विष्णु प्रभाकर के कथा साहित्य ने सामाजिक जीवन की विविध समस्याओं को छुआ है । उनकी कहानियाँ मध्यम वर्ग के जीवन के सहज मनोविज्ञान को प्रस्तुत करने वाली हैं । उपन्यासों के अन्तर्गत उन्होंने प्राचीन परंपरा तथा रुढ़ियों को तोड़ने का भरपूर प्रयास किया है । साथ ही साथ समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं का हूबहू निरुपण किया है । नाटक के क्षेत्र में लेखक ने साहित्यिक प्रचलित भाषा को लेकर नाटकों की रचना रंगमंच के अनुकूल की है । नाटक को तीन अंकों में विभाजित कर द्दश्य भी सीमित ही रखे हैं । कई नाटकों ने तो हिन्दी रंगमंच के क्षेत्र में तहलका मचा दिया था । एकांकियों द्वारा मनुष्य की रुचि , भावनाओं , उनकी उलझनों और संघर्षो के तार - तार को सुलझाने की चेष्टा की है । इनकी एकांकियों में युग चित्रण , देश की हलचलों का चित्र , गाँधीवादी विचार पद्धति का प्रतिपादन और मनोवैज्ञानिक अन्तःद्दष्टि पायी जाती है । जीवनी और संस्मरण के क्षेत्र में प्रभाकर जी को ' आवारा मसीहा ' ने ही इतनी प्रसिद्धि दिलाई कि अन्य सर्जन न करते तो भी उनको साहित्यकार की उपाधि से कोई नकार नहीं सकता । बाल साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने लोककथा , परीकथा , राजा - रानी की कहानियों को अपने बाल - साहित्य का क्षेत्र न बनाकर इससे कुछ हटकर बच्चों के लिए वास्तविक जीवन मूल्यों के लिए लिखना अधिक स्वीकार किया है । इसके अलावा उन्होंने आज के आधुनिक एवं वैज्ञानिक युग के सत्य को लेखन के माध्यम से उजागर किया है ।
विष्णु प्रभाकर ने हिन्दी साहित्य में कुल मिलाकर छः उपन्यास लिखे हैं । इनके उपन्यासों में निशिकान्त ( १९५५ ), तट के बन्धन ( १ ९ ५५ ) , स्वप्नमयी ( १९५६ ) , दर्पण का व्यक्तित्व ( १ ९ ६८ ) कोई तो ( १ ९ ८० ) और अर्द्धनारीश्वर ( १ ९९ ४ ) हैं । ' अर्द्धनारीश्वर ' को ' साहित्य अकादमी ' पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है । इसके अतिरिक्त उन्होंने तीन लघु उपन्यासों को मिलाकर ' संकल्प ' नाम से प्रकाशित किया है ।
सन् १ ९ ५५ ई . में प्रकाशित ' निशिकान्त ' विष्णु प्रभाकर का प्रथम मौलिक उपन्यास है । यह उपन्यास पहले ' ढलती रात ' शीर्षक से छपा था । उपन्यास का कथानक सुसंगठित और मौलिक है । इस उपन्यास में सामाजिक , धार्मिक व राजनीतिक समस्याएँ , नारी की मनोदशा , क्लर्क जीवन की कठिनाइयों तथा समस्त समस्याओं को मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है ।
' तट के बन्धन ' उपन्यास का प्रकाशन १ ९ ५५ में हुआ था । स्वतंत्रता प्राप्ति पूर्व यह उपन्यास लिखा गया है । कथा - शिल्प की दृष्टि से यह उपन्यास अत्यंत शिथिल है , किन्तु इसका उद्देश्य सार्थक है । ' कोई तो ' उपन्यास विष्णु प्रभाकर का एक महत्वपूर्ण उपन्यास होने के साथ- साथ एक अलग ढंग का उपन्यास है । इस उपन्यास में मध्यमवर्गीय पाखंडपूर्ण नैतिकता , यौन विकृति , संस्कारों की जड़ता , रुढ मान्यताओं की जड़ता आदि का वास्तविक यथार्थमूलक चित्रण किया गया है । उपन्यास के आदि से अन्त तक मानवीयता का स्वर गूंजता है तथा बड़ी हिम्मत के साथ समकालीन जीवन में व्याप्त विसंगतियों का नंगा अंकन किया है ।
