Thursday, 15 September 2022

समकालीन हिंदी दलित कविता

दलित कविता
दलित कविता
           हिंदी में दलित साहित्य का प्रादुर्भाव लगभग आठवें दशक से मना जाता है | विभिन्न साहित्यिक विधाओं में कविता एक सशक्त और सबसे पुराणी विधा है | हिंदी साहित्य के आदिकाल से ही काव्य में दलित जीवन का चित्रण दिखाई पड़ता है | दलित कवियों का सबसे अधिक लेखन इस विधा में ही हुआ है | विश्व भाषा हिंदी दलित साहित्य की समसामयिक कविता यथार्थ के अधिक पास दृष्टीगोचर लगाती है | “दलित साहित्यकारों ने अपने समाज की संवेदनाओं और आकांक्षाओं तथा उनकी अनुभूतियों को कविताओं में ही सबसे ज्यादा अभिव्यक्त किया है | वैसे भी कविता मनुष्य की संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने का सबसे पुराना माध्यम रही है |”१ श्री रणजीत सहा हिंदी दलित साहित्य की कविता के बारेमें अपने विचार प्रस्तुत करते है कि “दलित कविता समूचे दलित साहित्य की केन्द्रीय विधा ही नहीं, दलित चेतना की संबल संवाहिका रही है |”२ 

                 प्रथम हिंदी दलित कवि और कविता के लिए प्रमाण जुटाना कठिन है, लेकिन दलित साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर केशव मेश्राम के अनुसार “संत रैदास ही हिंदी के प्रथम कवि माने जाते है”३ वैसे तो मध्यकालीन हिंदी साहित्य में संतों के काव्यों में जाति-पाती का विरोध मिलता है, चाहे कबीर हो, संत रैदास हो, संत दादू दयाल हो या पंजाब में गुरु नानक एवं महाराष्ट  में नामदेव की वाणी ने जन्म के स्थान पर कर्म को वर्ग व्यवस्था का आधार बनाने का प्रयास किया है | हिंदी दलित समसामयिक कविता विशेष रुप से बहु रूपात्मक परिलक्षित होती है | हिंदी की अन्य कविताओं के समान दलित कविताओं में भी शहरी तथा ग्राम्य जीवन में बसने वाले दलितों की पीड़ा, वेदना का सर्वस्पर्शी चित्रण है | हिंदी कविताओं में कल्पनाओं के पंख जोड़कर भले उड़ान भरने  की कोशिश की गई, लेकिन दलित कविताओं में यथार्थ के आधार पर स्वभोक्ति के साथ कविता प्रस्तुत की गई है | “आधुनिक काल में १९१४ में प्रकाशित हिरादोम की कविता ‘अछूत की शिकायत’ महत्वपूर्ण दलित कविता मानी जा सकती है | भोजपुरी में लिखी गई इस कविता में ४० पंक्तियाँ है, जो ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपी, हिंदी की पहली दलित कविता मानी जा सकती है |”४ ‘दलित साहित्य विधा शास्त्र और इतिहास’ किताब के अनुसार “डॉ. जयप्रकाश कर्दम ने अपनी दलित कविता संकलन में ‘गूंगा नहीं था मैं’ दलित समाज के संदर्भ में काफी वेदना, पीड़ा प्रकट की है, जो दलित साहित्य विधा की आत्मा है |”५

