(अ) प्रस्तावना :-
मैथिलीशरण गुप्त हिंदी काव्य साहित्य के एक यशस्वी कवि है, जिन्होंने अपने अमूल्य योगदान से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है । मैथिलीशरण गुप्त के जीवन से परिचित होने का अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि भारतीय संस्कृति एवम् राष्ट्रीय चेतना से अवगत होना है | इनका साहित्य और व्यक्तित्व भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रीय भावनाओं के रंग से रंगा हुआ है । वे हिंदी साहित्य के माध्यम से भारतीय सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना के उज्ज्वल रूप को संसार के सामने प्रस्तुत करते हैं । इतना ही नहीं, साहित्य के माध्यम से आधुनिक समस्या एवं समाधान भी अपनी रचनाओं के जरिए पाठक के सम्मुख रखते हैं । दूसरी तरफ़ हमारी आध्यात्मिक परंपराओं से बखुबी परिचित करवातें हैं । हम गुप्त जी को एक कवि, भक्त, साधक, गायक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक एवम् विभिन्न भाषा के ज्ञाता के रूप में पहचानते हैं । उनका सामान्य परिचय निम्न रूप में दिया जा सकता है ।
(ब) मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय :-
मैथिलीशरण गुप्त के व्यक्तित्व का परिचय कुछ इस प्रकार दिया जा सकता है :
(१) जन्म और जन्म स्थान :-
राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त ईस्वीसन 1886 में उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी जिला में स्थिति चिरगाँव में हुआ था ।
(२) माता-पिता और परिवार :-
कवि मैथिलीशरण गुप्त के पिता का नाम रामचरण जी है । सेठ रामचरण जी कविता के बड़े ही प्रेमी वैष्णवभक्त व्यक्ति थे । वे 'कनकलता' के नाम से छंद रचना किया करते थे । मैथिलीशरण गुप्त जैसे यशस्वी व्यक्तित्व को संसार में जन्म देने वाली माता का नाम काशीबाई है । सेठ रामचरण जी के परिवार में पांच पुत्र हुए हैं, जिसमें महरामदास, रामकिशोर, मैथिलीशरण, सियारामशरण और चारुशीलाशरण । इनमें मैथिलीशरण गुप्त अपने माता-पिता के तीसरे संतान थे । मैथिलीशरण गुप्त और सियारामशरण गुप्त दोनों भाई हिंदी साहित्य के क्षेत्र में बहुत ही प्रसिद्धि, यश और सम्मान पाते हैं ।
(३) मैथिलीशरण गुप्त का बचपन और नामकरण :-
मैथलीशरण गुप्ता का बचपन सामान्य बालक की तरह बीता है | पारिवारिक संस्कारित नाम लाला मदनमोहन जू, पितृदत्त बचपन का नाम 'मिथिलाधिप नंदिनीशरण' था और आरंभिक साहित्यिक रचनाओं में रासिकेश एवम् रसिकेंद्र रखा लिया था, किन्तु स्कूल में अध्यापक ने उनका नाम बदलकर 'मैथिलीशरण' कर दिया और वही नाम आगे चल कर आजीवन उनके साथ जुड़ा रह ।
(४) शौक :-
मैथिलीशरण गुप्त को साहित्य के संस्कार बचपन से ही मिले थे, अपितु साहित्य के अलावा उन्हें तैराकी, गेंद और बल्ले से खेलना, पतंग उड़ाना, नाटक देखना, कुश्ती लड़ना, कसरत करना, ताश खेलना आदि खेल बहुत ही पसंद करते थे |
(५) शिक्षा संस्कार :-
मैथिलीशरण गुप्त शिक्षा आरंभ के कुछ दिन गाँव के स्कूल में शिक्षा लेना शुरू करते है | फिर घर पर रह कर हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी एवं अंग्रेजी भाषा का अभ्यास करते हैं | यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उनका शिक्षा संस्कार अपना गांव, घर तथा स्कूल रहा है |