' अर्द्धनारीश्वर ' सन् १ ९९ ४ में प्रकाशित नवीनतम उपन्यास है । पौराणिक प्रतीक के द्वारा स्त्री - पुरुष के संबंधों की आदर्श स्थिति को खोजने का प्रयास किया है । समग्र उपन्यास व्यक्ति मन , समाज मन तथा अंतर्मन जैसे तीन खंडों में विभाजित है । शिल्प की दृष्टि से जोड़ा कमजोर उपन्यास होने के बावजूद वैचारिक दृष्टि से काफी ठोस है । ' संकल्प ' में तीन लघु उपन्यास संस्कार , स्वप्न और संघर्ष संकलित हैं । हालाँकि ये तीनों उपन्यासों का अपना अलग महत्त्व है , लेकिन उसमें एक समानता दिखाई । देती है , वह है नारी मुक्ति । ' संस्कार ' एक नारी के आहत विक्षुब्ध जीवन की दुःख भरी गाथा - कथा को प्रस्तुत करने वाला उपन्यास है । नारी - पात्र ' लाजो ' नामक यह उपन्यास पहले ' दर्पण ' का व्यक्तित्व नाम से प्रकाशित हुआ था । इस उपन्यास के प्रेरणा स्रोत हिन्दी साहित्य के महापंडित राहुल सांकृत्यायन के बाल - विवाह से सम्बन्धित हैं । इसमें नारी के असंतुष्ट मनः स्थिति की अभिव्यक्ति है । ' स्वप्न ' मध्यवर्गीय नारी समाज का मार्मिक व मनोवैज्ञानिक चित्रण करने वाला लघु उपन्यास है । नायिका अलका मर कर भी नारियों को नये जीवन मूल्यों के निर्माण की प्रेरणा देती है । ' संकल्प उपन्यास में नारी जीवन को शिक्षा के माध्यम से फिर नवस्पंदन प्राप्त होता है । नायिका सुमति जो ' स्वप्न ' उपन्यास की नायिका अलका की तरह स्वप्न ही नहीं देखती बल्कि उसे पूरा कर दिखाती है ।
जाति व्यवस्था या वर्ण व्यवस्था की समस्या भारत वर्ष में काफी पुरानी है । प्राचीन साहित्य से लेकर वर्तमान युग के साहित्य में वर्णव्यवस्था को मिटाने का काम कुछ हद तक साहित्यकारों तथा समाज सुधारकों ने किया है , लेकिन थोड़ी बहुत सफलता मिल पायी है । ' अर्द्धनारीश्वर ' उपन्यास की रुपरेखा स्वतंत्रता पूर्व की है । नायक निशिकान्त ब्राह्मण जाति का युवक है । वह आर्य समाज का समर्थक भी रह चुका है । उसे अपने देश के प्रति अभिमान है । वह समाज में फैले जातिवाद की तौहीन करता है । हिन्दु - मु एकता के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है , फिर भी उसी के सामने कितने लोगों का खून हो जाता है । निम्न जाति की विधवा युवती से विवाह कर समाज में अपनी प्रतिष्ठा भी बनाता है । निशिकान्त को देखकर यह बात जोर देकर कही जा सकती है कि- “ प्रभाकर की चाहतें ये समाजगत मूल्य , घृणा और द्वेष के नहीं हैं- किसी को मारने के नहीं है । मनुष्य का अपमान करने के नहीं हैं ये केवल प्रेम और सहायता के हैं । वे इसी मानवीय प्रेम और सहायता को अपने जीवन और साहित्य में आकर देना चाहते हैं ।“ (१) निशिकान्त और कमला के वार्तालाप से जाना जा सकता है कि विष्णु प्रभाकर ने जाति प्रथा को मिटाने का भरपूर प्रयास किया है । ' धर्ममाल ' एक मुस्लिम युवक था , शुद्धि के पश्चात , वह हिन्दु बना । हिन्दु मालिक के यहाँ नौकरी भी करने लगा था । एक दिन उसने पानी पीने का घड़ा उठाया तो मालिक उस पर बरस पड़ा और डाँटते हुए कहता है ... “तू ने यह क्या किया बे ? हिन्दू बन गया तो क्या हमारा धर्म बिगाड़ेगा ? निकल जा यहाँ से । खाने को नहीं मिलता तो हिन्दू बन जाते है ?” (२) ' कोई तो ' उपन्यास की नायिका वर्तिका मुसलमान युवक असद साथ अपने घर जाते देखकर धर्म के ठेकेदार दोनों को अलग कर वर्तिका को पुलिस के हवाले कर देते हैं । इस घटना से उसकी जिंदगी ही बर्बाद हो जाती है । चन्दा निम्न जाति की लड़की है । वह बिहारी ठाकुर के लड़के हरिराम के साथ भाग जाती है , लेकिन उसका भाई चाहता है कि चन्दा शादी - शुदा पत्नी की तरह रहे । दोनों को ढूंढकर उसकी शादी भी कर देता है , पर यही शादी दोनों पर कहर बनकर टूटती है ।
