और इतिहास-डॉ.बापुराव देसाई, पृ.१४४

६. साहित्य और परिवेश-वेद प्रकाश ‘अमिताभ’, पृ.४४

७. हिंदी साहित्य में दलित अस्मिता-डॉ.कालीचरण ‘स्नेही’, पृ.११६