(६) गुप्त जी के आदर्श एवं प्रेरक :-
मैथिलीशरण गुप्त अपने जीवन के आदर्श 'राम', 'बुद्ध' और 'महात्मा गांधी' को मानते हैं | काव्य के संस्कार गुप्ताजी में जन्म चाहते थे, बल्कि साहित्य सर्जन के लिए विशेष प्रेरणा 'आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी' से मिलती है | वे द्विवेदी जी को अपना काव्य के गुरु स्वीकार करते है | उन्होंने स्वयं आचार्य महावीरप्रसाद त्रिवेदी जी के साथ के संबंधों का विवरण अपने दो निबंध 'आचार्य देव' एवं 'मेरे प्रिय कवि' के आरंभ में किया है | अच्छे समय में अपने काव्य गुरु के प्रति कृतज्ञ भाव को प्रकट किया है |
गुप्त जी आरंभ में 'मुंशी अजमेरी' से बहुत ही प्रोत्साहित होते है | मन से मुंशी अजमेरी को ये अपने समान मानते थे | मुंशी अजमेरी जी के प्रति भी अपनी कृतज्ञता 'साकेत' के निवेदन में व्यक्त करते हैं | उनकी मृत्यु पर 'समाधी' शीर्षक से एक कविता 'उपवास' नामक काव्य संग्रह में संकलित की गई |
(७) जेल यात्रा :-
ईस्वीसन 1941 में मैथिलीशरण गुप्त को कारावास की सजा भी भुगतनी पड़ी थी | 'भारत रक्षा कानून' के अंतर्गत गुप्त जी को राजबंदी बनाकर 'झाँसी' जेल में डाल दिया गया, लेकिन जेल में रहकर भी अपनी साहित्य साधना करते रहें |
(८) विवाह संस्कार :-
मैथिलीशरण गुप्त ने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं रहा । संवत् १९५२ में कमला देवी से प्रथम विवाह हुआ, संवत् १९६१ में विमला देवी के साथ दूसरा शादी हुई । मुंशी अजमेरी के कहने पर तीसरा विवाह संवत् १९७१ में सरयू देवी के साथ होता है । विवाह और संतान को लेकर गुप्त जी को दुख ही दुख मिलते है ।
(९) प्रकाशक :-
मैथलीशरण गुप्ता कवि होने के साथ प्रकाशक भी है | उनकी प्रकाशन संस्था का नाम 'साहित्य सदन' है
| जहाँ से मैथिलीशरण गुप्त और सियारामशरण गुप्त का समस्त साहित्य प्रकाशित हुआ है | ईस्वीसन 1954 से 1955 में 'मानस मुद्रण' की स्थापना भी करते है |
(१०) गुप्त जी का स्वभाव :-
मैथलीशरण गुप्त हृदय से भक्त है, स्वभाव से उदार, विनम्र और मिलनसार है | उनके व्यक्तित्व के अंदर दूरदर्शिता एवं प्रभावशाली के गुण सहज विद्यमान हैं | वे अपनी आत्मा की आवाज को कभी नहीं दबाते थे | निर्भय होकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करते थे | चाहे वे साहित्य साधन हो या राजनीति का भवन |
(११) खड़ी बोली हिंदी के प्रथम और नये काव्य पथिक :-
मैथिलीशरण गुप्त के समय में हिंदी साहित्य के कवि ब्रजभाषा में काव्य रचना करते थे | यह कह सकते हैं कि ब्रजभाषा ही उस समय काव्य की पर्याय थी | ऐसे समय में मैथिलीशरण गुप्त ने नया रास्ता चुना | खड़ीबोली हिंदी में काव्य रचना करना कठिन ही था, लेकिन इन्होंने हिंदी साहित्य प्रेमियों को खड़ीबोली में काव्य रसायनों का आस्वादन कराया था | आने वाले पीढ़ी को लिए नया रास्ता दिखाया | जिस पर आजका हिन्दी साहित्य कदमदर कदम बढ़े जा रहा है |
(११) अनुवादक :-
मैथिलीशरण गुप्त ने मौलिक ग्रंथों की रचना के अलावा बांग्ला, फारसी और संस्कृत के कुछ प्रसिद्ध ग्रंथों का अनुवाद किया | जिसमें संस्कृत से 'वासवदत्ता', बांग्ला से 'मेघनाथ वध' और फारसी से 'उमर खैय्याम की रूबाइयों' का अनुवाद किया |
(१२) पत्रिकाओं का प्रकाशन :-