राजनीतिक उथल - पुथल का आज के समय में भी बोलबाला है । जिनसे समाज प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है । पहले के समय में लोग देश की प्रतिष्ठा के लिए जीते थे , आज सत्ता के लिए जीते हैं । ' निशिकान्त उपन्यास का नायक निशिकान्त शपथ लेता है कि आजीवन राष्ट्रभाषा हिन्दी की सेवा करेगा । हिन्दु - मुस्लिम एकता का प्रयत्न करना और गाँधीजी द्वारा चलाये गये सत्याग्रह में अप्रत्यक्ष भाग भी लेता है । कुमार स्वस्थ हो जाने पर हरिजन आश्रम चलाता है । यहाँ पर हम गाँधीवाद का प्रभाव देख सकते हैं । ' कोई तो ' उपन्यास में बाबा रामदास एक स्वतंत्रता सेनानी है । गाँधीजी के मुक्ति आंदोलन से प्रभावित होकर नौकरी को छोड़कर आश्रम चलाता है , जहाँ पर अहिंसा , मानवीयता आदिका प्रचार करता है । ' कोई तो ' उपन्यास में राकेशरंजन समाजवादी नेता होकर भाषण बड़े जोर - शोर से देता है । समानता की बातें करता है , लेकिन उस पर अमल नहीं करता । खुद ही हमेशा भोग विलास में पड़ा रहता है । उसका सम्बन्ध व्यापारी की बेटी रति से है इसी कारण उसे मंत्री पद से हटाया जाता है । विष्णु प्रभाकर समाजवाद व गाँधीवाद से ज्यादा साम्यवाद में विश्वास रखते हैं ।
स्त्री जाति की प्रतिष्ठा गिराने में दहेज की कु - प्रथा का सबसे बड़ा हाथ है । इसी कारण कितनी अबलाओं को अपनी जान गँवानी पड़ती है । कितनों को बिन - विवाह अपनी जिन्दगीं गुजारनी पड़ती है । दहेज प्रथा के अन्त के लिए सरकार ने सन् १ ९ ६ ९ में कानून पास किया और सन् १ ९ ७४ में संशोधन बिल पास किया , जिसका थोडा - सा प्रभाव जनता पर दिखाई देता है ।
‘ तट के बंधन ’ उपन्यास में नरेश कुमार के विवाह पर बहुत सारा दहेज लिया जाता है । बैरिस्टर साहब ने अपने बेटे को इंजीनियर बनाने के लिए जितने पैसे खर्च किए , उतने सूद समेत वसूल कर लेते है । इसलिए ललिता कहती है – “ तभी तो सगाई हुई है । लड़के की पढ़ाई का सारा खर्च लड़की वाले को देना होगा । सुना है काम भी देंगे । तो यों कहो लड़का बेचा गया है ।“(३) सब कुछ देने के बाद भी नरेश को दहेज कम ही लगता है और एक दिन पत्नी की हत्या भी कर देता है । इस उपन्यास में ' मालती ' दहेज के कारण शादी नहीं कर पाती है । माँ - बाप हमेशा चिंतित रहते हैं । ' कोई तो ' उपन्यास में वर्तिका की बहन मधुर के विवाह के समय काफी दहेज लिया जाता है । वर्तिका यह सब न चाहते हुए भी चुपचाप मूक दर्शक बन कर रह जाती है । ' संकल्प ' उपन्यास की नायिका सुमति की ननद मोनिका अपने कोलेज के सहपाठी किशोर से प्यार करती है , लेकिन किशोर प्यार का झूठा झाँसा देकर कम दहेज मिलने की आशा में अपने पिता के कहे अनुसार विवाह कर लेता है । किशोर के पत्र के माध्यम से लेखक ने आज की दहेज प्रथा का ब्यौरा दिया है –“आज के समाज में व्यक्ति यही तो चाहता है - एक अदद औरत जो गृहस्थी का भार ढो सके , पत्नी का , माँ का , गृहिथी का दायित्व निभा सके और ढेर सारा दहेज ला सके , जिसके सहारे वह शालीनता का मुखौटा लगाकर समाज में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर सके । वह सब हो गया इसलिए मैं प्रसन्न हूँ ।“ (४)