               समकालीन दलित कविता डॉ.अम्बेडकर से प्रेरणा ग्रहण करती हुई विकसित है | डॉ. अम्बेडकर के ‘शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो’ आह्वान का शिक्षित नव युवकों पर बड़ा प्रभाव पड़ा | अस्सी और नब्बें के दशक में अनेक दलित कवियों ने मूल्यवान कविताएँ लिखी है | जिसमें लक्ष्मीनारायण सुधाकर ‘भीमराव’, अनंगदास ‘भीम चरित मानस’, जवाहरलाल कौल ‘मसीहा दलितों का’, माता प्रसाद ‘भीम शतक’, लालचंद राही ‘मूक नहीं मेरी कविताएँ’, डॉ. पुरुषोतम सत्यप्रेमी ‘द्वार का दस्तक’, ‘सवालों के सूरज’, ‘मूक माटी की मुखरता’, डॉ.सोहनपाल सुमनाक्षर ‘अंधा समाज बहरे लोग’, ‘सिन्धु घाटी बोल उठी’, मोहनदास नैमिशराय ‘सफ़दर बयान’, ओमप्रकाश वाल्मीकि ‘सदियों का संताप’, ‘बस बहुत हो चूका’, डॉ. श्यौराजसिंह  बेचैन ‘क्रोच हुँ में’, ‘नई फसल’, जय प्रकाश कर्दम ‘ गूंगा नहीं था मैं’, डॉ. दयानंद बटोही ‘यातना की चीख’, शिवनारायण ‘सफ़ेद जनतंत्र’, एन.आर. सागर ‘आजाद हैं हम ?’, डॉ. कुसुम जी ‘व्यवस्था के विषधर’, डॉ.मुकेश मानस ‘पतंग और चरखी’, जयप्रकाश वाल्मीकि ‘कहाँ है ईश्वर के हस्ताक्षर’, सुशीला टाकभौरे ‘स्वाति बूंद और खरे मोती’, ‘संघर्ष’, कावेरी ‘नदी की लहर’, मलखासिंह ‘सुनो ब्राह्मण’, सूरजपाल चौहान ‘प्रयास’, क्यों विशवास करूँ’, मोहनदास ‘आग और आन्दोलन’, जय प्रकाश लीलावन ‘अब हमें चलना है’, डॉ. दयानंद बटोही ‘यातना की आखें’, डॉ.एन.सिंह ‘सतह से उठाते हुए’, ‘दर्द के दस्तावेज’, ‘चेतना के स्वर’, सुदेश तनवर ‘नियति नहीं यह मेरी’, असंग घोष ‘खामोश नहीं हूँ मैं’, अरुणकुमार गौतम ‘काबलियत’, ‘मुँह  में राम बगल में छुरी’, ‘हाथी काटे सजा’, निराकार देव सेवक ‘चिनगारी’, कँवल भारती ‘तब तुम्हारी निष्ठा क्या होती ?’, ‘अम्बेडकर की कविताएँ’, डॉ. धर्मवीर ‘कम्पिला’, ‘हिरामन’, ‘किनारे भी मजधार’, डॉ. प्रेमशंकर ‘भूख से रोटी तक’, ‘कवि अनुपस्थित है’, ‘समिधा’, ‘अन्याय’, डॉ.सी.बी.भारती ‘आक्रोश’, एन.आर.सागर ‘आजाद है हम’, ‘भीम प्रशस्ति’, ‘ध्वंस का निर्माण’, बी.एल.नय्यर ‘एक रात का’, एल.निर्मल ‘अम्बेडकर’, रामदास शास्त्री ‘चढ़ती धरती, उतरता आकाश और सुहानी सिख’, पारसनाथ ‘चक्रव्यूह’, डॉ.शांति यादव ‘तोडुंगी मौन’, विपिन बिहारी ‘अनुभूति से अभिव्यक्ति तक’, लक्ष्मीनारायण सुधाकर ‘उत्पीडन की यात्रा’, कर्मशील भारती ‘दलित मंजरी’, ‘कलम को दर्द कहने दो’, निशांत ‘जुलसा हुआ मौं’, ‘समय बहुत कम है’, भागीरथ मेघवाल ‘पीढियों के सवाल’, ‘उजाले की अगवानी’, जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’ ‘मसिहा दलितों का’, प्रभाकर गजमिया ‘पुना पैक्ट’, रवीन्द्र भारती ‘आठ कविता’, शंकर शैलेन्द्र ने ‘चित्रपट काव्य’, राम गुलाम रावत ‘जंगल की भैरवी’, हरिकिशन संतोषी ‘दलितों में दलित’, श्यामलाल शमी ‘गीतायन’, ‘अधर प्रिया’, दहकते स्व’, गंगाराम ‘यशोगान’, भगवान स्वरूप कटियार ‘जिन्दा कौमों का दस्तावेज’, रामजीवन भारती ‘आदमी तूफान है’, सुरेश पंजम ‘भीख नहीं अधिकार चाहिए’, हरिवंश तरुण ‘धनु रश्मि’, ‘कागद कोरे’, इत्यादि कृतियाँ व कृतिकार उल्लेखनीय है | 

             हिंदी दलित कविता की उपलब्धियों ने साहित्य जगत में अपना निश्चित महत्वपूर्ण स्थान स्थापित कर दिया है, लेकिन उपलब्धियों के साथ कुछ सीमाएँ भी सामने आती है | इस सम्बन्ध में लिखा है कि “हिंदी दलित कविता की नई संभावनाएँ खुल रही है, लेकिन उसकी कुछ सीमाएँ भी स्पष्ट होती जा रही हैं | जैसे प्रत्येक दलित कवि लगभग एक ही प्रकार की संवेदनाओं को अभिव्यक्ति दे रहे है |”६ निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि “आनेवाला कल दलित साहित्य का होगा, दलित कवियों का होगा |”७ दलित साहित्य में कविताएँ काफी लिखी गई हैं, लिखी जा रही हैं और लिखी जाएँगी | नए-नए कवि उभरकर सामने आ रहे हैं | यह कहने में अतिशयोक्ति न ओगी कि हिंदी में दलित कविता का सागर उमड़ पड़ा हैं |

      

संदर्भ :-

१. हिंदी और मरठी का दलित साहित्य: एक मुल्यांकन-डॉ.सुनीता साखरे, पृ. ३१

२. दलित साहित्य में प्रमुख विधाएँ-माता प्रसाद, पृ.७ 

३. दलित साहित्य विधा और इतिहास-डॉ.बापुराव देसाई, पृ.१४३ 

४. दलित विमर्श-डॉ.धीरजभाई वणकर, पृ.१५ 

५. दलित साहित्य विधा और इतिहास-डॉ.बापुराव देसाई, पृ.१४४

६. साहित्य और परिवेश-वेद प्रकाश ‘अमिताभ’, पृ.४४

७. हिंदी साहित्य में दलित अस्मिता-डॉ.कालीचरण ‘स्नेही’, पृ.११६