मैथिलीशरण गुप्त ने अपने साहित्यिक जीवन में कुछ पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया है | जिसमें वैश्योपकारक(कलकत्ता) से वेंकटेश्वर (बम्बई) से और मोहिनी (कन्नौज) से प्रकाशित होने वाली पत्रिका प्रकाशित होती थी ।
(१३) सम्मान एवं पुरस्कार :-
१. अपने योगदान के लिए महात्मा गांधी के द्वारा गुप्त जी को 'राष्ट्रकवि' की उपाधि प्रदान की जाती है और संपूर्ण भारत वर्ष में ये 'राष्ट्रकवि' के रूप से विख्यात है |
२. मैथलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य में साहित्यकारों के बीच 'दद्दा' के नाम से सम्मानित है |
३. ईस्वीसन 1936 में 'साकेत' महाकाव्य पर उन्हें 'मंगला प्रसाद' पारितोषिक प्राप्त होता है |
४. 'साकेत' महाकाव्य पर हिंदुस्तानी एकेडेमी द्वारा सन् 1935 में ₹500 रू. का पुरस्कार दिया जाता है |
५. भारत सरकार द्वारा ईस्वीसन 1953 में 'पद्मभूषण' की उपाधि से ये सम्मानित होते है |
६. ईस्वीसन 1962 में राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने गुप्त जी के लिए 'अभिनंदन' ग्रंथ प्रकाशित किया था |
७. आग्रा विश्वविद्यालय और हिंदू विश्वविद्यालय गुप्त जी को डी. लिट्. की मानक उपाधि प्रदान करते है |
८. ईस्वीसन 1952 से 1962 तक वे राज्यसभा के 'मनोनीत सदस्य' के रूप में सेवारत्त रहे |
(१४) मृत्यु :-
11 दिसंबर 1964 में दिल का दौरा पड़ने से मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु हो जाती है |
(क) साहित्य सर्जन :-
मैथलीशरण गुप्त को काव्य संस्कार जन्मजात मिले थे पर सृजन के लिए विशेष प्रेरणा आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी से मिली और सन् 1906 से ही इनकी रचनाएँ 'सरस्वती' पत्रिका में प्रकाशित होने लगी थी | 1909 में इनका प्रथम काव्य ग्रंथ 'रंग में भंग' प्रकाशित होता है | तब से लेकर मृत्यु पर्यंत साहित्य साधना करते रहें | कुल मिलाकर इनके 40 से ऊपर ग्रंथ प्रकाशित है | महत्वपूर्ण काव्य ग्रंथों की सूची निम्नलिखित है :
(१) महाकाव्य :-
१. 'साकेत' 1931/1932
श्रीराम के लीलाधाम साकेत (अयोध्या) के आधार पर शीर्षक और साकेत की रचना का मुख्य उद्देश्य उर्मिला काव्य की उपेक्षिता न रह जाए । इसलिए गुप्त जी ने राम कथा को आधार बनाकर रचित साकेत महाकाव्य में उपेक्षित किंतु तपस्वी पात्रों - उर्मिला, लक्ष्मण, भरत आदि के चरित्रों को भावपूर्ण उन्मेष दिखाकर रामकथा को आधुनिक परिपेक्ष में तर्कसंगत मनोवैज्ञानिक एवं युग सापेक्ष रूप में ढाला है ।
२. जय भारत 1952
मैथिलीशरण गुप्त का सर्वाधिक विस्तृत महाकाव्य 'जय भारत' में कवि ने नहुष के जन्म से लेकर पांडवों के स्वर्गारोहण तक की प्रमुख महाभारतकालीन घटनाओं का समावेश किया है और महाभारत की घटना के बाद होने वाले विनाश को संसार के सामने आधुनिक परिपेक्ष में प्रस्तुत किया है । जय भारत महाकाव्य का मुख्य उद्देश्य मानव जाति के महत्व को स्थापित करना रहा है ।
(२) खंडकाव्य :-
रंग में भंग 1909
जयद्रथ वध 1910
किसान 1917
पंचवटी 1925
शक्ति 1928
सैरेंध्री 1928
वन वैभव 1928
वक संहार 1928
विकटभट 1929
गुरुकुल 1929
यशोधरा 1932
द्वापर 1936
सिद्धराज 1936
नहुष 1940
अर्जन और विसर्जन 1942
काबा और कर्बला 1943
अजित 1946
प्रदक्षिणा 1950
पृथ्वी पुत्र 1951
युद्ध 1951
विष्णुप्रिया 1957
रत्नावली 1960