बलात्कार की खबरें आए दिन सुनने को मिलती हैं । नारी इस यातना का शिकार सदियों से सहती आयी है । इसमें नारी को शारीरिक , मानसिक , सामाजिक पीड़ा तथा लांछन को सहना पड़ता है । इस प्रकार की भोगग्रस्त नारियाँ विष्णु प्रभाकर के उपन्यासों में आई हैं । ' तट के बंधन ' उपन्यास के पात्र गीता को बलात्कार के कारण अपनी जान गँवानी पड़ती है । अनिला अपनी पिछली जिन्दगी याद करके रोती हुई कहती है –“वह मर क्यों न गई ... क्यों न मर सकी ? क्या क्या उसने नहीं देखा ? भयंकर हत्याकांड , वासना का वह बीभत्स नग्न नृत्य । उसने अपनी प्रिय सखी गीता को बलात्कार से सिसक - सिसक कर मरते देखा । अपना अपहरण देखा , बलात्कार होते देखा , लेकिन मौत को उस पर दया नहीं आयी ।“ (५) अर्द्धनारीश्वर ' उपन्यास की नायिका सुमिता सिनेमा देखने गयी , तभी उसके साथ अनहोनी घटना घटती है । जो शील उसके लिए आबदार मोती था , उसी को अपनी ननद विभा के लिए गँवा दिया और सुबह क्षत विक्षत देह एक नाले के किनारे मिलती है । ‘ पम्पी ' एक प्रौढ़ है । जब नवविवाहित दुल्हन पर आई तब कुछ ही दिन में नौकर उसको बलात्कार का शिकार बनाता है । शालिनी को सात वर्ष की आयु में सत्तर वर्ष के वृद्ध द्वारा मिठाई की लालच देकर अपनी हवस का शिकार बनाया गया था । निम्नवर्ग की नारी राजकली एक पुलिस हवलदार के द्वारा हवस की शिकार बनायी जाती है । पेट से रहने पर जबरन गर्भपात भी करवाया गया । इस उपन्यास में सुमिता , पम्पी , शालिनी , राजकली आदि नारी पात्र समाज की हूबहू तस्वीर प्रस्तुत करते हैं । समाज भी सुमिता जैसी नारी को कलंकित कहकर पुकारता है , तो सुमिता कहती है – “ बहुत सी युवतियाँ हैं , जो अपने यारों के साथ मुँह काला करती है या उनकी भाषा में कहूँ तो आनंद मानती हैं , भेद खुलने पर जरुर वे कुछ दिन के लिए बदनाम हो जाती है , फिर लोग उन्हें भूल जाते हैं । वे मेरी तरह हमेशा - हमेशा के लिए ' अछूत ' नहीं हो पाती।“(६) ' मरिया ' को घर में अकेली पाकर बलात्कारी छुरा दिखाकर हाथ - पैर बाँध कर अपना काम करके फरार हो जाता है । ' किरण ' को दो गुण्डे जबरन अपनी हवस का शिकार बनाते हैं । इस प्रकार विष्णु प्रभाकर ने धृणित काम करने वाले पुलिस , गुण्डे , नेता , उच्च वर्ग के लोग आदि सभी के माध्यम से समस्याओं का चित्रण किया है ।
भारतीय इतिहास में वेश्यावृत्ति परंपरा की जड़ें बहुत पुरानी हैं । सन् १ ९ २३ पहली बार सरकार ने वेश्यावृत्ति उन्मूलन कानून पास किया था , लेकिन आज भी वेश्या प्रथा बेधड़क चल रही है । विष्णु प्रभाकर ने अपने उपन्यासों में वेश्यावृत्ति के कारण व वेश्याओं की समस्याओं का चित्रण बखूबी किया है । विष्णु प्रभाकर ने अपने उपन्यासों में वेश्यावृत्ति के कारण के रूप में आर्थिक अभाव , प्रवृत्तिजन्य दुर्बलता , वंशानुक्रम , तवंगर लोग तथा समाज को जिम्मेदार बताया है । ' कोई तो ' उपन्यास में परबतिया कुछ प्रवृत्तिजन्य दुर्बलताओं के कारण वेश्यावृत्ति को अपनाती है और पूछने पर बताती है –“साला मारता था । बात - बात में कहता है , तू आखिर रंडी चकले वाली । मैंने भी कह में दिया - वह तो दुनिया जानती है , बार - बार एलान करता है ? लेकिन स्वभाव क्या बदल सकता है ? फिर बीबीजी , मैं भी एक आदमी से तंग आ गई थी । एक दिन फिर यहाँ लौट आयी । यहाँ कोई वैसे ताने - तिसने तो नहीं देता । नये नये मरद - माणस मिले हैं।