(३) मुक्तक काव्य :-
भारत भारती 1912
पद्य प्रबंध 1912
पत्रावली 1916
वैतालिक 1919
मंगल घट 1924
स्वदेश संगीत 1925
हिंदू 1927
झंकार 1929
कुणाल गीत 1942
विश्व वेदन 1942
अंजलि और अधर्य 1951
राजा - प्रजा 1956
उच्छवास 1960
(४) चम्पू काव्य :-
यशोधरा 1932
(5) अनूदित काव्य :-
शकुन्तला 1923
विरहिनी व्रजांगना 1925
प्लासी युद्ध
मेघनाद-वध
स्वप्नवासवदत्ता
उमर खय्याम की रुबाइयां
(६) नाटक एवम् गीति नाट्य :-
तिलोत्तमा 1916
चंद्रहास 1916
अनघ-लीला 1925
हिडिंबा
अनुराग
चरणदास
तिलोत्मा
निष्क्रिय
प्रतिरोध
प्रतिमा (अनूदित नाटक)
अभिषेक (अनूदित नाटक)
अविमारक (अनूदित नाटक)
(ड) गुप्ता जी के काव्य की प्रमुख विशेषता है :-
१. मैथलीशरण गुप्त राम के अनन्य उपासक हैं | वे धार्मिक कट्टरता को त्यागकर कृष्ण काव्य के मंगला-चरण में भी राम की वंदना करते है |
२. हमारे देश और युग के प्रतिनिधि कवि है |
३. महात्मा गाँधी के सिद्धांतों के प्रबल समर्थक कवि है |
४. भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रीय भावना के उन्नायक कवि |
५. संयोग और वियोग के सहज, सरस और मार्मिक चित्रों के रचयिता कवि |
६. प्राणी मात्र के लिए प्रेमपूर्ण हृदय के व्यक्ति है |
७. भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक परंपरा को आलोकित करने वाले आलोक स्तंभ सर्जक है |
८. हिंदू सभ्यता और संस्कृति के अत्यंत उज्ज्वल रूप को संसार के सामने रखने वाले कवि |
९. नारी की गरिमा और गौरव में श्रीवृद्धि करने वाले साहित्यकार |
१०. काव्य में करुणा चित्रण के सिद्धहस्त कलाकार |
११. हिंदी भाषा के परिमार्जन के बहुत बड़े परिश्रमी सर्जक | १२. हिंदी खड़ीबोली में सरसता, मधुर, कोमलता, सजीवता , चित्रात्मकता एवं सहजता को प्रधानता देने वाले कवि ।
१३. भाषा को और अधिक निखार देने के लिए प्रवाहपूर्ण शैली का प्रयोग करता सर्जक |
१४. गुप्त जी ने अपनी कृतियों में सुख-दुख के विशाल जीवन का लेखा-जोखा, विराट मानवीय चेतना और वे विद्या पूरा नाम जगत को चित्रित किया है |
१५. राजनीति के क्षेत्र में गांधीवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक |
१६. भौतिकवाद, उपयोगितावाद आदि भिन्न-भिन्न विषयों को प्रयोग जरिए प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में अपने काव्य में स्थान देते हैं |
१७. समाज जीवन के यथार्थ एवं आदर्श चित्रों का काव्यों में सफल गुम्फन किया है |
१८. कविता में वीरह वर्णन के दौरान संयोग-वियोग के चित्रण में संयोग काल को अधिक महत्व देते हैं |
१९. भारतवर्ष में व्याप्त समस्याओं का चित्रण काव्य के जरिए करते है और समाधान प्रस्तुत करना भी अच्छी तरह से जानते हैं |
२०. राष्ट्रीय जागरण और सुधारयुग की नैतिक चेतना से अनुप्राणित कविता के कवि |
२१. पारिवारिक जीवन और पति-पत्नी के संबंध का समयोचित चित्रण |
२२. आध्यात्मिकता के साथ साथ रहस्यात्मकता का वर्णन किया हैं |
२३. मैथिली शरण गुप्त की प्रमुख भाषा हिंदी खड़ीबोली है |
२४. बौद्ध धर्म की करुणा का उद्घोष अनघ काव्य में सुनाई पड़ती है | सिखों की शक्ति की गाथा 'गुरुकुल' में, मुसलमान चरित्र की महानता एवं सहनशीलता 'कर्बला' में सुनाई है । धर्म और राष्ट्रीय भावना से ऊपर विश्व बंधुत्व के गीत गाने वाले कवि मैथिलीशरण गुप्त है |