“(७) ' राधा वंशानुक्रम व परिस्थितियों की विवशता के कारण वेश्यावृत्ति अपनाती है । ' निर्मला ' गरीब परिवार से तालुकात रखती है और यह सोचकर वेश्यावृत्ति अपनाती है कि इस धन्धे में अच्छी कमाई होती है । ' अर्द्धनारीश्वर ' उपन्यास की मधुलिता कोलेज छात्रा है जो आर्थिक अभाव के कारण कोलगर्ल बन जाती है । समाज में ऐसी महिलाएँ भी होती है जो समाज में संभ्रान्त व्यक्तित्व रखती है और इच्छाओं की पूर्ति के लिए यौन संबंध स्थापित करती है । ' रति ' धनवान और पढ़ी - लिखी युवती है , जो पैसो के बल पर आदमियों को बदलती रहती है । इस प्रकार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समाज ही वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देता है ।
प्रभाकर ने समकालीन जीवन और उसमें व्याप्त अंधविश्वासों , रुढ़ियों तथा जातिवाद के जर्जरित स्वरुप का खंडन किया है । उन्होंने न्याय तथा सद्भाव को महत्व दिया है । ' कोई तो ' उपन्यास की वर्तिका सामाजिक कलंक को ढोये जा रही है । बेकसूर होकर बोझ ढोना उसके लिए असह्य हो जाता है । ' निशिकान्त ' उपन्यास में निशिकान्त छुआछूत को नहीं मानता , समाज में फैले हुए तो अंधविश्वास से ऊपर उठ जाता है । निम्न जाति की विधवा कमला से विवाह करता है । ' स्वप्नमयी ' उपन्यास की नायिका अपने अधिकारों के लिए लड़ते - लड़ते खत्म हो जाती है । ' अर्द्धनारीश्वर ' उपन्यास में सभी पात्र हिम्मत के साथ रूढ़िवादी समाज का मुकाबला करते है । ' कोई तो ' उपन्यास में विष्णु प्रभाकर ने वर्तिका , नारायण , विभा , सुमिता , अजीत आदि का माध्यम से नये समाज की कल्पना की है । उन्होंने तत्कालीन समस्याओं के चित्रण करते हुए अपने लेखन में नई जागरुकता , नये भावबोध को जगाया है । समाज में व्याप्त व्यापक समस्याओं को उन्होंने अपने उपन्यासों में जगह दी है । आर्थिक असमानता , नये पुराने आदर्शों और सिद्धांतों का द्वन्द्व , वैयक्तिक तनाव , मध्यवर्गीय जीवन का शिथिलीकरण , वर्गों का संघर्ष और आधुनिक शिक्षित समाज व उसकी तज्जन्य उलझने आदि समस्याओं का अंकन किया है । विष्णु प्रभाकर के उपन्यासों में जनता की विश्रृंखलित स्थितियों की यथार्थ अभिव्यक्ति के कारण समाज की प्रगति एवम् रुढ़िगत संकीर्णता से मुक्ति का स्वर प्रबल रहा है । विष्णु प्रभाकर बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं । हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधा में सफलता प्राप्त की है । इनका कथा साहित्य कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टिकोण से अपना अलग महत्व स्थापित करता है । लेखक ने उपन्यासों के माध्यम से समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं का हूबहू अंकन किया है तथा समाज के यथार्थ प्रतिबिम्ब को प्रतिबिम्बित किया है । जो आज के समय में भी उतना ही सार्थक और उचित लगता है ।
संदर्भ :
१. लोकयती वैष्णव - विष्णु प्रभाकर , धर्मवीर , पृ.सं. ४ ९
२. निशिकान्त - विष्णु प्रभाकर , पृ.सं. ६२
३. तट के बंधन-विष्णु प्रभाकर , पृ.सं. २५
४. संकल्प - विष्णु प्रभाकर , पृ.सं. १७३
५. तट के बंधन - विष्णु प्रभाकर , पृ.सं. १५१
६. अर्द्धनारीश्वर - विष्णु प्रभाकर , पृ.सं. ५६
७. कोई तो - विष्णु प्रभाकर , पृ.सं. ६८